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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

सच लगे तो हाँ कहना , झूठ लगे तो ना कहना - ब्लॉग बुलेटिन

जैसा कि आप सब से हमारा वादा है ... हम आप के लिए कुछ न कुछ नया लाते रहेंगे ... उसी वादे को निभाते हुए हम एक नयी श्रृंखला शुरू कर रहे है जिस के अंतर्गत हर बार किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको बताया जायेगा ... जिसे हम कहते है ... एकल ब्लॉग चर्चा ... उस ब्लॉग की शुरुआत से ले कर अब तक की पोस्टो के आधार पर आपसे उस ब्लॉग और उस ब्लॉगर का परिचय हम अपने ही अंदाज़ में करवाएँगे !
आशा है आपको यह प्रयास पसंद आएगा !
आज मिलिए ...  सलिल वर्मा जी से ... 

कई ब्लौगों पर देखा था एक नाम - चला बिहारी ब्लौगर बनने . मुझसे पहचान नहीं थी , न मैं कभी उनके दरवाज़े गई , न उन्होंने मेरा घर देखा . लड़ाई नहीं , कोई अनबन नहीं , बस ' जतरा ' नहीं बना तो एक दूसरे के ब्लॉग की यात्रा नहीं हुई . पहचान हुई इसी बुलेटिन पर और जब पहचान हुई तो पलक झपकते मैं दीदी हो गई और नाम भी जान लिया ' सलिल वर्मा ' - एक तो अपना बिहार , उस पर से पटना , पहुंची इनके ब्लॉग पर और मन खुश ! अरे बिहारी भाई ब्लौगर क्या बनेंगे , अपनी भाषा के साथ अटूट रिश्ता कायम रखते हुए इन्होंने बताया - ' ये ब्लौगर बिहारी है , यानि बहुत दम है इस ब्लॉग में ...' . मैं तो मान ही गई ... आपमें से कितनों ने माना होगा और जो रह गए हैं - उनसे कहना है कि ' आइये आपको हम अपने बिहार की सैर कराएँ . अपनापन , जैसे को तैसा , वर्चस्व , ... सब मिलेगा हमारे बिहार में ...'
21 अप्रैल 2010 से सलिल जी यानि बिहारी बाबू ने ब्लॉग http://chalaabihari.blogspot.com/ लिखना शुरू किया दोस्तों के कहने पर , सुनिए इनकी ही कलम से -
" हमरा दु चार ठो दोस्त सब मिलकर, हमको फँसा दिया. बोला तुमरा बात सब बुड़बक जैसा लगता है, लेकिन कभी कभी बहुत निमन बात भी तुम कर जाते हो. काहे नहीं ब्लोग लिखते हो तुम. हम बोले, “पगला गए हो का! ई सब बड़ा लोग का काम है. देखते नहीं हो, आजकल बच्चन भैया कोनो बात मुँह से नहीं बोलते हैं. सब बतवे ब्लोग में लिखते हैं. साहरुख खान, आमिर खान जैसा इस्टार लोग ब्लोग लिखता है. ब्लोग का इस्पेलिंग देखो, उसमें भी B log है, माने बड़ा लोग. हम ठहरे देहाती भुच्च. "
ब्लॉग क्या बना शुरू हो गए बिहारी बाबू खरी खरी बातों की धार में कलम की पतवार लेकर - सच्ची , इसे नहीं पढ़ा तो एक सच से आप महरूम रह जायेंगे ...
ब्लॉग पढ़ते हुए बार बार कहने का दिल करता है - ' मान गए आपकी पारखी नज़र और बिहारी सुपर को '
सच पूछिए तो मेरी समझ से बाहर है कि किसे भूलूँ , किसे याद रखूं .... अब तक अपने बच्चों को , उनके मित्रों को मैं इस ब्लॉग से बहुत कुछ सुना चुकी हूँ - हास्य , व्यंग्य , सीख ... सबकुछ है इनकी लेखनी में ! लिंक पर तो आप जायेंगे ही ,जाने से पहले इस आलेख को, यूँ कहें संस्मरण को यहीं पढ़ लीजिये वरना मुझे लगेगा कि मैंने अपने बिहारी भाई के साथ न्याय नहीं किया - माना कि आप पढ़ चुके होंगे , परन्तु एक बार और ताजा होने में क्या जाता है ? तो लीजिये पढ़िए -

