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शनिवार, 22 सितंबर 2012

थोड़ा कहा बहुत समझना - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

आज कॅरियर में आगे बढ़ने के लिए केवल अच्छा काम करना ही काफी नहीं होता, बल्कि अपने बॉस के व्यक्तित्व को पहचान कर उसके अनुकूल व्यवहार करने की कला को भी प्रोफेशनल सॉफ्ट स्किल का जरूरी हिस्सा माना जाता है। आइए जानते हैं कि अलग-अलग तरह के सीनियर्स के साथ कैसे पेश आना चाहिए..
मि. एंग्रीमैन
बिना किसी बात के भी गुस्सा करना ये अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। अगर कभी रैंडमली इनका बीपी चेक किया जाए तो कम से कम 200 तो निकलेगा ही। ऐसे बॉस के अधीन काम करने वालों को तो कई बार यह भी समझ नहीं आता कि आखिर उन्हें डांट किस वजह से पड़ी है।
एक्सपर्ट की राय
अगर कभी आपके बॉस बेवजह आपको डाटते हैं तो उस वक्त उनसे बहस न करें, लेकिन बाद में जब कभी उनका मूड अच्छा हो तो उनसे विनम्रतापूर्वक यह जरूर पूछें कि उस वक्त मुझे मेरी किस गलती की वजह से डाट पड़ी थी।
मि. भुलक्कड़
ये अचानक आपसे कहते हैं कि कल मैंने जो फाइल तुम्हें संभालकर रखने के लिए दी थी, उसे जरा ले आओ। अब आप चाहे लाख मिन्नतें करें कि सर, आपने मुझे कोई फाइल नहीं दी थी, पर ये आपकी एक नहीं सुनेंगे। जब आप फाइल ढूंढ़ने में अपना आधा घटा बर्बाद कर चुके होंगे तो ये बडे़ प्यार से आपको अपनी केबिन में बुलाकर कहेंगे, परेशान मत हो, यह यहीं मेरी फाइलों के नीचे दबी पड़ी थी।
एक्सपर्ट की राय
ऐसी स्थिति में आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है। बॉस को हर जानकारी ई-मेल के माध्यम से दें और उनसे आग्रह करें कि मेल मिलने के बाद वह रिप्लाई जरूर करें। अगर उन्हें किसी डॉक्यूमेंट की हार्ड कॉपी सौंपनी हो तो इसके लिए एक रजिस्टर बना लें और उस पर इंट्री जरूर करें।
मि. इंडिया
कुछ बॉस वाकई मिस्टर इंडिया की तरह अदृश्य होते हैं। ये ऑफिस में ही होते हैं, पर अपनी सीट पर कभी दिखाई नहीं देते। अगर किसी कर्मचारी को इनसे कुछ पूछना होता है तो वह परेशान हो जाता है।
एक्सपर्ट की राय
हमेशा सतर्क रहें और जब भी आपके बॉस अपनी सीट पर बैठे दिखाई दें, मौके का फायदा उठाएं। उनसे जितनी जरूरी बातें डिस्कस करनी हैं या जिन पेपर्स पर साइन करवाना है, उसी वक्त करवा लें।
मि. हवा-हवाई
हवा में बेवजह डींगें हाकते हुए अपनी बेहिसाब प्रशंसा करना ऐसे बॉसेज का प्रिय शगल होता है। ऐसे लोग बेहद बातूनी होते हैं। हर छोटी से छोटी घटना या प्रसंग के लिए इनके पास सुनाने के लिए कोई न कोई ऐसा वाकया जरूर होता है, जिसमें इनके सद्गुणों का बखान भरा होता है। इन्हें अपनी उपलब्धियों से जुडे़ सारे आकडे़ कंठस्थ होते हैं, जिनका जिक्र ये अकसर करते रहते हैं।
एक्सपर्ट की राय
परेशान न हों, क्योंकि इससे आपका कोई नुकसान नहीं होने वाला। कुछ लोग बेहद आत्ममुग्ध होते हैं। बार-बार अपनी प्रशसा करना भी एक तरह का मेंटल मेकैनिच्म है, जिसके जरिये व्यक्ति अनजाने में अपना मनोबल बढ़ा रहा होता है। हाँ, उनके ज्यादा बोलने की वजह से अगर आपके काम में व्यवधान पैदा हो तो उनकी बातों में ज्यादा दिलचस्पी न दिखाएं और अपने काम में जुटे रहें। अगर वह समझदार होंगे तो खुद ही चुप हो जाएंगे।
मि. कन्फ्यूच्ड
पहले किसी प्रोजेक्ट के लिए खुद ही आइडिया देकर उस पर काम शुरू करवाना और जब आधे से ज्यादा काम हो जाए तो उसे यह कहकर खारिज कर देना कि इसमें मजा नहीं आ रहा, कुछ अलग हटकर होना चाहिए। जब दूसरी बार आप नए ढंग से रिपोर्ट तैयार करके ले जाएँगे तो वह बडे़ शांत भाव से फाइल एक तरफ रखते हुए कहेंगे, इसे रहने दो। अभी हम पहले वाले आइडिया पर ही काम करेंगे।
