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रविवार, 29 जुलाई 2012

भिक्षावृत्ति मजबूरी नहीं बन रहा है व्यवसाय - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

पहले के जमाने में लोग बहुत ही मजबूरी में शर्म से निगाह नीचे करके भिक्षा मांगने जाते थे और भिक्षा भी इतनी जिससे उनका गुजारा हो जाये। मगर आज के इस समय में भिक्षावृत्ति फायदे का व्यवसाय बन गया है। लोग मजबूरी में नहीं फायदे के लिये भिक्षा मांग रहे हैं और शर्म से निगाह नीचे करके नहीं बल्कि अकड़ के ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करके भिक्षा मांगते हैं कि इनकी बातों से अनायास ही गुस्सा आ जाये। जैसे मालिक ने दिया है वही देगा। दाता देने वाला तो बुलाकर देता है। जो खुद नहीं खा सकते वह भला किसी को क्या खिलायेंगे। अगर मैं अपने ग्रहनगर मैनपुरी की ही बात करूँ तो यहाँ तमाम ऐसे भिखारी हैं जो एटा, छिबरामऊ तथा फर्रुखाबाद, मैनपुरी आदि शहरों से आकर यहां भिक्षा मांगते हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम भिखारियों की संख्या है। यह जहां हिन्दू आबादी है वहां हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर तथा मुस्लिम आबादी में खुदा के नाम पर भिक्षा मांगते हैं। अनेक महिलाएं भी इस धंधे में लिप्त हैं। जो आदिवासी गिहार जाति की हैं। जो दो-दो या तीन-तीन की टुकड़ी में मुहल्लों में जाकर तब भिक्षा मांगती हैं जब अधिकांश पुरुष अपने काम पर चले जाते हैं। यह मीठी, चिकनी, सुपड़ी बातें करके गृहणियों पर अपना जाल बिछाती है कि बहन मेरे छोटे बच्चे हैं इन्हें पुराने कपडे़ दे दो, अपने लिये साड़ी खाने के लिये भोजन, फिर भिक्षा में आटा तथा नकदी भी पांच-दस रुपये लेकर चलती बनती हैं।
बेवर के पास लालापुर ग्राम के पास ऐसे हरवोला जाति के लोग सदियों से भिक्षावृत्ति करते आ रहे हैं। यह सभी साधु वेष में भिक्षा मांगते हैं। साधु भी 12-13 वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक के। प्रात: तड़के यह चन्दन का बढि़या तिलक लगाकर बाहों तथा गले में चंदन का लेप लगाकर पीले वस्त्र पहनकर झोली डालकर, डण्डा पकड़ कर, शंख या घंटी बजाते हुये कस्बा तथा ग्रामीण क्षेत्र में भिक्षा मांगने निकल जाते हैं। सबसे दुखद पहलू यह है कि छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें स्कूल में शिक्षा ग्रहण करके एक अच्छा नागरिक बनना चाहिये। उनके मां-बाप इन बच्चों को स्कूल भेजने के बजाये भिक्षा मांगने भेज देते हैं।
आशा है प्रशासन केवल नाम के लिए ही 'स्कूल चलो - स्कूल चलो' नहीं कहेता रहेगा बल्कि इन लोग को भी मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास करेगा |
 
सादर आपका 
 

==========================================
 
(ब)वाल 
 
कैसा बिता  

सब से जरूरी यही तो है 
 
रोया होगा किसी बात पर 
 
का क्या है हिसाब 
 
जब तक संभव हो 
 
अब आपकी पोस्ट मे कैद है 

बधाइयाँ 
 
अच्छा 
 
सच बड़ी मुश्किल है 

क्या हुआ 
 
आप बताए इस से कैसे निजात पाये 
 
रेडी ...१ ...२ ...३ ...
 
आजकल नहीं मिलती 
 
जी जो आज्ञा 
 
हर हर गंगे 
 
सोच गहरी हो जाये तो इरादे कमजोर हो जाते है 
 
किसको जी किसको 
 
आप मिले इनसे 
 
इंतज़ार करें आप कतार मे है 
 
शत शत नमन 
 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिंद !!

