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मंगलवार, 1 मार्च 2016

बुत यूँ ही साथ चलते हैं



मैंने कुछ बुत बनाये थे अपनी अनकही सुनाने के लिए 
.... जाने कब वे जी उठे और मेरा अनकहा दर्द बन कहीं और चल दिए !

बुत यूँ ही साथ चलते हैं 
साथ होकर भी दूर होते हैं  ... 

3 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया मिली-जुली बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

यादों के सफर मे कोई तो साथी हो ... अब वो यह बुत ही सही ... तो यही सही !!

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