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शुक्रवार, 30 मार्च 2012

ब्लॉग की सैर - 8



एक व्यक्ति के रूप अनेक !
किसी का व्यक्तित्व एक सांचे में नहीं होता
सामाजिक पारिवारिक राजनैतिक आर्थिक
हर सांचे का अपना एक सच होता है
कौन कितनी देर मिलता है
कहाँ मिलता है
उसके विषय उसकी बोली उसकी चाल
व्याख्या हमेशा अलग अलग होती है
रूचि अरुचि सब मायने रखती है
एकांत और भीड़ में
एक ही छवि बदल जाती है
वैसे ही
एक रचना ... दृष्टिकोण अनेक
एक शब्द के अर्थ अनेक
भाव अलग प्राप्य अलग
पढ़ने की मनोदशा अलग
अतीत वर्तमान सबकी
अपनी एक छाया होती है
एक बार नहीं दो बार नहीं कई बार
हम जो नहीं लिखते
उनकी भी एक शक्ल तैयार हो जाती है
....
व्यक्ति , काल , शब्दभाव ....
मित्रता,प्रेम,प्रतिस्पर्द्धा,घृणा की सान पर चढ़ते हैं
कोई प्रोत्साहित करता है
कोई अद्वितीय घोषित करता है
कोई होड़ लगाता है
कोई आलोचना के तीखे धार पर रखता है
कोई रद्दी की टोकरी में डाल देता है
सीधी सी बात है-
पसंद अपनी ख्याल अपना ....

तो मेरी पसंद के ब्लॉग पर चलें और बताएं अपना ख्याल ...

मेरा सरोकार: अर्थ आवर डे ! रेखा श्रीवास्तव

"धरती पर रहते हुए हमने रोशनी सूर्य से पायी थी और रात में आग जला कर उससे जलने वाले विविध उपकरण से रोशनी पाई। हमारी सभ्यता का विकास हुआ और फिर धीरे धीरे जब विद्युत् का आविष्कार हुआ तो फिर हमने उससे पहले रोशनी पायी और फिर उससे चलने वाले उपकरणों का विकास किया और सब को उसी से चलाना शुरू कर दिया . विश्व की आबादी निरंतर बढ़ती रही और उसके साथ ही ऊर्जा का प्रयोग भी बढ़ता चला गया। अब ये हालात खड़े हो गए हें कि ये ऊर्जा जो निरंतर हमारी जरूरत बढ़ चुकी है और उसके लिए उसकी खपत से अधिक उत्पादन कब तक हो सकता है। जल जैसे ऊर्जा भी एक दिन ख़त्म हो जाएगी। हमारी विद्युत् उपकरणों पर निर्भरता ने उसके प्रयोग को और बढ़ा दिया है और उससे भी अधिक है हमारी विलासिता की बढ़ती हुई वस्तुएं जो ऊर्जा से ही चलती हें । हम ये सोचे बगैर के हमारी विलासिता किसी की जरूरत को भी पूरा होने से रोक सकती है। कुछ लोग जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हें और एक बल्ब जला कर अपने अँधेरे झोपड़े में रोशनी कर लेते हें और जब ऊर्जा की कमी होने लगती है तो वही रोशनी से वंचित कर दिए जाते हें क्योंकि उनके पास कोइ जेनरेटर या इनवर्टर नहीं होता है। समर्थ लोग अपने इन साधनों से अपने घर गुलज़ार कर ही लेते हें।
आज रात ८:३० से ९:३० तक विद्युत् से चलने वाले सभी उपकरण और रोशनी करने वाले सभी साधन बंद रखे जायेंगे इससे एक साथ बंद होने से हम कुछ पर्यावरण और ऊर्जा के संरक्षण में अपना योगदान दे सकेंगे। जैसे बूँद बूँद से सागर बनता है उसी तरह से अगर एक साथ सम्पूर्ण विश्व में एक घंटे के लिए विद्युत् का उपयोग बंद रखा जाएगा तो बहुत कुछ बचाया जा सकता है।
इसके उपयोग से सिर्फ ऊर्जा की बचत होगी ऐसा नहीं है बल्कि हम जिन उपकरणों को प्रयोग करते हें उनसे कुछ ऐसी गैस उत्सर्जित होती है जो कि पर्यावरण के लिए घातक है और ये पर्यावरण का प्रदूषित होना मानव जीवन के लिए महा घातक सिद्ध होने वाला है। बड़े बड़े बंगलों में घर को सजाने के लिए रोशनी से नहाये हुए टैरेस और बालकनी देखे जा सकते हें। शादी विवाह के मौके पर घर को पूरा का पूरा पावर हॉउस बना कर रख दिया जाता है। वह भी एक दिन के लिए नहीं दो चार दिन पहले से लेकर दो चार दिन बाद तक। इस दिशा में सोचने के लिए हमारे पास वक्त ही कहाँ होता है ?
विश्व में मानव जीवन को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए इस दिवस की महत्ता को स्वीकार करते हुए हमें सहयोग करना चाहिए। एक जागरूक नागरिक बनने की जरूरत भी है। मैं रोज देखती हूँ कि सड़क पर जलने वाले हैलोजेन रोशनी होने के बाद तक जलते रहते हें उन्हें कोई बुझाने वाला नहीं होता है क्योंकि इतनी जहमत उठाये कौन कि स्विच ऑफ करे। घर के सामने पोल पर जल रहा है तो जलता रहे मैं ही क्यों? जब हम इस मैं से निकल कर हम की ओर बढ़ेंगे तो कुछ सार्थक सोच पायेंगे और कर भी पायेंगे।
जब मैं मोर्निंग वॉक निकलती हूँ तो अपने घर के सामने वाले पोल से लेकर जहाँ भी जलते हुए हैलोजेन मिल जाते हें तो बंद करती जाती हूँ। आदत से मजबूर साथ वालों को बोलती जाती हूँ कि और लोगों को भी ऐसा सोचना चाहिए कि दिन में जिसकी जरूरत नहीं है उसको बंद कर दें। सभी से एक अपील है कि अपने ही घर में सिर्फ एक ही दिन क्यों रोज अगर हम घर के सारे उपकरणों को कुछ समय के लिए बंद रखने का संकल्प लें तो ये अर्थ आवर अपने अर्थ और महत्व को बढ़ा सकते हें। चलिए हम लोग ही संकल्प ले लेते हें कि बेवजह ऊर्जा उपकरणों को चलाये नहीं रखेंगे।"

