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बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार। 
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (अंग्रेज़ी: National Science Day) विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में हर साल 28 फरवरी को भारत में मनाया जाता है। 28 फ़रवरी 1928 को रमन प्रभाव की खोज की हुई। इसी उपलक्ष्य में भारत में 1986 से हर वर्ष 28 फ़रवरी 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है।





~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~











आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

अमर शहीद पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' जी की ७९ वीं पुण्यतिथि

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई, १९०६ - २७ फरवरी, १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का वध करके लिया एवम् दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।

जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन

पण्डित चन्द्रशेखर आजाद का जन्म उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के बदरका गाँव में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोडकर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भावरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भावरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी । बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।


 अमर शहीद चन्द्रशेखर 'आजाद' जी को ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से शत शत नमन ! 

इंकलाब ज़िंदाबाद ...

वंदे मातरम ||
सादर आपका

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

सरगोशी .....

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा 


वक़्त, तुम और मैं ...

रश्मि प्रभा... at कुनू और जुनू 


२९९. मेरे कस्बे का स्टेशन


सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

वीर सावरकर और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार। 
Vinayak-Damodar-Savarkar.jpg
विनायक दामोदर सावरकर (अंग्रेज़ी:Vinayak Damodar Savarkar, जन्म- 28 मई, 1883, भगूर गाँव, नासिक; मृत्यु- 26 फ़रवरी, 1966, मुम्बई, भारत) न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक भाषाविद, बुद्धिवादी, कवि, अप्रतिम क्रांतिकारी, दृढ राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, दार्शनिक, द्रष्टा, महान् कवि और महान् इतिहासकार और ओजस्वी आदि वक्ता भी थे। उनके इन्हीं गुणों ने महानतम लोगों की श्रेणी में उच्च पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया।

वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले विनायक दामोदर सावरकर साधारणतया वीर सावरकर के नाम से विख्यात थे। वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गाँव में हुआ। उनके पिता दामोदरपंत गाँव के प्रतिष्‍ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे। जब विनायक नौ साल के थे तभी उनकी माता राधाबाई का देहांत हो गया था। विनायक दामोदर सावरकर, 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी थे। उन्हें हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था। वह कहते थे कि उन्हें स्वातन्त्रय वीर की जगह हिन्दू संगठक कहा जाए। उन्होंने जीवन भर हिन्दू हिन्दी हिन्दुस्तान के लिए कार्य किया। वह अखिल भारत हिन्दू महासभा के 6 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। 1937 में वे 'हिन्दू महासभा' के अध्यक्ष चुने गए और 1938 में हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित किया था। 1943 के बाद दादर, मुंबई में रहे। बाद में वे निर्दोष सिद्ध हुए और उन्होंने राजनीति से सन्न्यास ले लिया।


आज वीर सावरकर जी की 52वीं पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~












आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

एक लम्हे में चाँदनी से जुदाई : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज देर रात भारतीय फिल्मों के उन दीवानों के लिए बुरी खबर लेकर आई जो अभिनेत्री श्रीदेवी के प्रशंसक रहे हैं. उनका 24 फरवरी 2018 को देर रात कार्डिएक अटैक से दुबई में निधन हो गया. वे एक पारिवारिक वैवाहिक समारोह में शामिल होने दुबई गई हुई थीं.


उनका जन्म 13 अगस्त 1963 को हुआ था. उन्होंने हिन्दी फिल्मों सहित तमिल, मलयालम, तेलगू, कन्नड़ आदि फिल्मों में भी काम किया था. अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने 63 हिन्दी, 62 तेलुगु, 58 तमिल, 21 मलयालम फिल्मों में काम किया. उनको भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार भी कहा जाता है. श्रीदेवी ने सन 1975 में बनी फिल्म जूली से हिन्दी सिनेमा में बाल कलाकार के रूप में प्रवेश किया. एक अभिनेत्री के रूप उनकी पहली फिल्म तमिल में आई, जिसका नाम मून्द्र्हु मुदिछु था. बाल कलाकार के रूप में सन 1975 में बॉलीवुड में प्रवेश करने वाली श्रीदेवी की बतौर अभिनेत्री पहली फिल्म सन 1978 में प्रदर्शित हुई सोलहवाँ सावन थी लेकिन सबसे अधिक पहचान सन 1983 में प्रदर्शित हुई फिल्म हिम्मतवाला से मिली. उनकी प्रसिद्द फिल्मों में सदमा, नागिन, निगाहें, मिस्टर इन्डिया, चालबाज़, लम्हे, खुदा गवाह, जुदाई आदि शामिल हैं. श्रीदेवी ने पाँच फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किये. इसके अलावा उनको सन 2013 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

उनके निधन पर ब्लॉग बुलेटिन परिवार की ओर से श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं.

