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सोमवार, 27 जून 2016

अकेलेपन को एकांत दो




अकेलेपन का मित्र कोई व्यक्तिविशेष हो - ज़रूरी नहीं 
प्रकृति,ख़ामोशी,घड़ी की टिक टिक … भी हो सकते हैं
रोने से पहले दिल की सुनो 
भीड़ में वह कितना चुप सा था 
पंछी कितने उदास थे - सोचो
सुनो - ....
और जानो - अकेलेपन को एकांत दो
एकांत में ही आध्यात्म की रौशनी प्रखर होती है 


2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

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