गुल्लक


अपने सोसाईटी में कोनो बच्चा का जनमदिन था, तो उसके लिये गिफ्ट खरीदने बाजार गए अपनी बेटी के साथ. दोकान में एतना खिलौना देखकर माथा घूम जाता है. एगो पसंद आया तो बेटी बोली, “डैडी! ये तो पाँच साल से ज़्यादा उम्र के बच्चों के लिये है. सक्षम तो अभी तीन साल का है.” हमको समझे में नहीं आया ई बात कि खिलौना खिलौना होता है अऊर बच्चा बच्चा होता है, अब तीन साल का अऊर पाँच साल का बच्चा में हमको तो कोनो फरक नहीं बुझाता है. ई भी जाने दीजिये, खिलौना के डिब्बा के ऊपर लिखा हुआ है “ख़तरा… चोकिंग हाज़ार्ड्स!” भाई जब एतने खतरा है तो बेच काहे रहे हो. खिलौना न हो गया, दवाई हो गया कि नोटिस लगा दिये हैं “बच्चों के पहुँच से दूर रखिये.” अब घर में अगर अलग अलग उमर का बच्चा हो, तो तीन साल वाला बच्चा को पाँच साल वाला के खिलौना से दूर रखना होगा! कमाल है!!
हम लोग का टाईम अच्छा था. खिलौना, खिलौना होता था. खिलौना में उमर का कोनो भेद नहीं होता था. बस एक्के भेद था कि लड़का अऊर लड़की का खिलौना अलग अलग होता था. लड़की लोग मट्टी का बर्तन चौका के खिलौना से खेलती थी. चाहे गुड़िया गुड्डा से, जो माँ, फुआ, मौसी, चाची पुराना कपड़ा से बना देती थीं. उधर लड़का लोग के पास गंगा किनारे लगने वाला सावनी मेला से लाया हुआ लकड़ी का गाड़ी, ट्रक, मट्टी का बना हुआ सीटी, लट्टू , चरखी. सबसे अच्छा बात ई था कि खेलता सब लोग मिलकर था. अऊर कभी चोकिंग हैज़ार्ड्स का चेतावनी लिखा हुआ नहीं देखे.
ई सब खिलौना के बीच में एगो अऊर चीज था. जिसको खिलौना नहीं कह सकते हैं, लेकिन बचपन से अलग भी नहीं कर सकते हैं. लड़का लड़की का भेद के बिना ई दूनो में पाया जाता था. बस ई समझिये कि होस सम्भालने के साथ ई खिलौना बच्चा लोग से जुट जाता था. पकाया हुआ मट्टी से बना , एगो अण्डाकार खोखला बर्तन जिसमें बस एगो छोटा सा पतला छेद बना होता था. हई देखिये, एक्साईटमेण्ट में हम ई बताना भी भुला गये कि उसको गुल्लक बोलते हैं.
करीब करीब हर बच्चा के पास गुल्लक होता था. कमाल का चीज होता था ई गुल्लक भी. इसमें बना हुआ छेद से खुदरा पईसा इसमें डाल दिया जाता था, जो आसानी से निकलता नहीं था. जब भर जाता, तो इसको फोड़कर जमा पईसा निकाल लिया जाता था. बचपन से फिजूलखर्ची रोकने, छोटा छोटा बचत करने, जरूरत के समय उस पईसा से माँ बाप का मदद करना अऊर ई जमा पूँजी से कोई बहुत जरूरी काम करने, छोटे बचत से बड़ा सपना पूरा करने, एही गुल्लक के माध्यम से सीख जाता था. अऊर ओही बचत का कमाल है कि आज भी हम अपना याद के गुल्लक से ई सब संसमरन निकालकर आपको सुना पा रहे हैं.
इस्कूल में पॉकेट खर्च के नाम पर तो हमलोग को पाँच पईसा से सुरू होकर आठ आना तक मिलता था. बीच में दस, बीस,चार आना भी आता था. अब इस्कूल में बेकार का चूरन, फुचका, चाट खाने से अच्छा एही था कि ऊ पईसा गुल्लक में जमा कर दें. पिता जी के पॉकेट में जब रेजगारी बजने लगता, तो ऊ निकालकर हम लोग को दे देते थे, गुल्लक में डालने के लिये. त एही सब रास्ता से पईसा चलकर गुल्लक के अंदर पहुँचता था. ऊ जमा पूँजी में केतना इजाफा हो गया, इसका पता उसका आवाज़ से लगता था. अधजल गगरी के तरह, कम पूँजी वाला गुल्लक जादा आवाज करता था अऊर भरा हुआ रहता था चुपचाप, सांत. मगर प्रकीर्ती का नियम देखिये, फल से लदा हुआ पेड़ पर जईसे सबसे जादा पत्थर फेंका जाता है, ओईसहिं भरा हुआ सांत गुल्लक सबसे पहिले कुरबान होता था.
अब गुल्लक के जगह पिग्गी बैंक आ गया है. उसमें सिक्का के जगह नोट डाला जाता है. सिक्का सब भी तो खतम हो गया धीरे धीरे. पाँच, दस, बीस पईसा तो इतिहास का बात हो गया. बैंको में चेक काटते समय पईसा नदारद, फोन का बिल, अखबार का बिल, रासन का बिल, तरकारी वाला का बिल सब में से पईसा गायब. लोग आजकल नोट कमाने के फेर में लगा हुआ है, पईसा जमा करना बहुत टाईम टेकिंग जॉब है. इसीलिये उनका याद का गुल्लक में भी कोई कीमती सिक्का नहीं मिलता है.
दू चार महीना में चवन्नी भी गायब हो जाएगा. अब ऊ चवन्न्नी के साथ जुड़ा हुआ चवन्नी छाप आसिक, या महबूबा का चवनिया मुस्कान कहाँ जाएगा. बचपन से सुन रहे हैं किसोर दा का गाना “पाँच रुपईया बारा आना”.. इसका मतलब किसको समझा पाईयेगा. अऊर गुरु देव गुलज़ार साहब का नज़्म तो साहित्त से इतिहास हो जाएगाः
एक दफ़ा वो याद है तुमको
बिन बत्ती जब साइकिल का चालान हुआ था
हमने कैसे भूखे प्यासे बेचारों सी ऐक्टिंग की थी
हवलदार ने उल्टा एक अठन्नी देकर भेज दिया था.
एक चवन्नी मेरी थी, वो भिजवा दो!
बेटी अऊर बेटा का परीच्छा हो, चाहे किसी का तबियत खराब हो, हमरी माता जी भगवान से बतिया रही हैं कि अच्छा नम्बर से पास हो गया या तबियत ठीक हो गया तो सवा रुपया का परसाद चढ़ाएँगे. सोचते हैं माता जी को बता दें कि अब भगवान का फीस बढ़ा दीजिये अऊर अपना प्रार्थना में सुधार कर लीजिये!
2010 से धमाल मचाते मचाते सलिल जी 2012 में प्रवेश कर चुके हैं , यानि तीन वर्ष हमारे साथ आई गई को साझा कर चुके हैं . लीजिये 2012 का लिंक http://chalaabihari.blogspot.com/2012/01/blog-post_10.html कन्फ्यूज़न ने हमको एहसास दिया कि हम एक अच्छे ब्लॉग को मिस किये ..... आप न मिस करें तो हम हाज़िर हो गए इस ब्लॉग के साथ ... तो अब - आइये मेहरबां , शौक से पढ़िए इस ब्लॉग को और बताइए खुले मन से कि सच बोले न हम ....
सच लगे तो हाँ कहना , झूठ लगे तो ना कहना , हाँ कि ना ???


