tag:blogger.com,1999:blog-7855737057694827709.post3251287478957305821..comments2024-03-18T12:47:03.171+05:30Comments on ब्लॉग बुलेटिन: अवलोकन - 2014 (2)ब्लॉग बुलेटिनhttp://www.blogger.com/profile/03051559793800406796noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7855737057694827709.post-56165845722995973942014-10-06T16:12:15.866+05:302014-10-06T16:12:15.866+05:30बहुत दिनों से ब्लाग पर लेखन ठप था संभव है आपकी सदा...बहुत दिनों से ब्लाग पर लेखन ठप था संभव है आपकी सदाशयता से प्रेरित होकर उस और भी ध्यान दे पाऊं ! बहरहाल आपका आभार व्यक्त करता हूँ ! अपनी पे क्या कहूँ वो तो एक साधारण सी प्रस्तुति है बस :) <br /><br />वंदना जी की कविता काफी लंबी है, जिसका मूल कथ्य है , धार्मिकता का पुनरावलोकन / पुनर्व्याख्यायित किया जाना ! गुरु शिष्य परम्परा के आहत होने के कथन से वे आस्था और विश्वास के क्षरण / की टूटन का संकेत देती हैं ! धर्मगत कर्मकांडीयता / नक्कालों के उदभव से उन्हें शिकायत है ! वे शताब्दियों पुरानी , उनके ही शब्दों में अनादिकाल से चली आ रही संस्कृति और संस्कारों की पुनर्स्थापना के लिए आश्वस्त होना चाहती हैं ! उनका प्रश्न जिस अव्यवस्था से उदभूत है, वे उसी को परिमार्जित कर व्यवस्थापित करने में अपने प्रश्न के उत्तर ढूंढती हैं / समाधान की आकांक्षा करती हैं ! प्रतीत होता है कि उनकी कविता का सूत्रपात 'आसा' के 'लीला-ए-तन' प्रकरण से हुआ होगा या फिर इस कांड ने चहुँ दिस बिखरी गंद के विरुद्ध कवियित्री के असंतोष को और भी भड़का दिया होगा ! बहरहाल वे, तर्कों के आलोक में अतीत के संशोधित पुनर्जीवन की कामना करती हैं ! मुझे लगता है कि कविता थोड़ी छोटी होती तो उसकी धार और भी पैनी हो जाती शायद ? <br /><br />कवि कौशलेन्द्र जी की कविता नितांत राजनैतिक है और व्यक्तिगत असहायता /व्यक्तिगत आशय से बंधी हुई प्रतीत होती है ! भले ही कविता के बाद , सन्दर्भों को विस्तारित करके वे, उसे बहुआयामी और खतरनाक कविता भी कह रहे हों पर एक पंक्ति का अर्थ कह कर वे पुनः अपनी कविता को उसी कुंवे में समेट लेते हैं , जहां से वो शुरू हुई थी ! वे , सत्ता के शिखर पर बैठे संत के मौन / अनसुनेपन और अनदेखा करने का आधार चुनते हुए, सारे संसार के पाप उसके ही माथे मढ़ देते हैं , क्योंकि उनकी कविता एक ही नायक के खलनायकत्व पे आधारित है , जहां निचलेक्रम / अधीनस्थों के व्यक्तिगत पापों / अप्कर्मों का लांछन भी अगुवा को भुगतना है , क्योंकि कवि की दृष्टि में वो एक अपाहिज / लाचार नायक है , तो सारे अनुयाइयों के छल उसके ही हिस्से ! शायद यह कविता पिछले गठबंधन के शासन काल को इंगित करके लिखी गयी है , एक विशिष्ट राजनैतिक दृष्टि से निबद्ध है / प्रेरित है ! मुझे लगता है कि इसे कविता से बेहतर एक गद्य / निबंध / आलेख माना जाना चाहिए !<br /><br />उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7855737057694827709.post-88728309645428984812014-10-06T13:48:55.813+05:302014-10-06T13:48:55.813+05:30धन्यवाद रश्मि जी ! मुझे मालूम है, यह मेरी एक ख़तरना...धन्यवाद रश्मि जी ! मुझे मालूम है, यह मेरी एक ख़तरनाक पोस्ट है । यदि "उसकी"निगाह में आ गयी तो मेरी ख़ैर नहीं । लेखन धर्म की रक्षा के लिए यह ख़तरा लेना आवश्यक लगा मुझे । लेकिन समझ में नहीं आता कि मीडिया को ऐसे अपराधी नज़र क्यों नहीं आते ? <br />बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7855737057694827709.post-72376864959972204512014-10-06T09:51:17.238+05:302014-10-06T09:51:17.238+05:30सटीक विश्लेषण ।सटीक विश्लेषण ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com