"

जीवन में कई बसंत सी खिली मैं
कई पतझड़ सी झरी मैं
कई बार गिरी
गिर कर उठी
मन में हौसला लिए
जीवन पथ पर बढ़ी
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।

कभी मोम बन पिघलती रही
कभी बाती बन जलती रही
मन में अनंत अहसास संजोए
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।

कई बार फूलों की चाह में
काँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
मैं बढ़ती रही,चलती रही ।

पीछे मुड़ कर देखने का वक्त कहाँ..
वक्त बदलता गया
मान्यताए बदलती रही
अपनी ही अनुभव की गठरी संभाले
मैं बढ़ती रही, चलती रही

कब तक और चलना है ? कौन जाने
शायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही …….."

"इंसा पैदा हुए थे हम
हुए ना जाने कब विषधर
किसी अंधियारे कोने में
केंचुली छोड़ आयें
चलो कुछ भूल जाएँ ......

उम्र बीती जिरह करते
जब भी उगला ज़हर उगला
किसी गुमनाम पीर पर
ज़हर का तोड़ पाए
चलो कुछ भूल जाएँ ..........
युग बदले ना तू बदला
रहा उथले का तू उथला
किसी गंगा में यूँ डूबें
के मुक्ति पा ही जाए
चलो कुछ भूल जाएँ............
बड़ी रंजिश सहेजी हैं
तुमने अपनी किताबों में
किसी पार्क की बेंच पर
इरादतन छोड़ आयें
चलो कुछ भूल जाएँ ....
मनभर बोझ लेकर
सफ़र कैसे करोगे तय
मंजिल पास में ही है
अंत आसाँ बनाये
चलो सब भूल जाएँ ...."

कडुवा सच ...: इल्जाम ... श्याम कोरी उदय

"जाओ, जाकर
पांच-दस लाख में खरीद लो उसको
गर न मानें
तो
उस पर
किसी के सांथ
छेड़छाड़ का इल्जाम लगा दो !
फिर देखते हैं
हम
उसकी ईमानदारी
या तो
वो खुद चल के हमारे पास आयेगा
या फिर ... जाएगा ... जेल !!"

आऊँगी फिर ... जाते जाते पढ़िए रश्मि प्रभा को मेरी नज़र से -

मेरी भावनायें...: मुजरिम...

"

मित्र,
हवा में भटकते पत्ते की तरह
तू मेरे पास आया...
बिखरे बाल , पसीने से लथपथ,
घबराहट और भय से तुम्हारी आँखें फैली हुई थीं...
तार तार होती तुम्हारी कमीज़ पर,
खून के छींटे थे ,
उफ़!
तुमने लाशों से ज़मीन भर दी थी,
मैंने कांपते हाथों उन्हें दफना दिया...
तुम थरथर काँप रहे थे,
बिना कुछ पूछे,
मैंने तुम्हें बिठाया,
तुम्हे आश्वस्त करने को॥
तुम्हारी पीठ सहलाई,
ठंडे पानी का भरा ग्लास तुम्हारे होठों से लगाया,
- " कठिन घडी में ही मित्र की पहचान होती है"
इस कथन के नाम पर सब कुछ झेला,
तुम विछिप्त होते होते बच गए!
तुम्हारी मरी चेतना ने करवट ली,
तुम्हारा साहस लौट आया,
लोगों की जुबां पर मेरा नाम आया,
मुकदमा चला..................
गवाहों के आधार पर
मुजरिम मैं करार दिया गया,
एक बार आँखें उठाकर तुमको देखा था,
भावहीन , सपाट दृष्टि से
तुम मुझे देख रहे थे!
आश्चर्य,
जघन्य कर्म के बाद भी तुम बरी हो गए,
और अदालत ने मुझे फांसी की सजा सुना दी..."

अब आपके ख्यालों की बारी ......... पढकर , खुलकर विचार दें

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत लिंक संयोजन

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  2. केंचुल चुल्ले की चुई, जीवन चलता जाय |
    छेड़छाड़, फाँसी पढ़ी, बत्ती रहा बुझाय ||

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  3. बहुत सुन्दर ..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार..

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  4. रश्मि दी आपका बहुत बहुत आभार एक बार फिर ब्लॉग जगत की सैर करवाने के लिए ... यह सिलसिला यूं ही चलता रहे यही दुआ है !

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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