रश्मि प्रभा 

30 टिप्‍पणियां:

  1. सलिल बाबु को पढकर हमेशा लगता है जैसे कठोर धरातल से फूटा कोमल अंकुर!! साधारण से अनुभवों के संस्मरण में सम्वेदनाओं की छटा बिखेर देते है। पता नहीं यह सबके साथ होता है या नहीं पर हर संस्मरण अपने जीवन के संस्मरण की ही प्रतिछाया लगता है। भोगा हुआ सा अनुभव!!

    हमारे जो संस्मरण हमें मामूली से विशेषतारहित लगते है, हम कलम भी नही उठा सकते। ऐसे ही संस्मरण को सलिल जी रोचक अद्भुत और शिक्षाप्रद प्रारूप में प्रस्तुत कर देते है एक चमत्कार की तरह!!यह कमाल है सलिल जी की सम्वेदनशील

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  2. जब पहली बार सलिल जी के ब्लॉग पर गई थी तो भाषा समझ में नहीं आई पर भाव थोड़ा थोड़ा पकड़ में आने लगा ..फिर पढने का आनंद भी बढ़ गया. फसबूक पर भी निरंतरता बनी रही. बेहद सहजता महसूस होती है उनकी बातें और लेखन दोनों में....
    ब्लॉग बुलेटिन का प्रयास अच्छा लग रहा है ...साधुवाद

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  3. सलिल जी से मिलना सुखद रहा………आभार्।

