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रविवार, 31 मई 2015

प्रेरक कथाएं :- ब्लॉग बुलेटिन

रविवार का दिन, वैसे भी हफ्ते की थकान उतारने और फिर से खुद को रिचार्ज करने के लिए होता है। आज कुछ प्रेरक कथाओं की चर्चा करते हैं..    

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एक बार एक साधु अपने शिष्यों के साथ तपस्या के लिए जा रहे थे, रास्ते में अपने शिष्यों से ज्ञान, ध्यान, ब्रम्हचर्य और एकाग्रता की बातें कर रहे थे। सभी शिष्य गुरु के साथ चलते जा रहे थे और इन शिक्षाओं को ग्रहण कर रहे थे। कई दिनों तक चलने के पश्चात उन्हें एक शांत नदी का किनारा मिला और सभी ने वहाँ विश्राम के लिए डेरा डाल दिया। उस नदी के किनारे कोई गाँव था और उस गाँव की किसी स्त्री को नदी पार करनी थी। उस स्त्री ने साधु महाराज से नदी पार करने के लिए सहायता मांगी, और साधु ने उसे सहारा देकर नदी पार करा दिया। इसके बाद साधु अपने चेलों के साथ आगे बढे और काफी समय के पश्चात साधू को ज्ञात हुआ कि उनके एक प्रिय चेले का व्यवहार थोड़ा बदल सा गया है, उन्होंने प्रेम से उसकी इस अवस्था के बारे में पूछा। चेला तो जैसे भरा बैठा था, बोला आप स्वयं ब्रम्हचर्य की बात करते हैं और स्त्री का स्पर्श करने में आपको ज़रा भी लज्जा न हुई। 

साधू महाराज उसकी बात प्रेम पूर्वक सुनते रहे फिर बोले, हे वत्स, उस स्त्री को तो मैं नदी किनारे की छोड़ आया था तुम क्यों उसे बोझ की तरह दिन भर अपनी  पीठ पर लादे लादे घूम रहे हो। चेला समझ गया की उससे भूल हो गयी है और उसने मर्म जान लिया की सेवा भाव सभी धर्मों से ऊपर है, उसकी कोई तुलना नहीं। 

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मित्रों एक और कथा सुनाता हूँ, 

एक बार महान राजा अशोक को जंगल में एक चरवाहा मिला, उस चरवाहे को चिंतन भाव से बांसुरी बजता देख, सम्राट उसके पास गए और उसका परिचय पूछा। साथ ही यह भी पूछा की आखिर तुम इतने आनंदित क्यों हो, ऐसा जान पड़ता है मानो तुम किसी राज्य के राजा के अधिपति हो, उस चरवाहे ने कहा की मैं किसी राज्य का अधिपति नहीं और मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरे पास मात्र संतोष है और यही मेरी संपत्ति है।

सुनकर सम्राट अशोक को भान हो गया की सम्राट होना और संतोषी होना दो अलग अलग चीज़ें हैं। 

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अब चलिए आज के बुलेटिन की ओर.……………… 

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आशा है आपको आज का बुलेटिन पसंद आया होगा, जल्द ही फिर मिलेंगे बुलेटिन के एक नए अंक में, तब तक के लिए सभी को नमस्कार। 

-आपका देव

शनिवार, 30 मई 2015

क्लर्क बनाती शिक्षा व्यवस्था - ब्लॉग बुलेटिन

मित्रों बचपन से कई बातों से हमारा सिस्टमैटिक ब्रेन वाश किया जाता रहा है.... मुग़ल महान थे, दयालु थे, नेहरू बहुत अच्छे थे, बच्चों को बहुत प्यार करते थे, लाल गुलाब लगाना उन्हें बहुत भाता था, गांधीजी ने हमें आज़ादी दिलाई और कांग्रेस के प्रयासों से ही देश को आज़ादी मिली। इसके अलावा और भी बहुत सी बातें पाकिस्तान हमारा दुश्मन है, ईंट से ईंट बजा दी जायेगी अगर पाकिस्तान ने ज़रा भी चूं चपड़ की तो… चीन ने अगर आँख दिखाई तो फिर देख लेना। लेकिन आज कल की दुनिया की हकीकत इससे थोड़ी इतर है… आज कल मामला प्रोफेशनल है और जो जितना बड़ा बाजार और मुनाफे का केंद्र है वही सबकी आँखों का तारा है। 

सवा अरब की आबादी आज कल विश्व समुदाय के लिए एक बड़ा बाज़ार है और अगर ईमानदारी से बात करें तो यह मात्र बाज़ार है। विश्व समुदाय को इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता कि भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है या फिर हमारा धर्म या संस्कृति कितनी पुरानी और सुदृढ़ है। एक छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, खिलौने से लेकर हवाई जहाज और हथियार बनाने वाले देश भी भारत को उपभोक्ता ही समझते हैं। सिलिकॉन वैली में सबसे अधिक इंजिनियर भारतीय ही होंगे लेकिन उनमे से कितने प्रतिशत लोग उस कंपनी की निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा हैं? स्थिति अगर ईमानदारी से कही जाए तो फिर चिंताजनक नही तो खेदजनक तो है ही। हमारी शिक्षा व्यवस्था क्लर्क पैदा करने के लिए ठीक है, सर्विस इंडस्ट्री के लिए भी ठीक है लेकिन यह नई सोच-परक  या रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए हो सकने वाली व्यावसायिक शिक्षा परक नहीं है। बीते हुए वर्षों में स्थिति काफी बिगड़ी दिख रही थी लेकिन अब बहुत आशाएं बंधी हैं, उम्मीद है कि शिक्षा व्यवस्था के भी अच्छे दिन आएंगे।

सादर आपका 
देव
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जल बरसा

कार्टून:- ये कोई लाठीचार्ज के दि‍न हैं ?

