कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का १५ वां भाग ...
बड़ी बड़ी आँखों में बड़े बड़े सपने
हारना फितरत नहीं
और किसी के सपने मरते देखना
स्वीकार नहीं ...
कुछ नहीं था गुड़िया के पास
न हीरे जवाहरात , न महल
न ढेर सारे पैसे , न कोई जादुई छड़ी
उसके पास था हौसला ...
सपने दिखाने की
पूरे करने की निष्ठा
अपने सपनों की कीमत पर
सबके सपने पूरे करती .... शब्दों के उड़नखटोले पर बादलों से बातें करते वह कभी हँस बन गई , भावों के महारथियों के द्वार से शब्दों के दाने चुगे , कभी गौरैया बन किसी पेड़ पर घोंसला बनाया और सभी पक्षियों को बुला लिया . यह अवलोकन का मंच एक घोंसला ही है , कीमती दाने .... बस चुगते जाना है , जाने कब लम्बी उड़ान भरनी हो ! तो पंखों की मजबूती कायम रहे ..................
"सच को कहना सच को मनन करना
बहुत जरूरी होता है
तभी वह एक आवाज बनता है
जो टकरा सकता है
हर तूफान से जिसमें होती है
वह शक्ति
जो दस्तक देती है हर दरवाजे पर
जहां सोई हुई रूहें जाग जाती हैं
और हौसले बुलन्द हो
एक आवाज बनते हैं ..... !!! " एक एक झूठ क्षणिक मार्ग तो खोलता है, पर आत्मा पर बोझ होता है ! सच के रास्ते कठिन होते हैं , पर उसीमें सुकून होता है ... उस जीत को मनाओ न मनाओ , मन में ख़ुशी का जश्न होता है .
जीवन के सफ़र में सबको जाना है बारी बारी तो आते रहना भी है बारी बारी .... एहसासों का वही काफिला निकलता है - ये अलग बात है कि कभी उसने कहा कभी मैंने कभी वो कहेगा ... सूर्य की प्रथम रश्मि वही होगी , जिसे कवि पन्त ने देखा - उन्होंने विहंगिनी से प्रश्न किया , तुम कुछ और कहोगे पर भाव मिलते रहेंगे .
अविनाश वाचस्पति http://www.nukkadh.com/2011/11/blog-post_2539.html
"पिंजरे में सिर्फ
बुलबुलें ही कैद
नहीं की जातीं
तोते भी किए
जाते हैं बंद
तोते यूं तो
काटते नहीं है
बंद हों पिंजरे में
और दिखाओ ऊंगली
तो काट लेते हैं।" भावनाओं के प्रवाह थमते नहीं , सत्य की आड़ में सत्य कहते हुए पिजरे के अन्दर की घुटन, झुंझलाहट समझता है .
इक फौजी के दिल के एहसास और उनकी ख्वाहिशें हमसे अलग नहीं होतीं , वह फौलादी दिल लिए मुस्कुराता तो है ,'रंग दे बसंती चोला ' गाता तो है , सरफरोशी की तमन्ना लिए सीमा पर खड़ा रहता तो है ..... पर बासंती हवाएँ उनको भी सहलाती हैं , सोहणी उनको भी बुलाती हैं ..... कुछ इस तरह -
"जब तौलिये से कसमसाकर ज़ुल्फ उसकी खुल गयी
फिर बालकोनी में हमारे झूम कर बारिश गिरी " सच तो है घर से दूर सरहद के पास - पुरवा की शोख अदाएं झटक के बातों को ,इनके दिल में भी चुपके से सुगबुगाती है ...
प्यार के एहसास कितने महीन होते हैं , ख्वाब की उड़ान कितनी अनोखी होती है - दिल कुछ भी सोचता है , पर सच ही तो होता है ...
"तुम्हारे घर की बंद खिड़की के बाहर
मैंने अपने आँचल में बंधे
खूबसूरत यादों के सारे के सारे पुष्पहार
बहुत आहिस्ता से नीचे रख दिये थे !