एक्सपर्ट की राय
ऐसे में आप कर भी क्या सकते हैं? वो कहावत है न बॉस इज ऑलवेज राइट। अगर कभी बॉस आपके द्वारा तैयार की गई किसी रिपोर्ट को रिजेक्ट कर देते हैं, तब भी आप उसकी फाइल सुरक्षित रखें, ताकि अगर वह आपको दोबारा उसी पर काम शुरू करने के लिए कहें तो आप आसानी से उसे पूरा कर सकें।
मि. रसिक
इस प्रजाति के बॉस प्राय: हर ऑफिस में देखने को मिल जाते हैं। फीमेल स्टाफ के प्रति अतिशय उदारता बरतना, उनसे फिल्म और म्यूजिक जैसे सरस विषयों पर गपशप करना, उनके पहनावे पर अक्सर कंप्लीमेंट देना, उन्हें लिफ्ट देने के लिए तत्पर रहना, अक्सर उनके साथ फ्लर्टिंग करना और उनके मोबाइल पर जोक्स भेजना आदि इनकी आदतों में शुमार होता है।
एक्सपर्ट की राय
अगर आपके भी बॉस ऐसे हैं तो आपको अपने व्यवहार और बॉडी लैंग्वेज को लेकर विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। इनके साथ हमेशा सम्मानजनक दूरी बनाए रखनी चाहिए। अंतत: आपकी योग्यता ही काम आएगी।
मि. शक्की
ऐसे बॉसेज की वक्र दृष्टि से बच पाना बहुत मुश्किल होता है। ये पहले से ही यह मानकर चलते हैं कि आपके काम में कोई न कोई निजी स्वार्थ जरूर होगा। ये आपके कामकाज और गतिविधियों पर माइक्रोस्कोप जैसी सूक्ष्म और पैनी नजर रखते हैं। शक करना इनकी आदत में शुमार होता है। काम के दौरान ये अक्सर आपके कंप्यूटर पर ताक-झाककर यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कहीं आप काम के साथ-साथ चैटिंग तो नहीं कर रहे |
एक्सपर्ट की राय
आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि शक की बीमारी का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है। अगर आप ईमानदार हैं तो निडर होकर काम करें। निराधार शक की वजह से वह आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे।
मि. अधीर
आपको कोई काम सौंपने के बाद इनके लिए दस मिनट भी चैन से बैठना मुश्किल हो जाता है। काम के फॉलोअप के लिए ये आपको कई फोन कर डालते हैं। शायद ये यही समझते होंगे कि काम करने वाले व्यक्ति के दिमाग और अंगुलियों में कोई ऐसा माइक्रोचिप लगा होता है कि काम बताते ही कर्मचारी अलादीन के जिन्न की तरह पूरा करके उन्हें सौंप देगा।
एक्सपर्ट की राय
जब भी आपको कोई काम सौंपा जाए तो उसी वक्त बॉस से उसकी डेडलाइन के बारे में पूछ लें, अगर आपको ऐसा लगता है कि उसे पूरा करने में ज्यादा समय लग सकता है तो उन्हें उसी वक्त स्पष्ट रूप से बता दें कि यह काम पूरा करने में दो के बजाय चार घटे लगेंगे।
मि. बैलेंस्ड
यह बॉसेज की सबसे दुर्लभ प्रजाति है। सिर्फ काम से काम रखना, किसी के साथ पक्षपात न करना, मुश्किल परिस्थितियों में भी शांत रहना, अगर कभी कोई गलती हो भी जाए तो सबके सामने डाटने के बजाय अपने केबिन में बुलाकर आपको आपकी गलती के बारे में बताना, इनकी खूबी है।
एक्सपर्ट की राय
अगर आपको ऐसे बॉस के साथ काम करने का मौका मिला है तो यह अच्छी बात है कि आप तनावमुक्त होकर काम कर सकते हैं। इस अवसर का इस्तेमाल आप अपनी प्रोफेशनल स्किल्स बढ़ाने के लिए करें, लेकिन ऐसे बॉस की अच्छाइयों का फायदा उठाने की कोशिश न करें, क्योंकि ऐसे लोगों को गलत बातें बर्दाश्त नहीं होतीं। 

वैसे अगर आपने गौर किया हो तो ऊपर दिये गुण ब्लॉग जगत के कुछ ब्लॉगर बंधुओं से भी मेल खाते है ... नाम आप बताएं !

