भारत जैसा लोकतंत्र..... जी हां... एक परिपक्व लोकतंत्र.... लेकिन क्या यह वाकई में परिपक्व है ? ज़रा सोचिए.... अब एक टेबल पर नज़र डालिए....
यह देश के सबसे बडे आम चुनावों के वोटिंग प्रतिशत हैं.... एक अरब से अधिक आबादी.... लेकिन वोटिंग प्रतिशत केवल ५६ ? तो फ़िर यह जनता द्वारा चुनी गई सरकार कैसे हुई ? यदि बाकी ४४ प्रतिशत जनता वोट देने आती तो फ़िर शायद संसद कुछ अलग दिखती...
पिछले आम चुनावों में मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों के वोटिंग प्रतिशत पर नज़र डाली जाए तो यह पता लगता है की दिल्ली : ५३ प्रतिशत, मुम्बई ४५ प्रतिशत.... आखिर वोटर उदासीन क्यों है? यहां तो पढी लिखी और समझदार जनता रहती है तो फ़िर... चुनाव आयोग आम आदमी को वोटिंग करनें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करती है.... फ़िर महानगरीय जनता का विश्वास क्यों नहीं जीत पाती.....
हमारे एक मित्र हैं कहते हैं की हम वोट देनें क्यों जाएं, आखिर सांप और नाग में से ही एक को चुनना हो तो फ़िर वोट देनें ही क्यों जाया जाए..... हमनें कहा की आपकी समझ में यदि कोई भी प्रत्याशी उचित हो (किसी भी पार्टी/ या निर्दलीय) उसे चुनिए.... "सेलेक्ट नन" के लिए अभी बहुत लडाई बाकी है.... शायद देश उबलेगा और बदलेगा देश का रंग.....
फ़िलहाल के लिए तो जनता को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी.... प्रत्याशियों की जांच कीजिए.... और जो अच्छा प्रत्याशी हो उसे चुनिये.... लेकिन वोटिंग को अपनी ज़िम्मेदारी समझिए... यह बहुत ज़रूरी है... आपकी नज़र-अन्दाज़ी किसी अपराधी को लोकसभा पहुंचा सकती है...
जागो मतदाता जागो..... चलिए आज की बुलेटिन को आगे बढाते हैं.....
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एक सच इच्छाओं का by सदा at SADA
यूँ ही सोचा एक दिन
ये इच्छाऍं कहां से आती हैं
इनका जन्मदाता कौन है
इस विचार के आते ही
मन ले गया अपनी ज़मीन पर
दिखाया उसने अनन्त इच्छाओं का बाग
जिसमें अनगिनत इच्छाएँ थीं
कोई जन्म ले रही थी
कोई किसी शाख को पकड़कर
लटक सी रही थी
कोई अधूरी सी मैं हैरान हो
मन से कहने लगी
ये सब
मन बोला मैं तो बस इन्हें जन्म देता हूं
इन्हें साकार तो विचार ही करते हैं
कर्म की प्रधानता भी
विचारों से आती है
मैं तो बस समय-समय पर
अनुचित इच्छाओं की
कांट-छांट करता रहता हूं
वर्ना विचार इसे पल्लवित व पोषित
कैसे कर सकेंगे
क्योंकि इन इच्छाओं की संख्या
मेरे हृदय की ..........
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चाय ... by रश्मि प्रभा... at वटवृक्ष
चाय की मिठास सुबह की अलसाई धूप को मीठा बनाती है
तबीयत अपनी जगह है
पर फीकी पसंद .... चाय को चाय ही रहने दो
दवा न बनाओ ...
*
*
*रश्मि प्रभा* *
*चाय*
आज शक्कर अधिक हो गयी थी चाय में , बिलकुल सीरा लग रही थी ,चीनी जीभ पे कम
होठों पर ज्यादा महसूस हो रही थी ,..सुबह की एक प्याली चाय में शक्कर अधिक
मुझे भाई नहीं
मैं सोच रही थी की शक्कर तो मीठी है फिर ज्यादा होने पर भी क्यों अच्छा स्वाद
नहीं आ पा रहा..
सही है, चाय में शक्कर का माप सभी के लिए अलग अलग है ..कोई ज्यादा ,
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अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! by मनोज कुमार at राजभाषा हिंदी
*अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !*
*डॉ. हरिबंशराय बच्चन*
अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र-छांह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत !
अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी ! -- कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ !
अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !
यह महान दृश्य है ---
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ !
अग्नि पथ ! अग्नि पथ
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कुछ अध्याय मेरे जीवन के by प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
खुले बन्द वातायन, मन के भाव विचरना चाहें अब,
कुछ अध्याय मेरे जीवन के पुनः सँवरना चाहें अब।
लगता है वो सच था, जिसमें मन की हिम्मत जुटी नहीं,
और अनेकों रिक्त ऋचायें मन के द्वार अबाध बहीं।
नहीं व्यक्तिगत क्षोभ तनिक यदि झुठलाना इतिहास पड़े,
आगत के द्वारे निष्प्रभ हो, विगत विकट उपहास उड़े।
मैं आत्मा-आवेग, छोड़कर बढ़ जाऊँगा क्षुब्ध समर,
आत्म-जनित तम त्याग, प्रभा के बिन्दु बने मेरा अवसर।
राह हटें तो होती पीड़ा मन की, हानि समय श्रम की,
श्रेयस्कर फिर भी है यदि जीवन ने राह नहीं भटकी।
एक जन्म था हुआ, बढ़ा यह तन, जीवन भी चढ़ आया,
मन के जन्म अनेकों देखे, छोड़ विगत नव अपनाया।
है
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पुश्तैनी संपत्ति में पुत्रियों का हिस्साby दिनेशराय द्विवेदी at तीसरा खंब
समस्या- हमारी पुश्तैनी जायदाद जयपुर में स्थित है। बीस वर्ष पहले पिताजी ने
उस के तीन हिस्से किए। एक स्वयं रखा और एक-एक हिस्सा मुझे और मेरे भाई को दे
दिया। मेरी दो बहनें हैं जो बीस साल पहले अविवाहित थीं, लेकिन अब विवाहित
हैं।
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अन्ना, चमाटा और वीना मलिक...खुशदीप by Khushdeep Sehgal at देशनामा
रालेगण सिद्धि में मंगलवार रात को निर्देशक रुमी जाफरी की नई फिल्म *गली गली
चोर है* की अन्ना हज़ारे के लिए खास तौर पर स्क्रीनिंग की गई...भ्रष्टाचार पर
बनी इस कामेडी फिल्म को गांव वालों के साथ देखने के बाद अन्ना हज़ारे ने
मीडिया से भी बात की...
अन्ना ने भ्रष्टाचार पर पूछे एक सवाल के जवाब में जो कहा, उस पर कल गर्मागर्म
प्रतिक्रियाओं के आने की पूरी संभावना है...खास तौर पर कांग्रेस नेताओं
से...अन्ना ने कहा..."*सहने की कुछ कार्यक्षमता होती है, जब सहन करने की
कार्यक्षमता इनसान की ख़त्म होती है तो सामने वालों में कोई भी हो, एक चमाटा
मुंह में लग गया तो उनका दिमाग अपनी जगह पर आ जाएगा...अभी.......
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जन्मदिन मेरी बिटिया का.. by RITU at कलमदान
*आज २५ जनवरी २०१२ को मेरी बिटिया का जन्मदिन है ..उसके लिए मेरा प्यार शब्दों
में छलक आया ... *
*मेरी प्यारी बिटिया जब गोदी में आई *
*देख उसके चंचल नैना मैं भाग्य पर इठलाई *
*माँ बनने का गर्व देकर पुलकित जीवन कर दिया *
*माँ ,माँ ,पा पा ,की गुंजन से घर मेरा भर दिया *
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*
*जन्मदिवस पर उसके में फूली न समाई *
*ढेरो आशीष व शुभकामनाओं से गर्वित हुई ; वो इतराई *
*प्यारे भैया ने अपने छोटे हाथों से उपहार सजाया *
*पापा ने सारा लाड प्यार उस पर लुटाया *
*
*
*मेरी बिटिया सुन्दर हो ,संस्कारी हो यही मांगू दुआएं *
*इज्जत ,प्यार ...
