सदाबहार,एवरग्रीन, सबके चहेते.... चला गया हिन्दी सिनेमा का गाईड..... जो लिखे वह कम.... जो कहें वह कम....
देव आनन्द: १९२३-२०११
देव साहब सही मायनें में हिन्दी सिनेमा के स्टेट्समैन थे..... हिन्दी सिनेमा में फ़िल्में तो बहुतों नें बनाई लेकिन समाज के प्रति अपनें सरोकार और जवाबदेही के लिए देव साहब हमेशा याद किए जाएंगे। उन्होंने समाज में हो रही घटनाओं को अपने नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले समाज तक पहुचाया । देव साहब का असली नाम धर्मदेव आनंद था, उनका जन्म २६ सितम्बर १९२३ में गुरदास पुर (जो अब नारोवाल जिला, पकिस्तान में है) में हुआ | उनके पिता किशोरीमल आनंद पेशे से वकील थे। देव आनंद के भाई, चेतन आनंद और विजय आनंद भी भारतीय सिनेमा में सफल निर्देशक रहे हैं। उनकी बहन शील कांता कपूर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ है। अंग्रेजी साहित्य से स्नातक देव आनंद काम की तलाश में मुम्बई आये थे, और देव साहब ने अपनी ज़िन्दगी महज़ १६० रूपये की तनख्वाह मिलट्री सेंसर ऑफिस से शुरू की | उन्होनें अपनें अभिनय करियर की शुरुआत प्रभात टाकीज़ की फिल्म "हम एक हैं" से की, उसके बाद गुरु-दत्त और अशोक कुमार के सम्पर्क में आनें के बाद १९४८ मे देव साहब को बॉम्बे टाकीज़ प्रोडक्शन की फिल्म "ज़िद्दी" में मुख्य भूमिका प्राप्त हुई। यह फ़िल्म बेहद सफ़ल हुई और फ़िल्मी दुनियां को एक नया सितारा मिल गया..... १९४९ में उन्होनें प्रोडक्शन हाऊस "नवकेतन फ़िल्म्स" की स्थापना की और इस बैनर के तले पहली फ़िल्म आई गुरु-दत्त निर्देशित "बाज़ी-१९५१", उस फ़िल्म नें देव साहब को बतौर निर्माता एक नई पहचान मिली..... उसके बाद हिन्दी सिनेमा को "राही", "आंधियां", "टेक्सी ड्राईवर", "मुनीम जी", "सी आई डी", "पेइंग गेस्ट" , "इंसानियत", "काला पानी" जैसे एक के बाद एक कामयाब फ़िल्में मिली....
रंगीन सिनेंमा के आनें के बाद उनकी पहली फ़िल्म आई, "गाईड"..... यह फ़िल्म हिन्दी सिनेंमा के लिए मील का पत्थर साबित हुई, खुद देव साहब का मानना था की "गाईड" जैसी फ़िल्में एक ही बार बनती है, ऐसी फ़िल्मों का दुबारा बन पाना असंभव है"।
देव साहब नें १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद प्रेम पुजारी का निर्माण किया, जो एक फ़ौजी के मानसिक अन्तर्द्वंद को दर्शाती एक नायाब फ़िल्म थी....
प्रेम पुजारी के गीत "ताकत वतन की हमसे हैं" नें फ़ौजी भाईयों के लिए प्रेरणा गीत का काम किया, मुझे याद है, विविध भारती के कार्यक्रम "फ़ौजी भाईयों के लिए" में रोज इस गीत की फ़रमाईश आती ही थी.....
जब युवा वर्ग को नशेपन की लत पडी, देव साहब नें "हरे रामा हरे कृष्णा" बनाई.... यह फ़िल्म हमेशा याद की जाती रहेगी.....
देव साहब इस फ़िल्म को दुबारा नये रूप में बनानें की तैयारी में थे.... वह कहते थे, "मैं 'हरे रामा हरे कृष्णा' आज के नौजवानों को ध्यान में रखते हुए बनाऊंगा. मेरी स्क्रिप्ट तैयार है. जल्द ही इस पर काम शुरु करूंगा....