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  4. Bade bhaiya... KAMAL KE VYAKTITVA HAIN ... EK DUM CHHOTE SE KAD KE ... HAR JAGAH EK DUM PICHHE RAHTE HAIN, CHUP CHAP... PAR INKE POST... UFFF......... PAKKA BIHARI, HAR DIL AJIJ... PAHLE DIN HI POST KO PADH KAR LAG GAYA KOI BAHUT APNA HAI JISNE LIKHA HAI.... SHURU KE DINO SE INHE FOLLOW KARTE HAIN... BHAIYA NE BHI ISS NACHIJ KO PYAR HI DIYA... MUJHE YAAD HAI INHONE EK BAAR PUCHHA KAISE HO......... KAISEE HAI "DULHIN"........YE APNAMAN KOI BADA BHAI HI DIKHA SAKTA HAI..:))

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  5. सलिल जी तो वास्‍तव में सलिल जी ही हैं। यह अहसास उनसे सिर्फ एक बार मिलकर ही अंतर्मन तक हो चुका है।

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  6. बिहारी बाबू अच्छा लिखते हैं..रसीला लिखते हैं..
    मेरा जाना होता है उनके ब्लॉग पर...
    शुक्रिया रश्मि जी.
    शुभकामनाएँ..उन्हें और आपको भी..

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  7. रश्मी जी,...सलिल जी मिलवाकर अच्छा किया,मेरे फेब्रेट भी है,..
    बधाई,.....सलिल जी के बारे में और जानकारी देती तो अच्छा होता,.
    \

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  8. सलिल जी का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि कोई प्रभवित हुए बिना नहीं रह सकता... बढ़िया परिचय...

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  9. चला बिहारी के एक रेगुलर पाठक हम भी है.सहजता और मौलिकता की पहचान है यह ब्लॉग.और अपने नाम के अनुरूप ही व्यक्तित्व का मालिक है यह ब्लोगर.बढ़िया लगा बुलेटिन.

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  10. सलिलजी का ब्लॉग नियमित पढ़ते हैं, बड़ा ही आनन्द आता है।

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  11. परिचय की इस कड़ी में आपकी कलम से सलिल जी को पढ़ना अच्‍छा लगा ...आभार सहित शुभकामनाएं

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  12. सलिल जी से परिचय बहुत अच्छा लगा..

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  13. आपके लेखन की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी ..नि:शब्‍द हूं इस भावमय प्रस्‍तुति के लिए :) आभार सहित शुभकामनाएं ।

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  14. बेहद सुन्दर एवं आत्मीय परिचय!
    अभी कुछ एक महीने पहले ही हमारा भी 'जतरा' बना इस ब्लॉग पर जाने का और तबसे हमेशा इंतज़ार रहता है अगली पोस्ट का... सभी पुरानी पोस्ट पढ़ चुके हैं... कईयों को तो कई बार...
    one day I remember having read out aloud almost all posts of the blog to my husband till midnight...:)

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  15. सलिल जी से मिलना सुखद रहा………आभार्।

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  16. सबसे पहले रश्मि दी को सादर प्रणाम! ये उनका बड़प्पन है कि उन्होंने मुझे इस योग्य समझा. वरना ब्लॉग जगत में जितना कुछ लिखा जा रहा है उसकी तुलना में मेरा लेखन कुछ भी नहीं.. और रश्मि दी के बाद जो लोगों की टिप्पणियाँ हैं, उनको पढकर तो इतनी एम्बैरेस्मेंट हो रही है कि क्या बताऊँ. सुबह से चार बार हिम्मत की कि लिखूं, लेकिन हाथ पैर फूल गए. बड़ी हिम्मत जुटाकर अभी सोचा कि कह ही दूं... यह आप लोगों का स्नेह है, जिसने मेरे लेखन के लिए मेरे खुद के मानदंड को और भी ऊंचा कर दिया है.. आशीष दें कि मेरे ल;एखन में कभी खोट न आने पाए!
    रश्मि दी, पुनः आभार आपका!

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  17. वाह बहुत अच्छा रहा सलिल जी के ब्लॉग पर जाना ....बहुत रोचक अंदाज़ लिखने का और चीज़ों को देखने का भी ....!!!
    शुभकामनायें सलिल जी अब नियमित आपके ब्लॉग पर आते रहेंगे ...
    आभार रश्मि दी ...!!

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  18. हा हा हा हम तो बस इंतज़ार कर रहे थे कि एक बार बस हमारे सलिल दादा का कमेन्ट आ जाये उसके बाद ही हम कुछ कहेंगे ... वैसे सलिल दादा को नजदीक से जानने वाले आज यह सोच कर ही हमारी तरह मज़ा ले रहे होंगे कि आज सलिल दादा कैसे शर्माए जा रहे है ... यह उनकी एक ख़ास अदा है ... जब भी उनकी कोई तारीफ करता है वो बुरी तरह से शर्माने लगते है ... जानकी माता की कसम जो उनके बस में हो तो धरती माता की गोद में जा बैठे शरमाते शरमाते ... ;-)

    अरे महाराज काहे नहीं समझते हो कि आप कितने ख़ास हो हम सब के लिए ... बस ऐसे ही अपना प्यार बरसाते रहिये ... जय हो दादा आपकी !