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हिन्दी कवि-सम्मेलनों में अब कविता चोरों का बोलबाला कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है by AlbelaKhatri
*एक समय था जब हिन्दी कवि-सम्मेलनों में प्रस्तुति देने वाले सभी कवियों की *
*अपनी एक अलग पहचान होती थी. लोग केवल अपनी लिखी कवितायेँ ही सुनाते *
*थे और अपनी ही टिप्पणियां बोलते थे...परन्तु तालियों की गडगडाहट और *
*नोटों की खडखडाहट के आकर्षण ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसे बहुत से लोगों को *
*मंच पर खींच लिया जो बेचारे ख़ुद तो लिख नहीं पाते परन्तु दूसरों की रचनाओं *
*को तोड़ मरोड़ कर अपने अंदाज़ में सुना ज़रूर देते हैं . आज मंचीय *
*कवि-सम्मेलनों की स्थिति धीरे धीरे यहाँ तक आ गयी है कि मौलिक *
*रचनाकार माइक पर अपनी बेहतरीन रचनाएं सुनाते हुए भी डरता है कि *
*कहीं उसकी रचन...
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बल्ले-बल्ले करते काजल कुमार by सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap Singh at नुक्कड़ & at सुमित प्रताप सिंह
प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
* सा*थियो काजल और सुरमा सुन्दरी के नैनों को और अधिक आकर्षक व कटीला बनाने का
काम करते हैं. इन नैनों में खोकर ही हम और आप जैसे कवि व गीतकार कुछ ऐसा रच
डालते हैं कि उन नैनों की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं. हालाँकि अब काजल
और सुरमे के दिन लद चुके हैं और उनका स्थान "आई लाइनर" ने ले लिया है. किन्तु
हम ब्लॉगरों के नैनों की सुंदरता सदैव बढाते रहेंगे अपने ब्लॉगर बंधु और
कार्टूनकार काजल कुमार जी. काजल कुमार जी मूलरूप से हिमाचल प्रदेश से हैं व
दिल्ली में सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं ........
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वो मुझसे नाराज ,मैं उससे नाराज by डा.राजेंद्र तेला"निरंतर at "निरंतर" की कलम से.....
वो मुझसे नाराज
मैं उससे नाराज
वो मुझे माफ़ कर दें
तो मैं उसे माफ़ कर दूं
आपस में सुलह हो
जायेगी
नाराजगी आसानी से
ख़त्म हो जायेगी
अब पहल कौन करे
झगडा इस बात पर था
उलझन को सुलझाने लिए
मध्यस्थ ढूँढने लगे
जिसके लिए मैं कहता
वो नहीं मानता
जिसके लिए वो कहता
मैं नहीं मानता
नाराजगी पहले से
अधिक बढ़ गयी
दोनों के बीच दूरियां भी
अधिक हो गयी
समय गुजरता गया
ना मुझको चैन मिला
ना उसको चैन मिला
समय के साथ दोनों को
समझ आ गया
रिश्तों के बीच "मैं"
आ गया था
अहम् ने मष्तिष्क पर
पर्दा डाल दिया था
कारणवश झगडा सुलझ
नहीं रहा था
आत्मचिंतन किया
उसके घर की ओर
बढ़ चला
वो मेरे घर की ओर
आ रहा
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आज का बुलेटिन यहीं तक.... मिलते हैं एक छोटे ब्रेक के बाद......
बल्ले-बल्ले पहुंचेंगे इन लिंक्स पर हल्ले-हल्ले...
जवाब देंहटाएंजाग गए , चले पहले पढ़ने
जवाब देंहटाएंबुलेटिन का यह ताज़गी भरा अंक अच्छा लगा..जहां खुद को पाकर सुखद अनुभूति हुई ...आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंसामयिक बुलेटिन!! लिंक्स देखता हूँ!!
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंबात तो सही लगती है कि सांप और नाग में से एक चुनना है.पर इसीलिए अपने कर्तव्यों के हटा नहीं जा सकता.
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स हैं.देख लिए हैं सब.
एक बेहद सार्थक और सामयिक मुद्दा उठाया है देव बाबु आज ... बधाइयाँ ... उम्मीद है ... इसी तरह हर कोई अपनी अपनी ज़िम्मेदारी को समझेगा और उसका निर्वाहन करेगा ... जय हो ... बढ़िया बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंआज के ब्लॉग बुलेटिन का अंदाज़ अच्छा लगा। मेहनत से सजाई गई पोस्ट।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त पठनीय सूत्र।
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