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कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 30 जून 2015

दृष्टि मेरी भी जाती है दूर तलक



क्यूँ ?
क्यूँ मेरी तमाम उपलब्धियों के बावजूद 
मुझे कैद करते हो ?
पंख मेरे पास भी हैं सपनों के 
दृष्टि मेरी भी जाती है दूर तलक 
मेरे पैरों की रुनझुन को 
क्यूँ बेड़ियों में बाँधते हो ?
कहने को मैं माँ हूँ 
बेटी हूँ 
बहन हूँ  
पत्नी हूँ 
लेकिन  …………………………


सोमवार, 29 जून 2015

मटर और पनीर - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक आदमी को चिकन - मटन खाने का बहुत शौंक था और वो हर शुक्रवार को चिकन और मटन बनाता था लेकिन जिस मोहल्ले में वो रहता था वहां उसके सभी पडोसी बड़े धार्मिक किस्म के थे और उन्हे उनके धर्म गुरु ने शुक्रवार के दिन चिकन और मटन खाने के लिए मना किया था। लेकिन अपने पडोसी के घर से आने वाली चिकन और मटन की खुशबू उन को बहुत विचलित करती थी। इसलिए उन्होने आखिर अपने धर्म गुरु से इस बारे में बात की।

धर्म गुरु उस आदमी से मिलने के लिए उसके घर आया और उसने उसे भी धर्म परिवर्तन करने की सलाह दी। उस धर्मगुरु के और अपने पडोसियों के बहुत मनाने और समझाने बुझाने के बाद आदमी रविवार को उनके धार्मिक स्थल में उनकी प्रार्थना सुनने चला गया। फिर अचानक उस धर्म गुरु ने उस आदमी के शरीर पर पवित्र जल छिडका और कहा, ''तुम जन्म से जो थे और जो भी बन कर बडे हुए उसे भूल जाओ, अब तुम हमारे पंथ के  हो और तुम पर भी वो सभी नियम लागू होते है जो तुम्हारे बाकी पड़ोसीयों पर लागू होते है !!"

उस आदमी के सभी पडोसी बहुत खुश थे - लेकिन सिर्फ अगला शुक्रवार आने तक ही।

अगले शुक्रवार की रात फिर से आदमी के घर से चिकन और मटन कबाब की खुशबू सारे मोहल्ले में फैल गई। पडोसियों ने तुरंत धर्म गुरु को बुलाया। धर्म गुरु जब आदमी के घर के पिछवाडे से उसके घर में दाखिल हुए और उसे डांटने के लिए तैयार ही थे, तब वे अचानक रुक गए और आश्चर्य से आदमी की तरफ देखने लगे।

वो आदमी छोटी सी पानी की बोतल पकडकर खडा था। उसने वह पानी चिकन और मटन पर छिड़का और बोला, "तुम जनम से चाहे चिकन और मटन थे, और चिकन और मटन बन कर ही बडे हो गए, लेकिन अब मटर और पनीर हो।"

आशा है आप सब तक इस कथा का संदेश पहुँचा होगा !!

सादर आपका
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किताबों की दुनिया -105

नीरज गोस्वामी at नीरज 

माँ

अनामिका की सदायें ...... at अनामिका की सदायें ... 
 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

रविवार, 28 जून 2015

स्कूल चले हम… ब्लॉग बुलेटिन

ज सुबह उठने में देर हो गयी और फिर भारत और अमेरिका के समय के अंतर के कारण आज का रविवारी बुलेटिन थोड़ा देर हो गया लेकिन हम आ गए आज का बुलेटिन लेकर… मित्रों यह रविवार कई लोगों के लिए स्पेशल है क्योंकि गर्मियों की छुट्टियों का अंतिम रविवार है यह, बस इसी हफ्ते स्कूल खुल जायेंगे, सभी बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करेंगे, नई नई क्लास, नई नई किताबें, नए नए दोस्त, नए शिक्षक, एक नया साल.. है न।

