जी हाँ ....आप पढ रहे हैं ब्लॉग बुलेटिन की यह खास मेहमान पोस्ट जिसके होस्ट हैं चश्मुद्दीन उर्फ यशवन्त माथुर ,हलचल वाले :)
वैसे मेहमान शब्द सुनकर मैं थोड़ा डर सा जाता हूँ क्योंकि बिहार में मेहमान किसे बुलाते हैं यह किसी से छुपा नहीं है और वैसा मेहमान बन कर अभी मैं मिमियाना नहीं चाहता :)....लेकिन कभी कभी मैं सोचता हूँ कि ब्लोगिंग की दुनिया मे हम सब मेहमान जैसे ही हैं क्योंकि चैट पर अगर कभी मिले तो वही सब फॉर्मल बातें आई मीन ....तकल्लुफ सा ....बना रहता है; और मेरी बात करें तो कुछ लोगों की नज़र मे मैं एक कार्टून हूँ और मेरी कार्टूनियत के नज़ारे चेहरे की किताब उर्फ फेसबुक पर अक्सर देखने को मिल ही जाते हैं।
ब्लॉग रेल मे 22 महीने का मेरा यह सफर अभी तक तो सुहाने रस्तों से गुज़रा है.... ऐसे रास्ते जहां के गुलजार नज़ारे देखते हुए समय का पता ही नहीं चलता और .... शायद आगे का सफर भी ऐसा ही रहेगा।
तो चलिये इस हॉल्ट (बुलेटिन) पर खड़े होकर आगे के लिंक ट्रैक पर भी एक नज़र डाल ही लीजिये---
यादों के पोस्टर पर
क्यों हो गया न सीरियस ...?...न ...न....न...लिंक्स को समेटते हुए सीरियस कविता (?) सी ज़रूर बन गयी .....बट आय एम हैप्पी एट ऑल :) और मेरे साथ आप भी अब मुस्कुरा ही दीजिये...ऐसे ....:)))))
तो आज के इस मेहमान पर .....आप हो जाइये मेहरबान ...बा मुलाहिजा होशियार .....कीजिये इंतज़ार.... ब्लॉग बुलेटिन की अगली शानदार पेशकश का....नमस्कार!
वैसे मेहमान शब्द सुनकर मैं थोड़ा डर सा जाता हूँ क्योंकि बिहार में मेहमान किसे बुलाते हैं यह किसी से छुपा नहीं है और वैसा मेहमान बन कर अभी मैं मिमियाना नहीं चाहता :)....लेकिन कभी कभी मैं सोचता हूँ कि ब्लोगिंग की दुनिया मे हम सब मेहमान जैसे ही हैं क्योंकि चैट पर अगर कभी मिले तो वही सब फॉर्मल बातें आई मीन ....तकल्लुफ सा ....बना रहता है; और मेरी बात करें तो कुछ लोगों की नज़र मे मैं एक कार्टून हूँ और मेरी कार्टूनियत के नज़ारे चेहरे की किताब उर्फ फेसबुक पर अक्सर देखने को मिल ही जाते हैं।
ब्लॉग रेल मे 22 महीने का मेरा यह सफर अभी तक तो सुहाने रस्तों से गुज़रा है.... ऐसे रास्ते जहां के गुलजार नज़ारे देखते हुए समय का पता ही नहीं चलता और .... शायद आगे का सफर भी ऐसा ही रहेगा।
तो चलिये इस हॉल्ट (बुलेटिन) पर खड़े होकर आगे के लिंक ट्रैक पर भी एक नज़र डाल ही लीजिये---
[ट्रैक नंबर-1]
मनाते हुए
इंटरनेट की गलियों मे
देखने
बिग बी और युवी के ट्वीट्स
जिनके सिमटे अक्षरों ने
जिनके सिमटे अक्षरों ने
ये सत्य भी तह लिया!
कि एक
गीत..........जो लिख न सकी.
उस पर टिका था
तेरा वजूद ...
पर अब न जाने क्यों ....