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  19. सलिल भाई का खालिस अंदाज़ हमको अपने भीतर तक गुदगुदाता है , चला बिहारी ब्लॉगर बनने ....हा हा हा ई बिहारी पहुंचा हुआ ब्लॉगर हैं जी ..बनने उनने वाला पालटी नय हैं ही । रश्मि दी का नज़र एक और नगीने पर पडा तो ये समां बंधना ही था ..आखिर एक पारखी दूसरे पारखी का परिचय करा रहा है हमसे । संग्रहणीय पन्ना । रश्मि दी को शुक्रिया और सलिल भाई को शुभकामनाएं

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  20. हाँ भाई हाँ.................आखिर भैया किसके हैं....जरा पूछिये तो....

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  21. मैं क्या लिखूं.... ? मैं भी बिहारी , वो भी पटना से , रश्मि प्रभा जी भी पटना से.............. सभी ने बहुत कुछ लिखे.... ! मैं थोड़ी बिलम्ब से हाजरी देती हूँ.... :( कुछ लिखने के लिए बचाता ही नहीं.... :( मैं क्या लिखूं.... ?

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  22. परिचय कराने के लिए शुक्रिया।

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  23. सलिल जी का लेखन नूतन शैली का एक अलग ही ढ़ग का लेखन है। हम उसे लेखन के किस रूप में रखें...यह निर्णय करना कठिन है। लेकिन उनका लेखन उत्कृष्ट श्रेणी का है। वह संस्मरण के नजदीक है लेकिन उससे भी अधिक नजदीक है वह पाठक के नजदीक। कोई भी पाठक जब उन्हें पढ़ना शुरु करता है,तो अंत तक उसमें जिज्ञासा बने रहती है,कि आगे क्या होने वाला है। बहुत से नियमित पाठक तो शुरुआत में ही अंत की कल्पना करने लगते हैं और जब अंत उनकी अपेक्षा से कहीं दूर की कौड़ी होती है...तो उनके चेहरे पर बहुत बार मुस्कान होती है और कई बार पाठक सोचने के लिए बाध्य होता है। उनकी लेखनी हमें बहुत बार कुछ नया सीखा जाती है। कई बार हमारी संवेदना को मथ कर रख देती है और कई बार हास्य के रंग में रंगी रहती है। उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है पाठक के साथ तादात्म्य। कोई भी पाठक उनकी रचना में अपना अंश जरूर खोज लेता है। उन्हें पढ़ते हुए किसी को अपना बचपन,किसी को अपना गांव, किसी को मां का प्यार,किसी को बहन का स्नेह. किसी को बड़े भाई का प्यार, किसी को जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के अनुभूत की स्मृतियां जीवंत हो उठती हैं। लेकिन वे अपना निर्णय किसी पाठक पर थौंपते नहीं। पाठक अपनी निष्पतियां स्वयं निकालने के लिए स्वतंत्र है। यही उनके लेखन की सर्वाधिक बड़ी उपलब्धि है कि वे सबसे जुड़े हैं,लेकिन फिर भी किसी से नहीं जुड़े हैं। कमलवत...अछूते...

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  24. अरे आप तो पहिले ही इनका बखान कर चुकी हैं , वाकई एक अद्वितीय ब्लॉग |
    बाऊ जी , अपने फेविकोल के जोड़ से हमको अइसा जोड़े कि इनके ब्लॉग से हिल ही नहीं पाए | बस एक बार किसी तरह से इनको 'शख्स-मेरी कलम से' पर भी ले आइये |

    आप दोनों को सादर प्रणाम |

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  25. बिहारी बाबू सलिल वर्मा जी का नाम ब्लॉग जगत एवं फेसबुक पर बहुत जाना पहचाना है ! लेकिन मेरा उनसे एक तरफा परिचय अन्य कई नामचीन रचनाकारों की पोस्ट्स पर उनकी बेहतरीन एवं सारगर्भित टिप्पणियों तक ही रहा ! पता नहीं किस संकोच के कारण कभी उनके ब्लॉग पर नहीं जा सकी ! आज आपके माध्यम से उनकी दोनों पोस्ट्स पढीं जो मन को गहराई तक प्रभावित कर गयीं ! उन्हें पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा ! आभार आपका रश्मिप्रभा जी !

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