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शुक्रवार, 18 मई 2012

कैसी जिरह ? ( वक़्त दीजिये ... पूरा पढ़िए )



मौका माँगना उस क्षेत्र में
जिसमें हम कुछ करना चाहते हैं
गलत कैसे ?
बचपन में माँ कहती थी
कि सत्यनारायण भगवान् का प्रसाद
या छठ का प्रसाद
मांगकर खाना और फलदायक होता है
तो जो क्षमताएं हमें प्रभु ने दी है
उसके लिए किसी से कहना
उसका मान है
और अपना विस्तार
फिर कैसी जिरह ?.... क्षमताएं अपनी जगह हैं , पर निरंतर प्रयास से ही सफलता निश्चित है . कौन सही कौन गलत .... अभी हममें से कोई भी इतना परिपक्व नहीं जो कह सके . हिंदी जो
लुप्तप्रायः थी , उसके लिए हम सबने कदम उठाये .... पर दूध के दांत टूटने से पहले हम आलोचना की कुर्सी पर बैठ गए . माना रामप्रसाद गलत है श्याम सही है - तो क्या हम चौक पर उसे गोली मार दें ? ! क्या मिलेगा ? क्या हमसब इसी प्राप्य के लिए ब्लॉग की दुनिया में उतरे थे या हमारा मकसद था हिंदी साहित्य के इतिहास को विस्तार देना .
आज मैं अपनी बात करती हूँ - २०१० में मुझे सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान मिला ! बहुत ख़ुशी हुई , पर मेरे साथ हो या किसी के साथ - वह अक्षरशः सत्य हो ही नहीं सकता ! बस ये फर्क रहा कि मैंने निष्पक्ष ढंग से परिकल्पना का संचालन किया , और नज़र में आई और उसू वक़्त के कई नाम पीछे रह गए . मैं जानती हूँ , और खुद उनकी प्रशंसक हूँ , पर समय बड़ा बलवान .
हिन्दयुग्म का पोडकास्ट हो या परिकल्पना समारोह हो या वटवृक्ष या ब्लॉग बुलेटिन ..... मैंने गोता लगाकर असली मोती ढूंढें , पर सारे मोती कहाँ मिलते हैं ..... तो जो मिल गए , वे दिखे ... जो नहीं मिले वे असली नहीं - ये किसने कहा ?
कई ऐसे ब्लौगर हैं जो मुझे नहीं जानते और मैं उन्हें नहीं जानती - इस अनजानेपन से हम कोई और अर्थ क्यूँ निकल लें !
शुरू में अच्छी पत्रिकाओं से संपर्क साधना होता है , हम तो कुछ भी नहीं - ज्ञानपीठ पुरस्कार पानेवालों ने भी किया . हम किसे ठेस पहुंचा रहे और क्यूँ ? हम सब खुद को समय दें और सोचें कि क्या हमने इसीलिए ब्लॉग बनाया कि न चैन से रहेंगे न रहने देंगे .
सच बस इतना है ------ कोई किसी से कम नहीं और अपने भीतर यह विश्वास होना चाहिए ...

इस विश्वास के आईने में कुछ मोती -

19 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रही हैं आप...परफेक्ट कोई नहीं. अपनी क्षमता के अनुसार कोशिश करना हमारा धर्म होना चाहिए.
    बढ़िया बुलेटिन

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  2. छलक पड़ी पीड़ा को अनुभव कर पा रहा हूँ। सागर में से मोती चुनना कोई हंसी खेल नहीं। इतने चिट्ठे ..इतने मोती, साथ में समुद्री घास भी ....यह अत्यंत श्रमसाध्य कार्य है, शारीरिक भी और मानसिक भी।
    आप मन को क्लांत मत होने दीजिये। आरोप हमें और भी सतर्क रहने की प्रेरणा देते हैं।
    दिये लिंक पर धीरे-धीरे पहुँचता हूँ।

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  3. "तू न थमेगा कभी तू न मुदेगा कभी तू न रुकेगा कभी,
    कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
    अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ..."