चक्रव्यूह

स्वप्न जुगुप्सा

शब्द गठरिया बांध : अरूण कुमार निगम

हे मेरे परम मित्र !

कार्टून कुछ बोलता है - दुम

रेल सदा फेल ही क्यों ?

मुझमें समा ना

वर्चस्व की लड़ाई...

" चाँदी का वर्क ....."

इंदौर : तालीबानी पुलिस या पत्रकारिता

खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .

494. दर्द (दर्द पर 20 हाइकु)

वेलकम टू कराची- कॉमेडी और एक्शन के भंवर में फंसी कहानी

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शुक्रवार, 29 मई 2015

ब्रेकिंग न्यूज़ ... मोदी बीमार हैं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज कल खबरें बनाने का चलन बड़े ज़ोर शोर से चल निकला है ... मीडिया मे कोई भी बड़ा नेता एक बयान देता है और उस बयान को आधार बना सभी चैनल अपनी अपनी पसंद से खबरें बन लेते है - नीचे दिये उदाहरण से आप बखूबी समझ जाएंगे कि मैं क्या कहने चाहा रहा हूँ |

पत्रकार –" मोदी जी , आपको कौन सा फल पसंद है?"
नरेन्द्र मोदी –" एप्पलl"
पत्रकार – "ब्रेकिंग न्यूज! मोदी जी को आम , अमरूद और केले पसंद नहीं है , देखते है विपक्ष के नेता इस विषय में क्या कहते है?"
मनीष तिवारी – "मोदी जी को एप्पल यानि लाल रंग का ही फल पसंद है यानि खुन का रंग पसंद है, यानि मोदी जी को अमन और शांति नहीं चाहिए l "
अहमद पटेल – "मोदी सिर्फ हिंदुत्व की बात करते है | हरे रंग का फल उनको पसंद नहीं है, इससे साफ जाहिर होता है कि मुसलमानों के प्रति उनकी भावना अच्छी नहीं है !"
नितीश कुमार – "मोदी जी की ऐसी भाषा की वजह से ही हमनें NDA से अलग होने का फैसला लिया था l "
राहुल गांधी – "मोदी जी कभी ये क्यों नहीं बताते कि उनको कौन सी चॉकलेट पसंद है, देश को हक है ये बात जानने काl"
सोनिया गांधी –" हे बगवान ! इथना मेहगा पल करीदने के लिये इनके पास पयसे कहा से आये?"
गिलानी -- "ये मोदी की कश्मीर को हड़पने की कोशिश, पर हम ये होने नहीं देंगे।"
येचुरी -- "सेब जैसे महंगे फल को चुनना ये दिखता है की मोदी प्रो-कॉर्पोरेट है।"
केजरीवाल --"भारत में आम फलों के राजा के रूप में स्थापित है, मोदी गैर संविधानिक है। ये आम आदमी के साथ धोखा है।
लालू –"मोदीया बीमार है, सेब खाये से ठीक नहीं होंगा।"

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मीडिया: ब्रेकिंग न्यूज़, मोदी बीमार है।
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सादर आपका 
शिवम् मिश्रा 
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वह एक शहर जाना अनजाना सा...

Shikha Varshney at स्पंदन SPANDAN

लक्ष्मणरेखा

महेश कुशवंश at अनुभूतियों का आकाश

Sky crossings - Incroci nel cielo - आसमानी चौराहे

आऊट ऑफ सिलेबस और बोर्ड एक्जाम!!

हिन्दू होने पर भी तो नहीं मिलता फ्लैट!!!

Vikram Pratap Singh at बुलबुला -Bulbula

वीरों तुम्हें नमन

अर्चना चावजी Archana Chaoji at मेरे मन की

हमको भी तो कुछ मिल जाते, खेल-खिलौने साहबजी

लिख लेना कुछ भी पता है बिना लिखे तुझ से भी नहीं रहा जायेगा

सुशील कुमार जोशी at उलूक टाइम्स

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 28 मई 2015

२८ मई का दिन आज़ादी के परवानों के नाम - ब्लॉग बुलेटिन

आज २८ मई है ... आज के दिन बेहद खास है ... आज का दिन जुड़ा हुआ दो दो अमर क्रांतिकारियों से ... एक की आज जयंती है तो एक की पुण्यतिथि |

विनायक दामोदर सावरकर (अंग्रेजी: Vinayak Damodar Savarkar, जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फरवरी १९६६) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।
भगवती चरण वोहरा (4 जुलाई, 1904 - 28 मई, 1930) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे। वे हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य और सरदार भगत सिंह के साथ ही एक प्रमुख सिद्धांतकार होते हुए भी गिरफ्तार नही किए जा सके और न ही वे फांसी पर चढ़े। उनकी मृत्यु बम परिक्षण के दौरान दुर्घटना में हुई। भगवती चरण की शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई। उनका विवाह भी कम उम्र में कर दिया गया। पत्नी का नाम दुर्गा था। बाद के दौर में उनकी पत्नी भी क्रांतिकारी कार्यो की सक्रिय सहयोगी बनी। उन को क्रान्तिकारियो द्वारा दिया गया " दुर्गा भाभी " सन्बोधन एक आम सन्बोधन बन गया।