आज हम आपको दिखाते हैं हमारे देश में कुछ बच्चे कैसे स्कूल जाते हैं, संसाधनों के अभाव में किस प्रकार संघर्ष करते हैं लेकिन फिर भी स्कूल जाने और शिक्षा ग्रहण करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ते हैं। 










अंत में यह चित्र, यह भारत का नहीं है.. यह चित्र एवार्ड विनिंग फोटोग्राफर अम्मार अवाद ने इज़राइली और फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान अपने आस पास की स्थिति से बेखबर एक लड़की के स्कूल जाने की फोटो है। इस फोटो ने दुनिया भर में बहुत हलचल मचाई थी.. 


सो मेरे प्यारे बच्चों स्कूल जाओं और खूब पढ़ो और खूब बढ़ो.… 

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आशा है आपको आज का रविवारी बुलेटिन अच्छा लगा होगा, मिलते हैं फिर से अगले रविवार को तबतक के लिए आप सभी को शुभकामनाएं। 

जय हिन्द 
देव 

शनिवार, 27 जून 2015

काम वाला फ़ोन - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज आपको एक छोटी सी कहानी सुना रहा हूँ ... यह कहानी हमारे आपके बीच से ही उठाई गई है !!
फ़ोन का बहुत अधिक बिल आने पर एक आदमी ने अपने घर के सभी लोगों को बुलाया और कहने लगा...

आदमी: "देखो, मुझे इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नही हो रहा है कि फ़ोन का इतना अधिक बिल कैसे आ सकता है? जबकि मैं तो सारे फ़ोन अपने ऑफिस के लैंडलाइन फ़ोन से करता हूँ।"

पत्नी: "बिल्कुल, मैं भी! मैं तो कभी भी इस फ़ोन से फ़ोन नही करती क्योंकि मेरे ऑफिस मे भी लैंडलाइन फ़ोन है।"

बेटा: "अरे तो आप लोग क्या समझते है... मेरी कंपनी वालों ने तो मुझे ऑफिस मे लैंडलाइन के साथ साथ मोबाइल भी दिया है वो भी बिल्कुल लेटेस्ट वाला ... मैं तो उसी से फ़ोन करता हूँ।"

अब सब की नज़र गई नौकरनी पर ... वो इतनी देर से इस सब की बातें सुन रही थी ... 

नौकरानी: तो इसमें दिक्कत क्या है साहब? सभी अपने काम वाले फ़ोन से ही फ़ोन करते हैं।

सादर आपका
शिवम् मिश्रा 
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दुर्गा का अपमान

Rewa tibrewal at प्यार

जय हो जय हो जय हो

सुशील कुमार जोशी at उलूक टाइम्स
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 26 जून 2015

एक ज़ीरो, ज़ीरो ऐण्ड ज़ीरो - १००० वीं बुलेटिन

सलिल वर्मा
औफिस में जरूरी कागज को जब नत्थी करने जाएँ त स्टैप्लर में पिन खतम हो जाये, कोनो अर्जेण्ट काम करने बैठिये अऊर माथा खाने वाला कस्टमर आकर समय बरबाद कर जाये, कहीं पार्टी में जाना हो अऊर मैचिंग सर्ट का बटन टूटा निकल जाये, सबसे सस्ता फ्लाइट का टिकट कल बुक करेंगे सोचकर टाल दें अऊर अगिला दिन दाम डेढ़ गुना बढ़ जाए, ट्रेन का कनफर्म टिकिट बुक करते हुये पेमेण्ट करने के बाद आर.ए.सी. हो जाये, अपना सब पसन्दीदा सिनेमा का डीवीडी रखा रहे अऊर देखने का समय नहीं मिल पाये, कोनो उपन्यास का दस पन्ना पढ़ लेने के बाद भी माथा में कुछ नहीं जाये, दोस्त लोग का फोन अऊर मेल का जवाब अब देते हैं-अब देते हैं सोचते-सोचते हफ्ता निकल जाये, करीबी लोग के बच्चा के सादी में सामिल नहीं होना त दूर, फोन करने का बात भी दिमाग से निकल जाये, ब्लॉग जगत में सम्मान देने वाला साथी ब्यापारी बन जाये अऊर फोन काटने लगे अऊर फेसबुक-ब्लॉग पर केतना पानी बह गया इसका खबर भी न मिल पाये त समझिये किस्मत बदला लेने पर उतारू है अऊर सजा पाने वाला सख्स का नाम है – सलिल वर्मा. ओही सलिल वर्मा, जो एक जमाना में चला बिहारी ब्लॉगर बनने के नाम से ब्लॉग लिखते थे अऊर एहीं पर बुलेटिनो छाप दिया करते थे.

