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बुधवार, 15 जनवरी 2014

६६ वां सेना दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा
आज १५ जनवरी है ... आज ही दिन सन १९४८ मे फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा ने भारतीय सेना के पहले कमांडर इन चीफ़ के रूप मे कार्यभार संभाला था ... तब से ले कर आज तक हर साल १५ जनवरी को भारतीय सेना अपना सेना दिवस मनाती आई है ! हर साल इस दिन भारतीय सेना का हर एक जवान राष्ट्र के प्रति अपने समर्पण की कसम को दोहराता है और एक बार फिर मुस्तैदी से तैनात हो जाता है राष्ट्र सेवा के लिए ! इस दिन की शुरुआत दिल्ली के अमर जवान ज्योति पर शहीदों को सलामी दे कर की जाती है ! इस साल भारतीय सेना अपना ६६ वां सेना दिवस मना रही है ! 

सैनिक.... आखिर एक सैनिक की क्या पहचान है। देश के लिए मर मिटनें का जज्बा लिए एक वीर सैनिक जब देश पर शहीद होनें निकल पडता है तो फ़िर उस समय न वह देश में फ़ैले भ्रष्टाचार के बारे में सोचता है और न ही किसी राजनीतिक नफ़े नुकसान का आंकलन ही करता है। अब साहब हैरानी तब होती है जब अपनें समाज के ही कुछ "बुद्धिजीवी" अपनी ही सेना पर ही व्यंग्य कस देते है वह भी ऐसा जिसके बारे में सोच कर भी हैरानी होती है । अजी जनाब सेना क्या करती है जानना है तो फ़िर ज़रा समाचार पत्र पर नज़र डालिए... 

अगर प्रिंस खड्डे में गिरे तो निकालनें के लिए सेना, मुम्बई में बाढ आ जाए तो सेना, कोई भी आपदा आए तो सेना, अजी अगर नेताओं की सुरक्षा हो तो सेना, अगर कहीं जाना हो तो सेना, अगर आपकी तीर्थ यात्रा हो तो सेना, आपकी ट्रेन फ़ंसे तो सेना और आपके पुल टूटे तो सेना.. जब सरकारी ठेकेदार कामनवेल्थ का ब्रिज गिरा दे तब उसे चौबीस घंटे में खडा करे सेना.. अजी जनाब सेना से आप कुछ भी करा लीजिए आज तक सेना नें मना किया है? तो फ़िर ऐसे में नेताओं की तरह सेना पर बयान बाज़ी से बचिए... ज़िम्मेदारी का परिचय दीजिए और सेना की कद्र कीजिए। 

आज ६६ वें सेना दिवस के मौके पर डा ॰ हरिवंशराय बच्चन की कविता यहाँ सांझा कर रहा हूँ !


चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।

एक हमारा देश, हमारा वेश, 

हमारी कौम, हमारी मंज़िल, 
हम किससे भयभीत ।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।

हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।

जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।

 

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत । 
- डा ॰ हरिवंशराय बच्चन 
 सादर आपका 
शिवम मिश्रा 

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आदिवासियों के गाँव में नाचेंगी परियां

आसमान से ऊपर है एक सुन्दर बाग़ जहाँ रहती हैं परियां नाजुक मुलायम ऊन के गोले सी. खिलते हैं सुवासित सुन्दर फूल. वहां बहती है एक नदी, जिसमे परियां करती है कलोल, उडाती है एक दुसरे पर छीटे, जिससे होती है धरती पर हल्की बारिश लेकिन धरती रह जाती है प्यासी. जब कभी नदी तोड़ती है तटबंध आ जाती धरती पर बाढ़. और सब कुछ हो जाता तबाह. उस बाग़ में लग जाएगी आग. एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा जुड़ गया है वापस. आदिवासी गाँव का एक लड़का छोड़ेगा अग्निवाण. जल जाएगा आसमान से ऊपर का बाग़. अब आदिवासियों के गाँव में नाचेगी परियां, खिलेंगे महकते फूल, बहेगी एक सुन्दर नदी. नीरज कुमार नीर 

ओ! मेरी मैडम अभिव्यक्ति जी ....