    हिन्दी ब्लोगिंग के इस अग्निपथ पर आइये सब साथ चले ...

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  4. बिल्कुल जी... हम आपके साथ हैं... :-)

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  5. नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है
    चढ़ती दीवारों पे सौ बार फिसलती है
    मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
    चढ़ कर गिरना,गिरकर चढ़ना न अखरता है,

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  6. आपने अक्षरश: सही लिखा है .... समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी कुछ नहीं मिलता .... ब्लोगिंग में सभी अपने विचार बांटने आए हैं .... जो कुछ भावनाएं डायरी के पन्नों में सीमित रह जाती थीं यहाँ जब कुछ पाठक पढ़ते हैं तो मन को सुकून मिलता है ...

    बहुत बढ़िया बुलेटिन ... मुझे शामिल किया ...आभारी हूँ

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  7. रश्मि जी ,
    आपने बिलकुल सत्य लिखा है ...जिरह कैसी ? आज के बुलेटिन में मुझे शामिल करने के लिए आभार

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  8. मैंने गोता लगाकर असली मोती ढूंढें , पर सारे मोती कहाँ मिलते हैं ..... तो जो मिल गए , वे दिखे ... जो नहीं मिले वे असली नहीं - ये किसने कहा ?
    आपका गोता तो लगाना जारी रहेगा यूँ ही वर्षो तक .... जो नहीं दिखे वे असली हैं और हम सब से बहुत जल्द मिलेगें भी ....
    लिंक्स की प्रस्तुति लाजबाब है .... !!

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  9. सर्वश्रेष्ठ उन्ही में से चुना जाता है जो सामने हो , फिर इसमें व्यर्थ वाद विवाद क्यों !
    सही कहा !
    अच्छे लिंक्स !

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  10. रश्मि दीदी ,
    मैं भी सब कुछ देख सुन रहा हूं , और समझने की कोशिश भी कर रहा हूं , जल्दी ही एक पोस्ट में ही रखूंगा अपने मन की बात । बुलेटिन हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर बन पडा है । आता हूं सभी लिंक्स पर टहल के

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  11. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... आपकी बात से पूणत: सहमत हूँ ... आभार

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  12. कोई किसी से कम नहीं और अपने भीतर यह विश्वास होना चाहिए ...
    सच कहा आपने .... एक से एक सुंदर लिंक्स हैं ...

    मेरा ब्लॉग शामिल करने के लियें
    रश्मि जी आपका आभार ..

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  13. आपकी पीड़ा में मैं अपनी पीड़ा ढूंढ रहा हूँ, कभी-कभी मैं सोचता हूँ क्यों न बंद ही कर दूं परिकल्पना सम्मान को.....फिर सोचता हूँ कि जबतक संभव हो हिम्मत न हारी जाए ....अब तो लोग मेरी नियत पर ही शक करने लगे हैं .........देखिये कबतक चल पाता हूँ !

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  14. रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
    आपकी पीड़ा में मैं अपनी पीड़ा ढूंढ रहा हूँ, कभी-कभी मैं सोचता हूँ क्यों न बंद ही कर दूं परिकल्पना सम्मान को.....फिर सोचता हूँ कि जबतक संभव हो हिम्मत न हारी जाए ....अब तो लोग मेरी नियत पर ही शक करने लगे हैं .........देखिये कबतक चल पाता हूँ !
    .................""""

    यदि १००० हमारे विरोध में होते हैं तो १००० पक्ष में भी .... तो विरोध को क्यूँ हावी होने दें . मंजिल पर पहुंचनेवाले के रास्तों का अनुमान हम इन्हीं रास्तों से कर सकते हैं . भक्ति कई तरह की होती है , ईश्वरीय , मानवीय , साहित्य , प्रजा ...... और हर भक्ति के मार्ग पर विरोधी स्वर उठते ही उठते हैं .

    जवाब देंहटाएं

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