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शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

ललिता पवार और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार। 
ललिता पवार (अंग्रेज़ी: Lalita Pawar, जन्म- 18 अप्रैल, 1916; मृत्यु- 24 फ़रवरी, 1998) हिन्दी सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। जिन्होंने अभिनय की यात्रा का सात दशक लंबा सफर तय किया। भारतीय नारी का जीवन जीते हुए एक संजीदा कलाकार जिन्होंने सिनेमा को कई यादगार फ़िल्में दीं। ‘जंगली’ की सख्त मां, ‘श्री 420’ की केला बेचने वाली, ‘आनंद’ की संवेदनशील मातृछवि और ‘अनाड़ी’ की मिसेज डिसूजा सहित अनेक चरित्रों की जीवंत छवियों को कैसे भूला जा सकता है। रामानन्द सागर द्वारा निर्मित 'रामायण' धारावाहिक में मंथरा की भूमिका को सजीव भी ललिता पवार ने ही बनाया था।

ललिता पवार (वास्तविक नाम: 'अंबा लक्ष्मण राव शागुन') ने नासिक के नाम से निकट येवले में 18 अप्रैल, 1916 को जन्म लिया। उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक लंबा सफर तय किया। वे सिनेमा के आरंभिक दौर से लेकर आधुनिक समय तक की दृष्टा और साक्षी थीं। मूक फ़िल्मों की मौन भाषा से लेकर बोलती फ़िल्मों के वाचाल जादू के दौर को उन्होंने देखा। भारतीय सिनेमा को परवान चढ़ते देखा। इस विकास-क्रम का एक हिस्सा बनीं। स्त्री-जीवन के विविध आयामों को पर्दे पर निभाया। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक विभिन्न स्त्री-छवियों में ललिता घुल-मिल गईं। भारतीय नारी के हर एक चरित्र में ढल गईं। ललिता पवार हिंदी सिनेमा में भारतीय नारी जीवन की एक महान् कलाकार थीं। इस क्रम में एक परंपरागत सास की छवि को उन्होंने इतना बखूबी निभाया कि यह उनकी पहचान ही बन गई।




आज ललिता पवार जी की 20वीं पुण्यतिथि पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~












आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

वीनस गर्ल आज भी जीवित है दिलों में : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
आज वीनस गर्ल के रूप में प्रसिद्द अभिनेत्री मधुबाला की ४९वीं पुण्यतिथि है. मधुबाला का जन्म १४ फरवरी १९३३ को दिल्ली में एक पश्तून मुस्लिम परिवार मे हुआ था. मधुबाला का बचपन का नाम मुमताज़ बेग़म जहाँ देहलवी था. बालीवुड में उनका प्रवेश बेबी मुमताज़ के नाम से हुआ. उनकी पहली फ़िल्म सन १९४२ में प्रदर्शित बसन्त थी. देविका रानी बसन्त मे उनके अभिनय से बहुत प्रभावित हुयीं, तथा उनका नाम मुमताज़ से बदल कर मधुबाला रख दिया. उन्हें मुख्य भूमिका निभाने का पहला मौका केदार शर्मा ने अपनी फ़िल्म नील कमल, जो वर्ष १९४७ में प्रदर्शित हुई, में दिया. इस फ़िल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ अभिनय किया. इस फ़िल्म मे उनके अभिनय के बाद उन्हें सिनेमा की सौन्दर्य देवी (Venus Of The Screen) कहा जाने लगा.


मधुबाला अपने अभिनय, अपनी कला के लिए समर्पित रहती थीं. इसका उदाहरण मुग़ल-ए-आज़म फिल्म के दौरान देखने को मिला. मुगल-ए-आज़म में उनका अभिनय विशेष उल्लेखनीय है. इस फ़िल्म मे सिर्फ़ उनका अभिनय ही नहीं बल्कि कला के प्रति समर्पण भी देखने को मिलता है. इसमें अनारकली की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही. उनका लगातार गिरता हुआ स्वास्थ्य उन्हें इसकी अनुमति नहीं देता था कि वे अभिनय करें मगर वह भी उन्हें अभिनय करने से रोक रोक नहीं सका. उन्होंने इस फ़िल्म को पूरा करने का दृढ निश्चय कर लिया था. ऐसा बहुत कम कलाकारों में देखने को मिलता है. असल में मधुबाला हृदय रोग से पीड़ित थीं. इसकी जानकारी उन्हें वर्ष १९५० में उनके नियमित होने वाले स्वास्थ्य परीक्षण में हो गई थी. इसके बाद भी उन्होंने इसको फ़िल्म उद्योग से छुपाया रखा. बाद में इलाज के लिये जब वे लंदन गयी तो डाक्टरों ने उनकी सर्जरी करने से मना कर दिया क्योंकि उन्हे डर था कि वो सर्जरी के दौरान बच नहीं पाएंगी. मधुबाला ने जिन्दगी के अन्तिम ९ साल बिस्तर पर ही बिताये. अंततः सौन्दर्य की मलिका, वीनस गर्ल २३ फ़रवरी १९६९ को इस संसार से बहुत दूर चली गई.

