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शुक्रवार, 8 मार्च 2013

आज है महिला दिवस



आज है महिला दिवस तो एक एक गुलाब उनके नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर :) ........... काँटे अदृश्य हैं :) खैर - अंतर्राष्ट्रीय दिन है तो कुछ खासियत होनी चाहिए न . लिंक के साथ पढ़िए जो मैं उपहारस्वरूप लायी हूँ ... सिर्फ नारियों के लिए नहीं,पुरुषों के लिए भी . कोई भी दिवस हो - भागीदार तो सब होते हैं न !!!

मेरा मानना है - 

महिला आरम्भ से सशक्त थी
अर्धनारीश्वर के रूप में 
महादेव-पार्वती ने 
आधी आधी शक्तियों का विभाजन किया था 
निर्णय,कार्य,अभिव्यक्ति,निर्माण - हर क्षेत्र में !
श्रद्धा के बगैर मनु अधूरा 
और मनु के बगैर श्रद्धा ....
पर शारीरिक संरचना ने कार्य विभाजन किया 
पुरुष कर्ता 
और स्त्री अन्नपूर्णा बनी 
पर घर के सौन्दर्य में 
पुरुष ने उसे शक्तिहीन मान लिया 
या यूँ कहें बना दिया 
स्त्री के सहयोग से स्त्री को ही नगण्य बना 
उसे  'अबला' शब्द से अलंकृत किया !

आरोपों प्रत्यारोपों ने 
अग्नि में स्वाहा होने की घटनाओं ने 
एक चिरौरे सी गंध ने 
पूरी मानसिकता - 
सामाजिक व्यवस्था में कोहराम मचा दिया 
शिक्षा,बराबरी,आरक्षण .... और एक दिन की सौगात देकर 
सबने अपने कर्तव्यों की इति मान ली 
गंगा सूख गई 
फल्गु उफन गई 
जिन्हें एक दिन का अर्घ्य नहीं चाहिए था 
वे मुस्कुराकर शून्य में लिखती रहीं 
कहती रहीं ...
और जिन्होंने बराबरी के मूलमंत्र पर अंगूठा लगा दिया 
उन्होंने हदें तोड़ दीं 
!!!
एक बार भी किसी ने नहीं सोचा 
कि सम्मान के लिए दिवस का औचित्य नहीं 
और ना ही दिवस का अर्थ है बगावत !

महिला दिवस 
सही अर्थों में  कहा जाये 
तो उस वर्ग के लिए है 
जो माँ,बहन,पत्नी,बेटी के स्वत्व से अनभिज्ञ होता है 
उन महिलाओं के लिए है 
जो भय या अजीबोगरीब मानसिकता लिए 
कन्या को मार देती हैं 
उनके जन्म पर उदास हो जाती हैं 
या बहू में सिर्फ खामियां देखती हैं 
....
महिला दिवस का अर्थ यह नहीं 
कि महिला पुरुषत्व आचरण करे 
और ना ही 12 घंटे में 
12 महीनों का अन्याय न्याय में बदल सकता है 
...........
हाँ इसे एक सालगिरह मान सकते हैं 
पर क्या हव्वा का जन्म 
या श्रद्धा का जन्म 8 मार्च ही है ?
.................
.........
............... 

खैर खैर खैर .... पढ़ते जाइये 



दुनिया की आधी आबादी को मेरा सलाम......महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें -

एक पुरुष जिसे हमेशा से ही अपने 
मान का गर्व और अभिमान रहा करता है, 
उस गर्व और उस अभिमान के लिए वो
सदा ही एक 'स्त्री' के प्रति आश्रित रहता है,

जन्म के साथ ही उसका मान 
उसकी "माँ" से जुडता है,
आगे चलते हुए "बहन" से

वक़्त बदलता है अब उसका 
मान "पत्नी" के हिस्से आता है 
और आखिर में उसे उसकी 
अपनी 'बेटी' संभालती है,

इनकी एक ज़रा सी 'चूक'
अभिमानी पुरुष की गर्दन 
हमेशा के लिए नीची कर देती है 
कितना कुछ वहन करती है 'स्त्री'

दो कुलों की लाज का भार
उठाती है अपने नाज़ुक कन्धों पर
कितना कुछ देती है वो पुरुष को 
और इसके बदले क्या माँगती है?
सिर्फ सम्मान, प्यार और बराबरी का हक़

क्या हम उसे ये भी नहीं दे सकते ??? 


