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सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

समय की बर्बादी या सदुपयोग - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक बडी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी, लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहाँ आकर समोसे खाया करते थे।

एक दिन कंपनी के एक मैनेजर समोसे खाते खाते समोसेवाले से मजाक के मूड मे आ गये।

मैनेजर साहब ने समोसेवाले से कहा, "यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छे से maintain की है, लेकिन क्या तुम्हे नही लगता के तुम अपना समय और टैलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो.? सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी मे काम कर रहे होते तो आज कहा होते.. हो सकता है शायद तुम भी आज मैंनेजर होते मेरी तरह.."

इस बात पर समोसेवाले गोपाल ने बडा सोचा, और बोला, " सर ये मेरा काम अापके काम से कही बेहतर है, 10 साल पहले जब मै टोकरी मे समोसे बेचता था तभी आपकी जाॅब लगी थी, तब मै महीना हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी १० हजार।

इन 10 सालो मे हम दोनो ने खूब मेहनत की..
आप सुपरवाइजर से मॅनेजर बन गये.
और मै टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुँच गया.
आज आप महीना ५०,००० कमाते है
और मै महीना २,००,०००

लेकिन इस बात के लिए मै मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ।

ये तो मै बच्चों के कारण कह रहा हूँ।

जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाई पर धंधा शुरू किया था, मगर मेरे बेटे को यह सब नही झेलना पडेगा।

मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी, मैने जिंदगी मे जो मेहनत की है, वो उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे। जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे।

अब आपके बेटे को आप डाइरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नही बिठा सकते ना.. उसे भी आपकी ही तरह जीरो से शुरूआत करनी पडेगी.. और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुच जाएगा जहाँ अभी आप हो।

जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहा से और आगे ले जाएगा... और अपने कार्यकाल मे हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगा..

अब आप ही बताइये किसका समय और टैलेंट बर्बाद हो रहा है ?"
मैनेजर साहब ने समोसेवाले को २ समोसे के २० रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहाँ से खिसक लिये.......
 
अब इस किस्से से हासिल हुए सबक के बारे मे सोचते हुए आइये चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर ... 

सादर आपका

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

जब से तुझे देखा ...

आवाज़ दो हम एक हैं - जाँ निसार अख़्तर

पत्नीं मनोरमाम देहि

आदमी एकम आदमी हो और आदमी दूना भगवान हो

शोक नही करना

ग़ज़ल सम्राट स्व ॰ जगजीत सिंह साहब की पंचम पुण्यतिथि

पागल-लघुकथा

बहुत दिनों की बात है..

कुछ नये बदलाव आ रहे हैं , देखिये , पढिये और समझिये

चूके सुधार के बड़े अवसर से

'Sand Art'- बरहरवा में (दुर्गापूजा'2016)

 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आज्ञा दीजिये .... 

जय हिन्द !!!

9 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

क्या समोसे मारे हैं हाहा । बहुत सुन्दर प्रस्तुति शिवम जी और 'उलूक' की रेल बकबक के पहाड़े को जगह देने के लिये आभार भी ।

Devendra Gehlod ने कहा…

बहुत सच्ची बात है ।
जखीरा को शामिल करने हेतु धन्यवाद ।
और आपके इस कार्य को साधुवाद ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

The webpage at http://www.jakhira.com/2016/10/aawaz-do-hum-ek-hai.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+Jakhira+%28Jakhira%29 might be temporarily down or it may have moved permanently to a new web address.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जोशी सर लिंक काम कर रहा है, पुनः कोशिश करें।
वैसे देवेंद्र गहलोद जी का कमेंट भी यह गवाही दे रहा है कि उनकी पोस्ट सक्रिय है और बुलेटिन में शामिल किये जाने की सुचना उन तक पहुँची है।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जोशी सर लिंक काम कर रहा है, पुनः कोशिश करें।
वैसे देवेंद्र गहलोद जी का कमेंट भी यह गवाही दे रहा है कि उनकी पोस्ट सक्रिय है और बुलेटिन में शामिल किये जाने की सुचना उन तक पहुँची है।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सभी लिंक खुले पता नहीं जखीरा क्यों नहीं खुल रहा है अभी भी ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

This site can’t be reached

www.jakhira.com’s server DNS address could not be found.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जोशी सर यहाँ यह पोस्ट बड़े आराम से खुल रही है ... कोई भी दिक्कत नहीं है |
सादर|

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

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