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शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

कहीं बंद न हो कुम्हार की चाक की रफ्तार धीमी - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

कुम्हार की चाक पर तेजी से चलने वाली अंगुलियों की रफ्तार धीमी ही नहीं बंद होती नजर आ रही है। मशीनरी करण के इस युग में मिट्टी की मूर्तियां और खिलौने बाजार से गायब ही होते जा रहे हैं अब तो मशीनों से ढले फाइबर के खिलौने और मूर्तियों की बिक्री का चलन चल निकला है पूजा के लिये मिट्टी की मूर्ति तलाश ने के बाद भी मिलना नामुमकिन होती जा रही है।
बाजारीकरण ने आज कुम्हार को चॉक का पहिया जाम दिया है। वहीं लोगों में भी प्लास्टिक के खिलौने खरीदने की चाह बढ़ी है। एक तो प्लास्टिक खिलौने जल्दी टूटते फूटते नहीं हैं। वहीं मिट्टी के खिलौनों की हिफाजत करनी पड़ती है। जरा से हाथ से सरके कि टूट फूट गये। वहीं प्लास्टिक के खिलौनों की कीमत काफी कम है जबकि मिट्टी के खिलौने मंहगे होते हैं। भले ही मंहगाई की मार इतनी ग्राहकों पर न पड़ी हो। लेकिन मशीनीकरण ने कुम्हार की चॉक थाम कर उनकी रोजी रोटी छीन ली है। कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा अब पतन की ओर है। कुछ बुजुर्ग कुम्हार ही बचे हैं। जिनकी कापती उंगलियां आज भी चॉक के पहिये की रफ्तार को गतिवान किये हैं। यही हाल रहा तो प्लास्टिक के खिलौनों का बढ़ता क्रेज एक दिन कुम्हारी के बनाए माटी के कुल्हड़, गिलास, खिलौने, मूर्तियां आदि बीते युग की बाते हो जायेगी।

दिवाली आने को है ... ऐसे मे आप सब से निवेदन है कि भले ही आप अपने घर मे कितनी भी बिजली की झालरें लगाएँ ... मिट्टी के चंद दिये जरूर जलाएं !

सादर आपका 

शिवम मिश्रा

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अब वहाँ मैं भी हूँ ....  

कहाँ ???

कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है ! 

अपने अंदर का रावण जला लें यही बहुत है ...

कुर्बानी ? यह कुर्बानी कैसे कहलाएगी ?

जैसे ही यह बात समझ आएगी ...

मेरे साथ चलो

किधर 

सवालों के कटघरे में मीडिया !

क्या सच मे ??

एटीएम का उपयोग करते समय सतर्क रहें (Cash retraction facility withdrawn by RBI in India)

रहते है ... 

प्यार औ सरकार दोनों की रवायत एक है

दोनों ही आम आदमी को कहीं का नहीं छोड़ती ...

परिकल्पना की आगामी परियोजनाएं ....

क्या है ?? 

कौन है सूने हृदय मे?

देख कर बताते है 

डेंगू का वायरस पद-प्रतिष्ठा-पैसा नहीं देखता

पिछले दिनों पता चल गया ...

कोई भी इंसा मुझे बुरा नहीं लगता.

हम्म 

संस्मरण - ढाई मन सब्जी में एक जोड़ा लोंग - नवीन सी. चतुर्वेदी

अपना अपना स्वाद ...

हल्द्वानी में ........

क्या चल रहा है ...

शब्दों के चाक पर - 18

कौन ??

बेवफा हम न थे ......

उन की वो जाने ...

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अब आज्ञा दीजिये ...


जय हिन्द !!!

7 टिप्पणियाँ:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

मिट्टी के ११,२१,या ५१ दीए जलाने से ही लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं...यह लिख दें, फिर तो अवश्य ही बिकेंगे मिट्टी के दीएः)
...लिंक्स अच्छे लगे|

विवेक रस्तोगी ने कहा…

कुम्हार के चाक को बैंगलोर में देखने को तरस गये हैं, लिंक्स पर अभी भ्रमण करते हैं ।

travel ufo ने कहा…

हर साल सब लोग कुछ हिस्सा इन चीजो का भी रखें तो बढिया रहे

shikha varshney ने कहा…

पर्यावरण के लिए भी मिटटी की ही मूर्तियां बेहतर होती हैं.
बढ़िया बुलेटिन.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर सन्देश के साथ ही बेहतरीन लिनक्स ....आभार

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मिटटी के तन में चेतना की वर्तिका कंचन की लौ बनकर जलती है .... एक मिटटी का दीया यानि कुम्हार के घर एक रोटी
लिंक्स तो हमेशा अच्छे रहते हैं

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मिट्टी के खिलौनों से भावनात्मक लगाव है, बचपन से ही..

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