सादर आपका 

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पिता और बेटी

Archana at अपना घर
*यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी तस्वीर साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो तस्वीर में... आज की तस्वीर में हैं कार्टूनिस्ट इरफ़ान जी अपनी बेटी ‘सरगम’ के साथ --* *और यहाँ आप उनका काम देख सकते हैं--* http://www.cartoonsbyirfan.com/

पैसा, पेड़ नहीं उगता

श्यामल सुमन at मनोरमा
बहुत सुना बचपन से भाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता देश-प्रमुख ने अब समझाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों का अपने खाते रोज मलाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता बोल रहे थे देश-प्रमुख ही या कोई रोबोट वहाँ लादे लोगों पर मँहगाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता राजनीति में रहकर भी जो धवल वस्त्र के स्वामी थे खुद ही छींट लिया रोशनाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता मन मोहित ना किया किसी का आजतलक जो भारत में बना आज है वही कसाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता उनके भी आगे पीछे कुछ जिनको रीढ़ नहीं यारो बातें उनकी ही दुहराई, पैसा, पेड़ नहीं उगता ऐसा बोले देश-प्रमुख जब सुमन चमन का क्या सोचे मजबूरी की राम दुहाई... more »

आओ सरकार-सरकार खेलें....

आओ सरकार-सरकार खेलते हैं । एक गठबंधन बनाते हैं । मैं तुम्हें समर्थन दूंगा । तुम मुझे सहयोग करना । प्रधानमंत्री तुम्हारी पार्टी से । गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री भी तुम अपनी पार्टी के नेता को बना लो । मुझे कोई मंत्रालय नहीं चाहिए । लेकिन हमारी पार्टी गठबंधन में रहेगी । हम बाहर से समर्थन करेंगे । तुम जब चाहो, जिस विभाग में चाहो घोटाला करना । जब मर्जी हो, किसी भी चीज की कीमत अपने हिसाब से बढ़ा लेना । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है । लेकिन चूकि हमारी पार्टी गरीब, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पार्टी है, इसलिए हम रौल बैक की मांग करेंगे । समर्थन वापसी की धमकी भी देंगे । तुम्हारे खि... more »

तुमने ही तो कहा था

mukti at feminist poems
हमें कहा गया कि कुछ भी करने से पहले इजाज़त ली जाए उनकी ‘लड़कियाँ आज्ञाकारी होनी ही चाहिए’ किसी भी सूरत में, हमने हर काम करने से पहले उनकी इजाज़त ली ये बात और है कि किया वही जो दिल ने कहा कि दिल और दिमाग किसी और के कहने से नहीं चलते, और कुछ 'सोचने' से पहले इजाज़त लेने की बात भी नहीं थी। हमें निर्देश दिया गया था कि चलते समय ध्यान रखना दो क़दमों के बीच का फासला न हो एक फुट से ज्यादा कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं लगतीं, हमने उनकी बात मानी और उसी एक फुट के अन्दर अपनी सारी दुनिया बसा ली, कम से कम हमारी दुनिया अब हमारे क़दमों के नीचे थी और हमारे कदम भी ज़मीन पर। जब हमन... more »

" पैसे पेड़ पर नहीं उगते ......."

बहुत साधारण सी बात है कि, पैसे पेड़ पर नहीं उगते | यह जुमला अक्सर सुनने को मिलता है | मध्यम वर्ग के परिवारों में अक्सर बच्चे या महिलायें अगर किसी चीज़ की फरमाइश कर दे और कमाने वाला पुरुष अगर सीमित आमदनी वाला है तब वह बरबस उनकी फरमाइश सुन कर कह उठता है , पैसे पेड़ पर तो उगते नहीं | ऐसा नहीं है कि वह उनकी फरमाइश से इत्तिफाक नहीं रखता या पूरी नहीं करना चाहता पर हताशा वश ( अपने परिवार की इच्छा पूरी न कर पाने के दबाव में ) ऐसा कह उठता है | इस कथन के पीछे उसे भी मानसिक पीड़ा बहुत होती है | जब भी या जिस भी परिस्थिति में इस जुमले का प्रयोग किया गया हो या किया जाता हो , वह स्थिति अधिकतर लाच... more »

कलाई घडी

अरुण चन्द्र रॉय at सरोकार
कलाई पर बंधा है समय मारता है पीठ पर चाबुक और दौड़ पड़ता हूँ मैं घोड़े की तरह आगे और आगे अंतहीन घडी मुस्कुराती है कलाई पर बंधी बंधी मुझे हाँफते देख

थोड़ा कहा बहुत समझना ...

शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes
*जो प्रधानमंत्री जी ने कहा :- " रुपये पेड़ों पर नहीं उगते ..." जो वो कहना चाह रहे थे :- " रुपये कोयले की खदानों मे मिलते है ..."*

अनोखी शब्दावली

संगीता स्वरुप ( गीत ) at गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
शब्दों का अकूत भंडार न जाने कहाँ तिरोहित हो गया नन्हें से अक्षत के शब्दों पर मेरा मन तो मोहित हो गया । बस को केवल " ब " बोलता साथ बोलता कूल कहना चाहता है जैसे बस से जाएगा स्कूल । मार्केट जाने को गर कह दो पाकेट - पाकेट कह शोर मचाता झट दौड़ कर कमरे से फिर अपनी सैंडिल ले आता . घोड़ा को वो घोआ कहता भालू को कहता है भाऊ भिण्डी को कहता है बिन्दी आलू को वो आऊ । बाबा की तो माला जपता हर पल कहता बाबा - बाबा खिल खिल कर जब हँसता है तो दिखता जैसे काशी - काबा । जूस को कहता है जूउउ पानी को कहता है पायी दादी नहीं कहा जाता है कहता काक्की आई । छुक - छुक को वो तुक- ... more »

कैसी होती है माँ ...??

रश्मि प्रभा... at मेरी नज़र से
*सतीश सक्सेना* [image: [papa21.jpg]] http://satish-saxena.blogspot.in/ * * * * *कैसी होती है माँ ...??* कई बार रातों में उठकर दूध गरम कर लाती होगी मुझे खिलाने की चिंता में खुद भूखी रह जाती होगी मेरी तकलीफों में अम्मा, सारी रात जागती होगी ! बरसों मन्नत मांग गरीबों को, भोजन करवाती होंगी ! सुबह सबेरे बड़े जतन से वे मुझको नहलाती होंगी नज़र न लग जाए, बेटे को काला तिलक, लगाती होंगी चूड़ी ,कंगन और सहेली, उनको कहाँ लुभाती होंगी ? बड़ी बड़ी आँखों की पलके,मुझको ही सहलाती होंगी ! सबसे सुंदर चेहरे वाली, घर में रौनक लाती होगी अन्नपूर्णा अपने घर की ! सबको भोग लगाती होंगी दूध मल... more »

नई ग़ज़ल

अरसे बाद ग़ज़ल कही है...... ! आप की खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ_____---- किया सब उसने सुन कर अनसुना क्या वो खुद में इस क़दर था मुब्तिला क्या मैं हूँ गुज़रा हुआ सा एक लम्हा मिरे हक़ में दुआ क्या बद्दुआ क्या किरन आयी कहाँ से रौशनी की अँधेरे में कोई जुगनू जला क्या मुसाफ़िर सब पलट कर जा रहे हैं ‘यहाँ से बंद है हर रास्ता क्या’ मैं इक मुद्दत से ख़ुद में गुमशुदा हूँ बताऊँ आपको अपना पता क्या ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या मुहब्बत रहगुज़र है कहकशां की सो इसमें इब्तिदा क्या इंतिहा क्या

सिनेमा सोल्यूशन नहीं सोच दे सकता है: टीम चक्रव्यूह

- दुर्गेश सिंह निर्देशक प्रकाश झा ताजातरीन मुद्दों पर आधारित फिल्में बनाने के लिए जाने जाते रहे हैं। जल्द ही वे दर्शकों के सामने नक्सल समस्या पर आधारित फिल्म चक्रव्यूह लेकर हाजिर हो रहे हैं। फिल्म में अर्जुन रामपाल पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं तो अभय देओल और मनोज वाजपेयी नक्सल कमांडर की भूमिका में। फिल्म की लीड स्टारकास्ट से लेकर निर्देशक प्रकाश झा से पैनल बातचीत: अभय देओल मैं अपने करियर की शुरुआत से ही ऐक्शन भूमिकाएं निभाना चाहता था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कोई किरदार मुझे नहीं मिला। यदि मिला भी तो उसमें ऐक्शन भूमिका का वह स्तर नहीं था। हिंदी सिनेमा में अक्सर ऐसा होता है कि लो... more »

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!

