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शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

हम पंछी एक डाल के ... - ब्लॉग बुलेटिन



हम पंछी एक डाल के - बोली अपनी अपनी .... पर डाली एक यानि ब्लॉग . एक गीत एक कहानी एक कविता एक नज़्म एक याद के साथ हम अपनी धुन गाते हैं . हर उड़ान ख्यालों के बीज की चाह में . घोंसला तेरा हो या मेरा , पर तिनकों में प्यार , संस्कार , सपने हैं ताकि अपनत्व बना रहे . अपनत्व का नशा ही हमें एक-दूसरे से जोड़ता है , प्रतिस्पर्द्धा के परदे हमें दूर करते हैं .
तो चलिए अपनत्व की सैर करें - मेरे इस गीत के साथ , लिखा मैंने , गया कुहू गुप्ता ने और संगीत ऋषि जी ने दिया है -


प्रतिभा जी की दुनिया मुझे हमेशा आवाज़ देती है .... चलिए मेरे साथ आपसब भी वहाँ http://pratibhakatiyar.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html जहाँ वे कहती हैं ,
"रोज अंजुरी भर शब्द सिरहाने जमा हो जाते हैं. मैं उन्हें इकठ्ठा करना नहीं चाहती क्योंकि शब्दों पर मेरी कोई ख़ास आस्था नहीं है. मुझे यकीन है कि भाषा के निर्माण के पहले भी संवाद होते रहे होंगे और बेहतर रहे होंगे. अब तो यूँ लगता है कि शब्दों पर काई सी जम गयी है. वो फिसल जाते हैं. शब्द चालाक हो गए हैं, उन्होंने अपने कई अर्थ गढ़ लिए हैं. "

चुप्पी का भी एक किनारा होता है . कहती हैं सीमा सिंघल चुप्पी के तट पर बैठकर http://sadalikhna.blogspot.com/2012/01/blog-post_20.html
" मौन बिना खुद से मिलना
संभव ही नहीं
कुछ कहना हो जब
खुद से कुछ सुननी हों बातें दिल की
तो उतर जाना
तुम शब्‍दों की नाव से
लगा देना किनारे इसे चुप्‍पी के तट पर
चलना फिर शांत चित्‍त से
जहां बंद दरवाजा खुल जाएगा
अंधेरे में दिया ज्ञान का जल जाएगा ... "

आत्मचिंतन की दशा में अपनी सोच बताती हैं रश्मि प्रभा http://aatamchintanhamara.blogspot.com/2012/01/blog-post_20.html
" सब गुरू बन जाते हैं ...."
'हामिद का चिमटा ' के ख्यालों की मीठी मुस्कान लिए अपनी मारुती में हैं वाणभट्ट जी -

बसंत की मोहक आहट और कई भूली बिसरी बातें अरुण सी रॉय जी के ब्लॉग पर - http://aruncroy.blogspot.com/2012/01/blog-post_18.html
" वसंत
मेरे कहने से
तुम रुक तो
नहीं जाओगे
लेकिन
पल भर के लिए
रुक कर देख लेना
सरसों के पीले खेतो के मेड पर
धूप सेंकती उस अल्हड की आँखों में
जहाँ अब भी
झूल रहे हैं अमलताश के गुच्छे
देखा है उसे किसी ने
इस बरस.."

खुशियाँ जब छलकती हैं तो सबके गले लगती हैं . पापा की नज़र से .....पापा के बच्चे .... यानि अशोक सलूजा जी की नज़रों से उनके बच्चों को देखिये और नए मेहमान के आने की बधाइयां दीजिये http://ashokakela.blogspot.com/2012/01/blog-post_19.html पर ....
मेरा तो दिल गा रहा है ,
कंगन लेबऊ हे बबुआ के बधैया.....
हहाहाहा .......... मिलते हैं फिर कुछ चिड़ियों से अगली सुबह...

रश्मि प्रभा

26 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद रश्मि जी...हामिद का चिमटा...ब्लॉग बुलेटिन पर लेने के लिए...

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  2. अपने बच्चों से मान-सम्मान पाना एक फक्र की बात है |मुझे यहाँ आ कर येही महसूस हो रहा है |
    आभार और शुभकामनाएँ |

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  3. सुन्दर सदाबहार गीत..लाजवाब प्रस्तुति..

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  4. गाना बहुत शानदार है कुहू की आवाज़ बहुत मधुर है ..
    सुन्दर लिंक्स संयोजन

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  5. बहुत मीठी प्रस्तुति...
    शुक्रिया ...

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  6. pahle rachnaao kaa ghamlaa thaa ,phir bageechaa banaa
    dher saaree sundar rachnaao se parichay karaa kar
    kahaan pahunchaayenge
    sundar atisundar

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  7. इस बेहद उम्दा बुलेटिन के लिए ... आपका बहुत बहुत आभार रश्मि दीदी !

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  8. गीत, शब्द और इन्ही शब्दों में छुपी हुई हमारी व्यथा... बहुत बढिया और उच्च कोटि का बुलेटिन.....
    शुभकामनाएं..

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  9. मधुर गीत और सुन्दर लिंक्स...

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  10. अपनत्‍व की सैर में सुमधुर गीत और बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन के साथ खुद को पाकर अच्‍छा लगा ... आपका आभार ...

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  11. शब्द चालाक हो गए हैं, उन्होंने अपने कई अर्थ गढ़ लिए हैं. " प्रतिभा जी ने आज की हालत की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की हैं....!आपकी प्रस्तुति तो लाजबाब होती ही है.... !!

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  12. बेहतरीन हमेशा की तरह बहुत सुंदर संग्रहणीय पोस्टों के लिंक्स । चलिए आपने आज बुलेटिन में रेडियो भी फ़िट कर दिया ..। कमाल बेमिसाल ।

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  13. बहुत ही चुनिन्दा लिंक्स...

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  14. बहुत ही खुबसूरत लिनक्स दिए है आपने......

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  15. रश्मि जी, इस पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया.

    गाने को सराहने के लिए आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया.

    - Kuhoo

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