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मंगलवार, 23 मई 2017

मेरी रूहानी यात्रा और दिव्या शुक्ला



कथादेश , जनसत्ता , चौथी दुनिया ,निकट 
और कई पत्र पत्रिकाओं में कवितायेँ 
और कहानियां प्रकाशित हुई


यहाँ रहती है कल्पनाओं और यथार्थ के ताने बाने से बुनी कुछ हंसती , सिसकती कहानियां



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गिद्ध
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नवम्बर का आखिरी हफ्ता चल रहा था और हवा में हल्की सी खुनकी तैरने लगी थी।
अभी ठंड आई तो नहीं थी पर मौसम बहुत खूबसूरत था। खूबसूरत फूलों का मौसम।
मेरा लान भी फूलों से भरा था ।
जान बसती है मेरी इन पौधों में । इनसे बातें करना, इन्हें देखना, हौले से छूना मुझे नई उर्जा से भर देता है । उन दिनों स्वीट पी की बेलें अपने शबाब पर थीं । उस दिन बैगनी सफेद फूल अपनी मादक खुशबू से दिलोदिमाग पर रोमांस की खुमारी भर रहे थे। पी लेना चाहती थी इनकी महक। मैं अपने अंदर सब समो लेना चाहती थी। मैने एक गहरी सांस भर कर आँख मूंद ली थी कि अचानक
मोबाइल बजा। संगीता की काल थी। सेल आन करते ही शुरू हो गई “सुन शाम सात बजे आ जा बस.......। कुछ लोग है ,…….तुझे अच्छा लगेगा ,…..ना नहीं सूनुगी । अरे हाँ , डीके भी आ रहा है। कुछ दिन पहले मिला था क्लब में। मुझसे पूछ रहा था तेरे बारे में। ......अच्छा शाम को मिलते है। ...... तेरी ही वज़ह से सात बजे का टाइम रखा है। दस-ग्यारह तक खतम हो जाएगा सब। कुछ लोग मिलेंगे,,,,तुझे अच्छा लगेगा।‘’
‘’ओके। .....मै आउंगी।‘’ ,फोन कट गया।
मैं सोचने लगी, रिश्तेदारों की अपेक्षा दोस्त कितने करीब होते है कि मन के उस कोने को झाँक लेते है, जहाँ कभी कभी करीबी नाते भी नहीं पहुँच पाते। जिंदगी की तरफ खींच लाते है अच्छे दोस्त। जैसे संगीता मुझे मुझसे भी ज्यादा जानती है। सब कुछ तो शेयर किया है इससे । मेरी शादी पर खूब धमाल मचाया था इसने और फिर उसी शिद्दत से बिखरते दाम्पत्य से घायल और टूटते हुए मेरे वजूद को भी बटोरने की कोशिश की। सच है, जिंदगी में एक दोस्त जरुरी होता है।
पापा ने मेरी शादी के लिए अजीत को चुना। ........अजीत कुमार भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी। छोटे कसबे का पढ़ाकू लड़का। बहुत अंतर था दोनों परिवारों में। मम्मी ने दबे स्वर में कहा भी पर आईएएस दामाद के सिवा कुछ नहीं दिखा पापा को। दो साल हवा में पर लगा कर गुजर गये। एक अच्छी बीवी बनने की भरसक कोशिशें करती रही थी मैं। समय बीतते-बीतते अजीत बहुत बदल गया। मै तो वैसी ही थी। उसका ख्याल रखती। प्यार भी करती थी, पर उसके इस बदले हुए व्यवहार को न समझ पा रही थी। मेरी दोस्तों के सर्कल में भी खुसफुसाहट होने लगी थी। कोई बात छुपती कहाँ है! अजीत की रंगीन मिजाजी के किस्से आम होने लगे ,पर मुझे ही खबर देर से हुई। फ़ाइल डिसकस करने के बहाने कोई न कोई औरत उसके साथ रहती। सेमिनार में और होटलों में भी। पावर और पैसों ने दूसरे सारे ऐब भी भर दिए। बहुत रोई पर सोचा कोई कमी रह गई मेरे प्यार में जो इस भटकन की वज़ह है। भरोसा था कि संभाल लुंगी। पर …….