अब एही दिन देखना बाकी था कि अपना परिचय हमको खुद देना पड़ रहा है. आप लोग में से केतना लोग तो एही सोच रहे होइयेगा कि कहाँ से ई जाहिल गँवार को धर लाया है बुलेटिन का लोग. बाकी हम आज कुच्छो नहीं कहेंगे अऊर बुरा भी नहीं मानेंगे. एगो सायर कहिये गये हैं कि  आँख से दूर न हो, दिल से उतर जाएगा.  त भाई लोग दिल से मत उतारिये, काहे से कि आँख से दूर होने का कारन हम बताइये दिये हैं.

एकीन मानिये कि जेतना कहे हैं मुसीबत उससे कहीं जादा है. लेकिन ऊ का है कि (हम केतना बार कहे हैं) कि दुनिया में अपने आँसू का बिग्यापन कभी नहीं करना चाहिये, मार्केट नहीं है आँसू का. हर अदमी अपना कोटा लिये घूम रहा होता है. फरक एतने है कि कोई तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो टाइप रहता है, तो कुछ शगुफ़्ता लोग भी टूटे हुये होते हैं अन्दर से टाइप का होता है.

हमको पता है कि मायूसी का बात बेकार है. टाइम कहाँ है लोग के पास. आपका तकलीफ का भैलू दुनिया के नजर में है - बिग जीरो. हम एही जीरो में खुस रहते हैं. काहे कि जब जीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आई. अब देखिये न 13 नवम्बर 2011 को जो ब्लॉग बुलेटिन का पोस्ट नम्बर 1 था ऊ 24 नवम्बर 2011 को 10 हो गया. 01 मार्च 2012 को हम लिखे पहिला पोस्ट, पोस्ट नम्बर 100. अऊर आज यानि 26 जून 2015 को हम लिख रहे हैं 1000 वाँ पोस्ट. अब हमरा कंट्रीब्यूसन त जीरो रहा. बीच बीच में आधा सैकड़ा अऊर सैकड़ा वाला पोस्ट भी लिखे हम. एतना सारा पोस्ट लिखने के बाद लगा कि बुलेटिन का सब जीरो हमरे जिन्नगी में भी उतर आया है.

दुआ कीजिये कि हम सलामत रहें अऊर 10000 वाँ पोस्ट भी हम ही लिखें. एगो माफ़ी भी बनता है तमाम दोस्त लोग से कि बहुत जल्दी सब दिक्कत-परेसानी मिटाकर हम जल्दी हाजिर होते हैं अऊर ब्लॉग पर अपना टिप्पणी बिखरते हैं.

अंत में आप सब लोग का सुभकामना का इच्छा, अपने गैरहाजिरी का माफी अऊर हज़ारवाँ पोस्ट पूरा करने के लिये ब्लॉग-बुलेटिन को बधाई का कामना लिये, अनुज शिवम को लिंक्स सजाने का अनुरोध करते हैं.

आपका

सलिल वर्मा 
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नीचे दिये सभी चित्रों मे एक ब्लॉग पोस्ट का लिंक लगा हुआ है ... चित्र पर चटका लगते ही आप उस ब्लॉग पोस्ट को पढ़ पाएंगे |

डायरी के पन्नें...६

चंबल के बीहड़ और पुरानी यादें ....