सुबह उठ कर ताज़ी हवा के लिये
जब तुमने खिड़की खोली होगी
तो उनकी खुशबू से तुम्हारे
आस पास की फिजां
महक तो उठी थी ना ?" बस यही कहने का दिल करता है , रिश्तों की उम्र बड़ी छोटी है कोई एक पल के लिए कोई दो पल के लिए ,वक़्त खो जाये उससे पहले
- आओ एक अपना घर बना लें हम भी !
वरना जाने कब कोई नज़्म उदास हो जाए ...
" मैं लौट आती हूँ वहाँ , जहाँ
लहर ठहरी हुई थी .....
देखती हूँ वह मुहब्बत तमाम के शब्द
मिटाए जा रही थी .....
रेत से ...पानी से ...दरख्तों से ...पत्तों से
मुस्कुराहटों से ..हँसी से ...पलकों से
वह आईने के सामने खड़ी होकर
दुपट्टा ओढ़ती है .....
और फिर उसके टुकड़े टुकड़े कर
फेंक़ देती है समुंदर में .." सच कहते हैं लोग - कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज़ !
ऐसे में दिगम्बर नासवा http://swapnmere.blogspot.com/2011/10/blog-post_28.html सही फरमाते हैं ,
"बाजुओं का दम अगर है तोलना
वक्त से पंजा लड़ा कर देखिये " समय हौसलों की परख रखता है , बदले मिजाज़ में नरमी लाता है ...
ऐसे-ऐसे ब्लॉगरों से परिचय हो रहा है जिनसे जान-पहचान न थी।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन!
अवलोकन की इस कड़ी में एहसासों का खूबसूरत काफिला जिसमें शामिल .."सच को कहना सच को मनन करना ..अच्छा लगा ..आभार सहित शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंब्लॉगरों का सर्वोत्तम पक्ष रखने का अतिशय आभार
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार इस सार्थक प्रस्तुति के लिए !
जवाब देंहटाएंयहां कई ऐसे ब्लाग भी शामिल हुए, जहां तक पहले नहीं पहुंच पाया था।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाएं तो लगातार मिल ही रही हैं।
बहुत बढिया
Kamaal ki rachnaye padhne ko mil rahi hain .... Apki mehnat ko naman .. Shukriya meri gazal ko Jagah dene ke liya ....
जवाब देंहटाएंकितना गहन एवं सूक्ष्म आपका अवलोकन है और इस विराट ब्लॉग सागर से अनमोल मोती चुन लेने की आपकी अद्भुत क्षमता है ! आपके इस स्तुत्य श्रम को नमन ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक रचनाएँ पढ़ने को मिलीं आज।
जवाब देंहटाएंसादर
"पिंजरे में सिर्फ
जवाब देंहटाएंबुलबुलें ही कैद
नहीं की जातीं
तोते भी किए
जाते हैं बंद
तोते यूं तो
एक से बढ़ कर एक रचना की ,
जानकारी देने के लिए , धन्यवाद.... !
दिग्गजों से मुलाकात ..आपके श्रम को सलाम.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाओं से पुनः भेंट हो गयी....
जवाब देंहटाएंसादर आभार दी....
ख़ूबसूरत शब्दों से सुसज्जित उम्दा रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bahut hi achhe-achhe links ke saath sundar prastutikaran ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंइस सार्थक प्रस्तुति के लिए नमन..
जवाब देंहटाएंसभी कवियों को नमन ..हीर को पढना हमेशा अच्छा लगता हे...
जवाब देंहटाएंबहुत ही परिश्रम से किया गया कार्य ,संदर्भ श्रंखला साबित हो रही है ये । रश्मि प्रभा जी को हमारा नमन
जवाब देंहटाएं:)) har baar ki tarah ek aur ........ bulletin, achchha hi lagega:)
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