प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
जी हाँ मैं बात कर हूँ ... "ऐ मेरे वतन के लोगों" की |
गीतकारः कवि प्रदीप
गायिकाः लता मंगेशकर
प्रणाम |
आज २७ जनवरी है ... ५१ साल पहले आज ही के दिन ... भारत की जनता के कानों को एक कालजयी गीत सुनाई दिया था |
जी हाँ मैं बात कर हूँ ... "ऐ मेरे वतन के लोगों" की |
ऐ मेरे वतन के लोगों एक हिन्दी देशभक्ति गीत है जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था और जिसे संगीत सी॰ रामचंद्र
ने दिया था। ये गीत चीन युद्ध के दौरान मारे गए भारतीय सैनिकों को समर्पित
था। यह गीत तब मशहूर हुआ जब लता मंगेशकर ने इसे नई दिल्ली में गणतंत्र
दिवस के अवसर पर रामलीला मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं॰ जवाहरलाल
नेहरू की उपस्थिति में गाया। । चीन
से हुए युद्ध के बाद 27 जनवरी 1963 में दिल्ली नेशनल स्टेडियम में स्वर
कोकिला लता मंगेशकर ने दिया था। यह कहा जाता है इस गाने को सुनने के बाद
नेहरु जी की ऑंखें भर आई थीं।
गीत के बोल
ऐ मेरे वतन के लोगों, तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का, लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर, वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो, कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आए, जो लौट के घर न आए...
ये शुभ दिन है हम सब का, लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर, वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो, कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आए, जो लौट के घर न आए...
ऐ मेरे वतन के लोगो, ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी, जरा याद करो कुरबानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी, जरा याद करो कुरबानी...
जब घायल हुआ हिमालय, ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी सांस लड़े वो... जब तक थी सांस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा, सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
जब तक थी सांस लड़े वो... जब तक थी सांस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा, सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में... जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
जब हम बैठे थे घरों में... जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई सिख कोई जाट मराठा,
कोई गुरखा कोई मदरासी, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला... सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
कोई गुरखा कोई मदरासी, कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला... सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी...
थी खून से लथ - पथ काया, फिर भी बंदूक उठाके
दस - दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के
जब अंत समय आया तो.... जब अंत-समय आया तो, कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारो... खुश रहना देश के प्यारो
अब हम तो सफ़र करते हैं... अब हम तो सफ़र करते हैं
दस - दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के
जब अंत समय आया तो.... जब अंत-समय आया तो, कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारो... खुश रहना देश के प्यारो
अब हम तो सफ़र करते हैं... अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने, क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुरबानी
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना... जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना..
जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद...
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुरबानी
तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुरबानी
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना... जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद की सेना..
जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद जय हिंद, जय हिंद...
गीतकारः कवि प्रदीप
गायिकाः लता मंगेशकर
आज ५१ साल
बाद भी जब जब यह गीत कानों को सुनाई पड़ता है ... रोंगटे खड़े हो जाते है और
आँखें नम हो जाती है ... यकीन न आए तो खुद सुन कर अपनी राय दीजिये |
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18 टिप्पणियाँ:
बहुत प्यारा गीत है....जितनी बार सुनें आँख भर ही आती है..
बहुत बढ़िया बुलेटिन है शिवम् सभी लिंक्स बेहतरीन हैं...
जय हिन्द !!
अनु
Bahut achchha bulletin hai...Badhai.
इसी गीत से जुडी एक खबर , पढने योग्य है : लिंक प्रस्तुत है
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/01/140124_kavi_pradep_family_modi_pkp.shtml?
धन्यवाद शिवम् :)
वाह बहुत सुंदर !
इस गीत के बारे में जितना कहें उतना कम है, जल्द ही मैं भी ये गीत रिकार्ड करके ब्लॉग पर प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा.....बहुत अच्छी प्रस्तुति...
बहुत सुंदर लिंक्स .... शामिल करने का आभार
बहुत मर्मस्पर्शी एवँ ऐतिहासिक गीत को उद्धृत किया है शिवम जी ! इस गीत से जुडी हर याद हर प्रसंग मन को भिगो जाता हैं ! सार्थक सूत्रों के इस संकलन में मुझे भी सम्मिलित किया आभारी हूँ !
शब्द, संगीत और आवाज सब कुछ अद्भुत है गीत में ।
अच्छी लिंक्स और पूरा गीत |
बहुत अच्छा लगा |
आशा
सुन्दर और पठनीय सूत्र
कल सारा दिन यह बीत बजा लेकिन प्यास नहीं बुझी। न जाने इस गीत में ऐसा क्या है कि जितना सुनो, प्यास उतनी ही बढ़ जाती है।
प्रदीप का यह गीत अमर है । इस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है । यह कविता कोश में होना चाहिये ।
कल रात टी वी पर इस गीत का इतिहास और वर्तमान देख रहा था ... बहुत अच्छा लग रहा था ... अच्छा बुलेटिन है आज का ... आभार मुझे भी शामिल करने का ...
प्रदीप जी का अमर गीत .......
सारे प्यारे लिंक्स ...
ye to amar geet hai...links sarahniy hai..
जो भरा नहींहै भावों से, बहती जिससे रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं!
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यह अमर गीत इसी भाव को चरितार्थ करता है.. बहुत बहुत आभार इस गीत से जेड़ी घटना साझा करने के लिए!!
आप सब का बहुत बहुत आभार |
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