आज के दिन ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब इन दोनों क्रांतिकारियों को शत शत नमन करते है !
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!
सादर आपका 
 
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वीर सावरकर – जन्म दिवस पर विशेष

Ratan Singh Shekhawat at ज्ञान दर्पण
भारत की पुण्य धरा प्रारम्भ से ही रत्नगर्भा रही है। इन नर-रत्नों ने अपने ज्ञान, स्वाभिमान, त्याग तपस्या, निःस्वार्थ प्राणी मात्र की सेवा आदि दैदीप्यमान सदगुणों से पृथ्वी तल को आलोकित किया है। ऐसे नर पंुगवों की तालिका में उच्च स्थान पर रखने योग्य एक नाम है - वीर विनायक दामोदर सावरकर। स्वतंत्रता के पिछले वर्षो में कांगे्रस सरकार ने दुर्भावनावश विनायक सावरकर को पृष्ठभूमि में धकेलने का पूरा कुत्सित प्रयत्न किया। किन्तु ऐसे व्यक्तित्व किसी की कृपा के मोहताज नहीं होते। सत्य तो अपने पूरे तेज के साथ प्रकट होकर रहता है। बादल कितने दिन सूर्य को ढक कर रख सकतें हैं। उस प्रखर तेजस्वी महापुरूष को ... more » 

मैगी-कांड के साइड-इफ़ेक्ट्स

रचना त्रिपाठी at टूटी-फूटी
खाने के लिए मैगी हो या निभाने के लिए कोई रिश्ता, उसका आनंद सिर्फ "दो मिनट" में मिलता नहीं है। यदि सच्चा आनंद चाहिए तो सभी स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे और जवानों को इस पर भरोसा करने से पहले अपने आप को थोड़ा वक्त देना चाहिए। जिस तरह रातो-रात बड़ा आदमी बनने की जल्दबाजी ने कई तरह के अपराधों को जन्म दिया है ठीक उसी तरह चट-पट खा लेने की जल्दबाजी ने "मैगी" को जन्म दे दिया है। मैगी ही क्यों ऐसे और भी बहुत से रेडीमेड उत्पाद हैं जिसे निपटाने में दो मिनट भी नहीं लगते। कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती; बस पैकेट फाड़ा और सीधे मुंह में ही उड़ेल लिया। कुरकुरे, अंकल-चिप्स, टकाटक, नाच्चोज, आदि तमाम ऐसे और नाम हैं ज... more » 

समानांतर धाराएँ...

दो दिन जो समानांतर हैं, आपस में कभी मिल नहीं सकते, लेकिन दिखते नहीं है ऐसे, टेढ़ी-मेढ़ी सरंचनाएँ हैं इनकी, मैं मिलता हूँ दोनों से अलग अलग वक़्त पर... सब कुछ वही रहता है, लेकिन मैं वो नहीं हूँ जो मैं था आज के पहले मैं बदलता रहता हूँ गिरगिट के रंग की तरह... फिर भी मुझे शंका होती है मैं वही हूँ या बदल जाता हूँ हर बार, एक पूरा दिन अकेला बिता लेने के बाद, पता नहीं मैं हूँ या नहीं हूँ, लेकिन जब था तब नहीं था....  

हडसन रिवर फ्रंट की सैर

आज आपको हडसन रिवर फ्रंट की सैर कराते हैं.… जर्सी सिटी में एक्सचेंज प्लेस से लेकर वीहाकन तक रिवर फ्रंट है। आप इसमें नदी के किनारे किनारे आराम से सैर कर सकते हैं.. बीच बीच में आइसक्रीम और पॉप-कॉर्न मिल जाये तो और भी मजा :-) कुछ चित्र आपके लिए.… वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (फ्रीडम टावर) आदि महाराज इस तेज़ हवा में बहुत खुश थे :-) यह मोहब्बतें फिल्म वाले पत्तों वाला पेड़ :-) एम्पायर एस्टेट और क्राइस्लर बिल्डिंग फ्रीडम टावर १९०७ में बना होबोकेन रिवर फ्रंट फेरी स्टेशन आदि महाराज पूरी सीट लेकर बैठते हैं आजकल. इनकी शर्त होती है की कोई उनको पकडे नहीं, ट्रेन चलती रहे फिर भी आज की ... more » 

बनाईये मजेदार वीडियो सेल्फ़ी डबस्मैश के साथ

Abhimanyu Bhardwaj at MyBigGuide
फिल्‍में किसे पसंद नहीं होती किसी किसी फिल्‍म के डायलॉग और गाने तो हमेशा अच्‍छे लगते हैं आपको भी किसी फिल्‍म के गाने या डायलॉग जरूर पसंद होगें। अगर आपसे कहा जाये कि आपका पंसदीदा डायलॉग आप पर ही फिल्‍माया जाये तो कैसा रहेगा, ऐसा हो सकता है। ऐसा हो सकता है एक ऐसी एप्‍लीकेशन है जिसमें आप मशहूर फिल्मों, हस्तियों की आवाजों पर अपनी लिपसिंग कर वीडियो रिकार्ड कर सकते हैं और इस मजेदार वीडियो को अपने... आगे पढने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें 

