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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

डरो ... कि डरना जरूरी है ...

सभी ब्लॉगर मित्रों को राम राम....

आज के परिवेश में विष्णु जी की ये कविता बहुत सार्थक प्रतीत होती है.........
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो
सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था
देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे
सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें
पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो
लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी
डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर!
- विष्णु खरे

एक नज़र आज के बुलेटिन पर









आज की बुलेटिन में बस इतना ही मिलते है फिर इत्तू से ब्रेक के बाद । तब तक के लिए शुभं।

3 टिप्पणियाँ:

Barthwal ने कहा…

हाँ किरण डरना जरुरी है ... आज कुछ ऐसा होता प्रतीत होता है ..
शुक्रिया 'मेरा चिंतन' की पोस्ट शामिल करने हेतू ... शुभम

Unknown ने कहा…


मेरी 'जिन्दगी में काश मैंने' की पोस्ट शामिल करने हेतु धन्यवाद

Guzarish ने कहा…

शुक्रिया मेरी रचना शामिल करने के लिए

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