संगीता का कन्धा मेरे लिए बहुत बड़ा सहारा था उनदिनों। उस पर सर रख कर रो आती थी मै, पर एक दिन वह हुआ जिसकी कल्पना भी मैने नहीं की थी। सोच कर आज भी घृणा से सर्वांग सुलग जाता है।
काम वाली बाई पार्वती की दस साल की बेटी पिंकी, जिसे मै बहुत प्यार करती थी, अचानक कई दिनों से नहीं दिखी मुझे । पार्वती से पूछा तो वह बोली ‘’पता नहीं भाभी पहले तो लपक के तैयार हो जात रही आपके पास आने को .....पर अब बहुत कहने पर भी कौनो कीमत पर नहीं आती। जबरदस्ती करी तो रोवय लागत है।‘’
‘’अच्छा तुम अभी घर जाओ और उसे दोपहर में ले आना। ‘’
बहुत समझा बुझा कर पार्वती पिंकी को मेरे पास लाई। डरी-सहमी पिंकी को देख कर मुझे समझ में नहीं आया इसे क्या हुआ! बहुत प्यार से उसे मैने अपने पास बुलाया। उसे बिस्किट दिया। बातें करती रही। धीरे धीरे वो सामान्य हुई। मैने पार्वती से कहा, ‘’तुम बाकी घर के काम निपटा कर इसे साथ ले जाना। मेरे पास रहने दो तब तक, पर पिंकी ने माँ का आंचल पकड लिया कि हम जायेंगे ....नहीं रुकना हमें। बड़ी मुश्किल से तैयार हुई रुकने को। बड़ा आश्चर्य लगा उसके इस व्यवहार से। उसे लेकर टी वी रूम में आई पास बिठा कर कहा, ‘’पिंकी, क्या आंटी से गुस्सा हो ?......क्यों नहीं आती तुम अब ? तुमको मै पढ़ाती थी उसका भी नुक्सान हो रहा है न।‘’
वह एकदम चुप हो गई। आँखों में एक अजीब सा डर ......सहमापन था। बहुत पूछने पर,…. बड़ी मुश्किल से उसने जो बताया, उससे एक पल को स्तब्धहो गई मैं। आसमान गिर पड़ा मुझ पर। अटक-अटक कर बच्ची बोली, ‘आंटी अंकल से न बताइयेगा वरना बहुत मारेंगे हमको भी और आपको भी। वो बहुत गंदे अंकल है।‘’
‘’क्या? हुआ क्या? मुझे बताओ तो बेटा....’’
और एक नन्ही बच्ची के मुंह से जो सुना वो एक पुरुष की वीभत्स मानसिकता या बीमार सोच थी। पशुता पर उतर आए पुरुष को वह नन्ही बच्ची अपनी बेटी नहीं औरत लगी। बदलाव की चाह या यौन कुंठा से ग्रसित मनुष्य। उसे पति कहना रिश्ते का अपमान होगा। यही से शुरू हुई दाम्पत्य में दरकन। आफिस से आते ही सीधा सवाल दाग दिया। जवाब में बेशर्म हंसी और जवाब था, ‘’पागल हो गई हो इन कूड़ा-कचरा लोगों की बात पर विश्वास करती हो।‘’
‘’तुम नराधम हो अजीत। क्या तुम्हे मुझसे प्यार नहीं? आखिर क्या कमी है मुझमे जो ऐसी नीच हरकते करते हो? आज से मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं।‘’
एक बिस्तर पर दो अजनबी सोते रहे। कमरा अलग करना मतलब अर्दली के जरिये बात बाहर जाना, सो कमरा एक ही रहा। और फिर एक रात मेरी गर्दन के नीचे हाथ सरका मै जाग रही थी। झटक दिया घृणा से उसे। क्रोध और अपमान से बिलबिला उठा उसके अंदर का पुरुष। चीख़ा वह, ‘’ये मेरा हक़ है। इसे कैसे रोक सकती हो तुम...... हासिल कर ही लूँगा.......’’
