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शुक्रवार, 29 जून 2012

अपने बच्चों के लिए थोडा और बलिदान करें....


          क्या आपको याद है थियेटर या सिनेमा हॉल में जब आपने पहली फिल्म देखी थी तब आपकी उम्र क्या थी...  खैर छोडिये अगर याद नहीं है तो...  अक्सर मैं देखता हूँ, कई लोग गोद में छोटे बच्चों को लेकर फिल्में देखने चले आते हैं.. क्या आपने भी कभी ऐसा किया है... अब आप पूछेंगे भला इसका इस बुलेटिन से क्या लेना देना है... जी आपने सही कहा इसका इस बुलेटिन से कोई लेना देना नहीं है लेकिन इस बात का बच्चों की सेहत से ज़रूर लेना देना है... इस तरह की लापरवाही भरी हरकत का बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में गहरा प्रभाव पड़ सकता है...
           आपने फिल्मों के सर्टिफिकेट्स के बारे में तो ज़रूर सुना होगा... केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों को सामान्यतः तीन तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं... "U" "U/A" और "A"...
     "U" सर्टिफिकेट उन फिल्मों को दिया जाता है जो आप 4 साल से ज्यादा की उम्र के बच्चों के साथ देख सकते हैं, बहुत कम ही फिल्मों में आपने ये सर्टिफिकेट देखा होगा.. अभी की फिल्मों में फरारी की सवारी  ऐसी ही फिल्मों में से एक है... लेकिन इस तरह की भी फिल्में 4 साल से छोटे बच्चों के साथ देखने से बचना ही चाहिए...
          उसके बाद नंबर आता है "U/A" सर्टिफिकेट वाली फिल्मों का.. इस श्रेणी की फिल्मों के कुछ दृश्यों मे हिंसा, अश्लील भाषा या यौन संबंधित सामग्री हो सकती है, इस श्रेणी की फिल्में केवल 12 साल से बड़े बच्चे किसी अभिभावक की उपस्थिति मे ही देख सकते हैं... मतलब ये फिल्में भी आपको 12 साल से छोटे बच्चों को नहीं दिखानी चाहिए.. आज कल बनने वाली अधिकांशतः फिल्में इसी श्रेणी की होती हैं...
        तीसरी श्रेणी है "A" .. यह वह श्रेणी है जिसके लिए सिर्फ वयस्क यानि 18 साल या उससे अधिक उम्र वाले व्यक्ति ही पात्र हैं...
              चूंकि वो नन्हे बच्चे कुछ बोल नहीं सकते तो उनकी तरफ से मैं आपसे बस इतनी सी गुज़ारिश करना चाहूँगा, अपनी खुशियों का थोडा बलिदान और करें... और बच्चों के साथ फिल्में देखने न जाएँ और न ही घर पर ही उन्हें इस तरह की फिल्में देखने दें... अपने आस पास भी अन्य माता-पिता को इस सम्बन्ध में जागरूक करें... अब रूख करते हैं आज की बुलेटिन की तरफ....

            
संजय ग्रोवर जी अपनी लघु व्यंग्य कथा के माध्यम से कहते हैं इमेज बड़ी चीज़ है, मुंह ढंक के सोईए... और अमित जी बता रहे हैं सोने की मुद्राएं... दराल सर भी थोडा हलके फुल्के ढंग से अपनी नयी पोस्ट रखते हैं... मैं तो पानी पीता ही नही... अपने ब्लॉग क़स्बा पर रवीश कुमार जी बात कर रहे हैं वासेपुर की बंगालन की .... सतीश सक्सेना जी के गीतों की श्रृंखला में जुड़ रहा है गीता हरिदास....  और साथ साथ देखिये रुपये का दिनों दिन का हाल.... एक नयी शुरुआत पर भी नज़र डाल लीजियेगा...काफी दिनों बाद आई वंदना महतो कह रही हैं तुम अब भी... अरे हाँ जी हाँ... अभी भी... उधर अमृतसर की यात्रा वृतांत को आगे बढ़ा रहे हैं अभिषेक... गिरिजेश जी एक पोस्ट रिठेल कर रहे हैं मोलई माट्साब... रश्मि जी के ब्लॉग पर एक ज़ोरदार चर्चा चली हुयी है... आखिर क्यूँ इतना मुश्किल होता है ना कहना... संगीता स्वरुप जी के ब्लॉग पर बिखरी पड़ी हैं जिद्दी सिलवटें... आशा जी के ब्लॉग पर पढ़िए सुरूर.. अंजना जी सुना रही हैं अपनी हंसी... तृप्ति जी अपनी शादी की दसवीं सालगिरह कुछ इस तरह मना रही हैं... दिगंबर नासवा जी के ब्लॉग पर चारो तरफ स्वर्ग बिखरा पड़ा है... जाकर देख आईये... साथ ही देखिये कैसे आँखों से नींद बह रही है.... महेंद्र वर्मा जी को आगत की चिंता नहीं... सोनिया जी के ब्लॉग पर विचारों से मात.... शिवनाथ जी के ब्लॉग पर वो पूछ रहे हैं...क्या मैं 'जिंदा' हूँ... 
और जाते जाते अपना बचपन याद करते जाईयेगा...  क्यूंकि हर तस्वीर कुछ कहती है... 