बंगाली फिश करी


झुरमुट में दुपहरिया.....धर्मवीर भारती


इकाई दहाई नहीं सैकड़े का अंतिम पन्ना


तलब...हाँ, वही तलब !


जरूरत संकल्प शक्ति की .....


किसी वृक्ष को काटने से पहले


लहराते खेत... उँघते जंगल : देखिए वियना का आकाशीय नज़ारा !


पत्रकारों और मक्कारों में फर्क!!


२६ जून और नायब सूबेदार बाना सिंह

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पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद ... आप के स्नेह को अपना आधार बना हम चलते चलते आज इस मुकाम पर पहुंचे है और ऐसे ही आगे बढ़ते रहने की अभिलाषा रखते है |

गुरुवार, 25 जून 2015

चालीस वर्ष बाद भी आपातकाल की छाया


२५ जून १९७५ से २५ जून २०१५, आपातकाल के चालीस वर्ष और तत्कालीन स्थितियों की याद को फिर से ताजा करने का काम किया भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के बयान ने. ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस-जिस ने आपातकाल को भोगा है वे आज भी उसकी वास्तविकता को जानते-समझते हैं किन्तु आपातकाल के बाद की जन्मी पीढ़ी, आपातकाल के आसपास जन्मी पीढ़ी ने आपातकाल को उसी नजरिये से देखा-समझा, जिस नजरिये से उसे दिखाया-समझाया गया. आपातकाल के समर्थक आज भी लोकतंत्र को रौंदने वाले उस कदम की बुराई न करते हुए उसे एक आवश्यक कदम बताते हैं. 

तत्कालीन स्थितियों में आपातकाल लगाया जाना कितना सही या गलत था, ये चर्चा का विषय तो है ही किन्तु आडवाणी जी के बयान का मर्म समझना और संवैधानिक स्थिति का आकलन करना उससे कहीं ज्यादा आवश्यक है. आज संवैधानिक रूप से स्थितियाँ इस तरह की हैं कि सहजता से आपातकाल लागू करना किसी के लिए भी संभव नहीं रह गया है. १९७५ की पुनरावृत्ति किसी और सरकार द्वारा न की जा सके इसके लिए संविधान में ४४वें संशोधन के द्वारा कई मूलभूत परिवर्तन किये गए हैं. इनके अनुसार -
१- अब आंतरिक अशांति के आधार पर नहीं वरन केवल युद्ध, वाह्य आक्रमण और सशस्त्र क्रांति के ही आधार पर आपातकाल लगाया जा सकता है.
२- आपातकाल लगाने के लिए प्रधानमंत्री को मौखिक नहीं वरन मंत्रिमंडल का लिखित परामर्श राष्ट्रपति को देना पड़ेगा.
३- संसद के दोनों सदनों को अलग-अलग केवल एक महीने के भीतर अपने कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से आपातकाल का अनुमोदन करना होगा जो केवल छह माह के लिए ही वैध होगा.
४- इसके अलावा लोकसभा के दस फ़ीसदी सदस्य आपातकाल समाप्त करने के लिए सदन की बैठक बुला सकते हैं और केवल साधारण बहुमत से आपातकाल समाप्त करवा सकते हैं.

इन संवैधानिक स्थितियों के आलोक में वर्तमान में आपातकाल लगाना आसान नहीं रह गया है. आडवाणी जी की आशंका किस तरह के माहौल को देखकर बनी ये अलग बात है किन्तु उनके बयान ने देश में आपातकाल पर चर्चा आरम्भ करवा दी, जिससे आपातकाल को जानने-समझने का अवसर मिलेगा, नई पीढ़ी के लिए कम से कम ये नया और शुभ संकेत है.