बलात्कार! उफ़! वह भी पति द्वारा। बलत्कृत नारी।....... उसका दर्द और अपमान और दर्द की पराकाष्ठा, वह ही जानती है। उस रात पहली और आखिरी बार चीख कर अजीत को कहा, ‘’अब मुझे छूना भी मत मुझे। तुमसे घिन आती है। ...... बिना प्रेम के यह वेश्यावृति नहीं कर सकती। तुम्हारे शरीर से औरतों की दुर्गन्ध आती है मुझे ...’’
.....और रात भर रोती रही। मेरा तन ही नहीं मन भी घायल था। सुबह होते ही संगीता को फोन किया। मेरी आवाज़ काँप रही थी। संगीता ने कहा ‘’अपने को संभाल..... मै दस मिनट में पहुँच रही हूँ।‘’
वह आकर मुझे ले गई। उसके घर आकर बहुत रोई। शाम को पापा और माँ मुझे लेने आ गये। उन्हें अजीत ने ही फोन कर के मेरे घर छोड़ जाने की बात बता दी थी। उन दोनों ने सोचा मियां बीबी का झगड़ा है। सुलझ जाएगा। पर अब मै किसी कीमत पर नहीं रहना चाहती थी उसके साथ। अजीत का यह घिनौना रूप कैसे माँ बाप को बताऊँ! बड़ी उहापोह थी। मम्मी चाहती थी एक मौका और देना चाहिए हालाँकि, दामाद के कारनामे जानती थी। शोहरत तो पहुँच ही जाती है। पर ओहदा और पैसा ऐब पर पर्दा भी डाल देता है। ....,,मैने फैसला कर लिया। फिर चंद महीनो की फार्मेल्टी के बाद आपसी सहमती से बड़ी आसानी से तलाक हो गया। पापा ने मुझे यह घर शादी में गिफ्ट किया था, जिसे मै संवारती रहती। बहुत कहने पर भी मै नहीं गई उनके साथ रहने। वक्त गुजरता गया। कई बरस गुजर गये । वक्त अपने हिसाब से तल्खियाँ कम कर देता है। मै भी नार्मल होने लगी। आँखे मूंद कर अपने अतीत के गलियारे में फिर आज घूम आई थी मै। एक टीस सी उठी फिर झटक दिया। जो बीत गया सो गया। अब जब कभी एक साथी की चाह भी उठती, एक नाउम्मीदी फैल जाती। मैंने अपना एक पैमाना बनाया था। उसमें कोई फिट बैठे तब न! सोच कर मै मुस्करा दी। आज भी जाना है। शाम की चाय का वक्त हो गया। सोच ही रही थी काशी ने पूछा --
‘’दीदी चाय यही लाऊं या अंदर लगा दूँ?’’
