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शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

 
इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा
1955 की फिल्म देवदास में पारो का किरदार निभाकर हिंदी सिनेमा में भी अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली बंगाली अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने आखिकार लंबे समय तक मौत से लड़ने के बाद दम तोड़ ही दिया। आइए इस शानदार अभिनेत्री से जुड़ी खास बातें आपको बताते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

1. सुचित्रा सेन पहली बंगाली अभिनेत्री थीं, जिन्होंने इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड जीता। उन्होंने 1963 के मॉस्को फिल्म फेस्टिवल अपनी फिल्म 'सात पाके बांधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता था।
2. उनका जन्म बंगाल के पबना जिले में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है।
3. सुचित्रा के पिता करुणामॉय दासगुप्ता एक स्थानीय स्कूल में हेड मास्टर थे।
4. यह भी अजीब विडंबना रही कि सुचित्रा की पहली फिल्म 'शेष कथाय (बंगाली)' कभी रिलीज ही नहीं हुई।
5. 1955 की फिल्म देवदास सुचित्रा की पहली हिंदी फिल्म थी और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था। उन्होंने देवदास में पारो का रोल किया था।
6. दिग्गज अभिनेता उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी को कोई नहीं भुला सकता। दोनों ने 1953 से लेकर 1975 तक 30 फिल्मों में साथ काम किया।
7. 1959 की बंगाली फिल्म 'दीप जवेले जाई' को सुचित्रा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में गिना जाता है। दस साल बाद यह फिल्म हिंदी में बनी थी, जिसमें सुचित्रा वाला रोल वहीदा रहमान ने किया था।
8. 1975 की फिल्म आंधी में सुचित्रा का रोल इंदिरा गांधी से प्रेरित बताया गया था। सुचित्रा ने इतनी जबरदस्त एक्टिंग की थी कि उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेट किया गया था। हालांकि सुचित्रा तो बेस्ट एक्ट्रेस नहीं चुनी गई, लेकिन फिल्म के उनके साथी कलाकार संजीव कुमार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता जरूर बन गए।
9. उनकी बेटी मुनमुन सेन भी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए बंगाली फिल्मों के साथ हिंदी फिल्मों में भी आई।
10. 1972 में इस अभिनेत्री को पद्मश्री पुरस्कार मिला।
11. लगभग पच्चीस साल के एक्टिंग करियर के बाद उन्होंने 1978 में बड़े पर्दे से ऐसी दूरी बनाई कि उन्होंने लाइमलाइट से खुद को बिल्कुल अलग कर लिया।
12. बताया जाता है कि उन्होंने 2005 में दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड के लिए मना कर दिया था। हालांकि इस बात की सच्चाई की कभी पुष्टि नहीं हो पाई।
13. 2012 में उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार 'बंगो बिभूषण' दिया गया। 
14.इस अभिनेत्री ने अपने शानदार अभिनय से हिंदी सिनेमा में भी एक अलग ही जगह बनाई थी। बांग्ला सिनेमा को सफलता के मुकाम में पहुंचाने में सेन का बहुत बड़ा योगदान है।

ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब सुचित्रा सेन जी को हार्दिक श्रद्धांजलि देते हैं।

सादर आपका 

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......ये भी जिंदगी ---

*शीत भयंकर आज पड रहा सोच रही एक अबला मेरे नन्हे के तन पर है नाम मात्र का झबला नील गगन के साए में वो कथरी में लिपटा है गर्मी पाने की चाहत में अपने में सिमटा है सजल नेत्र से देखा माँ ने ,बांहों में उठाया गोदी में ममता से लेकर ,सीने से लगाया * *भींच लिया माँ ने नन्हे को ,दो आंसू टपकाए* *छिपा लिया माँ ने आँचल में ,उष्मा कुछ मिल जाएबेरहमों की दुनिया में नन्हे ,क्या करने तुम आयेसो गया बेफिक्र हो नन्हा , सीनें में मुँह छिपाए* 

थार साइकिल यात्रा- तनोट से लोंगेवाला

नीरज कुमार ‘जाट’ at मुसाफिर हूँ यारों
इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें। 26 दिसम्बर 2012 की सुबह आराम से सोकर उठे। वैसे तो जल्दी ही उठ जाने की सोच रखी थी लेकिन ठण्ड ही इतनी थी कि जल्दी उठना असम्भव था। असली ठण्ड बाहर थी। यहां धर्मशाला में तो कुछ भी नहीं लग रही थी। तापमान अवश्य शून्य से नीचे रहा होगा। आज का लक्ष्य लोंगेवाला होते हुए असूतार पहुंच जाने का था जिसकी दूरी लगभग 80 किलोमीटर है। ऐसा करने पर कल हम सम पहुंच सकते हैं। दस बजे तक तो वैसे भी अच्छी धूप निकल जाती है। कोहरा भी नहीं था, फिर भी ठण्ड काफी थी। माता के दर्शन करके कैण्टीन में जमकर चाय पकौडी खाकर और कुछ अपने साथ बैग में रखकर हम चल पडे। ... more »

तीसरे मोर्चे का विकल्प बनी आम आदमी पार्टी

Ratan singh shekhawat at ज्ञान दर्पण
चुनाव पूर्व अक्सर तीसरे मोर्चे की चर्चा चलना आम बात है, चुनाव की घोषणा होते ही छोटे बड़े क्षेत्रीय राजनैतिक दल केन्द्रीय सत्ता में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी पाने को लालायित होकर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद तेज कर देते है, इस तरह के मोर्चे में ज्यादातर मौकापरस्त दल और नेता होते है जिन्हें एक दुसरे की नीतियों व विचारधारा से कोई मतलब नहीं होता, उनका मकसद येनकेन प्रकारेण संसद में सत्ता की मलाई से ओरों से ज्यादा चखने से रहता है| पर इन चुनावों में तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद शुरू होना तो दूर, बातचीत भी नहीं चली| कारण स्पष्ट था अरविंद केजरीवाल द्वारा गठित आम आदमी पार्टी| आम आदमी पार्टी ... more » 

"आप" हुए मदहोश

श्यामल सुमन at मनोरमा
आम आदमी के लिए, कौन आम या खास। तोड़ा है सबने सुमन, आम लोग विश्वास।। आम आदमी नाम से, बना सुमन दल एक। धीरे धीरे खो रहा, अपना नित्य विवेक।। दाँव-पेंच फिर से वही, वही पुराना राग। आम आदमी पेट में, सुमन जली है आग।। बड़बोले, स्वारथ भरे, जुटे अचानक लोग। आम आदमी का सुमन, भला मिटे कब रोग।। वादे थे अच्छे सुमन, लोग लिया आगोश। दिल्ली की गद्दी मिली, "आप" हुए मदहोश।।  

लाल किला गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन 2014

आशीष कुमार 'अंशु' at बतकही
गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन श्रोताओं के लिए संभव है पांच-आठ घंटे चलने वाला एक सांस्कृतिक कार्यक्रम हो लेकिन मंचिय कवियों के लिए इस बात का प्रमाण पत्र है कि अब वे भी मंचिय कविता के लाल किला क्लब में शामिल हो गए हैं। एक बार लाल किला क्लब में जो कवि शामिल हो जाए। वह मंचिय कविता का श्रेष्ठ कवि मान लिया जाता है। यह गौरव देश के किसी भी दूसरे मंचिय कवि सम्मेलन को प्राप्त नहीं है। जब ऐसे कवि सम्मेलन में पैरवी से आए कवि सुनने को मिलते हेैं तो तकलीफ स्वाभाविक है। वर्ष 2014 का लाल किला कवि सम्मेलन सुरेन्द्र शर्मा के संचालन में सम्पन्न हुआ। इस संचालन में वे थके हुए से नजर आए, कई बार वे मंच पर होकर... more » 

मजबूरी के मौसम में भी जीना पड़ता है

मजबूरी के मौसम में भी जीना पड़ता है थोड़ा सा समझौता जानम करना पड़ता है कभी कभी कुछ इस हद तक बढ़ जाती है लाचारी लगता है ये जीवन जैसे बोझ हो कोई भारी दिल कहता है रोएँ लेकिन हँसना पड़ता है कभी कभी इतनी धुंधली हो जाती है तस्वीरें पता नहीं चलता कदमों में कितनी हैं ज़ंजीरें पाँव बंधे होते हैं लेकिन चलना पड़ता है रूठ के जाने वाले बादल टूटने वाला तारा किस को ख़बर किन लम्हों में बन जाए कौन सहारा दुनिया जैसी भी हो रिश्ता रखना पड़ता है - *ज़फर गोरखपुरी* *Roman*mazburi ke mousam me bhi jeena padhta hai thoda sa samjhouta jaanam karna padhta hai kabhi-kabhi kuch is had tak badh jaati hai lachari lagta hai ... more » 

'रहें ना रहें हम महका करेंगे' ........... … श्रद्धांजली ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" at अंधड़ !
*नैन-पलकों से उतरकर, गालों पे लुडकता नीर रोया,* *वो जब जुदा हमसे हुए तो, यह ह्रदय तज धीर रोया।* *मालूम होता तो पूछ लेते, यूं रूठकर जाने का सबब,* *बेरुखी पर उस बेवफा की,दिल से टपकता पीर रोया।* *तिमिर संग घनों की सेज पर,ओढ़ ली चादर चाँद ने,* *चित पुलकितमय मनोहारी, मंद बहता समीर रोया। * *देखकर खामोश थे सब, कुसुम , तिनके, पात, डाली, * *खग वृक्ष मुंडेर, ढोर चौखट, चिखुर तोरण तीर रोया।* *अनुराग बुनते ही हो क्यों, 'परचेत' अपने इर्द-गिर्द,* *विप्रलंभ अन्त्य साँझ पर वो, देह लिपटा चीर रोया।*  