उफ़्फ़! ये रेलवे।

Abhishek Shukla at वंदे मातरम्
कभी-कभी थोड़ी सी लापरवाही बड़े परेशानी की वज़ह बनती है। गलती मेरी थी या सामने वाले की समझ में नहीं आ रहा है। ये तो मानवीय प्रकृति है कि खुद की गलती गले से नीचे नहीं उतरती, कोई खुद को गुनहगार नहीं मानता...चलो मैं मान लेता हूँ की गलती मेरी थी। हुआ यूँ कि मेरठ आने के लिए मुझे दो टिकट लेने थे। मौसा, मौसी और दादी की कन्फर्म टिकट था 25 को सत्याग्रह एक्सप्रेस से, किसी कारणवश मौसा नहीं आ सके तो उनकी जगह मुझे चलना था। कुछ दिन बाद भइया ने बताया की मामी भी चलेंगी साथ में तो मैंने उसके अगले दिन ही दो टिकट ले लिया। वेटिंग 82-83 रहा..सीट मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं थी क्योंकि बिहार से होकर आने वा... more » 

सनकेँ अजब गजब

कवि निराला जी के बारे में एक घटना पढ़ रही थी कि ,वह एक दिन लीडर प्रेस से रोयल्टी के पैसे ले कर लौट रहे थे | उसी राह में महादेवी जी का घर भी पड़ता था |उन्होंने सोचा की चलो मिलते चलते हैं उनसे .|ठण्ड के दिन थे अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि सड़क के किनारे एक बुढिया उन्हें दिखायी दी जो ठण्ड से कांप रही थी और याचक भाव से उनकी तरफ़ देख रही थी | उस पर दया आ गई उन्होंने उसको न सिर्फ़ अपनी रोयल्टी के मिले पैसे दे दिए बलिक अपना कोट भी उतार कर दे दिया ..., और महदेवी के घर चल दिए किंतु चार दिन बाद वह यही भूल गए कि कोट क्या हुआ | उस को ढूढते हुए वह महादेवी जी के घर पहुँच गए ,जहाँ जा कर उन्हें याद आय... more » 

ऐसे ही बोल गए सरदार जी!

सुबह सुबह सरदार जी के मोबाइल की घंटी बजी। ऊंघते, अंगड़ाई लेते हुए मोबाइल उठाया। मैडम का नाम और नंबर देखते ही नींद और जम्हाई दोनों उड़ गई। इतनी सुबह मैडम का फोन देखकर चौंक गए। हेलो मैडम, गुड मॉर्निंग गुडमॉर्निंग । क्या कर रहे हैं। कुछ नहीं मैडम, अभी तो सो रहा था। आप सोते रहिए। मतलब मैडम। मतलब, वतलब छोड़िए। कुछ बोलिएगा भी या नहीं। अभी भी मौनी बाबा बने रहिएगा। बोल ही तो रहा हूं मैडम। अरे यार, ये बोलना नहीं। सूटबूट की सरकार के खिलाफ कुछ बोलिएगा कि नहीं। मैं क्यो बोलूं मैडम। सही में आप रोबोट हैं। कुछ गैरत बची है कि नहीं। याद नहीं है किस तरह से कुर्सी से धकिया के भगाया था आपको। ... more »

‘अय्यार’

अर्चना तिवारी at पंखुड़ियाँ
“सरकार, चुनाव काल निकट है, सारी पार्टियाँ रैली में जुटी हैं, ऐसे में आपका जोगिया धारण कर कुम्भ स्नान ?” “तुम नहीं समझोगे बनवारी, कल्पवास अर्थात् जनता के ह्रदय में वास ।“ “लेकिन सरकार ये तो केवल एक धर्म विशेष के ह्रदय तक ही सीमित होगा, बाकी...?” “बाकी के लिए गाँव गोद लिए हैं ना ।“ “जय हो सरकार !!! आपकी महिमा अपरम्पार !!!” “बम-बम भोले !!! मैं चला स्नान को, टीवी चेनल्स वाले आ गए होंगे ।“   

बस्तर में गोलियां क्यों गूंजती हैं?

ये कितने का है भाईसाब, चार हजार का अरे ये बैल इतना महंगा क्यों है भाइसाब, ये बस्तर आर्ट है आदिवासी कला का पार्ट है इसे उसने लहू से सींचा है सुर्ख अंगारों को हथेली में रख मुट्ठी को भींचा है इसमें उसकी आत्मा है ये बैल नहीं कला है इसे लेने में उस निरीह का भला है तो मतलब जिसने इसे घिसा है इसमें उसका भी कोई हिस्सा है वह तो मालामाल हो गया होगा हां, भाइसाब क्यों नहीं उसकी कला, संस्कृति जब आपके कैबिन-कमरों में सजती है तो उसके घर में तुरतुरी बजती है इसलिए आप इसको लीजिए मुझे चार हजार दीजिए अरे वाह, आदिवासी इतना संपन्न हो गया उसके घर धन धान्य हो गया हां, भाईसाब वह अब पत्ते नहीं कपड़े पहनता है देसी ... more » 

फेसबुक और लाइक, कमेंट !

संतोष त्रिवेदी at बैसवारी
फेसबुक पर कमेन्ट और लाइक करने की प्रवृत्ति पर कुछ दिनों से कहना चाह रहा हूँ.यह बेहद निजी अनुभव है। हो सकता है,आप इससे इत्तेफाक न रखते हों !
१)आपके खास मित्र आपके प्रिंट मीडिया पर छपे लेख पर व्यक्तिगत रूप से फ़ोन कर देंगे,इनबॉक्स में तारीफों के पुल बहा देंगे पर स्टेटस को देखते ही अपनी छाती पर बड़ा-सा पत्थर रख लेंगे . more » 
 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!! 