‘’यही ले आओ.’’ काशी से कह कर मैने फिर आँखे मूंद ली।
काशी चाय अच्छी बनाता है। अभी नया ही आया है। करीब दो माह ही हुए लेकिन उसने मेरी चाय का ख़ास टेस्ट पकड लिया है। हालाँकि, यह बहुत कठिन नहीं, पर जरा मुश्किल तो है।....यही ...मेरी चाय। मुझे वो मुलाजिम बिलकुल नहीं पसंद जो मेरा काम ध्यान से न करे। मेरे घर पर काम करने वाले नौकर घर के सदस्य ही होते हैं।
धीमे धीमे सिप करके चाय पीने का अपना ही मज़ा है और मै ये लुफ़्त लेने के पूरे मूड में थी। मेरी फ्रेंड्स अक्सर मुझे उकसाती, ‘’कभी स्काच भी इसी तरह पी कर के देख। ...... जिंदगी का असली मज़ा तब समझ में आएगा। .....तू कहाँ अभी उसी घुंघट वाली सोच में उलझी पड़ी है।‘’
सबके बहुत कहने पर भी मैने क्लब की मेम्बरशिप नहीं ली। पर हां, कभी कभी संगीता की गेस्ट बन कर जरुर गई हूँ। दोपहर को क्लब के लान में चेयर लगवा कर बेसन की रोटी और पूरी बियर की बोटल भी खतम की है, पर मेरी आदत नहीं बनी। सिर्फ एक बार आजमाई। बहुत कडवी थी। जिंदगी की तरह ही कडवी कसैली। नहीं पसंद आई मुझे। पर पी इसलिए क्योंकि मुझे खुद को आजमाना था। फूलों, गीतों, किताबों और अपने ख्याली इश्क के नशे में मदहोश रहने वालों पर बियर कितना चढ़ती है! चाय का आखिरी सिप ले कर और कप रख कर अंदर जाने को मुड़ी ही थी की गेट खटका। कोई अंदर आ रहा था। मैने पलट कर नहीं देखा। पलट कर देखना मुझे कभी पसंद नहीं। अभी किसी से मिलने का न वक्त था न मन। सलीम भाई से गाडी लगाने को बोल कर अंदर तैयार होने चल दी। एक अजीब सी उलझन में घिरी थी। कहीं जाना मुझे अच्छा नहीं लगता। पार्टी और हंगामे ,…..शायाद मै इन सबके लिए नहीं बनी थी..... या यूँ कहें मेरा मूड कब क्या करेगा मुझे भी नहीं पता। आज डिनर था संगीता के घर। मै मना नहीं कर सकती थी । वहां खुराना भी जरुर आएगा। उसे झेलना मेरे लिए टॉर्चर था। कर्नल खुराना उनका का पारिवारिक मित्र था। अभी तक कुंवारा था। अक्सर जब भी हम संयोग से एक जगह मिलते...... संयोग नहीं यह सब संगीता की कारस्तानी होती कि वह हमेशा ही ऐसा कुछ करती की मुझे उस से टकराना ही पड़ता और वह लगातार मुझे ताकता रहता। न जाने क्या था उसकी आँखों में, पर मुझे बहुत चिढ होती। एक्सरे की तरह मेरे बदन के आर पार होती उसकी तीर सी निगाहें। गलती उसकी भी नहीं थी। यह सब तो मेरी अपनी ही फ्रेंड का किया धरा है। उसने कर्नल से भी मेरा प्रपोजल दिया। वह दोनों मियां बीबी चाहते है की मै खुराना से शादी कर लूँ। हालाँकि, पंजाबी खुराना खूबसूरत मर्द है। उसमे वो सारी खूबियाँ है, जो एक पुरुष में होनी चाहिए। पढ़ा लिखा। वेळ बिहेव्ड। कुत्तों से तो बेहद प्यार करता था वह। करीब चार अलग अलग नस्लों के कुत्ते भी पाल रखे थे। उसके बंगले का लान बहुत खुबसूरत था - लश ग्रीन। मेरी सबसे अहम पसंद भी उसके बंगले पर मौजूद थी ......