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मंगलवार, 5 जुलाई 2016

खतरनाक क्या है !?




खतरनाक क्या है !? 
वह जिससे हम डर जाते हैं अचानक 
या जो धीरे धीरे हमारा अस्तित्व मिटाता है ? ....


दोनों की अपनी
बूंदे तो फनकार हुईं
धानी चुनरिया
हाथ की लाली
चमकी बिंदिया
तारों वाली
जब जब आता सावन
गोरी तेरा रूप लगे है
पार्वती सा पावन

आबशारों की सदा-ए-गश्त में
क़तरा-ए-शबनम पे छा जाये जुनूँ
इश्क-ए-सादिक़ वो मुझे
नायाब देते हैं ..
मेरी यादों की सरहद पर 
वो आकर थाम लेते हैं ..

2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।

कविता रावत ने कहा…

बढ़िया बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

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