आइये आपातकाल की आशंका, वास्तविकता के बीच चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर, जिसे विशेष रूप से आपातकाल के सन्दर्भ में सजाया गया है. शेष सही-गलत का निर्णय आपका भी महत्त्वपूर्ण है. लोकतंत्र सदैव सुदृढ़, समृद्ध बना रहे, इसी कामना के साथ –

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और बुलेटिन के अंत में आपातकाल की आशंका के बीच

बुधवार, 24 जून 2015

जीना सब को नहीं आता - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज का ज्ञान :-
मौत सब को आती है बस जीना सब को नहीं आता।

सादर आपका
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छोटी-छोटी बातें

किस राह पर चल पड़ा है यार मेरे तू बता दे...

मन की गलियों को टोहती स्मृतियाँ

सोच ...

अनुलता ....... रूपांतरण

प्यार इतना किया हमने................फाल्गुनी

अँधेरे का रंग

दाढ़ी बनाएं, मूड़े नहीं

याद आता है

हनीमून के भूगोल का सिलेबस (पटना २०)

इस पार हम रहे

खेल और उसका खेला ...

ये ज़रूरी तो नहीं

बहुत दिनन में गाँव गये थे

++तुम वो जो मैं चाहुँ ++

डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी की ६२ वीं पुण्यतिथि

शिमला, सोनिया गांधी और सुविचार

कलम...

लड़कियाँ

चैतन्य वह अचेतन संसार........

इवनिंग डायरी - ४ - मेरा पहला ब्लॉग

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 23 जून 2015

श्रद्धांजलि.... ब्लॉग बुलेटिन

दुखःद समाचार है कि हमारे अनन्य साथी और हिन्दी ब्लॉग जगत के ब्लॉगरों के संकटमोचन बीएस पाबला जी के पिताजी का कल दिनांक 22 जून 2015 की रात 10.30 PM पर देहावसान हो गया। वे 76 वर्ष के थे।

पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से आदरणीय बाबू जी को विनम्र श्रद्धांजलि और शत शत नमन |

ॐ शांति ... शांति ... शांति ...

एक जौहरी हीरे को तराशता है,




प्रेम अधिकतर इकतरफा होता है, रिश्ते भी बन जाते हैं, सुखांत भी होता है . प्रेम एक अपवाद है - उसका अकेले चलना उसकी नियति कहें या शान, पर वह चलता अकेले है . प्रेम में शरीर, या शिकायत नहीं होती ....और आरम्भ ही शरीर हो तो वह स्थायी नहीं होता . प्रेम एक कल्पना है - जिसमें प्रेम के अतिरिक्त कुछ नहीं होता - दुनियादारी तो बिल्कुल नहीं . और जब दुनियादारी न हो तो प्रेम पागलपन कहलाता है . 
प्रेम प्रेमपात्र को लेकर, उसकी खुशियों को लेकर अति संवेदनशील होता है … इस प्रेम में आँसू भी सुख होते हैं ! 
पहली दृष्टि प्रेम है,पूर्वजन्म का रिश्ता प्रेम है .... यह एक क्षणिक बातचीत का क्षणिक अंश है, सबसे बेखबर प्रेम अपनेआप में सम्पूर्ण है। 
एक जौहरी हीरे को तराशता है, - उसे लेना सबके सामर्थ्य की बात कहाँ ! और टुकड़ों में विभक्त हीरे के बन जाते हैं जेवर सबके लिए - यही फर्क है प्रेम और आकर्षण का !!



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सोमवार, 22 जून 2015

नारी शक्ति - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक महिला ख़रीदारी करने शॉपिंग मॉल मे गई कैश काउंटर पर पेमेंट करने के लिए उसने पर्स खोला तो दुकानदार ने महिला के पर्स में टीवी का रिमोट देखा, दुकानदार से रहा नहीं गया उसने पूछा, "आप टीवी का रिमोट हमेशा अपने साथ लेकर चलती हैं?"