बुलेटिन परिवार की ओर से मधुबाला को हार्दिक नमन और श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं.


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गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

हर एक पल में ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,

आज दुनिया-जहान की बात न करके कुछ अपनी लिखी पढ़ा दें आप सबको. गद्य लिखते रहने की नियमितता के कारण पद्य लिखना बहुत ज्यादा अनियमित होता जा रहा है. कभी-कभी मूड बन जाता है तो उकेर लेते हैं कुछ पंक्तियाँ. ग़ज़ल, कविता, गीत के नाम पर कुछ तुकबंदी कर लेते हैं. मीटर, पैमाना, व्याकरण की बंदिशों को दरकिनार करते हुए जैसा मन कहता जाता है, वैसा उतारते जाते हैं. निर्णय आप सब करें कि क्या लिखा, कैसा लिखा? 

महसूस करते हैं तुमको हर एक पल में,  
लगता है सिर्फ़ तुम हो हर एक पल में.


दिल यूँ निकाल के न रख दो अचानक से,
दिल को दिल से मिला दो हर एक पल में.

बहकी-बहकी बातों को यूँ ज़ाहिर न करो,
शायराना से हो रहे हो हर एक पल में.

एक पल को छूकर तुझे कुछ यूँ लगा,
छू लिया हो ज़िंदगी को हर एक पल में.

इस तात्कालिक रचना के साथ आज की बुलेटिन आपके समक्ष है. स्वीकारें.


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बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (अंग्रेज़ी: International Mother Language Day) 21 फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।

यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था।

(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/अंतर्राष्ट्रीय_मातृभाषा_दिवस)


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~


एक उसी को लक्ष्य बनाएं

आधुनिकता में दरकते रिश्ते

पीएनबी महाघोटाला : जेटली तो बोले...अब मोदी की बारी

डिअर एम, आई मिस यू

मैं और माइक, माइक और मैं !

प्रिया प्रकाश का कोलावरी डी बन जाना

गूगल ब्लॉगर पर मुफ्त ब्लॉग कैसे बनाएं

लोकतंत्र के नाम पर लूट को क्या कहिएगा ?

100 करोड़ साल बाद का मानव जीवन (YEAR MILLION)

आधार से फ़ालतू में डरने वालों, जरा फ़ेसबुक से भी तो डरो!

बेटी तो सदा दिल का अरमान होती है !!!


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। 

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

रत्ती भर भी नहीं




कोई किसी के लिए नहीं मरता ...
लेकिन क्या यह पूरा सच है ?
किसी के जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकती ...
क्या यह आधी अधूरी बात नहीं ?
मन और बाह्य 
दो स्थितियाँ हैं 
बाह्य मन को नहीं दर्शाता
मन बाह्य को जी नहीं पाता 
कौन कहाँ ठहरा
कहाँ खोया 
आंधियों में भी जो दिखता रहा
वह था या नहीं
बताया नहीं जा सकता 
बोलती हँसती ज़िन्दगी भी
अपनी अव्यक्त मनहूसियत पर रोती है
कितनी बातों से भरा मन 
खाली बर्तन सा ठन ठन करता है
पर कुछ डालना चाहो
तो सब गिर जाता है
बह जाता है 
रत्ती भर भी जगह नहीं होती !