बुधवार, 27 मई 2015

जयंती - प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार!!
प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र
प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र भारत के प्रख्यात इतिहासकार और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के पूर्व अध्यक्ष थे । प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष और आधुनिक इतिहास लेखन परंपरा के प्रसिद्ध इतिहासकार थे।  बिपिन चन्द्र जी का जन्म कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में 27 मई, सन् 1928 ई. को हुआ था । प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अध्यक्ष रह चुके थे । प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र की गिनती देश के चोटी के इतिहासकारों में होती है । प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र जी द्वारा लिखी गई प्रमुख पुस्तकें हैं - 'आधुनिक भारत का इतिहास', 'आधुनिक भारत और आर्थिक राष्ट्रवाद', 'द राइज एंड ग्रोथ ऑफ इकोनोमिक', 'इंडिया आफ्टर इंडिपेंडेंस', 'इंडियाज़ स्ट्रगल फ़ॉर इंडिपेंडेंस' आदि । प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र का आधुनिक भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान था । भारत सरकार ने प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र को वर्ष 2010 में भारत के तृतीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान "पद्म भूषण" से विभूषित किया था। प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र जी का लंबी स्वास्थ्य बीमारी के चलते 30 अगस्त, सन् 2010 ई. को उनके आवास पर गुड़गाँव, हरियाणा में निधन हो गया था।


प्रोफ़ेसर बिपिन चन्द्र जी को उनके 87वें जन्म दिवस पर हम सब उनके किये गये ऐतिहासिक लेखन कार्य को याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं सादर 


हर्षवर्धन श्रीवास्तव


अब रुख करते हैं आज की बुलेटिन की ओर .........














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। सादर।।   

मंगलवार, 26 मई 2015

आज है मंगलवार :)



मंगलवार का दिन हनुमान जी का माना जाता है। लेकिन इस दिन को गणेश जी के लिए भी शुभ माना गया है। यह दिन कर्ज से मुक्ति के लिए सबसे उत्तम है।

तो मैं भी होती हूँ क़र्ज़ से मुक्त - दिल तक पहुँचनेवाले लिंक्स के जरिये 



अब कुछ बीते समय पर नज़र डालें, जो देखने से रह गया है -






सोमवार, 25 मई 2015

अप्रवासी की नज़र से मोदी365 :- ब्लॉग बुलेटिन

मोदी सरकार नें अपना एक वर्ष पूरा कर लिया है और ऐसे में कई चर्चाएं हो रही है कि इस सरकार नें क्या किया, क्या नहीं किया, क्या और अच्छा हो सकता था और क्या चूक हो गई। मैं एक अप्रवासी भारतीय के नज़रिए से पिछले एक वर्ष का अपना मत रख रहा हूं। 

मित्रों भारतीयों की स्मरण शक्ति बहुत कमज़ोर होती है और हम केवल सामनें का ही देखते हैं, ऐसे में पहले 2014 की स्थिति की एक झांकी देखना सबसे ज़रूरी हो जाता है। भारत की भौगोलिक स्थिति के बारे में क्या कहना, हमे विरासत में पाकिस्तान और चीन जैसे पडोसी मिले हैं जो सदैव भारत विरोधी गतिविधियों में सापेक्ष रूप से न सही लेकिन किसी न किसी रूप से लिप्त रहते ही हैं। बीते कई वर्षों में हमनें नेपाल, बांग्ला-देश, श्रीलंका जैसे देशों से भी सम्बन्ध बिगाडे हुए थे। देश उहापोह की स्थिति में था, हर रेटिंग एजेन्सी नें हमारी साख को नकारात्मक कर दिया था। मुद्रा भंडार की चिंताजनक स्थिति, कोई निवेश नहीं, उपर से आए दिन नये भ्रष्टाचार, वाकई विदेश में भारत की चिंताजनक स्थिति थी। मैं जब पिछले साल अमेरिका आया था तब लोग मजाक बनाते थे भारत की राजनीतिक स्थिति का। उस समय मेरे पास कोई शब्द न थे जिसके द्वारा मैं टाईम जैसे मैगज़ीन पर प्रधानमंत्री की "अंडर-अचीवर" की स्थिति को किसी भी प्रकार से जस्टीफ़ाई कर सकूं। दिन बदले, देश बदला, और आज ठीक एक साल बाद की स्थिति वास्तव में गौरव की गाथा है। यमन संकट में मोदी की कूटनीतिक सफ़लता का लोहा दुनियां नें माना, नेपाल भूकम्प में भारत के आपदा प्रबंधन नें दुनियां को हैरान किया। खुद नेपाल के प्रधानमंत्री मोदी के संदेश से भूकम्प की जानकारी लेते दिखे। पिछले साल, मोदी के लिए मेडिसन स्कवायर गार्डेन पार्क का सज जाना और किसी सुपर स्टार की तरह सभा को सम्बोधित करना यहां के अमरीकियों के लिए भी अचम्भे की बात थी। आज टाईम मैगज़ीन भारत के प्रधानमंत्री को अपने कवर पर फ़िर से स्थान देता है लेकिन इस बार यह उनकी यशगाथा लिए होता है, मेरे लिये भारत का इस स्थिति में आना बहुत बडे गौरव की बात है। 

इसके अलावा भी कई अन्य बातें जनता को जानना ज़रूरी है, इस पूरे आलेख के लिए यहां चटका लगाईए

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बुलेटिन के आज के अंक में इतना ही, कल फ़िर से एक नये अंक के साथ फ़िर मिलेंगे... तब तक के लिये शुभकामनाएं... 

