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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

तुष्टिकरण के लिए देश-हित से खिलवाड़ उचित नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
तुष्टिकरण के चलते मानसिक सोच किस कदर नीचे गिर जायेगी इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता जा रहा है. एक छात्र की आत्महत्या के बाद आग पकड़ती राजनीति में किसी को उसका आतंकी की फाँसी का समर्थन करना, उसकी फाँसी के बाद घर-घर में आतंकी पैदा होने जैसा बयान नहीं दिखा. इससे आगे बढ़ते हुए जेएनयू में एक आतंकी को शहीद घोषित करते हुए देश-विरोधी प्रदर्शन किया जाता है, कश्मीर की आज़ादी, देश की बर्बादी के नारे लगाये जाते हैं.  जिस इशरत जहाँ को गर्व से अपने प्रदेश की बेटी बता कर सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया गया था, उसे लश्कर की फिदायिन बताता जा रहा है. राजनीति में व्यक्तित्व गिरावट का दौर लगातार जारी है. विद्रूपता ये है कि इस गिरावट में साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, कलाकार, बुद्धिजीवी आदि भी शामिल हो गए हैं. किसी एक व्यक्ति की मौत पर देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन करते हुए लामबंद होना और किसी आतंकी की फाँसी पर उसके समर्थन में खड़े हो जाना; सरकार के विरोध के लिए किसी की मौत को धर्म, जाति के खाँचे में फिट कर देना तो सत्ता की चाह में पड़ोसी देश में जाकर केन्द्रीय सत्ता को गिराने की बात करना. व्यक्तियों को, धर्म को, जाति को महज वोट-बैंक समझते रहना; कुर्सी पाने की खातिर सही-गलत का निर्णय करने में अक्षम सिद्ध हो जाना; एक व्यक्ति का विरोध करते-करते देश का विरोध करने लगना आखिर मानसिक दीवालियेपन का ही द्योतक है.

मन बहुत-बहुत व्यथित है. कल्पना करिए उस जलालत की जो इन कथित बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों के बयानों के बाद सम्बंधित व्यक्तियों को होती होगी. बिना जाने-सोचे एक आतंकी को अपनी बेटी बना लेना; महज विरोध की खातिर एक आतंकी को शहीद घोषित कर देना; केन्द्रीय सत्ता के विरोध के चलते मौत पर राजनीति करने लगना; अकारण झुण्ड सा बनाकर देश की सम्पूर्ण व्यवस्था को धता बताते हुए देश-विरोधी हरकतों में लिप्त हो जाना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. अब समय आ गया है कि बात करने के स्थान पर कुछ सार्थक काम किया जाये. देश-विरोधी हरकतों में लिप्त लोगों पर सरकार किस तरह से कार्यवाही करती है, ये उसकी विषयवस्तु है मगर हम नागरिकों को भी अब कार्यवाही करने के लिए उठना होगा, एकजुट होना होगा. पूर्वाग्रह से रहित होकर ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करना ही होगा, करना ही चाहिए. 



सियाचिन ग्लेशियर पर हुए हादसे में अद्भुत जीवटता दिखाने वाले लांस नायक हनुमंथप्पा को विनम्र श्रद्धांजलि सहित आज की बुलेटिन का अवलोकन करते हुए विचार करिए कि आप क्या कर सकते हैं?

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7 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
लांस नायक हनुमंथप्पा को विनम्र श्रद्धांजलि!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बड़ा कन्फ्यूजन है । हम अपने छोटे छोटे पापों पर घर से ही पर्दा डाल कर निकलते हैं । हम से कन्फ्यूज नहीं होना है । हम मतलब मैं बस मैं । देश में हो रहे पापों पर किसी का जनाजा निकालते हैं हम । फिर हम मतलब मैं । ये हमारी खासियत है । अरे जब भी हम लिखा दिखता है मैं समझ लीजियेगा प्लीज अपने पर मत लीजियेगा ।

रोज देखता हूँ मरा हुआ मैं खुद को अपनी गली में
किसने मारा होगा मुझे देश से पूछता हूँ मैं ।

Kewal Ram ने कहा…

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया

केवल राम ने कहा…

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"तुष्टिकरण के लिए देश-हित से खिलवाड़ उचित नहीं..."

१००% सहमत |

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया पोस्ट,अच्छे लिंक के लिये बधाई।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया पोस्ट,अच्छे लिंक के लिये बधाई।

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