फ़िल्मों में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें २००१ में पद्म भूषण और २००२ में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया, देवानंद को दो फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी मिले. १९५८ में फ़िल्म काला पानी के लिए और फिर १९६६ में गाइड के लिए। गाइड ने फ़िल्मफेयर अवार्ड में पांच अवार्डों का रिकार्ड भी बनाया. इतना ही नहीं गाइड भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए नामांकित भी हुई थी.
देव साहब फ़िल्म निर्माण को लेकर जुनून आज कल की युवा पीढी के लिए एक पथ प्रदर्शक है, देव साहब आज नहीं रहे.... एक अजीब सा खाली पन आ गया है, देव साहब कहीं नहीं गये..... वह तो आज भी अपनें गीतों और अपनें फ़िल्मों से ज़िन्दा हैं..... वह हंसता और खिलखिलाता हुआ चेहरा.... चिर-युवा देव साहब को मेरी और ब्लाग बुलेटिन की पूरी टीम की तरफ़ से भावपूर्ण श्रद्धांजलि.....
देव कुमार झा
देव कुमार झा
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देव आनंद नहीं रहे
आपकी स्मृति को नमन
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ... देव आनंद
एक युग का अंत : देव आनंद नहीं रहे !
दिल का दौरा पड़ने से जिंदादिल अभिनेता देवानंद का निधन
देवानंद साहब का जाना...
देवानंद जी भगवान जी के पास चले गए..श्रद्धांजलि !!
सदा बहार अभिनेता देव आनंद का निधन
"चिट्ठियों से आरंभ होकर फिल्मों में ख़त्म हुआ देवानंद का सफ़र"
देव आनंद नहीं रहे |
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आपकी स्मृति को नमन
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ... देव आनंद
एक युग का अंत : देव आनंद नहीं रहे !
दिल का दौरा पड़ने से जिंदादिल अभिनेता देवानंद का निधन
देवानंद साहब का जाना...
देवानंद जी भगवान जी के पास चले गए..श्रद्धांजलि !!
सदा बहार अभिनेता देव आनंद का निधन
"चिट्ठियों से आरंभ होकर फिल्मों में ख़त्म हुआ देवानंद का सफ़र"
देव आनंद नहीं रहे |
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ब्लाग जगत की फ़ेसबुक पर भी दी गयी प्रतिक्रियाओं को एक पोस्ट के रूप पढिए...
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देव साहब नहीं रहे.... सदाबहार, इस दुनियां का सबसे बडा स्टार नहीं रहा........ बस एक ही लाईन याद आ रही है....... "मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया"...... ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि....
किया है मैने ये गुनाह परदे के पीछे से आया था परदे के पीछे चला गया………विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंदेव कुमार झा जी, इस बुलेटिन के माध्यम से आपने एक तरह से पूरे ब्लॉग जगत की ओर से देव साहब को श्रद्धांजलि दी है ... आपको बहुत बहुत साधुवाद !
जवाब देंहटाएंमैनपुरी के सभी सिने प्रेमियों की ओर से देव साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
देव आनंद साहब का मैं एक बड़ा
जवाब देंहटाएंप्रशंसक रहा हूँ, जाहिर है आज मेरा
दिल गमजदा है..दिमाग में आयडिया
तो है पर हांथ काँप रहे है ऐसे में कार्टून
नहीं बना पा रहा हूँ..देव साहब को
श्रधासुमन...!
जब पुराना बरगद का वृक्ष गिरता है तो सिर्फ उसका अस्तित्व नहीं समाप्त होता है,बल्की वह अपने आस पास के सारे वातावरण को प्रवावित करता है. देव साहब का जाना किसी की कोई व्यक्तिगत क्षती नहीं है,बल्की उनके साथ एक कला का अवसान हो गया."बर्बादियों का जसन मनाता चला गया"... अलविदा
जवाब देंहटाएंएक युग का अंत!!
जवाब देंहटाएंदेव आनंद जी को विनम्र श्रद्धांजलि....
जवाब देंहटाएंदेव साहब की स्मृतियों का सदाबहार गुलदस्ता
जवाब देंहटाएंफिल्म जगत के इस युगपुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि ! हम उन्हें यूं भुला न पायेंगे !
जवाब देंहटाएंमौन श्रद्धांजली
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंदेव आनंद जी को विनम्र श्रद्धांजलि....
जवाब देंहटाएंआपका आभार आपने प्रोत्साहित किया1
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