जिस्म का काला जादू
उघाड़ रहा है
मेरी पहचान ।
[ट्रैक नंबर-2 ]
बहुत डरता हूँ
कि चिताबद्ध होने से पहले
यादों के पोस्टर पर
अपने "सिक्स्त सेन्स" से
लिख दूंगा
तेरी ग़ज़ल ।
क्यों हो गया न सीरियस ...?...न ...न....न...लिंक्स को समेटते हुए सीरियस कविता (?) सी ज़रूर बन गयी .....बट आय एम हैप्पी एट ऑल :) और मेरे साथ आप भी अब मुस्कुरा ही दीजिये...ऐसे ....:)))))
तो आज के इस मेहमान पर .....आप हो जाइये मेहरबान ...बा मुलाहिजा होशियार .....कीजिये इंतज़ार.... ब्लॉग बुलेटिन की अगली शानदार पेशकश का....नमस्कार!
वाह ...बहुत खूब यहां भी मचा दी न बुलेटिन में हलचल ...
जवाब देंहटाएंmajedaar sir ji
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंअगर इस बुलेटिन पर प्रस्तुतकर्ता का नाम न भी होता तो हम पहचान जाते कि कौन (कार्टून) है ये...................
:-)
बहुत प्यारी प्रस्तुति यशवंत....
हमारी रचना को मान देने के लिए आपका आभार.
ढेर सी शुभकामनाएँ और स्नेह.
अनु
यशवंत की क्षणिकामयी चर्चा लाजबाब होती है.यह बुलेटिन भी बहुत बढ़िया रहा.आभार.
जवाब देंहटाएंयशवंत की क्षणिकामयी चर्चा लाजबाब होती है.यह बुलेटिन भी बहुत बढ़िया रहा. आभार.
जवाब देंहटाएंवाह ........ रेलगाड़ी से छुक छुक छुक यहाँ और लिंक्स की बहार खुश अंदाज में -
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण...सभी लिंक्स शानदार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंnice creation :)
जवाब देंहटाएंऐसे माहौल मे जब ब्लॉग जगत का तापमान चरम पर हो ... लोग बाग अपनी अपनी निजी खुन्नस ब्लॉग के माध्यम से निकलते दिख रहे हो ... यह बुलेटिन अपने आप मे एक बढ़िया उदाहरण है आपसी सदभाव का ... सब जानते है यशवंत जी खुद एक ऐसे ब्लॉग का संचालन संभालते है जो ब्लॉग पोस्टो की चर्चा से जुड़ा हुआ है ऐसे मे ब्लॉग बुलेटिन टीम के अनुरोध पर बुलेटिन लगा कर उन्होने यह साबित किया है कि भले ही कुछ लोग इस ब्लॉग जगत का माहौल खराब करने की लाख कोशिश कर लें हम लोग मिल कर उनकी हर साजिश का सामना करेंगे और ब्लॉग जगत मे ऐसे ही आपसी सदभाव बनाए रखेंगे ! मैं अपनी और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से यशवंत जी को इस प्रयास के लिए बहुत बहुत साधुवाद देता हूँ ! हम आपके आभारी है !
जवाब देंहटाएंमाथुर जी...!
जवाब देंहटाएंआपके अंदाजे बयां का कोई जबाब नहीं है.
यही कहना
सफर हैं मंजिल बेखबर है
राही न कोई था कारवां गजब है
आरजू के दरीचे खुले हैं
अंजुमने दिल यूहीं फ़िदा है
आहटें अन्देशों से परे आई है
जगमग ब्लॉग की दुनिया में
रौशनी की लेखनी गुदगुदाई है
सादर
डॉ.सुनीता
बिहार की मेहमान-नवाज़ी भी जग-प्रसिद्द है .... ब्लोगरों में बिहारियों की संख्या ज्यादा है .... इसलिए विस्तार से नहीं लिखूंगी .... एक बात जरुरी है(अप्रैल का महिना) पहला दिन-पहुना..... दूसरा दिन-ठेहुना ...... तीसरा दिन- केहू ना ..... चलिए ये तो हुई मुर्खोवाली बात .... आपके जैसे दिगज्ज की प्रस्तुति की क्या मिसाल वो तो बेमिसाल होनी ही थी.... लिंक्स के बारे में विचार सारे लिंक्स पढने के बाद.... मैं आज अति प्रसन्न हूँ एक और उपलब्धि पर .... :))))
जवाब देंहटाएंवह हलचल थी, यह ज़लज़ला है :))
जवाब देंहटाएंkya baat hai ! rochak prastuti
जवाब देंहटाएंइनसे तो हमारा पुराना परिचय है.. इनसे पहले इनके पिता श्री विजय माथुर साहब के ब्लॉग के माध्यम से जुड़ा रहा, फिर कुछ पटना कनेक्शन और अंत में चेहरे की किताब पर इनसे मुलाक़ात हुई.. चेहरा तो वैसे भी मन का दर्पण होता है.. बस जुड गए.. इनकी मेहनत और ब्लॉग की जांच-पडताल, साफ़-सफाई, छांट-वांट.. गोया जो हाथ आया वो हीरे से कम तो हो ही नहीं सकता!!
