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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

देश का संकट, संकट में देश - ११११ वीं बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
कलाम साहब को नमन करते हुए आज की बुलेटिन आपके सामने प्रस्तुत है.
देश विगत कुछ समय से अजब से हालातों में घिरता दिख रहा है. कभी गाय के नाम पर हत्याकांड होता है तो फिर उस हत्याकांड पर राजनीति होने लगती है. बाघ बचाने की मुहिम छेड़ने वाले लोग ‘बीफ पार्टी’ देने की होड़ में शामिल होने लगते हैं.  कितनी विद्रूपता है कि जिस गाँव में तनाव उत्पन्न होता है वहाँ आपसी सामंजस्य से माहौल सुधर जाता है और समाज के जिस वर्ग पर माहौल सुधारने का दायित्व है वे माहौल बिगाड़ने का कार्य करने लगते हैं. जिन साहित्यकारों को सामाजिक सन्देश देने वाला समझा जाता है मगर उनके पूर्वाग्रही कदम सरकार को नहीं वरन सम्पूर्ण देश को वैश्विक स्तर पर बदनाम करने में लगे हैं.

किसी भी हत्या का विरोध होना चाहिए, किसी भी हत्यारे का खुला टहलना मंजूर नहीं होना चाहिए मगर जब मौत पर भी राजनीति होने लगे तो समझना चाहिए कि देश संकट में घिरने वाला है. जब हत्या हिन्दू या मुस्लिम हो जाये; जब सहायता हिन्दू या मुस्लिम आधार पर की जाये; जब समर्थन का आधार हिन्दू या मुस्लिम हो जाये तो समझना चाहिए कि समाज में विघटन का संकट आने वाला है. वर्तमान में अकादमी के पुरस्कारों की वापसी अपने आपमें एक कहानी समेटे है वो एक अलग विषय है किन्तु जिस तरह वर्तमान समय को हिंसक, असहिष्णु, अराजक सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है वो देश के विकास को ही नहीं वरन देश की गति को वैश्विक स्तर कमजोर करेगा.

बहरहाल, जिनकी जिम्मेवारी समाज के दिशा-निर्देशन की मानी गई है, वे तो राजनीति में मगन हैं ऐसे में हम-आप की, आम आदमी की जिम्मेवारी बन जाती है कि न केवल ऐसे लोगों को सही रास्ते पर लायें वरन समाज को भी सही दिशा दिखाएँ. इस हेतु सामने आई कुछ पोस्ट आपके सामने हैं, शायद रास्ता बना सकें... शायद..!!

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इस पोस्ट के साथ एक संजोग भी जुड़ गया.... ब्लॉग बुलेटिन की ये ११११ वीं पोस्ट है. जब अंक में इतनी साम्यता स्फूर्त रूप से बन गई है तो हम सबको भी समवेत रूप से इसी तरह 'एकसाथ एक' बन जाना होगा. देश की, समाज की समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाएँगी. 

4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

1111 वीं बुलेटिन की बधाई और आगे के लिये शुभकामनाऐं । सुंदर प्रस्तुति ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इस विषय पर ठीक से पढ़ नहीं पाया कि असल माजरा क्या है। वक्त ही नहीं मिला। व्यस्तता खत्म हो तो पढ़ा जाय और टिप्पणी की जाय । वैसे यह सब देखकर बहुत हैरानी हो रही है! ......इतना अंधेरा क्यों है भाई!!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सही कह रहे है ... अब ज़िम्मेदारी हम लोगों की है !!

ड़ा। कलाम को शत शत नमन |

कविता रावत ने कहा…

गंभीर सामयिक विषय चर्चा बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

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