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सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

यह ज़माना भी तो हमारा ही ज़माना है - ब्लॉग बुलेटिन



आज महा शिवरात्रि है ... ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब को हार्दिक मंगलकामनाएं !
शिव की शक्ति, शिव की भक्ति, ख़ुशी की बहार मिले, शिवरात्रि के पावन अवसर पर आपको ज़िन्दगी की एक नई अच्छी शुरुवात मिले!



पिछली बार जब हमने ज़माने की बात की तो सफ़र में साधना जी अपने विचारों संग मिलीं ... तो चलिए उनके विचारों से हम आप सबको अवगत कराते हैं -
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कौन कहता है यह हमारा ज़माना नहीं है ! शायद ‘हमारा ज़माना’ से लोग उस वक्त को जोड़ कर देखते हैं जब हम अपने जीवन में सबसे अधिक ऊर्जावान होते हैं, घर गृहस्थी की बागडोर हमारे हाथों में होती है, परिवार के बुजुर्गों को हमारी सेवा सहायता की ज़रूरत होती है और बच्चों की शिक्षा दीक्षा, उनके व्यक्तित्व निर्माण और उनकी हर छोटी बड़ी ज़रूरत को पूरा करने की जिम्मेदारी भी हमारी ही होती है ! जैसे ही बच्चे बड़े हो जाते हैं, आत्मनिर्भर हो जाते हैं, अच्छे-अच्छे पदों पर पदासीन हो जाते हैं और हमारी जिम्मेदारियाँ कुछ घट जाती हैं, शारीरिक क्षमताएं भी क्षीण होने लगती हैं और स्वस्थ रहने के लिये दवाओं पर निर्भरता कुछ अधिक बढ़ जाती है तो हमारा ज़माना खत्म हुआ मान लिया जाता है ! लेकिन यह वर्तमान परिदृश्य में सच कहाँ है !
अधिकतर तथाकथित ‘बीते ज़माने के लोग’ आज भी वही सारे कार्य कर रहे हैं जो तब किया करते थे जब उन्हें सुबह मुँह अँधेरे उठ कर बच्चों को स्कूल के लिये तैयार करना होता था और चूल्हे, पत्थर के कोयले या बुरादे की अँगीठी पर उनका टिफिन बनाना होता था ! उनके होमवर्क में उनकी मदद करनी होती थी ! बाज़ार से गृहस्थी का सारा सामान रिक्शों में लाद कर लाना होता था ! घर के बड़े बूढों को भी समय देना होता था और स्वाध्याय कर अपने व्यक्तित्व के विकास के लिये भी प्रयत्नशील रहना होता था ! लेकिन अब हालात बदल गये हैं इसलिये नहीं कि हमारा ज़माना बीत गया वरन इसलिये कि अब पारिवारिक ढाँचे का स्वरुप पहले सा नहीं रहा ! बच्चे अपने-अपने कार्यक्षेत्र में दूसरे शहरों में रहते हैं ! संयुक्त परिवार टूटे तो एकल परिवार अस्तित्व में आये अब एकल परिवार भी बिखर रहे हैं ! नौकरी के लिये या अपने कैरियर के लिये बच्चे घर से दूर होते जा रहे हैं और वृद्ध माता-पिता अकेले होते जा रहे हैं ! लेकिन ज़माने के साथ तालमेल बनाये रखने के लिये वे भी ताल से ताल मिला कर चल रहे हैं ! निरंतर विकास और तकनीकी अन्वेषणों के साथ नयी नयी चीज़ों के आविष्कार हो रहे हैं जिन्होंने वर्तमान में जीवन शैली को पहले से अधिक सुविधाजनक और आधुनिक बनाया है ! चूल्हे, पत्थर के कोयले की अँगीठी की जगह गैस, माइक्रोवेव, और इंडक्शन कुक टॉप ने ले ली है ! रिक्शे और स्कूटर के स्थान पर अब अधिकतर लोग चौपहिया वाहनों का लुत्फ़ उठा रहे हैं ! रेडियो. ग्रामोफोन, ट्रांजिस्टर, टीवी, कैसेट प्लेयर, सी डी प्लेयर का लम्बा रास्ता नापते हुए आज इंटरनेट और आई पौड की तकनीक वजूद में आई है तो तथाकथित ‘बीते ज़माने’ के लोग इन सभी तकनीकों को भी उतने ही उत्साह और आग्रह के साथ सीख रहे हैं, अपना रहे हैं और उनका आनंद भी उठा रहे हैं ! रही बात बाज़ार के मूल्यों की तो मेरे पास अकबर के ज़माने के आँकड़े भी उपलब्ध हैं जब गेहूँ एक रुपये में १८ मन , बढ़िया चावल एक रुपये में १० मन , मूँग की दाल एक रुपये में १८ मन , उड़द की दाल एक रुपये में १६ मन और दूध एक रुपये में ४४ सेर मिलता था ! ज़रा सोचिये आज के बाज़ार भाव से इन आँकड़ों को मिलाया जाये तो क्या आप अनुमान लागा पायेंगे कि बीच में कितने ‘ज़माने’ बीत गये होंगे ? परिवर्तन अवश्यम्भावी है ! संगीत भी हर युग में अत्यंत कर्णप्रिय सुनने के लिये मिला है तो कर्णकटु भी सुनाई पड़ा है ! नूरजहाँ, के एल सहगल, पंकज मलिक, के सी डे, सुरैया, तलत महमूद, लता मंगेशकर, मानना डे, हेमंत कुमार, मुकेश, मोहम्मद रफ़ी, गीता दत्त, आशा भोंसले, कविता कृष्णमूर्ति, किशोर कुमार के गाने आज भी उतने ही ताज़गी भरे लगते हैं जितने अलका याग्निक, शंकर महादेवन, शान, सोनू निगम, सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल, राहत फ़तेह अली खान, मोहित चौहान और अन्य नवोदित कलाकारों के लगते हैं और हम उन्हें भी उतने ही चाव से सुनते हैं तो कैसे कह दें यह ज़माना हमारा नहीं हमारा ज़माना तो बीत गया ! हर युग में तीन पीढियाँ होती हैं ! जब हम बच्चे थे अपने बाबा दादी, नाना नानी के साथ भरपूर जीवन जिया और अपनी सोच समझ को उनकी शिक्षा दीक्षा की छाँह में विकसित होते हुए देखा ! वह युग भी हमारा था ! जब स्वयं माता पिता बने अपने बच्चों को भरपूर प्यार और संस्कार दिये और परिवार के बुजुर्गों की खूब सेवा की वह युग भी हमारा था और आज जब हम खुद नाती पोते वाले हो गये हैं हम आज भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं और सक्रिय हैं तो यह युग भी हमारा ही है ! ज़माना तब तक हमारा रहेगा जब तक हम उसे अपनी मुठ्ठी में दबा कर रखेंगे ! जिस दिन हम हार मान कर बैठ जायेंगे हम भी ‘बीते ज़माने’ के लोगों की श्रेणी में आ जायेंगे !