सात परतों मे दफन............
सात जन्मों के स्वप्न ...... 
यूं ही नहीं फूट जाते ...
कहीं न कहीं कुछ न कुछ ....
कभी पंडोरा कहा तो फ्लोरा भी कहलाई ...
देवदासी बन कर देवालय मे गई नचाई ,...
हव्वा के रूप मे हमेशा पापिन ही कहाई ....
सुंदर कला के नाम पर शिल्पी ने ..... 
दरों - दीवारों पे नग्न रूप मे सजाई ,
जीवित - जली नाम हुआ धर्म का ...
तेरी सुध किसको कब आई .... 
प्रगति - आधुनिकता की आड़ मे ,
दे दिया झांसा तुझे कंधे से कंधे का .... 
घर - बाहर दोनों जगह गई पिसवाई ,
बनी मूर्ख बार बार.... हर बार औरत कह ,
तेरी भरी सभा मे खिल्ली ही गयी उड़ाई .... 
चमकीला सा दिखा के सिक्का ....
खोटे सिक्के सी गई उछलाई....
सात परतो मे दफन ...सात जन्मो के बंधन यूं ही नहीं टूट जाते ?????


महिला दिवस 

वह औरत 
जो सिर्फ औरत थी 

वह औरत 
जब बन कर आयी थी बहू 
धान का कलश छलका कर 
किया था गृह प्रवेश 
उसी दिन उसी समय से 
बन गयी वह घर की 
समृध्धि की दारोमदार
कभी दूध में कटौती
कभी बच्चों की थाली में 
बची सब्जी से संतुष्टि कर 
जतन से छुपा कर पहनती रही 
वह बांह से फटे ब्लाउज 
सिकोड़ती रही अपने पैर 
ताकि चादर बनी रहे 
पर्याप्त लम्बी सबके लिए 

बड़ी आस से , बड़े चाव से 
लम्बे इंतजार के बाद 
जोड़े गए पैसों से 
खरीदी लाल किनारी 
की वह साड़ी 
हल्दी कुंकू का तिलक लगा 
कर दी भेंट छूकर चरण 
यूँ ही भाई से मिलने आयी 
ननद को 
उसके हाथ सहेज रहे थे 
द्वार पर बिखरे वो धान कण
इस घर की समृध्धि 
कभी न हो कम 
न जाये बहन बेटी कभी 
खाली हाथ. 

वह औरत 
करती रही 
मामेरा मंडप सूरज पूजा 
अनसुने कर सब विरोध 
ओर गुनती रही 
माँ ओर सास के 
आशीर्वचन 
टटोलती रही अपने सर पर 
उनका हाथ कि 
दोनों घरों की लाज 
निभाना है उसे 
न कम होने दिया 
मान उसने कहीं भी |

वह औरत 
छुपा कर अपने घुटनों 
कमर का दर्द 
करती रही पैरवी 
अबके एक ओर गाय लेने की 
कि छुटके कि बहू 
ओर बेटी कि जचगी है साथ साथ 
कि अब दो ओर घर है 
बनाये रखने को मान |

करके विरोध 
घर परिवार रिश्तेदार 
पति ओर खुद के बेटों का 
भेजा बेटी को पढ़ने शहर 
ओर बहू को बाहर 
बनाने अपनी पहचान 
बिना शिकायत संभालती रही घर 
अपनी उम्र की थकान को छुपाते हुए 
वह औरत मानती रही 
महिला सशक्ति वर्ष जीवन पर्यंत | 