महिला : नहीं, हमेशा नहीं, लेकिन आज मेरे पति ने खरीदारी के लिए मेरे साथ आने से मना कर दिया था।

दुकानदार हंसते हुए बोला, "मैं सभी सामान वापस रख लेता हूँ आप के पति ने आपका क्रेडिट कार्ड ब्लॉक कर दिया हैं।

शिक्षा: अपने पति के शौक का सम्मान करें।

कहानी अभी भी जारी है;

महिला थोड़ी हँसी फिर अपने पर्स से अपने पति का क्रेडिट कार्ड निकला और सभी बिल की पेमेंट कर दी। पति ने पत्नी का कार्ड ब्लॉक कर दिया था पर अपना कार्ड नहीं।

शिक्षा: एक नारी की शक्ति को कभी कम नहीं समझना चाहिए।

सादर आपका
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मुझे चट्टानी साधना करने दो

सुनामी की लहरें

अर्थशास्‍त्र द्वारा सरकारी आकलन

नींद रात भर क्यों नहीं आती ?

एक मुक्तक

रात रानी

सरहद पार चली आई हूं...

पिर्तु दिवस पर नमन ।।

अहमद फ़राज़ एक महान शायर

मानस मंथन से------

संघी *%गी एक दो

बसाने में एक बगिया ,कई जीवन लग जाते हैं .

योग नृत्य

स्व॰ डॉ. हेडगेवार जी की ७५ वीं पुण्यतिथि

सच्ची कहानी : चाय वाला "छोटू"

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 21 जून 2015

क्यों न रोज़ हो पितृ दिवस - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

आज जून महीने का तीसरा रविवार है ... हर साल की तरह इस साल भी जून का यह तीसरा रविवार फदर्स डे के रूप मे मनाया गया ... पर अंतराष्ट्रीय योग दिवस की धूम मे कहीं दब सा गया ... पर सिर्फ एक दिन पिता को समर्पित कर क्या हम सब उस के कर्ज़ से मुक्त हो सकते है ... यही है क्या वास्तव मे हमारा संतान धर्म ??? 

कहने को तो हमारे देश में बुजुर्गो की बड़ी इज्जत है, मगर हकीकत यह है कि वे घर की चारदीवारियों के अंदर भी बेहद असुरक्षित हैं। 23 फीसदी मामलों में उन्हें अपने परिजनों के अत्याचार का शिकार होना पड़ रहा है। आठ फीसदी तो ऐसे हैं, जिन्हें परिवार वालों की पिटाई का रोज शिकार होना पड़ता है।

बुजुर्गो पर अत्याचार के लिहाज से देश के 24 शहरों में तमिलनाडु का मदुरई सबसे ऊपर पाया गया है, जबकि उत्तर प्रदेश का कानपुर दूसरे नंबर पर है। गैर सरकारी संगठन हेल्प एज इंडिया की ओर से कराए गए इस अध्ययन में 23 फीसदी बुजुर्गो को अत्याचार का शिकार पाया गया। सबसे ज्यादा मामलों में बुजुर्गो को उनकी बहू सताती है। 39 फीसद मामलों में बुजुर्गो ने अपनी बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना है।

बूढ़े मां-बाप पर अत्याचार के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं। 38 फीसदी मामलों में उन्हें दोषी पाया गया। मदुरई में 63 फीसदी और कानपुर के 60 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार का शिकार हो रहे हैं। अत्याचार का शिकार होने वालों में से 79 फीसदी के मुताबिक, उन्हें लगातार अपमानित किया जाता है। 76 फीसदी को अक्सर बिना बात के गालियां सुनने को मिलती हैं।

69 फीसदी की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जाता। यहां तक कि 39 फीसदी बुजुर्ग पिटाई का शिकार होते हैं। अत्याचार का शिकार होने वाले बुजुर्गो में 35 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें लगभग रोजाना परिजनों की पिटाई का शिकार होना पड़ता है। हेल्प एज इंडिया के अनुसार इसके लिए बचपन से ही बुजुर्गो के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। साथ ही बुजुर्गो को आर्थिक रूप से सबल बनाने के विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा।

दु:ख इस बात का है कि इस विषय पर जितनी जागरूकता समाज मे होनी चाहिए ... उतनी है नहीं ... आइये हम सब अपने अपने स्तर प्रयास करें और अपने आस पास रहने वाले बुजुर्गों को वो मान सम्मान दिलवाएँ जिस के वो हकदार हैं |

आप सभी को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎँ !!
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सादर आपका 
शिवम मिश्रा
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शीर्षकविहीन...!