सुनो ! पथिक -

*सुनो !पथिक-----------------------------इस अनंत यात्रा में कितना कुछकहा अनकहा रह जाता हैप्राणों की तलहटी में हिमनद सा जमा मौनदेह प्रस्तर खंड सीभटकता मन बावरा साकभी निरलस कभी प्राणवान ---डरती हूँ यदि पिघला एक भी टुकड़ा हिमखंडतो कितना कुछ बहा ले जायेगा ---चलो पिघल जाने दें उन सर्द अहसासों कोहिमखंड हो गये हैंन जाने कितने बरसों से जोदेह की देहरी पर अटकी प्राण वायुह्रदय के अतल मेंगंगा का गीलापनसालता रहा मन कोजिसकी टूटी घुन लगी चौखट परलगे द्वार पर बरसों से जड़े थेजंग लगे ताले --जो बहरे थेनही... more » 

... हिजाबे-ख़ुदा !

Suresh Swapnil at साझा आसमान
ज़िद नहीं है मगर आज दीदार हो तूर से फिर मरासिम का इज़हार हो इश्क़ हो या महज़ आपकी दिल्लगी ये: सियासत मगर आख़िरी बार हो सात तालों में दिल की हिफ़ाज़त करें आपको ज़िंदगी से अगर प्यार हो ज़ख़्म हों दर्द हो अश्क हों आह हो दुश्मनों को न उल्फ़त का आज़ार हो लड़खड़ाते रहें हम क़दम-दर-क़दम वक़्त की तेज़ इतनी न रफ़्तार हो दीद को आपकी ज़िंदगी छोड़ दें कोई हम-सा जहां में परस्तार हो ज़रिय:-ए-दुश्मनी है हिजाबे-ख़ुदा क्यूं इबादत में पर्दों की दीवार हो ?! ( 2014 ) ... more » 

समय के साथ हुआ चुनाव प्रचार भी हाइटेक

*डॉ. महेश परिमल* पहले चुनाव आते ही शहर की गलियों में लिखा हुआ मिल जाता था कि आपके क्षेत्र से अमुक व्यक्ति अमुक पार्टी से प्रत्याशी हैं, आप उन्हें वोट दें। उसी के बाजू में उससे भी बड़े अक्षरों में प्रतिद्वंद्वी पार्टी के प्रत्याशी के बारे में लिखा हुआ था। यह प्रचार य़द्ध गलियों से शुरू होकर आम सभाओं के आयोजन से होते हुए कानफाड़ शोर पर खत्म होता था। मतदान के एक दिन पहले लोग राहत की सांस लेते थे। लेकिन इस बार पूरी फजां ही बदली हुई थी। न तो गलियां रंगी गई, न आम सभा और न ही कानफाड़ शोर से लोगों को जूझना पड़ा। समय अपनी गति पर चलता रहा। इस बीच चुनाव में नए-नए हथकंडे अपनाए जाने लगे। लोगों क... more » 

सफ़र

मुश्किल था एक दिन से दूसरे दिन तक का सफ़र | एक दिन जब तुमने कहा विदा ! और दूसरा दिन जब तुम चले गए.... फिर आसान था हर एक दिन से दूसरे दिन का सफ़र, कि तुम्हारे बिना तेज़ थी क़दमों की रफ़्तार, कि कोई मुझे पीछे अब खींचता न था.... ~अनुलता ~  
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   अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

8 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

बेहतरीन अभिनेत्री थीं सुचित्रा सेन ।। विनर्म श्रृद्धांजलि।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुचित्रा सेन जी को हार्दिक श्रद्धांजलि !
सुंदर बुलेटिन सुंदर सूत्रों के साथ !

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सचमुच कमाल की अभिनेत्री थीं सुचित्रा सेन!
बम्बई का बाबू ,ममता और आंधी में तो उन्होंने कमाल किया है...
उन्हें सादर नमन!!
बुलेटिन में हमारी रचना का link देने का शुक्रिया शिवम्.
अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े ही पठनीय सूत्र..

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

Devendra Gehlod ने कहा…

सुंदरी सुचित्रा सेन को श्रधांजलि, we swaym bahut achchi abhinetri thi. unki aadhi film me abhinay wakai shandar tha.

mera blog sammilit karne hetu dhanywaad.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आभार शिवम् जी !

HARSHVARDHAN ने कहा…

सुचित्रा सेन जी को विनम्र श्रद्धांजलि।।

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