Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

प्रतिबन्ध तो ज़रूरी है




जैसा देखोगे, सोचोगे,वही करोगे
प्रतिबन्ध तो ज़रूरी है …
इंसान का स्वभाव होता है कि वह अपनी गलतियों को नजरअंदाज करता है, किंतु दूसरों में बुराई ढूंढने में देर नहीं करता। दरअसल, कड़वा सच यह है कि ऐसा होने के पीछे अपने ही अंदर उन दोषों का होना भी होता है जो अक्सर हम दूसरों में खोजते रहते हैं।
दूसरों में कमी, बुराई के बारे में सोचते रहने, सुनने या देखने पर हमारा साफ मन भी बुरे भावों से भर जाता है, जिससे कहीं न कहीं हमारे बोल, व्यवहार व काम में भी बुरे बदलाव आते हैं।
बार-बार खामियां ढूंढने से किसी के प्रति मन में प्रेम का अभाव होता है और नफरत घर करने लगती है। इससे आखिरकार दोष देखने वाले की ही हानि होती है। और संबंध भी ख़त्म हो जाते हैं -



2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सही बात जैसा देखते हैं वैसा सोचते हैं :)
सुंदर प्रस्तुति ।

Maheshwari kaneri ने कहा…

सही.सुन्दर प्रस्तुति

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार