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रविवार, 11 दिसंबर 2016

2016 अवलोकन माह नए वर्ष के स्वागत में - 27




ज़िन्दगी के दावपेंच हर दिन, हर क्षण चलते हैं
विचारों की उठापटक निरंतर होती है 
शांत भाव से चलता हुआ आदमी 
शांत है या नहीं - कहना मुश्किल है !
मनुष्य की सोच अपनी परिधि से उठती रहती है और उसीमें से हम किसी एक को उठा लेते हैं प्रस्तुत करने के लिए  ... 

आज पुनः ब्लॉग और फ़ेसबुक के सम्मिश्रण के साथ है अवलोकन 


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एक नया प्रयोग..गीता सार...आज के समय के लिए..
क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे व्यर्थ डरते हो
कौन तुम्हारा भ्रष्टाचार बंद करा सकता है...
भ्रष्टाचार न तो बंद किया जा सकता है
और न ही कभी बंद होगा. बस, स्वरुप बदल जाता है
(पहले १००० और ५०० में लेते थे, अब २००० हजार में ले लेना)
कल घूस नहीं मिली थी, बुरा हुआ.
आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.
कल भी शायद न ही मिले, वो भी बुरा होगा.
नोटबंदी और नोट बदली का दौर चल रहा है...
तनिक धीरज धरो...हे पार्थ,
वो कह रहे हैं न, बस पचास दिन मेरा साथ दो..दे दो!!
फिर उतनी ही जगह में डबल भर लेना.
१००० की जगह २००० का रखना.
इस धरा पर कुछ भी तो शाश्वत नहीं..आज यह सरकार है..
हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे....का मंत्र कभी खाली नहीं जाता;;
अतः कल कोई और सरकार होगी..
वैसे भी तुम्हारा क्या गया, कोई मेहनत का पैसा तो था नहीं, जो तुम रो रहे हो...
माना कि इतने दिन छिपाये रखने की रिस्क ली मगर उसके बदले ऐश भी तो की, काहे दुखी होते हो.
(सोचो, छापा पड़ने के पहले ही सब साफ सफाई हो गई वरना क्या करते? इसी बात का उत्सव मनाओ..
अगर छापा पड़ जाता तो नौकरी से भी हाथ धो बैठते )
तुम्हें जो कुछ मिला, यहीं से मिला
जो कुछ भी आगे मिलना है, वो भी यहीं से मिलेगा.
पाजिटिव सोचो..आज नौकरी बची हुई है
वो कल भी बची ही रहेगी..
सब ठेकेदार आज भी हैं
वो सब के सब कल भी रहेंगे..
शायद चेहरे बदल जाये बस..
साधन खत्म नहीं किये हैं..बस, नोट खत्म किये हैं..
इन्तजार करो, नये छप रहे हैं..
साधन बने रहें तो नोट कल फिर छपकर तुम्हारे पास ही आयेंगे..
लेन देन एक व्यवहार है..और व्यवहार भी भला कभी बदलता है..
.
आज तुम अधिकारी हो, तुम ले लो.. कल कोई और होगा..वो ले लेगा और परसों कोई और.
कल तुम अधिकारी नहीं रहोगे
परसों तुम खुद भी नहीं रहोगे
यह जीवन पानी केरा बुदबुदा है...
और तुम इसे अमर मान बैठे हो और इसीलिए खुश हो मगन हो रहे हो.
बस यही खुशी तुम्हारे टेंशन का कारण है.
बस इसलिए तुम इतना दुखी हो...
कुछ नहीं बदलेगा..आज ये फरमान जारी हुआ है..कल नया कुछ होगा.
जिसे तुम बदलाव समझ रहे हो, वह मात्र तुमको तुम्हारी औकात बताने का तरीका है.
और खुद को खुदा साबित करने की जुगत...
आँख खोलो..जिसे तुम अपना मानते रहे और हर हर करते रहे- वो भी तुम्हारा नहीं निकला.
जीवन में हर चोट एक सीख देती है..
यही जीवन का सार है...
जो इन चोटों से नहीं सीखा..
उसका सारा जीवन बेकार है...
तो हे पार्थ ..आज इस चोट से सीखो...
अब तुम अपने घूस के रुपये को सोने को समर्पित करते चलो..
कागज को कागज और सोने को सोना समझो..
यही इस जीवन का एक मात्र सर्वसिद्ध नियम है..
अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने सीए से भी शेयर करो
वह तुम जैसों के लिए धरती पर प्रभु का अवतार है..
प्रभु को दान देने से जीवन धन्य होता है..
उसकी शरण में जाओ..
वही तुम्हारी जीवन नैय्या पार लगवायेगा..
और जो मनुष्य इस नियम को जानता है
वो इस नोटबंदी और काला धन को ठिकाने लगाने की टेंशन से सर्वदा मुक्त है.
ॐ शांति...




कभी अपने अस्तित्व के इर्दगिर्द 
देवत्व का आभामंडल 
अनुभव किया है तुमने...?
कभी गहन श्यामल वस्त्रों में लिपटी
किसी गौरांगी योगिनी
के ऊर्जा क्षेत्र से टकराए हो...?
कभी अपनी अहंकारी चेतना को
वैराग्य की पावनता में
विलुप्त किया है...?
यदि नहीं
तो नव-पल्लवित प्रज्ञा-प्राचीर अतिक्रमित
मूक प्रेम के जगत में आओ...
एक मोहक मुस्कराहट वाली
मधुर-भाषिणी अभिजात्यवर्गीय आदरणीया
मध्यवयी महिला के
सानिध्य में समय बिताओ..
तब तुम जान पाओगे
कैसे किसी समयहीन, अहमहीन,
दिव्याराधना में
मन, प्राण, चेतना अर्थ खो बैठते हैं
और पावन प्रेम की मुग्धता में लुप्त हो जाते हैं.
वहाँ
देवत्व का आभामंडल,
योगिनी की ऊर्जा,
वैराग्य का आनंद
सब कुछ है...
और संभवतः "मैं"पन के निस्तारण का
यही प्रारंभ बिंदु है.

2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर चयन।

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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