13 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छे लिंक्स
बहुत बढिया

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

"जो खुद नहीं खा सकते वह भला किसी को क्या खिलायेंगे। अगर मैं अपने ग्रहनगर मैनपुरी की ही बात करूँ तो यहाँ तमाम ऐसे भिखारी हैं जो एटा, छिबरामऊ तथा फर्रुखाबाद, मैनपुरी आदि शहरों से आकर यहां भिक्षा मांगते हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम भिखारियों की संख्या है। यह जहां हिन्दू आबादी है वहां हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर तथा मुस्लिम आबादी में खुदा के नाम पर भिक्षा मांगते हैं। अनेक महिलाएं भी इस धंधे में लिप्त हैं। जो आदिवासी गिहार जाति की हैं। जो दो-दो या तीन-तीन की टुकड़ी में मुहल्लों में जाकर तब भिक्षा मांगती हैं जब अधिकांश पुरुष अपने काम पर चले जाते हैं। यह मीठी, चिकनी, सुपड़ी बातें करके गृहणियों पर अपना जाल बिछाती है कि बहन मेरे छोटे बच्चे हैं इन्हें पुराने कपडे़ दे दो, अपने लिये साड़ी खाने के लिये भोजन, फिर भिक्षा में आटा तथा नकदी भी पांच-दस रुपये लेकर चलती बनती हैं।"


शिवम् जी , जन्मजात विद्रोही किस्म का इंसान हूँ ! यह जानते हुए भी की इसमें मेरा ही शारीरिक नुकशान है, बहुत पकाता हूँ अपने आप को इन आज के हालत पर ! आज रविवार है और शाम को ऐसे ही पार्क में मोहल्ले के एक बहुत बुजुर्ग सज्जन के साथ बैठा था , बातों बातों में बात नेहरु तक जा पहुँची ! और उन्होंने जो एक वाक्य कहा वो कहीं जेहन में बैठ गया! आजादी के उत्साह में डूबे तमाम देश के मूड को भांपते हुए, देशवाशियों के लिए १९५१ में पहली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा के लिए नेहरू ने भी बजट का 6 % सिक्षा के लिए प्रावधान किया था लेकिन तब भी बहुत से डिग्गी राजा उनके साथ थे और उन्होंने समझाया की अगर इसतरह सभी को शिक्षित कर दोगे तो फिर बहुत से नेहरु सामने आ जायेंगे और आपकी अहमियत खत्म .........देश में कोई भी अगर भिखमंगा नहीं रहा तो वोट कौन डालेगा हमें ?.बात समझ में आई और जो प्रावधान किये गए वो वास्तव में ०.५ प्रतिशत भी नहीं थे !

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन...
अच्छे लिंक्स..

सादर
अनु

कडुवासच ने कहा…

bahut sundar ... jay ho !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहले इतने भीख माँगने वाले नहीं दिखायी पड़ते थे, अब तो हर जगह व्याप्त हैं वे।

Kulwant Happy ने कहा…

सबसे आसान काम बनता जा रहा है भिक्षा मांगना, देश के नेता वोटें भीख में मांगते हैं, भीख मांगना सबसे बड़ा धंधा बन चुका है। टीवी पर खोजी प्रतिभा प्रतियोगिता के प्रतियोगी भीख में वोट मांगते हैं, हर कोई कुछ न कुछ मांग रहा है।

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूबसूरत लिंक संयोजन

कुमार राधारमण ने कहा…

भिक्षावृत्ति आज एक महामारी है जिसकी ओर फिलहाल सरकार का ध्यान नहीं है। हमारी अधार्मिकता के कारण यह कारोबार शायद ही कभी ख़त्म हो।

अशोक सलूजा ने कहा…

आजकल के भिखारी हमसे भिक्षा लेकर खुद भी पनपते हैं और क्राइम भी पनपाते है .....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार !

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

भीख माँगने वाले आज हर कहीं फैलते जा रहे हैं. पहले तो ये साधू संतों तक ही था जो मजबूरी से नहीं बल्कि त्याग और तपस्या के परिणामस्वरूप था. पर अब व्यवसाय बनता जा रहा है और धर्म के नाम पर तो यूँ भी भीख आसानी से मिल जाती है. अच्छा लेख, बधाई.
मेरी रचना 'साढ़े तीं हाथ की धरती' को यहाँ स्थान देने के लिए धन्यवाद.

Bhriguvanshibss ने कहा…

Shaniwar Ke din (Shani Daan) lene wali Bahut Ghumte hai, Kya Unhe bhi Bhikari ki Category me mana jaye. Kirpya Pathakgan Apne vichar likhe.

Bhriguvanshibss ने कहा…

Shaniwar Ke din (Shani Daan) lene wali Bahut Ghumte hai, Kya Unhe bhi Bhikari ki Category me mana jaye. Kirpya Pathakgan Apne vichar likhe.

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