जय हिन्द
देव



रविवार, 24 मई 2015

बी पॉज़िटिव, यार - ब्लॉग बुलेटिन

मस्तिष्क की गतिविधियां सुषुप्त अवस्था में भी चलती रहती हैं। अनेकानेक तार बुनता इंसानी दिमाग बहुत सी शक्तियां लिए होता है। इसकी ऊर्जा अनंत है सो इन शक्तियों का सृजन ही मनुष्य को विशेष या साधारण बनाता है। एक और बात, सफलता और असफलता के बीच का अंतर क्या है। वास्तव में यह सफल होना सापेक्षिक है और यह मनोस्थिति है। कोई अत्यंत अमीर व्यक्ति है लेकिन वह नींद न आने की समस्या से पीड़ित है तो उसे सफल नहीं कह सकते, वहीँ एक साधारण व्यक्ति यदि संतोष से अपना जीवन यापन कर रहा है तो उसे मैं सफल व्यक्ति कहूँगा। आप पूछ सकते हैं कि मैं मानसिक शक्ति और सफल-असफल की चर्चा क्यों कर रहा हूँ, दरअसल यह आपस में जुड़े हुए हैं। हम अपने रोजमर्रा के काम में कितनी प्लानिंग करते हैं? उसी हद की प्लानिंग क्या हम अपने ऑफिस में करते हैं? या यूँ कहे कि इस व्यस्त से व्यस्तम होते जीवन में गैजेट्स के आने से क्या बुद्धि कुंद नहीं हो गयी है? पहले पूरी फोन डायरेक्टरी याद रहती थी और अब? स्थिति प्रश्न वाचक चिन्ह से बदतर है। इस बदलते हुए समय में विज्ञान ने सुविधाएं बढ़ा दी हैं लेकिन इन्ही सुविधाओं ने हमें बेबस और लाचार भी बना दिया है। तकनीक पर निर्भरता को कम करना आज के लिए तर्क संगत भी नहीं लेकिन दिमाग को पंगु होने से बचाने के लिए कुछ युक्ति तो करनी होगी। सारा काम कंप्यूटर कर देता है और लोगों का दिमाग खाली होकर शैतान का घर बन गया है। ऐसे में सभी अतिवाद का शिकार हो गए हैं।

कोई त्रासदी आए तो सबसे अधिक क्षतिग्रस्त सोशल मीडिया ही हो जाता है, लोग बिना तर्क लगाए कुछ भी संदेश आगे फ़ारवर्ड करते रहते हैं। यदि तकनीक और आधुनिक चमत्कारों का सही प्रकार से सार्थक रूप में प्रयोग हो तब वह उर्जा का सही इस्तेमाल होगा लेकिन यदि अतिवाद का शिकार होकर सभी लोग बचकानी हरकतों पर उतर आयें तो यह उर्जा का नाश करना होगा। 

सोच कर सोचिए और अपनी उर्जा को सकारात्मक कार्यों में लगानें का प्रयत्न करें तो यह बहुत अच्छा होगा।

अबसे हर रविवार, मैं आपके लिए बुलेटिन का एक अंक लेकर आऊंगा.. आप आज के यह चुनिन्दा लिंक्स देखिये |

मांवां ठंडियाँ छांवां

सरिता भाटिया at गुज़ारिश
आज के रविवारी मंथन में इतना ही, मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ... 