वह औरत 
जिसने न उठाया सर कभी 
अपने अधिकारों के लिए 
संभाले रही ख़िताब 
माँ सास बहू बहन 
बुआ मामी काकी का 
जिसने न पाए कहीं कोई इनाम 
लेकिन मनाती रही महिला दिवस 
अपनी जिंदगी के 
हर दिन हर वर्ष | 


महिला दिवस"

चाहती हैँ
ईँट भट्टोँ मेँ
काम करने वाली
कि उनका भी हो
अपना घर

चाहती हैँ 
खेतोँ पर
भूखे रहकर
अनाज ऊगाने वाली
कि उनका भी
भरा रहे पेट

चाहती हैँ
मजदूर,मजबूर
कि उनकी फटी साड़ी मेँ 
न लगे थिगड़ा
सज संवर कर
घूम सकेँ बाजार हाट

चाहती हैँ
यातनाओँ की 
बंधी गांठ खुल जाये
उड़ जायेँ
कामनाओँ के आसमान मेँ
बिना किसी भय के


जानती हूँ तुम न होते तो मैं भी न होती 
पर मैं न होती तो तुम भी न होते क्यों भूल जाते हो 
हम पूरक हैं एक दुसरे के .,कोई प्रतिद्वंदी नही 
क्यों बेफिजूल अपने महान होने का दंभ भर जाते हो 


आज भी जब होते हो जब कष्टों में 
क्यों मूक होकर माँ को आँखों में भर लाते हो 
आज भी होते हो जब खुशियों में 
माँ की फोटो आगे आखो से सर झुकाते हो 


सुकून महसूस करते हो प्रिय को सीने से लगा कर 
फिर उसी को झूठे अहम् की बलि चड़ा जाते हो 
जानते हो नारी जरुरत हैं जिन्दगी की 
फिर क्यों खामख्वाह कागजी जहाज उड़ाते हो 


सब मर्द नही देते दर्द जानती हैं नारिया भी 
जब पापा बनकर तुम उनकी जिन्दगी मैं आते हो 
क्यों हवस के पुजारी बनकर लूट'ते हो उनकी अस्मत 
क्यों उनकी नफरतो का, आक्रोश का सामान बन जाते हो 

हर नारी नही माँ जैसे प्यारी हर कोई मानता हैं 
कुछ नारियो को भी पुरुषो को तड़पाने में मजा आता हैं 
कुछ होती हैं इस पृथ्वी पर बोझ स्वरुप अत्याचारी 
अपनी कुठाओ पर विजय पाकर क्यों नही मानव बन जाते हो 


नारी सृजनकार हैं नारी पालन हार हैं सृष्टि की 
शारीरिक जरूरतों के लिय प्रयोग कर तुम उसे 
"बेटे ही हो " का बीज बो जाते हो 
फिर कन्या भ्रूण ह्त्या करवाते हो 


तुम पूजनीय हो तुम आदरणीय हो 
तुम प्रियतम हो , तुम प्रियवर हो 
364 दिन क्यों तुम्हारे इस दुनिया में 
हैप्पी एक दिन ही हमें क्यों कह जाते हो 

हाथ थामो , दामन थामो या थामो हमें कंधे से 
प्यार का हाथ मिले तो नारीबंधी रह जाए खूंटे से भी 
तिरस्कार नही सत्कार -.सम्मान उसे अब देना होगा 
सिर्फ एक दिन को शुभ महिला दिवस क्यों कह कह जाते हो 


सब नारियो को अपने आत्मसम्मान के साथ जीने का हक मिले .. इस शुभकामना के साथ ...... 