साधना वैद

जाइये मत - पुराने लिंक्स सौगात के रूप में पेश है , मुझे विश्वास है - आप पसंद करेंगे .......



सुमन सिन्हा -

जीवन में practical होना पड़ता है


ऋता शेखर ' मधु '

प्रवीण पाण्डेय -

स्वर्ग


और एक शुरुआत सरस जी की ... उनके हिस्से की धूप से उनकी

19 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर विचार,सुन्दर बुलेटिन.

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  2. बढ़िया बुलेटिन...
    ओं नमः शिवाय.

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  3. महाशिवरात्रि पर्व की अनंत शुभकामनाएं!
    सुन्दर बुलेटिन.

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  4. बढ़िया लिंक्स ...सुंदर बुलेटिन ...!

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  5. शिव की बनी रहे आप पर छाया;
    पलट दे जो आपकी किस्मत की काया;
    मिले आपको वो सब अपनी ज़िन्दगी में;
    जो कभी किसी ने भी न पाया!
    आप सब को शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  6. शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
    अच्छे अच्छे लिंक्स का संयोजन...अच्छी बुलेटिन
    मेरे ब्लॉग को स्थान देने के लिए आभार|
    सदस्य बन रही हूँ|

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  7. बहुत सुन्दर बुलेटिन लगाया है।

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  8. बहुत अच्छी लिंक प्रस्तुति,
    शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  9. बहुत ही सार्थक मेसेज और बुलेटिन.. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभेच्छा!

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  10. "ॐ नमः शिवाय" शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं.... :) बहुत अच्छे लिंक्स की जानकारी देने के लिए आभार.... !!

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  11. बहुत सार्थक बुलेटिन है रश्मि जी ! मेरे विचारों को आपने स्थान दिया ! आभारी हूँ ! अन्य सभी बेहतरीन लिंक्स के लिये आपका धन्यवाद !

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  12. बहुत सटीक एवं सार्थक विचार के साथ बढ़िया बुलेटिन सजाया है

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  13. साधना जी के विचारों से पूर्णत: सहमत ॥सार्थक बुलेटिन

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  14. मुझे मेरी पुरानी पोस्ट पुनः पढ़वा देने का आभार, जमाना तो सबका ही होता है...आता है..चला जाता है..

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  15. जब तक हमारा जीवन है , जमाना हमारा भी है ...
    अच्छे लिंक्स !

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  16. ज़माना तब तक हमारा रहेगा जब तक हम उसे अपनी मुठ्ठी में दबा कर रखेंगे ! जिस दिन हम हार मान कर बैठ जायेंगे हम भी ‘बीते ज़माने’ के लोगों की श्रेणी में आ जायेंगे !

    बड़े सुन्दर विचार और बढ़िया लिंक्स...

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