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गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

प्रतिभाओं की कमी नहीं - एक अवलोकन 2015 (१७)



सरहदें विचारों की भी होती हैं 
साल दर साल रचनाकार अपनी कलम के साथ 
आंतरिक,बाह्य आतंक से लड़ता है 
कुछ कहता है 
अपने एकांत की पदचाप के साथ  ... 

गुंजन झांझरिया 

चलते रहना ही होगा।

उम्र भर सारे दुःख दर्द और तकलीफ,
लिखते रहो कविता में गढ़कर,
अपना नज़रिया,
और कभी कभार 
समाज के हालात भी,
कभी जब गलती से ईश्वर दे इतनी ख़ुशी,
कि शब्द ना हो तुम्हारे पास,
चिन्हित कर दो उसे भी,
कविता बनाकर,
और फिर करते रहो मंथन,
मैं हर मंथन में,
खुद को खरा सोना पाती हूँ,
फिर भी समझ से पर है मेरे,
ये तकलीफ और ख़ुशी का चक्र,
सुना तो यही था,
हर ख़ुशी के बाद गम,
हर गम के बाद ख़ुशी आती ही है,
पर जब गम का अंतराल बढ़ता ही जाए,
और कोई ख़ुशी मनाने का मौका आपके हाथ लगे ही ना,
तब कभी कभी लगने लगता है,
कि वो ख़ुशी अब इतिहास ही गई है,
उसका भविष्य बनना मुमकिन नहीं, 
ये जानते हुए भी कि नामुमकिन कुछ भी नहीं,
डर जाती हूँ,
ख़ुशी को दरवाजे पर आता देख,
कि ना जाने अपने साथ कितनी तकलीफें समेट कर लायी होगी,
सहम जाती हूँ क्योंकि कभी इतने लंबे अंतराल के लिए सामना नहीं किया बुरे वक़्त का,
पर खुद पर भरोसा कायम रखना ही जीवन है,
खुद के पैरों को मजबूत करते ही रहना होता है उम्र भर,
ताकि भूल ना जाए आगे बढ़ना,
चलना हमेशा याद रहे,
इसके लिए 
उसे हमेशा याद रखने का अभ्यास 
किया जाता रहना चाहिए।
चलते रहना ही होगा।

5 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

हर गम के बाद ख़ुशी आती ही है,
पर जब गम का अंतराल बढ़ता ही जाए,
और कोई ख़ुशी मनाने का मौका आपके हाथ लगे ही ना,
तब कभी कभी लगने लगता है,
कि वो ख़ुशी अब इतिहास ही गई है,
उसका भविष्य बनना मुमकिन नहीं,
.........................
चलते रहना ही होगा।
......
गुंजन झांझरिया की सुन्दर रचना पढ़वाने हेतु आभार!

sanjeevrepswal ने कहा…

थैंक यू वैरी मच

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जीवन चलने का ही नाम है |

kuldeep thakur ने कहा…

सुंदर रचना....
अति सुंदर....

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर !

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