20 टिप्पणियाँ:

रविकर ने कहा…

आभार आपका ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बिल्कुल सही सुझाव है शेखर जी ... नींव की मजबूती के लिए दीमकों से परहेज ज़रूरी ही तो है . सभी लिंक्स मायने रखते हैं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बिल्कुल सही सुझाव है शेखर जी ... नींव की मजबूती के लिए दीमकों से परहेज ज़रूरी ही तो है . सभी लिंक्स मायने रखते हैं

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स संयोजित किये हैं आपने ...आभार

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

मेरी पोस्ट सम्मिलित करने के लिए आभार।

बच्चे और फिल्म - अच्छी जानकारी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

माता पिता को सही सलाह देते हुये अच्छे लिंक्स चयन किए हैं .... आभार

शिवनाथ कुमार ने कहा…

अभिभावकों को जागरूक करती एक अच्छी पोस्ट .....
अच्छे लिंक्स चुने हैं आपने ....
आभार !!

Asha Lata Saxena ने कहा…

सार्थक लिंक्स के साथ् सजा ब्लॉग बुलेटिन बहुत अच्छा लगा |जहाँ तक चलचित्रों का सवाल है मुझे आज कल बनने वाली पिक्चर्स बिलकुल अच्छी नहीं लगतीं कभी कोई एकाद पिक्चर र्जिसकी बहुत तारीफ सुनती हूँ परिवार के साथ देखती हूँ |मैं आपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ बहुत कम ही ऐसी होती हैं जिन्हें बच्चों के साथ देखा जाए |सिवाय गन्दगी के वे परोस ही क्या रहीं हैं |
आज मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही अच्छे लिंक्स..और सार्थक संदेश भी
मेरा लिंक शामिल करने का आभार..

Archana Chaoji ने कहा…

शार्ट एंड स्वीट चर्चा..........उपयोगी प्रस्तावना के साथ...

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर लिंक संयोजन्।

Anamikaghatak ने कहा…

bahut badhiya links

Maheshwari kaneri ने कहा…

अभिभावकों के लिए बहुत ही अच्छे लिंक्स..और सार्थक संदेश..आभार शेखर सुमन जी आप का..

शिवम् मिश्रा ने कहा…

मेरी पोस्ट को इस बेहद उम्दा बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शेखर !

बेहद सार्थक और उपयोगी राय दी है आपने प्रस्तावना के रूप मे ... साधुवाद इस सोच को !

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

हाँ शेखर बहुत दिनों बाद! उस पर से तुम मुझे खींच के यहाँ भी ले आए।

अजय कुमार झा ने कहा…

शेखर प्रस्तावना में एक जरूरी विषय उठा कर तुमने बुलेटिन की इस पोस्ट को सार्थकता दी साथ में इतने बढिया पोस्ट लिंक्स सहेजने से ये पन्ना संग्रहणीय हो गया है । बहुत सुंदर बहुत ही बढिया ।

deepakkibaten ने कहा…

आपकी यह कोशिश निश्चित तौर पर काफी सराहनीय है. आम तौर पर कई बार अच्छी पोस्ट होने के बावजूद बिना पढ़े रह जाते हैं, इससे लोग काफी चीजें पढ़ सकेंगे.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सुन्दर लिंक संजोये हैं ... और सच कहा ही बिलकुल ...
शुक्रिया मुझे भी जगह देने का ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, इतना तो सोचना ही होगा..

अंजना ने कहा…

उम्दा पोस्ट.. बहुत सुन्दर लिंक दिये है..उस पर मेरी हँसी को भी शामिल किया :-) इस के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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