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शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

निन्यानबे का फेर - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक सम्राट का एक नौकर था, नाई था उसका। वह उसकी मालिश करता, हजामत बनाता। सम्राट बड़ा हैरान होता था कि वह हमेशा प्रसन्न, बड़ा आनंदित, बड़ा मस्त! उसको एक रुपया रोज मिलता था। बस, एक रुपया रोज में वह खूब खाता-पीता, मित्रों को भी खिलाता-पिलाता। सस्ते जमाने की बात होगी। रात जब सोता तो उसके पास एक पैसा न होता; वह निश्चिन्त सोता। सुबह एक रुपया फिर उसे मिल जाता मालिश करके। वह बड़ा खुश था! इतना खुश था कि सम्राट को उससे ईर्ष्या होने लगी। सम्राट भी इतना खुश नहीं था। खुशी कहां! उदासी और चिंताओं के बोझ और पहाड़ उसके सिर पर थे। उसने पूछा नाई से कि तेरी प्रसन्नता का राज क्या है? उसने कहा, मैं तो कुछ जानता नहीं, मैं कोई बड़ा बुद्धिमान नहीं। लेकिन, जैसे आप मुझे प्रसन्न देख कर चकित होते हो, मैं आपको देख कर चकित होता हूं कि आपके दुखी होने का कारण क्या है? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है और मैं सुखी हूँ; आपके पास सब है, और आप सुखी नहीं! आप मुझे ज्यादा हैरानी में डाल देते हैं। मैं तो प्रसन्न हूँ, क्योंकि प्रसन्न होना स्वाभाविक है, और होने को है ही क्या?

वजीर से पूछा सम्राट ने एक दिन कि इसका राज खोजना पड़ेगा। यह नाई इतना प्रसन्न है कि मेरे मन में ईर्ष्या की आग जलती है कि इससे तो बेहतर नाई ही होते। यह सम्राट हो कर क्यों फंस गए? न रात नींद आती, न दिन चैन है; और रोज चिंताएं बढ़ती ही चली जाती हैं। घटता तो दूर, एक समस्या हल करो, दस खड़ी हो जाती हैं। तो नाई ही हो जाते।

वजीर ने कहा, आप घबड़ाएं मत। मैं उस नाई को दुरुस्त किए देता हूँ।
वजीर तो गणित में कुशल था। सम्राट ने कहा, क्या करोगे? उसने कहा, कुछ नहीं। आप एक-दो-चार दिन में देखेंगे। वह एक निन्यानबे रुपये एक थैली में रख कर रात नाई के घर में फेंक आया। जब सुबह नाई उठा, तो उसने निन्यानबे गिने, बस वह चिंतित हो गया। उसने कहा, बस एक रुपया आज मिल जाए, तो आज उपवास ही रखेंगे, सौ पूरे कर लेंगे!
 
बस, उपद्रव शुरू हो गया। कभी उसने इकट्ठा करने का सोचा न था, इकट्ठा करने की सुविधा भी न थी। एक रुपया मिलता था, वह पर्याप्त था जरूरतों के लिए। कल की उसने कभी चिंता ही न की थी। ‘कल’ उसके मन में कभी छाया ही न डालता था; वह आज में ही जीया था। आज पहली दफा ‘कल’ उठा। निन्यानबे पास में थे, सौ करने में देर ही क्या थी! सिर्फ एक दिन तकलीफ उठानी थी कि सौ हो जाएंगे। उसने दूसरे दिन उपवास कर दिया। लेकिन, जब दूसरे दिन वह आया सम्राट के पैर दबाने, तो वह मस्ती न थी, उदास था, चिंता में पड़ा था, कोई गणित चल रहा था। सम्राट ने पूछा, आज बड़े चिंतित मालूम होते हो? मामला क्या है?
उसने कहा: नहीं हजूर, कुछ भी नहीं, कुछ नहीं सब ठीक है।

मगर आज बात में वह सुगंध न थी जो सदा होती थी। ‘सब ठीक है’--ऐसे कह रहा था जैसे सभी कहते हैं, सब ठीक है। जब पहले कहता था तो सब ठीक था ही। आज औपचारिक कह रहा था।
सम्राट ने कहा, नहीं मैं न मानूंगा। तुम उदास दिखते हो, तुम्हारी आंख में रौनक नहीं। तुम रात सोए ठीक से?
उसने कहा, अब आप पूछते हैं तो आपसे झूठ कैसे बोलूं! रात नहीं सो पाया। लेकिन सब ठीक हो जाएगा, एक दिन की बात है। आप घबड़ाएं मत।

लेकिन वह चिंता उसकी रोज बढ़ती गई। सौ पूरे हो गए, तो वह सोचने लगा कि अब सौ तो हो ही गए; अब धीरे-धीरे इकट्ठा कर लें, तो कभी दो सौ हो जाएंगे। अब एक-एक कदम उठने लगा। वह पंद्रह दिन में बिलकुल ही ढीला-ढाला हो गया, उसकी सब खुशी चली गई। सम्राट ने कहा, अब तू बता ही दे सच-सच, मामला क्या है? मेरे वजीर ने कुछ किया?

तब वह चैंका। नाई बोला, क्या मतलब? आपका वजीर...? अच्छा, तो अब मैं समझा। अचानक मेरे घर में एक थैली पड़ी मिली मुझे--निन्यानबे रुपए। बस, उसी दिन से मैं मुश्किल में पड़ गया हूं। पड़ गया मुझ पर भी  निन्यानबे का फेर|


सादर आपका

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मैं भी मैं भी मैं भी ( नंगा समाज ) डॉ लोक सेतिया

यदि पौराणिक काल में आज जैसी संस्थाएं होतीं तो ?

458.ख़्वाब मुक्तक

जन्मदिन मुबारक निदा साहब

असमंजस

घर से निकले हैं पढ़ने को....

'मी टू' की बहस के बीच 'मी टू'

नदियों और जीडी अग्रवाल जी के हत्यारे हम है ......

हद पार इश्क

अब दुर्गा माता नाराज नहीं होती...!!!

"माहिया" ( स्वीकारोक्ति )

 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

10 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर कथा। बढ़िया बुलेटिन।

Meena Bhardwaj ने कहा…

निन्यानबे का फेर में पड़ कर जीवन के वास्तविक आनंद को आज हम सभी बिसराए बैठे हैं । प्रेरणादायक कहानी की भूमिका और विविधताओं से भरे लिंक्स के संयोजन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

निन्यानबे का फेर इंसान को चैन से जीने नहीं देता। बहुत सुंदर कहानी। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत
धन्यवाद,शिवम जी।

कविता रावत ने कहा…

सेहत बिगाड़ देता है सबकी ये निन्यानबे का फेर|
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति

Digvijay Agrawal ने कहा…

मस्त कथा...
मस्त बुलेटिन...
सादर...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

Sadhana Vaid ने कहा…

सार्थक कथा बेहतरीन प्रस्तुति ! मेरी रचना को आज के बुलेटिन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शिवम् जी ! सादर वन्दे !

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही अच्छी कहानी

Dr Varsha Singh ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति

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