जवाब देंहटाएंबधाई हो!! ब्लॉग-बुलेटिन की शानदार चर्चा!!
फेसबुक पर प्राप्त डॉ सुनीता जी का कमेन्ट-
जवाब देंहटाएंडॉ.सुनीता कविता
माथुर जी...!
आपके अंदाजे बयां का कोई जबाब नहीं है.
यही कहना है---
सफर हैं मंजिल बेखबर है
राही न कोई था कारवां गजब है
आरजू के दरीचे खुले हैं
अंजुमने दिल यूहीं फ़िदा है
आहटें अन्देशों से परे आई है
जगमग ब्लॉग की दुनिया में
रौशनी की लेखनी गुदगुदाई है
सादर
डॉ.सुनीता ,
आपके बुलेटिन ने मेरे अभिव्यक्ति को स्वीकार नहीं किया सो यहाँ भेज रही हूँ...
बहुत अच्छा प्रयास है .
जवाब देंहटाएंपुरानी पोस्ट देखकर आश्चर्य मिश्रित हैरानी भी हुई .
सचमुच शानदार पेशकश है, प्रस्तुतीकरण के अंदाज़ से पता चल गया ये कौन है. अपनी रचना यहाँ देखकर बहुत अच्छा लगा... आभार :)
जवाब देंहटाएंLinks ka ye andaaz bhi lajawaab hai .... mazaa aa gaya ...
जवाब देंहटाएंवाह जी...यह भी खूब रही और आपने तो हमारी भी कही!! आभार!!
जवाब देंहटाएंचीत्कार के हाथ में पेन्सिल या ब्रश पकड़ा दो .आदि तिरछी रेखाएं भी एक प्यारी सी कलाकृति का रूप ले लेगी.यीशु! तमने लिंक्स को अपने शब्दों के साथ मिलाकर लिखा ....खुद एक कविता बन गई.:)
जवाब देंहटाएंतुम गानों के शौक़ीन हो यह बात तो मैं कभी से जानती हूँ.तुम्हारी संगीत की समझ,गहराई में डूबने के हूनर से बावस्ता थी पर...यह रूप नया नया है......प्यारा भी.जियो
यशवंत माथुर की शानदार पोस्ट को मेरा सलाम
जवाब देंहटाएंसलिल वर्मा जी हीरे को पहचानने वाला 'जौहरी' होता है।
जवाब देंहटाएंपटना=डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के प्रदेश की राजधानी।
पटना= पाटलीपुत्र -चाणक्य वाला।
बहुत रफ्तार से रेल चली .... बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंसभी के सभी लिंक स्तरीय हैं..
जवाब देंहटाएंकविता मयी सुंदर लिंकों की प्रस्तुति,..
जवाब देंहटाएंयशवंत जी बहुत अच्छी लगी,..
वाह चिर परिचित हलचल यहाँ भी .....
जवाब देंहटाएंचर्चाकार के रूप में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं यशवंत ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
ब्लॉग बुलेटिन पर पोस्ट लगाने का अवसर मिलना मेरे लिये किसी सुखद एहसास से कम नहीं था।
जवाब देंहटाएंमैं शिवम जी , ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और यहाँ उपस्थित पाठकों का ह्रदय से आभारी हूँ।
सादर
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस निष्काम कर्म के लिए बधाई के पात्र हैं आप यशवंत जी ...सभी लिंक्स पसंद आए ...यहाँ मुझे स्थान और मान देने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंवाह ! सभी लिंक्स को बहुत ही सुंदरता से काव्य में पिरोया है आपने! बधाई यशवंत जी !
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