चुनिदा किताबों की लाइब्रेरी। सब तरह की किताबें मौजूद थी। एंटिक लैम्प और काली आबनूसी लकड़ी की मेज़ कुर्सी कोने में रखी उसके नफीस टेस्ट को दर्शा रही थी। एक दिन संगीता ही मुझे उसके घर भी ले गई थी। शायद उसने ही कहा होगा। काफी ना-नुकुर के बाद मै गई। वे दोनों बरामदे में बैठ कर बात कर रहे थे। मै कम्पाउंड में घूम घूम कर पेड़ पौधे देख रही थी। सोच रही थी सब कुछ तो है इस आदमी में फिर मुझे क्यों नहीं समझ में आता! पर आज मूड लाईट था। मौसम का असर मुझ पर भी था। ख्याले इश्क भी, पर आशिक नदारद था। न जाने कौन होगा जो मेरे लिए बना होगा! बडबडा रही थी और तैयार भी हो रही थी। साड़ी बाँध कर अपने आप को शीशे में देखा। कुछ ज्यादा ही हसीन लग रही थी रायल ब्लू फ्रेंच शिफान में। विदाउट स्लीव डीप नेक ब्लाउज ,गले में बड़े बड़े बीड्स की स्वरोस्की की सिंगल लाइन नेक पीस ......कानो में कंधे से जरा ऊँचे तारों की तरह झिलमिलाते इयररिंग्स। आज खुद पर ही प्यार आ गया। अब भला बेचारे खुराना या किसी और का क्या दोष! किसी का भी दिल फिसल जाए। इसी साल अपना चौतीसवा जन्मदिन मनाया था, पर चौबीस से ज्यादा की नहीं दिखती थी। चौबीस इंच की भी नहीं, मात्र बाईस की कमर थी। इसे कहते हैं खुद्पसंदी। सोच कर मुस्कराई और ओठों को गोल कर के सीटी मार दी मैने और अपना फेवरिट परफ्यूम स्प्रे करने लगी। वाईट डाईमंड की सुगंध से मुझे जानने वाले मेरे आने की आहट पा जाते। आजकल तो कर्नल दूर से ही सूंघ लेता था। पुयर चैप! नहीं जानता था कि मै उससे शादी तो कभी नहीं करुँगी। वो मेरे लायक़ नहीं है, पर आज उसके बारे में बार बार क्यों सोच रही हूँ? सर झटक दिया मैंने, जैसे सारे ख्याल झटक कर बाहर फेंक दिए। घड़ी देखी। “ओह! सात बज गये!”
बस क्लच उठा कर बाहर निकल ही रही थी कि काशी ने आकर कहा ‘’दीदी गाडी लग गई है। रात को क्या बनाऊ? या आप बाहर खायेंगी?”
“मुझे नहीं खाना। तुम लोग अपने लिए जो चाहो बना लो। ......संगीता मेमसाब के यहाँ चलिए सलीम भाई।“ कह कर मै गाडी में बैठ गई।
बहुत दिनों बाद किसी डिनर में जा रही थी। दोस्तों की झाड़ खाने के बाद अपने ही बनाये खोल से बाहर आने की एक कोशिश थी आज।
“आप अभी आ रही है?”
किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा। चौंक कर पलटी तो देखा सदाबहार कैसेनोवा डीके मुस्करा रहे थे। इतनी बेबाकी से हाथ रखना मेरे माथे पर सिकुडन डाल गया। फिर एक मुस्कान चिपका ली। जरा देर हो गई, पर अभी सात ही तो बजे है। पार्टी में बहुत करीबी लोग ही थे। लगता था मेरी प्रिय दोस्त और मेरे फेवरेट कपल ने यह पार्टी भी किसी को मेरे करीब लाने के लिए ही प्लान की है। संगीता मेरे गले लग गई। बोली, “बहुत खूबसूरत लग रही है तू .....पर किस काम की? तू तो भाव ही नहीं देती। अरे पागल! जिंदगी अकेले नहीं कटती। क्यों नहीं समझती कि कितने लोग दिल हथेली पर लिए तेरे पीछे फिरते है और तू है की नोटिस ही नहीं करती। अच्छा, सच बता .....ईमानदारी से कहना, क्या तुझे किसी की जरूरत नहीं महसूस होती?”
“कैसी जरूरत? मेरा काम करने को है तो मुलाजिम?” जान कर भी अनजान बन गई मैं।
....पर आज तो संगीता ठाने बैठी थी और भरी महफ़िल में पूछ ही लिया उसने “तुझे फिजिकल नीड्स नहीं ?”
अचकचा गई एकदम से। फिर बोल पड़ी, “अगर हो भी तो क्या जूठन खा लूँ? या दुसरे की थाली खींच लूँ?”
