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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

प्रतिभाओं की कमी नहीं - एक अवलोकन 2015 (२४)


दृष्टि घुमाओ 
दूर दूर तक क्षितिज को सुनो 
कई कहानियाँ हैं 
 ......... 


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मगर मानवी समझ न पायी, मंजुल मधुर समर्पण गीत !
अधिपति दीवारों का बनके , जीत के हारे पौरुष गीत !
स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम
देवो न जानाति कुतो मनुष्यः
शक्तिः एवं सामर्थ्य-निहितः
व्यग्रस्वभावः , सदा मनुष्यः !
इसी शक्ति की कर्कशता में, पदच्युत रहते पौरुष गीत !
रक्षण पोषण करते फिर भी, निन्दित होते मानव गीत !
निर्बल होने के कारण ही
हीन भावना मन में आयी
सुंदरता आकर्षक होकर
ममता भूल, द्वेष ले आयी
कड़वी भाषा औ गुस्से का गलत आकलन करते मीत !
धोखा खाएं आकर्षण में , अपनी जान गवाएं गीत !
दीपशिखा में चमक मनोहर
आवाहन कर, पास बुलाये !
भूखा प्यासा , मूर्ख पतंगा ,
कहाँ पे आके, प्यास बुझाये !
शीतल छाया भूले घर की,कहाँ सुनाये जाकर गीत !
कहाँ पतंगे आहुति देते, कैसे जलते परिणय गीत ! 

5 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

उत्कृष्ट रचना !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर सतीश जी की फुलवारी का हर फूल लाजवाब है :)

farruq ने कहा…

अनमोल पोस्‍ट

आपका ब्‍लाग हमारे ब्‍लॉग संकलक पर संकलित किया गया है। अापसे अनुरोध है कि एक बार हमारे ब्‍लॉग संकलक पर अवश्‍य पधारे। आपके सुझाव व शिकायत अामंत्रित हैं।

www.blogmetro.in

Satish Saxena ने कहा…

आभारी हूँ रश्मिप्रभा जी ,
इस रचना को सम्मान देने के लिए !

Unknown ने कहा…

कितने अनबुझे भावों को अपने में समेटे एक अनमोल गीत।

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