राम प्रसाद बिस्मिल |
अशफाक उल्ला खा |
फांसी की सजा से आजादी के दीवाने जरा भी विचलित नहीं हुए और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए।
फांसी की सजा के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर की गई लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी पर लटका दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी की सजा दी गई।
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर उनको शत शत नमन !
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कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०११ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०११ का दसवां भाग ...
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहाँ हैं कहाँ हैं कहाँ हैं कहाँ हैं .... इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई ? ऐसा क्या हो गया जो चुप हो ... रुको रुको , किसी के आने की आहट सुनाई दे रही है . मैं तो डर ही गई थी कि कोई रहा ही नहीं ......
गुत्थियां सुलझती ही नहीं इतनी गांठें हैं , इतनी कसी कि खोलते खोलते उंगलियाँ दुखने लगी हैं, कहीं कहीं से छिल भी गई हैं ... पर प्रयास तो ज़रूरी है !
आहटों के साथ, परेशान से शिवम् मिश्रा जी हैं ये तो , ' तो आप हैं ?' ' अरे नहीं भाई , मैं खुद बहुत परेशान हूँ .... रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा , हिन्दुस्तां हमारा ... मैं तो बस यह कहने आया हूँ - http://jaagosonewalo.blogspot.com/2011/01/blog-post.html
' जिस हिसाब से महेंगाई बढ़ती जा रही है ... सोच रहे है ... हम भी नेता बन जाएँ !!'
फिर एक निवेदन - ' सभी नेताओ से निवेदन है कि इस बढती हुयी महेंगाई को रोकें और आम आदमी को आम ही बना रहने दें ... हर कोई नेता बन गया तो आप लोगो का क्या होगा ??'
मेरी ज़ुबान पर तो एक ही गीत आ रहा है - देर न हो जाए कहीं देर न हो जाए .... अगर हर कोई नेता बन गया तो खामखाह यह धंधा भी चौपट . !!!
परिवर्तन तो हर युग में हुआ है .... बदलाव बेहतर हो तो सही है , पर खुद को , समाज को रसातल का रास्ता क्यूँ दिखाना . हर युग में कुछ गलत हुआ है, पर अधिक गलत - यह नहीं होना चाहिए !
'संस्कारों के
धज्जियों की
धूल,
जब उड़-उड़ कर,
पड़ती है
आँखों में,
चुभन होती है,
जलन होती है,
पानी-पानी जैसा
लगने लगता है.....' सब बिखरता जा रहा है, पहले भी बंटवारा होता था , पर सारी नाराज़गी के बावजूद माँ,बाप एक जिम्मेदारी होते थे . उनका होना , घर में आशीष सा लगता था . पर अब तो अपनी ज़िन्दगी के आगे उनका वजूद ही खोखला हो गया है , बनने लगे हैं वृद्धाश्रम !
पर कोई है जो खुद में अपने को ढूंढता खुदा से एक ही नेमत मांगता है-
शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' http://shahidmirza.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
'मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको ' ना घर तेरा ना घर मेरा चिड़िया रैन बसेरा ... फिर क्या कुछ और खुदा से मांगे बन्दे , खुद को पा ले , किसी की आँखों की ख़ुशी बन जा .... यही ज़िन्दगी है ...
सोचने के बहुत से फलसफे देकर जा रही हूँ , कुछ सोचिये, कुछ कहिये - मैं चाय पी लूँ - रुकावट के लिए खेद है, पर यह भी ज़रूरी है ...
रश्मि प्रभा
रश्मि प्रभा
बढिया बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंइस दिन को बताकर कम से कम उन शहीदों के साथ कर दिया आपने - श्रद्धा से सर झुका लिया मैंने ...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय नमन है अमर शहीदों को...
जवाब देंहटाएंसलाम ।
जवाब देंहटाएंहम ॠणी है, अमर शहिदों!! आपको श्रद्धा-सुमन!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया परिचय बुलेटीन!!
नमन है अमर शहीदों को...
जवाब देंहटाएंshandaar!!
जवाब देंहटाएंकिसी की आँखों की ख़ुशी बन जा .... यही ज़िन्दगी है ... और इस क्रम में अपनी रचनाएं जब आती हैं जो वो खुशी दुगनी हो जाती है ..अवलोकन की इस कड़ी में सभी रचनाकारों को बधाई के साथ शुभकामनाएं .. आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंहमारी तरफ़ से भी अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर उनको शत शत नमन…………इस बार का बुलेटिन भी शानदार रहा।
जवाब देंहटाएंबढ़िया परिचय बुलेटीन!
जवाब देंहटाएंshaheedon ko naman.....bahut sunder buletin hai......shukriya bhi.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक प्रस्तुति ! इतने चुनिन्दा लिंक्स के लिये आभार ! काकोरी काण्ड के शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंसभी मैनपुरी वासीयों की ओर से अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर उनको शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को अवलोकन २०११ में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ... रश्मि दी !
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन दी...
जवाब देंहटाएंअमर शहीदों को सादर नमन.
जयहिंद....
नमन है अमर शहीदों को ...
जवाब देंहटाएंआज का संकलन भी लाजवाब लगा ...
नमन अमर शहीदों को...सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअशफाक साहब ने फरमाया था:
जवाब देंहटाएंतंग आकार हम भी उनकी ज़ुल्म से बेदाद से,
चल दिए सू-ए-अदम जिन्दाने फैजाबाद से!
श्रद्धांजली उन अमर शहीदों को!!
अमर शहीदों को नमन..बहुत ही रोचक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटीन प्रस्तुति!
वाह...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबधाई और शुक्रिया.
आज यहाँ आया, अब शुरू से यानि एक से दस तक पढ़ता हूँ। आप की तरफ से एक और महत्वपूर्ण पहल के लिए विशेष साधुवाद।
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