19 टिप्पणियाँ:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बॉस पर अच्छा रिसर्च रिपोर्ट...एक्सपर्ट की राय काम आएगीः)
लिंक्स अच्छे लगे|

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सटीक परिभाषाएं अच्छे लिंक्स लिए ...

mukti ने कहा…

मेरी कविता सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह जी अच्‍छी मेहनत की आपने संकलन में, धन्‍यवाद.

Satish Saxena ने कहा…

पेश करने का अंदाज़ प्रभावशाली है,अर्चना जी का ब्लॉग "अपना घर" पहली बार देखा , अनूठा प्रयास है ! उनको बधाई और आपके लिए आभार शिवम !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में, इतनों के बारे में तो हमको भी नहीं पता था।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

किस्म किस्म के बॉस ..... अच्छा संकलन है लिंक्स का ... मुझे शामिल करने के लिए आभार

virendra sharma ने कहा…

बढ़िया रहे तमाम सेतु ,बढ़िया प्रस्तुति .

ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

virendra sharma ने कहा…

ये महफ़िल दो धड़ों में बंट गयी है
ज़रा पूछो है किसका मुद्दु’आ क्या

बहुत दिन बाद कही है ,गज़ल बढ़िया कही है .

मैं भी मुंह में जुबां रखता हूँ ,

काश पूछो के मुद्दा क्या है .

लोग कहतें हैं उनको ये पूडल ,

कोई पूछो तो मांजरा क्या है ?




ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

amit kumar srivastava ने कहा…

बहुत दिनों बाद बुलेटिन अपने कलेवर में दिखा |

virendra sharma ने कहा…

अनेक रूपा ,विविध मिजाजी बोस देखे ,सबके अनोखे अंदाज़ देखे .खुद को संभाले रखने के नुसखे पढ़े .

virendra sharma ने कहा…

सार्व जनीन सर्कालिक सार्वत्रिक चित्र है यही माँ का .किसकी इस छवि से तदानुभूति न होगी .



कैसी होती है माँ ...??

रश्मि प्रभा... at मेरी नज़र से

virendra sharma ने कहा…

छुक - छुक को वो तुक- तुक कहता
बॉल को कहता है बो
शब्दों के पहले अक्षर से ही
बस काम चला लेता है वो ।


भूल गयी हूँ कविता लिखना
बस उसकी भाषा सुनती हूँ
एक अक्षर की शब्दावली को
बाल भाषा के अपने कूट संकेत होतें हैं .एकाक्षरी होती है यह भाषा .डिजिटल से आगे ,मीलों ये भागे .बहुत सुन्दर बाल चित्त कि अनुकृति उतारी है इस रचना में एक शब्द चित्र गढ़ा है अन -गढ़ .बधाई !पूरे परिवार को .
मन ही मन मैं गुनती हूँ ।

virendra sharma ने कहा…

अक्षत है भाषा का ज्ञाता ,
शब्द बोध का है प्रज्ञाता .
एक अक्षर से काम चलाता ,
मितव्यय- ता वह हमें सिखाता .
बढ़िया शिशु गीत .टोद्लर गान ,एक बच्चे की मुस्कान .


अनोखी शब्दावली

संगीता स्वरुप ( गीत ) at गीत.......मेरी अनुभूतियाँ

virendra sharma ने कहा…

अजी क्या बात करते हो! रूपये फलते स्विस बैंक के किचिन गार्डन में ,कोयला भक्षण से मिलतें हैं ,तुम भी कोयला खाकर देखो ,बैंक बेलेंस बनाकर देखो .कलावती घर जाकर देखो .



थोड़ा कहा बहुत समझना ...

शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes
*जो प्रधानमंत्री जी ने कहा :- " रुपये पेड़ों पर नहीं उगते ..." जो वो कहना चाह रहे थे :- " रुपये कोयले की खदानों मे मिलते है ..."*

virendra sharma ने कहा…

रूपये उगते स्विस बैंक की फुलवारी में .

virendra sharma ने कहा…

बढ़िया रचना है :कलाई पर
बंधा है
समय
मारता है
पीठ पर चाबुक
और दौड़ पड़ता हूँ मैं
घोड़े की तरह
आगे
और आगे
अंतहीन
घडी मुस्कुराती है
कलाई पर बंधी बंधी
मुझे हाँफते देख

समय सवारी करता मेरी ,मैं हूँ एक मुसाफिर यारों ,समय चक्र से बंधा हुआ हूँ .
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

शिवम् मिश्रा ने कहा…

@ Virendra Kumar Sharma

आपसे अनुरोध है ब्लॉग बुलेटिन को ब्लॉग बुलेटिन ही बना रहने दें! थोड़ा कहा बहुत समझना !

Arvind Mishra ने कहा…

कोई आल इन वन भी तो होगा ? :-)

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