Amrita Tanmay at Amrita Tanmay
हर साल की तरह ही कड़ाके की ठण्ड है कोहरे का कहर है ठण्डी हवाओं के आगे गरम से गरम कपड़ा भी खुद में सिमट कर बेअसर है..... वो अपना सूरज भी चल देता है कहीं अपनी महबूबा के साथ उन बदमाश बादलों के पीछे समेट कर किरणों का हाथ..... ये ओस है या कुमकुमा बर्फ का टुकड़ा है चरणपादुका जी तो अभी दिखे नहीं है पर ऐसा तमतमाया हुआ हाय! ठण्ड जी का मुखड़ा है.... तब तो मुआ तापमान भी लुढक-लुढ़क कर सबको विनम्रता का पाठ पढ़ा रहा है और कमजोर ह्रदय के ठमकते रफ्तार पर इमरजेंसी ब्रेक लगा रहा है...... जो उसके छिया-छी के हर दांव पर दहला मारना जानते हैं उन्हें थोड़ा घुड़की देकर घरों में ही दुबका रहा है पर खुले आसमान की गोद में रहन... more » 
 

प्रीति-राग

Anshu Tripathi at सारंग
सफल रही सुबह नलिन सजे पुखर सकुच रहा पुहुप परिप्त है भ्रमर अलस प्रणय से सिक्त हो रहे अधर निहित निशा का मर्म पैंजनी मुखर हिया जले निकुंज में हवा न चल पिया गये विदेश अब न मन मचल उसाँस भर हुआ निपट ह्रदय विकल नयन तकेंगे राह मिलेंगे नाथ कल विरह सहेज भोर हो रही तरुण अटक रहा है कंठ दृग हुए वरुण सुमिर अधीश को हुए अलिक अरुण मलय में राग झनझना रहा करुण पुनः श्रृंगार कर रहा ह्रदय निखिल चपल मरीचिका नहीं बची शिथिल विवेक राग के अधीन है अखिल निहार सा समय पिघल हुआ सलिल 
 

बालकहानी

सुधाकल्प at बालकुंज
*सोने की कढ़ी* एक लोहार था । वह घर जा -जा कर चाकू –छुरी और दराँती पर धार रखा करता। जिस चाकू की धार पैनी करता वह बड़ी कुशलता से महीनों सब्जी -फल काटा करता। एक दिन वह भरी दोपहरी में आवाज लगा रहा था –धार रखवा लो धार ---तलवार से भी तगड़ी धार। एक युवती ने उसे पुकारा। छुरी वाला बोला –मजदूरी के अलावा जितने छुरी –चाकू पर धार रखवाओगी उस हिसाब से उतनी ज्यादा रोटियाँ मुझे खिलानी पड़ेंगी। रोटी छोटी –बड़ी हो सकती हैं पर सब्जी कटोरा भरकर होनी चाहिए। युवती ने हँसकर अपनी गर्दन हिला दी। उसने चार चाकुओं पर धार रखवाई और उसके अनुसार मजदूरी उसकी हथेली पर रख दी। इसके साथ ही एक थाली में चार रोटियाँ और कटोर... more » 
 

ममता

Anupama Tripathi at anupama's sukrity
मन आलोकित कर देता प्रातः खिले सूर्य जैसा खिलता है उर सरोज स्पर्श सुधियों का ऐसा एक अडिग विश्वास सतत संग चलता है नैनों मे इक सपन सुनहरा सजता है साथ चले जो साथ निभाए नित नित हर पल अमृत रस से भरा घड़ा जो छलकता है सोकर भी जागी आँखों में बसती है सुध बुध नहीं खोती है ममता जगती है प्रकृति सी प्राकृत ये शीतल रात्रि में भी ओस के मोती भर भर प्रभास पिरोती है व्याप्त नीरवता में कैसा है राग छिपा पा विस्तार स्वरों का गीतों सी बहती है 
 

सादा और अनुशासित जीवन , खुश मिज़ाज़ रहना और समय पर टाँका लगाना ही लम्बे स्वस्थ जीवन की कुंजी है ---

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन
आप २५ वर्ष के युवा हों या ५० वर्ष के अधेड़ , मामला जब दिल का आता है तो सभी आयु वर्ग के लोग दिल के टूटने से घायल होते हैं। जहाँ पहले अलग अलग आयु में दिल टूटने के कारण भी अलग अलग होते थे , वहीँ आजकल ये दूरियां मिट सी गई हैं और हर आयु में दिल की स्थिति नाज़ुक सी ही बनी रहती है। यानि आजकल युवाओं को भी प्रौढ़ आयु वर्ग के रोग लगने लगे हैं। यह आधुनिक जीवन शैली का ही परिणाम है कि आजकल युवाओं को भी *ह्रदयाघात ( हार्ट अटैक )* होने लगे हैं। *क्यों होता है हृदयाघात : * कहते हैं पेड़ अपने फल नहीं खाते , नदियां अपना पानी नहीं पीती। लेकिन यह भी सच है कि रसोइये को भी खाना खाना पड़ता है , डॉक्... more » 
 