शनिवार, 23 मई 2015

दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन

आदरणीय ब्लॉगर मित्रगण,

सादर प्रणाम

जी हां तो दोस्तों...आज एक दफ़ा फिर से आपके सामने, आपके साथ, अपने विचार, अपने शब्द, अपनी सोच, अपना लहज़ा और अपनी लेखनी को लेकर साँझा करने सभी माननीय मित्रों और पाठकों के बीच वापस आ गया हूँ। आप सभी से दूर हुए साल से ज्यादा का वक्फ़ा बीत गया था, ऐसा लगता था मानो ज़िन्दगी में सुरीली तान बजाने वाले गिटार की तार टूट गई है और आसपास सभी कुछ मौन हो गया है कि तभी ऐसा एह्साह हुआ जैसे कुदरत मेहरबान हो रही है और शायद भूले-भटके ही सही ईश्वर ने अपने सबसे नालायक सुपुत्र की सुन ही ली है। यकायक, अचानक, भूले-भटके, नामालूम यूँ ही कैसे उस दिन, जब मेट्रो में बैठा था और अपनी सोच के घोड़ों पर सवार होकर कहीं घूमने जाने के पिरोग्राम को तयार कर ही रहा था कि मूबाईल फून तपाक से टुनटुनाया, जेब में वाईब्रेट हो खरखराया और उसके साथ मीठी सी रोमांटिक धुन रिंगटोन के रूप में बज उठी और ज्यों ही कॉल उठाया, कानों ने दूसरी तरफ से आती हुई बड़ी भारी-भरकम आवाज़ का सामना किया, जिसने बटन के दबते ही बिना कोई भी पल गंवाए अपने मुंह की तोप से गोला दाग़ दिया। एक सवाल जो तपाक से कानों में घुल गया वो ये था कि, "भई दोबारा शुरू हो रहा है मामला, लगाओगे क्या?" - सुनते के साथ ही 'निर्जन' सोच में पड़ गया, अमां...! क्या लगाने की बात कर रहे हैं जनाब?, दिल लगाने का ना तो अभी सही मौसम आया है ना ही फिलहाल औकात बची है इश्क़ फरमाने की और ऐसे भयंकर दरिया में डुबकी लगाने की और फिर हम तो वो हैं जो किनारे पर बैठकर भी लोटे से नाहने का इरादा रखते हैं। ससुर क़िस्मत के लैंटर अल्लाह मियां के करम से बेतरतीब लग ही चुके हैं, सबरे दुनियादारी वाले बेहिसाब वाट लगाने पर आमादा हैं ही, ऑफिस में बॉस क्लास लगा रहा है, सड़क पर कोई भी ऐरा-गैरा-नत्थू-खैरा नज़र लगा रहा है और, और भी ना जाने कौन-कौन क्या-क्या लगाने को तयार बैठा है ऐसे में हम किस खेत की मूली हैं बे जो कुछ लगायेंगे। अभी मन-मस्तिष्क के साथ मंत्रणा और विचार विमर्श चल ही रहा था, कौतुहल की दही को बिलो ही रहा था के, लस्सी तयार होने से पहले ही उधर से धमाका हुआ, "अमां मिया - बुलेटिन - बुलेटिन लगाओगे क्या ? बुलेटिन दोबारा शुरू हो रहा है - लगाओगे क्या - तुम फ्री हो क्या? समय दे पाओगे क्या?" लो भैया सब के सब सवाल धरे के धरे रह गए जिगर में, पर वो मारा पापड़ वाले को - साला तकरीबन पूरे एक बरस से ज्यादा के लंबे अरसे के इंतज़ार बाद आख़िरकार यह दिन दोबारा देखने को नसीब हुआ और ये शब्द कानो में पड़े। तो बस फिर क्या था - अँधा क्या चाहे दो आँखें - अपन तुरंत दिल में झांके और 'हाँ' बोल दिए और इस तरह आज का यह चटखारेदार, मसालेदार, खट्टा-मीठा दस्तरखान एक हसीन यादगार बनकर, यादों के ज़रिए शब्दों में ढल कर आपके सामने ख़ुशबू बिखेरता नज़र आ रहा है। दिल से दुआ करता हूँ एक दफ़ा फिर से अपना बुलेटिन उसी शोहरत की बुलंदी पर पहुंचे और अपना परचम ब्लॉग जगत में लहराये, पाठकों को थोडा सा हंसाये, गुदगुदाए, दिलों में देशभक्ति जगाये, अपने नज़रिए से वाकिफ़ कराये, शिक्षाप्रद तथा महत्त्वपूर्ण तथ्यों से परिचित कराये, अपना मक़ाम बनाये और सालों साल के लिए सभी के दिलों में बस जाए। बस यही है 'दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन" - एक छोटी सी कहानी - एक अदना सी ख़्वाहिश और एक दुआ जिसके साथ एक दफ़ा फिर से मैं अपनी पहली ब्लॉग बुलेटिन पोस्ट का आगाज़ कर रहा हूँ। आप सबका साथ, प्यार, दुआ और आशीर्वाद की उम्मीद रखता हूँ | आमीन....

आज की कड़ियाँ

ममता - चेतन रामकिशन "देव"

माँ - शिखा कौशक

भारत के दुर्गम तीर्थस्‍थल - मदन मोहन सक्सेना

रीठा-आंवला-शिकाकाई - अनीता

फिल्‍म समीक्षा : तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स - अजय ब्रह्मात्मज

सत्ता सच बताना - असित नाथ

दुश्मन मसीहा - सोनल रस्तोगी

प्रेम का क्रीम बिस्कुट - मिश्रा राहुल

गाँठ सभी खोल लो - अनीता

ख्याल तेरे - अपर्णा खरे

तेरे महफ़िल में - संध्या आर्य

आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा

नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम

शुक्रवार, 22 मई 2015

संत वाणी - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !
 आज फेसबुक पर श्री अनुपम चतुर्वेदी जी ने एक बेहद शिक्षापद  कथा सांझा की ... लीजिये आप भी पढ़िये |