पिता के लिए एक दिन ....दुनिया के हर पिता को समर्पित

~** पिता... हार्डबाउंड कवर में... बंद जैसे इतिहास मिले ! **~

पिता होने का मतलब-----

पिता महान

तुम मुझमें जिंदा हो ...

पिता माँ से नहीं होते...

पिता

पितृ दिवस पर -- मेरे पापा !

मैं हूँ ना मेरे बच्चो

हैप्पी फादर्स डे ---

पापा ही प्रेरक-शक्ति हैं ...

Happy father's day

पिता

HAPPY FATHER'S DAY !

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

शनिवार, 20 जून 2015

प्यार, साथ और अपनापन

प्रिये ब्लॉगर मित्रगण नमस्कार,

पूजा ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए और एक छोटा सा गार्डन बना लिया। पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं, नींबू के पौधे में दो नींबू भी लटके हुए हैं और दो चार हरी मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई। मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का जो पौधा गमले में लगाया था, उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी। मैंने कहा, “तुम इस भारी गमले को क्यों घसीट रही हो?” पूजा ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं। मैं हंस पड़ा और कहा अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो। इसे खिसका कर किसी और पौधे के पास कर देने से क्या होगा?"

पूजा ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है। इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।"

यह बहुत अजीब सी बात थी। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं। मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे। हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे, लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह। मां के रहते हुए जिस पिताजी को मैंने कभी उदास नहीं देखा था, वो मां के जाने के बाद खामोश से हो गए थे। मुझे पूजा के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था। लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे।

बचपन में मैं एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था। मछली सारा दिन गुमसुम रही। मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वो चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमना सा घूमती रही। सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी। आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी। बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था, अगर मालूम होता तो कम से कम दो, तीन या ढ़ेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वो प्यारी मछली यूं तन्हा न मर जाती।

बचपन में मेरी माँ से सुना था कि लोग मकान बनवाते थे और रौशनी के लिए कमरे में दीपक रखने के लिए दीवार में इसलिए दो मोखे बनवाते थे क्योंकि माँ का कहना था कि बेचारा अकेला मोखा गुमसुम और उदास हो जाता है।

मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं। आदमी हो या पौधा, हर किसी को किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है। आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिए, उसे मुरझाने से बचाइए। अगर आप अकेले हों, तो आप भी किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुरझाने से रोकिए। अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सज़ा है। गमले के पौधे को तो हाथ से खींच कर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए जरुरत होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की। अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है, जीवन मुरझा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए। खुश रहिए और मुस्कुराइए। ☺

आज की कड़ियाँ

योग दि‍वस के लि‍ए हताशासन - काजल कुमार

आज का दिन मेरी मुठ्ठी में है ,किसने देखा कल - अर्चना चावजी

ज़िंदगी की किताब - त्रिवेणी

तुझ से ही हूँ मैं - अनुपमा त्रिपाठी

पापा की हथेलियों में - सदा

खामोश नजर - डॉ. निशा महाराणा

गले - प्रियंका जैन

ये बारिश थमे ही नहीं - प्रीति सुराना

तुम्हारी याद - कालीपद "प्रसाद"

तुम और मैं - कमला घटाऔरा (सहज साहित्य)

तस्वीर - ईशा मिश्रा

आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा

नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम

लेखागार