सन्नाटा सा छा गया एक पल को। फिर बात पलट दी उसने “”अरे मै तो टीज़ कर रही थी तुझे।“
ड्रिंक सर्व हो रही थी। सब जानते थे कि मै पीती नहीं पर ड्रिंक्स पहचानती हूँ। नानवेज भी नहीं खाती। कर्नल मेरे लिए ग्लास लाये मेरे मना करने पर कहा, “ये अल्कोहल नहीं है लाइम सोडा विथ आइस है।“
मैने ग्लास थाम लिया और सिप करने लगी। कुछ ज्यादा ही अच्छा टेस्ट था। ड्रिंक खतम होते ही एक और आ गई और मैने इस बार खुद ले लिया। मुझे नहीं पता था कर्नल ने उसमे वोडका मिक्स कर दी है जिसका सुरूर मेरी आँखों में झलकने लगा है। मुयुजिक शुरू हो गया। धीमा मादक संगीत। कई जोड़े पाँव थिरकने लगे। एक हाथ मेरे सामने बढ़ा। “कैन वी डांस?”
ना में सर हिला दिया मैने और बोली, “मुझे नहीं डांस करना,”
“ओके! कोई बात नहीं। हम बातें करते हैं।“
हमदोनों कार्नर में पड़े सोफे पर बैठ गए। कर्नल खुराना मेरा हाथ देखने लगे। हाथ दिखाना अपनी रेखाएं पढवाना मेरा हमेशा से प्रिय शगल रहा है। वो बोलते रहे और मै खिलखिलाती रही। तभी अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया। मैने धीमे से हटा दिया और अपना हाथ खीच लिया, पर कर्नल तो आज न जाने किस मूड में था। मेरी कमर में हाथ डाल कर खीच लिया और बोला, “कितनी खूबसूरत हो तुम ....शादी नहीं करनी तो न सही .......एक डेट ही मेरे साथ कर लो।“
एक झटके से उसे धक्का दे कर दूर किया। उसने कहा, “मै बहुत प्यार करता हूँ तुमसे।“
“प्यार और तुम .......नहीं कर्नल खुराना ......तुम प्यार नहीं जानते। तुम्हारी आँखों में जब भी प्यार तलाशा मैने। वो कहीं नहीं नजर आया। बस एक आदिम भूख दिखी। कर्नल, .... जब भी किसी पुरुष की नज़रें मेरे चेहरे से फिसल कर गर्दन के नीचे टिकती है उसी पल उसकी नियत उजागर हो जाती है। वासना का मोहताज़ नहीं होता प्रेम और मै प्रेम तलाश रही हूँ। ....आज ही मैने तुम्हारे बारे में सोचना शुरू ही किया था की आज ही तुम बेनकाब हो गये।“
बिना होस्ट को बताये पार्टी छोड़ आई। घर पहुंची ही थी तो देखा अशोक मेरा इंतजार कर रहा है। अशोक मुंहलगा था। अभी बाईस चौबीस साल का ही होगा। उसकी नौकरी भी मैंने ही लगवाई थी। दीदी दीदी कह कर जब-तब सर खाता रहता। मेरे पर्सनल काम वो ही करता था, पर आज उसकी बकबक सुनने का बिलकुल मूड नहीं था मेरा। मैने उससे कहा “कल आना।“
“अरे नाही दीदी कल तक तो गजब हो जाएगा।“
“क्या हुआ कि गजब हो जाएगा? अच्छा बोलो…..?”
“दीदी, स्टेशन जाने वाली सडक पर .....पुल के पहले पुलिस की पिकेट लगी है।“
“वो तो वहां साल भर से लगी है। तो मै क्या करूँ?”