गगन झनझना रहा,जमीन गूंज रही ......... दिवस शबाब पे है ............. ब्लॉग,फेसबुक,और आस-पास घूमते जाइये - बहुत कुछ सोचने को विवश करेगा 

आखिर में मैं फिर 

20 टिप्पणियाँ:

Nirantar ने कहा…

सम्मान से तुम्हें पुकारें
मिलने की इच्छा रखें
नारी को सम्मान दो
नारी को अधिकार दो
नारी की रक्षा करो
खिलोना मत समझो
सुनता रहा पढता रहा
लोगों को नारे लगाते देखा
पर जितना होना चाहिए
उसका आधा भी नहीं हुआ
इच्छा शक्ति की कमी
पुरुषों के अहम् ने
ऐसा होने ही नहीं दिया
डा .राजेंद्र तेला,निरंतर

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

wah.. naari shakti ko naman..

सदा ने कहा…

कोई भी दिवस हो - भागीदार तो सब होते हैं न !!!
सार्थकता लिये यह दिवस अपनी विशिष्‍टता का भान कराता हुआ ...

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

शुक्रिया रश्मि जी .इतना तीव्र रेस्पोंसे ........ तहे दिल से आभार

सभी को महिला दिवस की शुभकामनाये सभी लिंक्स बहुत ही उम्दा हैं .......

Jyoti khare ने कहा…

सार्थक और सुन्दर संयोजन
वाकई नारी जीवन का आधार हैँ इनके कारण ही हमारा अस्तित्व कायम है
सभी रचनाकारो को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

लिंक्स अच्छे लगे!
नारी को खुद पहले 'नारी' के बारे में सोचने की शुरुआत करनी चाहिए...
~सादर!!!

Kailash Sharma ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर बुलेटिन...नारी शक्ति का अभिनन्दन...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ा ही रोचक संकलन..

इमरान अंसारी ने कहा…

बहुत शुक्रिया यहाँ शामिल करने का......सलाम है आपके जज़्बे को ।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut acchhe sanklan padhne ko mile. sabne gahrayi me kalam ko poorn roop se dubo diya hai. Kavita Verma ji ki lekhni bahut hi sashakt hai jo aam zindgi ki baato ko itne prabhavi shabdo me dhaal payi.

meri rachna ko yaha samman dene k liye aabhari hun.

sadar
anamika

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

महिला दिवस की शुभकामनायें | बढ़िया लिंक सूची | बधाई

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक बेहद उम्दा प्रस्तुति रश्मि दीदी ... आज की इस बुलेटिन के माध्यम से आपने 'महिला दिवस' के साथ भरपूर न्याय किया ! जय हो आपकी और सभी नारी शक्ति की !

kavita verma ने कहा…

bahut umda prasyuyi...mahila diwas par gahan gambheer bhav ke sath sundar prastutiya padhane ko mile...
mujhe shamil karne ke liye abhar..

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

कोई भी दिवस हो - भागीदार तो सब होते हैं न ....
सब भागीदार ना होंगे तो उत्सव कैसे होगा ....
शुभकामनायें !!

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut badhiya prastuti ....8 march to kewal ik pratik hai ...waise mera to manna hai rashmi jee ki apna din 365 nahi 366 ka hota hai .....bhul chuk leni deni....1 din se kya hoga .....

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर बुलेटिन।

Archana Chaoji ने कहा…

कल तो टाईम ही नहीं मिला..अब कल ही देख पाउंगी .. :-(

कविता रावत ने कहा…

सदियों से कुछ सिरफिरे लोगों द्वारा नारी के प्रति जो विभाजक रेखा खींच दी गयी उसी का नतीजा है यह दिवस ..वर्ना दिवस तो सभी के लिए के जैसे होता है ...
बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

सब कुछ पठनीय और चिंतनीय!

Asha Lata Saxena ने कहा…

बढ़िया किंक्स दी हैं रश्मी जी |आपने इन लिंक्सके साथ भरपूर न्याय किया है महिला दिवस के साथ |
आशा

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