एक आदमी राजस्थान के किसी शहर में रहता था . वह ग्रेजुएट था और एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था .
पर वो अपनी ज़िन्दगी से खुश नहीं था , हर समय वो किसी न किसी समस्या से परेशान रहता था और उसी के बारे में सोचता रहता था .
एक बार शहर से कुछ दूरी पर एक एक महात्मा का काफिला रुका हुआ था . शहर में चारों और उन्ही की चर्चा थी ,
बहुत से लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास पहुँचने लगे ,
उस आदमी को भी इस बारे में पता चला, और उसने भी महात्मा के दर्शन करने का निश्चय किया .
छुट्टी के दिन सुबह -सुबह ही उनके काफिले तक पहुंचा .
वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी हुई थी , बहुत इंतज़ार के बाद उसका का नंबर आया .
वह बाबा से बोला ,” बाबा , मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ ,
हर समय समस्याएं मुझे घेरी रहती हैं , कभी ऑफिस की टेंशन रहती है ,
तो कभी घर पर अनबन हो जाती है , और कभी अपने सेहत को लेकर परेशान रहता हूँ ….
बाबा कोई ऐसा उपाय बताइये कि मेरे जीवन से सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएं और मैं चैन से जी सकूँ ?
बाबा मुस्कुराये और बोले , “ पुत्र , आज बहुत देर हो गयी है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर कल सुबह दूंगा …
लेकिन क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे …?”
“ज़रूर करूँगा ..”, वो आदमी उत्साह के साथ बोला .
“देखो बेटा , हमारे काफिले में सौ ऊंट  हैं ,
और इनकी देखभाल करने वाला आज बीमार पड़ गया है , मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल रखो …
और जब सौ के सौ ऊंट  बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना …”,
ऐसा कहते हुए महात्मा अपने तम्बू में चले गए ..
अगली सुबह महात्मा उस आदमी से मिले और पुछा , “ कहो बेटा , नींद अच्छी आई .”
“कहाँ बाबा , मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया , मैंने बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों को नहीं बैठा पाया ,
कोई न कोई ऊंट  खड़ा हो ही जाता …!!!”, वो दुखी होते हुए बोला .”
“ मैं जानता था यही होगा …
आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि ये सारे ऊंट एक साथ बैठ जाएं …!!!”,
“ बाबा बोले .
आदमी नाराज़गी के स्वर में बोला , “ तो फिर आपने मुझे ऐसा करने को क्यों कहा ”
बाबा बोले , “ बेटा , कल रात तुमने क्या अनुभव किया ,
यही ना कि चाहे कितनी भी कोशिश कर लो सारे ऊंट एक साथ नहीं बैठ सकते …
तुम एक को बैठाओगे तो कहीं और कोई दूसरा खड़ा हो जाएगा
इसी तरह तुम एक समस्या का समाधान करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो जाएगी ..
पुत्र जब तक जीवन है ये समस्याएं तो बनी ही रहती हैं … कभी कम तो कभी ज्यादा ….”
“तो हमें क्या करना चाहिए ?” , आदमी ने जिज्ञासावश पुछा .
“इन समस्याओं के बावजूद जीवन का आनंद लेना सीखो …
कल रात क्या हुआ , कई ऊंट रात होते -होते खुद ही बैठ गए ,
कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए , पर बहुत से ऊंट तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे …
और जब बाद में तुमने देखा तो पाया कि तुम्हारे जाने के बाद उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए ….
कुछ समझे ….
"समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं , कुछ तो अपने आप ही ख़त्म हो जाती हैं ,
कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो …
और कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ,
ऐसी समस्याओं को समय पर छोड़ दो …
उचित समय पर वे खुद ही ख़त्म हो जाती हैं ….
और जैसा कि मैंने पहले कहा … जीवन है
तो कुछ समस्याएं रहेंगी ही रहेंगी ….
पर इसका ये मतलब नहीं की तुम दिन रात उन्ही के बारे में सोचते रहो …
ऐसा होता तो ऊंटों की देखभाल करने वाला कभी सो नहीं पाता….
समस्याओं को एक तरफ रखो और जीवन का आनंद लो…
चैन की नींद सो … जब उनका समय आएगा वो खुद ही हल हो जाएँगी"...

सादर आपका

कोई नादिर, कोई चंगेज़...

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

बुधवार, 20 मई 2015

कवि सुमित्रानंदन पन्त और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा हार्दिक नमस्कार!!

कवि सुमित्रानंदन पन्त 
आज स्वतन्त्रता सेनानी और हिन्दी के महान कवि सुमित्रानंदन पन्त जी का 115वां जन्म दिवस है।  सुमित्रानंदन पन्त जी का जन्म 20 मई, सन् 1900 ई. को कौसानी ग्राम, उत्तराखण्ड, भारत में हुआ था। पन्त जी का वास्तविक नाम गुसाईं दत्त था। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा कौसानी ग्राम की ही पाठशाला में हुई। असहयोग आन्दोलन के समय इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। पन्त जी की प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं :- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, उत्तरा, युगपथ, चिदंबरा आदि। कवि पन्त जी ने एक कहानी संग्रह - पांच कहानियाँ (1938) और उपन्यास हार (1960) भी लिखा था। इनकी साहित्यिक सेवा के लिए भारत सरकार ने इन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान "पद्म भूषण" के साथ - साथ "ज्ञानपीठ पुरस्कार" और साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी विभूषित किया। कवि सुमित्रानंदन पन्त जी का निधन 28 दिसम्बर, सन् 1977 ई. को हुआ।


आज हिन्दी के महानायक कवि सुमित्रानंदन पन्त जी को हम सब याद करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते है। सादर।।

हर्षवर्धन श्रीवास्तव


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  .......... 














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल  फिर मिलेंगे। सादर।।

मंगलवार, 19 मई 2015

रावण का ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लोगर मित्रों,
प्रणाम |

जिस समय रावण मरणासन्न अवस्था में था, उस समय भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान् पंडित विदा ले रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता।

श्रीराम की बात मानकर लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में पड़े रावण के सिर के नजदीक जाकर खड़े हो गए।

रावण ने कुछ नहीं कहा।

लक्ष्मण जी वापस रामजी के पास लौटकर आए... तब भगवान ने कहा कि यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए न कि सिर की ओर।

यह बात सुनकर लक्ष्मण जाकर इस बार रावण के पैरों की ओर खड़े हो गए।

उस समय महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताई जो जीवन में सफलता की कुंजी है।

पहली बात जो रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि ...
 
"What's app से दूर रहना।"

दूसरी बात "Facebook का प्रयोग मत करना।"

और तीसरी बात "गाड़ी चलाते समय Mobile मत इस्तेमाल करना। नहीं तो बड़ा बुरा हाल होगा।"

सादर आपका 
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आश्वस्ति...!

अनुपमा पाठक at अनुशील 

शबनमी मोती

सु-मन (Suman Kapoor) at बावरा मन 

चार राहें

गिरिजा कुलश्रेष्ठ at Yeh Mera Jahaan 
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

लेखागार