“बात तो सूनो आप पहले। ..... उन लोगों ने एक लड़की को बैठा रखा है। ....आप चलें और उसे अपने साथ ले आयें।
“तुम पागल हो क्या? हम कैसे जा सकते? अब टाइम भी तो देखो नौ बज रहे है और उस लड़की को कैसे ला सकते है अपने साथ? अगर उसने कह दिया वो मुझे नहीं जानती तो ? कमीने पुलिस वाले कुछ भी बक देंगे।“
“दीदी, अगर आप ने उसे नहीं छुड्वाया तो आज उस लड़की का क्या हाल होगा आप नहीं जानती।“
“क्या बकवास कर रहे हो ....साफ़ बताओ।“
अशोक ने जो बताया उससे मेरी रूह काँप गई। अशोक बता रहा था, “वो लड़की तेरह चौदह साल की ही होगी किसी अच्छे घर की और शहर के नामी स्कूल में आठवी क्लास में पढ़ती है।.... नम्बर कम होंगे या टीचर ने डांटा होगा तो बैग लटका कर चली जा रही थी क्न्फ्युज सी। उन पुलिस वालों ने उसे बिठा लिया टेंट की ओट में। मैने अपनी आँखों से देखा उससे पूछने के बहाने एक पुलिस वाला उसके गाल सहलाता है तो दूसरा बगल बैठा हुआ उसकी जांघो पर हाथ फेरता है। वो लोग देर रात का इंतजार कर रहे हैं। कोई कमरा ढूंढ रहे है। मुझसे भी कहा अपने कमरे की चाभी दे दो,…. सुबह दे देंगे। हम यह कह कर चले आये चाभी दोस्त के पास है।“
“तुमसे चाभी क्यों मांगी? तुमको कैसे जानते है वो?”
“उनमे से एक मेरे गाँव का रहने वाला है। उसी ने सब को बताया कि अकेले रहते है हम। नदी के इस पार पुल शुरू होते ही पुलिस पिकेट और उस पार ढलान वाली कालोनी में मेरा कमरा है। अक्सर सडक सूनी रहती है। चाभी के लिए बड़ी घुड़की दी पर जान छुड़ा कर भाग आये हम।....दीदी उस बच्ची को बचा लो नहीं तो उसकी लाश कल नदी में तैरते मिलेगी।“ उसकी आँख में आंसू भर आये।
सारा दृश्य मेरी आँखों से गुजर गया। चिड़िया को घेरे हुए पांच छह गिद्ध। जांघों पर हाथ फेरता सिपाही। पिंकी को निगलता अजीत और कर्नल खुराना ......सारी सूरतें गडमड होने लगी। घृणा का एक सैलाब उमड आया और हलक में अटक गया। .....चारों ओर गिद्ध ही गिद्ध। जिंदा मुर्दा मांस को नोचते गीदड़ नजर आ रहे थे। सूखे हलक में एक घूंट पानी उडेला और सोचने लगी क्या करू ! अरे! मै तो भूल ही गई। ईशान भी तो यही पोस्टेड हैं। उनका ही मुहकमा है यह। वो ही तो आजकल S.S.P है। मोबाइल उठा कर फोन लगाया । स्विच आफ मिला। बार बार ट्राई करती रही। न जाने कितनी बार मिलाया पर स्विच आप ही था। लैंड लाइन पर ट्राई किया तो उनके पर्सनल नम्बर पर कोई रिस्पांस नहीं। तभी मुझे ख्याल आया और फोन अटेंडेंट को फोन किया तो पता चला साहब सो रहे है। उसने कहा “बुखार है। कोई भी फोन लेने से मना किया है।“
“जगा दो और मेरा नाम बता दो जल्दी बात कराओ अर्जेंट है।“
“नहीं मैम, नौकरी चली जायेगी।“
“तुम बात तो कराओ। नौकरी नहीं जायेगी। हम कह रहे है।“
ईशान को जैसे पता चला मेरा फोन है, तुरंत फोन पर आये। हेलो बोलते ही उधर से आवाज़ आई, “अरे आपने याद तो किया। आपका फोन आया, जहे नसीब। ...... हुकुम करें।“
“मजाक छोड़िये ईशान ......और बात सुनिए। अगर जरुरी न होता तो कल फोन करते।“ पूरी बात और जगह बताई।
वो बोले “उस एरिया के थाने पर भेजवा दूँ ?”
“नहीं....!” चीख पड़ी, “सुनिए, आप उसे वहां नहीं भेजेंगे। आप उसे गीदड़ों के बीच से निकाल कर भेड़ियों की माँद में फेंक देंगे। आप से बेहतर कौन जानता है थाने की हकीकत। ईशान उस लड़की को आप अपने बंगले पर बुलाइए और पता पूछ कर उसके घर भेज दीजिये। ...... और हाँ उसके बाद मुझे फोन करिए कितनी भी रात हो मै इंतजार कर रही हूँ।“
“करता हूँ मै....”