रूबाई


भोले की आरती ख़तम हो चुकी। भण्डारी स्टेशन पर पचीस मिनट पहले ही आ कर खड़ी है गोदिया। समय होगा तभी चलेगी। लेट आने पर लेट चलती है, बिफोर आती है तो समय से चलती है। आज लोहे के घर के कोपचे में बैठे हैं। ऊपर, मिडिल और नीचे एक एक बर्थ सामने दीवार। दाएं सामने की ओर दरवाजा, बाएं खिड़की। यह कोना तो लोहे के घर का कोपभवन लगता है! लेट कर देश की चिंता करते हैं।
लाख छेद बन्द करो घर में चूहे आ ही जाते हैं। लाख नल बन्द करो कहीं न कहीं पानी टपकता ही रहता है।मच्छरदानी चाहे जितना कस कर लगाओ, सुबह एक न एक खून पी कर मोटाया मच्छर दिख ही जाता है। यही हाल अतंकवादी का है, यही हाल घोटाले का है। हम यह ठान लें कि न खाऊंगा, न खाने दुंगा तो भी एकाध चूहे फुदकते दिख ही जाते हैं। हम भले न खाएं वे तो खाने के लिए ही धरती पर अवतरित हुए हैं। अन्न न मिला तो किताब के पन्ने, कपड़े.. जो मिला वही खाने लगते हैं। एकाध चूहों के खाने से, एकाध मच्छर के खून पीने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। घर की दिनचर्या रोज की तरह चलती रहती है। आफत तो तब आती है जब दीवारें दरकने लगती हैं। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। दुर्घटना उस घर में अधिक घटती है जहां जनसंख्या अधिक और नियंत्रण करने वाला एक। संयुक्त परिवार के बड़े से घर में जहां सारा बोझ मुखिया के कन्धे पर होता था सभी सदस्य आंख बचा कर मौज उड़ाने की जुगत में रहता था और घर की चिंता का सारा बोझ घर का मुखिया ही उठाता था। ऐसे घर में चूहे भी आते, मच्छर भी होता, खटमल भी निकलते और नल की टोंटी भी खुली रह जाती।
राजशाही में राजा ही सब कुछ होता था। वह सर्वगुण सम्पन्न हुआ तो देश अच्छा चला, गुणहीन हुआ तो देश गुलाम हुआ। तानाशाह हुआ तो जनता हाहाकार करने लगी, दयालू हुआ तो जनता मौज करने लगी। राजशाही की इन्हीं कमियों ने लोकतंत्र को जन्म दिया। सत्ता के अधिकारों और दायित्वों का राज्यों, शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक समुचित वितरण और केंद्र का कड़ा नियंत्रण। जनता का, जनता के लिए जनता के द्वारा शासन। यह एक सुंदर और कल्याणकारी व्यवस्था है। यह व्यवस्था उस देश में अत्यधिक सफल रही जहां जनसंख्या कम और शिक्षा का प्रतिशत अधिक रहा। भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जनसंख्या भी अधिक और शिक्षा का स्तर भी दयनीय। कोढ़ में खाज राजनेताओं/धर्मोपदेशकों की कृपा से धर्म और जाति के आधार पर बंटी जनता। अब ऐसे माहौल में आतंकवादी न आएं, घोटाले न हों तो यह स्वयं में एक बड़ा चमत्कार होगा। देश की मूल समस्या जनसंख्या नियंत्रण और शत प्रतिशत साक्षरता है। इंदिरा जी ने जनसंख्या नियंत्रण को समझा तो नौकरशाही ने ऐसा दरबारी तांडव किया कि उन्हें सत्ता से ही बेदखल होना पड़ा। उन्हें भी लगा होगा कि सत्ता में बने रहना है तो इस मुद्दे को ही भूल जाओ। फिर किसी ने हिम्मत नहीं करी। मूल समस्या पर किसी का ध्यान नहीं।
गोदिया समय से बनारस पहुंच गई। देश की चिंता फ़ुरसत से मिले बेकार से किसी दूसरे समय में। आप फ़ुरसत में हों और देश की चिंता को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो स्वागत है। आम आदमी फालतू समय में ही देश की चिंता कर सकता है।
#लोहेकाघर

कभी कभी
कुछ शब्द
आपके अपनो द्वारा ही
बोली जाती आँखों आँखों मे
जरूरी नहीं कि वो इज़हार ए इश्क़ ही हो
ऐसे लोग
रहते झूठ फरेब के मुखौटे ओढ़े
इशारे इशारों में
कहे गये उनके शब्द
चुभते है तीर की तरह
क्यूँकि बोली जाती हैं आंखों से
इन्हें तलाश रहती है
हँसी खुशी लक्ष्य से प्रेरित
ऐसी चिड़ियों की आँख की
ताकि बींध दे उसकी आंखें
और थपथपाए अपनी पीठ
खुद के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का
ऐसे लोग
लिए हाथों में खंज़र
अपमानित करने को तत्पर
येन केन प्रकारेण
खुद को श्रेष्ठ साबित करने का
नहीं छोड़ते अवसर
ऐसे अर्जुन से
हमेशा सावधान रहना ही बेहतर
क्यूँकि जाने कब और कैसे
विश्वासघात के तरकश में
शब्दों के बाण से
कर दे तुम्हें
दोस्ती में नुकसान


लेखागार