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मंगलवार, 30 जून 2015

दृष्टि मेरी भी जाती है दूर तलक



क्यूँ ?
क्यूँ मेरी तमाम उपलब्धियों के बावजूद 
मुझे कैद करते हो ?
पंख मेरे पास भी हैं सपनों के 
दृष्टि मेरी भी जाती है दूर तलक 
मेरे पैरों की रुनझुन को 
क्यूँ बेड़ियों में बाँधते हो ?
कहने को मैं माँ हूँ 
बेटी हूँ 
बहन हूँ  
पत्नी हूँ 
लेकिन  …………………………


6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

उड़ना चाहते हुऐ
भी उड़ा नहीं जाता है
पंख फड़फड़ा कर
रह जाते हैं बहुत
सारे पंछी
एक लम्बे समय
तक नहीं उड़ पाने से
उड़ना भूला ही जाता है ।

सुंदर बुलेटिन ।

निर्मला कपिला ने कहा…

ममुझको चैहिये प्यार और सम्मान
नहीं चैहिये सिर्फ मकान

निर्मला कपिला ने कहा…

ममुझको चैहिये प्यार और सम्मान
नहीं चैहिये सिर्फ मकान

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया चिंतनपरक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

Unknown ने कहा…

pathniy or achhi panktiyan...narimn ko darshati hui...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"दृष्टि मेरी भी जाती है दूर तलक ..."

इस मे भला क्या शक ... आप की नज़र है ही तेज़ ... :)

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