फोन रख कर मै सोचने लगी कर्नल हो या सिपाही या दरोगा ……,चौदह साल की हो या चौतीस साल की......। सब इनके लिए बस गर्म गोश्त है। यह आदिम भूख है। ये गिद्ध है। बस मौका मिलना चाहिए । आधे घंटे भी नहीं हुए थे ईशान का फोन आ गया, “अरे यार तुम्हे थैंक्स। तुम न बताती तो कल तक हडकम्प मच जाता। वह कमिश्नर की बेटी है। बच्ची को घर भेज दिया। खुद माँ बाप ले गए। बहुत परेशान थे। चलो ये अच्छा हुआ आज तुमने एक नेक काम किया।“
“ईशान तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त हो..... शुक्रिया।“
“हूँ!” –लगा उधर एक मुस्कान तिर गई है। जानती हूँ बरसों से एक नरम कोना है ईशान के दिल में अपनी इस दोस्त के लिए जिसे उसने कभी ज़ाहिर नहीं किया और शायाद कभी करेगा भी नहीं। अगली सुबह के अख़बार में एक खबर छपी थी – “पुलिस का गुड वर्क.... पुलिस पेट्रोलिंग टीम ने उच्च अधिकारी की नाबालिक लड़की को नदी में कूदने से बचाया .......डिपार्टमेंट की तरफ से पुरस्कार की घोषणा।“
“ये कैसा गुड वर्क है ईशान ?” मैंने फोन पर ही पूछा था।
“तुम तो जानती हो मुझे .....उन सालों को तो आज ही सस्पेंड कर दिया मैने। अब सच तो नहीं कह सकता न यार। लड़की के पिता का भी दबाव था। फिर नौकरी का सवाल। अपने ही महकमे की बदनामी कैसे करता ......गुड वर्क ही तो था।
मै उस रात सो नहीं पाई थी। अब एक चाय पी कर सो लूँ यह सोच ही रही थी कि सेल बज उठा। संगीता थी। पूछ रही थी, “क्या हुआ? तुम बिना मिले क्यूँ चली गई? कोई बात हुई क्या?”
“नहीं। कुछ ख़ास नहीं। तू तो जानती ही है कि अब मुझ पर ज्यादा देर तक असर नहीं होता। झटक देती हूँ मै इन हादसों को। ये मर्द जात भी बड़ी कुत्ती चीज़ है। हर अकेली औरत इन्हें चाकलेट लगती है, जो इनका हाथ लगते ही पिघल जायेगी। खुराना भी उसी प्रजाति का प्राणी है। ,,,,, उसका चैप्टर बंद कर दे ,,,मै जिंदगी की जिस सडक पर अकेले चल रही हूँ, उस सडक का न आदि है न ही अंत। अगर सुकून भरी चहलकदमी है, तो कभी भागदौड़ भी। कोई सहयात्री नहीं। जरूरत है भी या नहीं ......पता नहीं! सोचती हूँ क्यूँ न इसे वक्त पर छोड़ ही दिया जाय..........!”

4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

एक और सुन्दर मील का पत्थर।

yashoda Agrawal ने कहा…

ये मर्द जात भी बड़ी कुत्ती चीज़ है। हर अकेली औरत इन्हें चाकलेट लगती है, जो इनका हाथ लगते ही पिघल जायेगी। खुराना भी उसी प्रजाति का प्राणी है। ,,,,, उसका चैप्टर बंद कर दे ,,,मै जिंदगी की जिस सडक पर अकेले चल रही हूँ,
दीदी..
सादर नमन
नर प्राणी...
चाहे वो मानव जाति का हो
या फिर पशु
एक ही वृत्ति के होते हैं
वो हो पाशविक
काफी पंक्तियो को रेखांकित किया हे मैंनें
हृदयस्पर्शी कहानी...
सादर

कविता रावत ने कहा…

रूहानी यात्रा में दिव्या शुक्ला जी कहानी पढ़वाने हेतु आभार!

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर ..।।

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