प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
आज से बढ़ाएँ गए सर्विस टैक्स को ले कर बड़ा बवाल मचा हुआ है ... जिसे देखो वो शिकायत करता मिलता है ... बस एक ही ऐसा बंदा है जिसे इस बवाल मे कोई रुचि नहीं ... और वो है एक शराबी !!!
शराब का हमारी अर्थव्यवस्था में बडा महत्व है, क्योंकि शराबी एक मॉडल टैक्सपेयर होता है। किसी भी आइटम पर टैक्स लगाया जाये, उसे देने वाला बवाल मचा देता है। पैट्रोल पर एक डेढ़ रुपया बढ़ जाऐ, मार ड्रामा शुरु हो जाता है। बीएमडब्ल्यु वाला भी हुड़की लगाकर चैनलों को बयान देने लगता है कि हम मर गये, लुट गये, तबाह हो गये।
शराब का खरीदार अत्यँत शालीन होता है। औसतन हर साल शराब के भाव 15-20 परसेंट तो बढ़ते ही है, दिखा दे मुझे कोई कि कभी किसी शराबी ने चिक-चिक मचायी हो। इतिहास में एक भी जुलूस ऐसा नहीं दर्ज है, जिसमें शराब के खरीदारों ने डीएम को जुलूस निकालकर ज्ञापन दिया हो कि प्लीज दारु सस्ती कर दो। ऐसे उद्विग्न समय में शराबी का सा संयम सराहनीय है, ये इतनी दुर्लभ क्वालिटि है कि सिर्फ शराबियों में ही पायी जाती है।
उत्तर प्रदेश में शराब का कारोबार करीब 14,000 करोड़ रुपये का टर्नओवर दिखा रहा है, करीब 17,000 दुकानें हैं, सभी पर अनवरत लाईन लगी हुई है, कई की जालीदार खिडकियाँ तो सुबह ब्रह्मकाल मे ही खडका दी जाती है।
इस लिए लोगो को अनुशासन, शालीनता और संयम का पाठ अगर लेना हो तो किसी शराबी से ले और एक सच्चे नागरिक बन अपने सभी टैक्स समय से दें |
सादर आपका
********************************लंबी पीड़ा से गुजरकर सुख में जाने की अभिव्यक्ति
Vivek Rastogi at कल्पनाओं का वृक्ष More for your Financeआपके हसीन रुख पे आज नया नूर है..कितना जानते हैं आप गीतकार अनजान को ?
Manish Kumar at एक शाम मेरे नाम
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
10 टिप्पणियाँ:
जी नहीं कुछ जगह लोग जागने लगे हैं हमारे यहाँ की शराब की दुकानों पर अब लिखा हुआ दिखाई देने लगा है "यहाँ रसीद माँगने पर दी जाती है"
सुंदर विषय सुंदर सूत्रों के साथ सुंदर बुलेटिन ।
सच कहा, शराबी को कभी आन्दोलन करते नहीं देखा है।
रोचक बात कही है। धन्यवाद।
SUNDAR Buletin .............
शराबी और अर्थव्यवस्था का हिस्सा!! बहुत ही रोचक बुलेटिन।
behad dilchasp buletin..
आप सब का बहुत बहुत आभार |
मस्त चर्चा ...
@प्रवीण पांण्डेय जी,
वैसे तो ये आंदोलन नहीं करते पर पिछले दिनों पंजाब में नशा विरोधी रैली निकली थी जिसमें अधिकाँश मद-प्रेमी मद-मस्ती के साथ शामिल थे :-)
इनके हितों पर कुठाराघात भी तो नहीं होता.
कैसे बने वे क्रांतिकारी!
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