हतनुर जलाशय के किंगफिशर

मनोज कुमार at मनोज
*हतनुर जलाशय** के* *किंगफिशर* *मनोज कुमार* जनवरी के दूसरे सप्ताह में महाराष्ट्र के जलगांव ज़िले के वरणगांव शहर जाना हुआ। पहुंचने पर मालूम हुआ कि वहां स्थित रक्षा मंत्रालय के उत्पादन ईकाई आयुध निर्माणी वरणगांव में एक औद्योगिक कर्मचारी श्री अनिल महाजन पक्षी प्रेमी हैं और वहां उनके संरक्षण हेतु एक ग़ैर सरकारी संगठन से जुड़े हैं। मैंने उनसे मिलने पर उनके सामने पक्षियों के दर्शन का प्रस्ताव रखा और वे फौरन तैयार हो गए। उनके साथ हम पहुंचे हतनुर जलाशय के पास। तवा नदी पर बने इस जलाशय में हजारों की संख्या में प्रवासी और स्थानीय पक्षी पाए जाते हैं। हरितिमा से आच्छादित दलदल ज़मीन इस स्थल को ... more » 
 

घड़ी की टिकटिक और सपने

sunil deepak at जो न कह सके
स्वीडन के आविष्कारक फ्रेडरिक कोल्टिन्ग ने क्राउडसोर्सिन्ग के माध्यम से पैसा इक्टठा किया और एक नयी तरह की घड़ी बनायी है जिसमें आप देख सकते हैं कि आप के जीवन के कितने वर्ष, दिन, घँटे व मिनट बचे हैं. इसका यह अर्थ नहीं कि आप उस निर्धारित समय से पहले नहीं मर सकते या आप की आयु घड़ी की बतायी आयू से लम्बी नहीं हो सकती. जिस तरह जीवन बीमा करने वाली कम्पनियाँ आप के परिवार में बीमारियों का इतिहास देख कर, आप को रक्तचाप या मधुमेह जैसी बीमारियाँ तो नहीं हैं जाँच कर, खून के टेस्ट करके, इत्यादि तरीकों से अन्दाज़ा लगा सकती हैं कि आप जैसे व्यक्ति की औसत जीवन की लम्बाई कितनी हो सकती है, इस घड़ी की भी वही ... more » 
 

जय हो, जय हो

प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
संसाधन हैं, तन्त्र बने हैं, घर पलते हैं, आदि व्यवस्था, देश बह रहा, मध्यम मध्यम, जीवन धो लो, मिल कर बोलो, जय हो, जय हो। मत इतने हैं, मति जितने हैं, तर्क घिस रहे, धुँआ धुँआ जग, सबकी सुनकर, सबकी गुनकर, भाव न खोलो, मिल कर बोलो, जय हो, जय हो। क्षुब्ध तथ्य यह, बात ज्ञात है, आज रात है, कल दिन कैसा, जैसा भी हो, अभी नींद का, मोह न छोड़ो, मिल कर बोलो, जय हो, जय हो। कल की चिन्ता, महाकाय सी, आज ठिठुरता, घबराया सा, मस्तक फिर भी, धीरज पाले, चुपके रो लो, मिल कर बोलो, जय हो, जय हो। परिवर्तन हो, आवश्यक है, स्थिरता में, कहाँ लब्ध क्या, अपना अपना, सोंधा सपना, कल ही बो लो, मिल कर बोलो, जय हो जय हो। जि... more » 
 

कवर पेज पर मेरे रंग

जीवन मैग के कवर पेज पर मेरे रंगों को जगह मिली है । इस ई मैगज़ीन में छपी आर्यन कुमार की एक कविता के साथ मेरी एक ड्राइंग भी को शामिल किया गया है । जीवन मैग एक खास तरह की पत्रिका है जिसे स्टूडेंट्स मिलकर निकालते हैं । मैं भी इससे जुड़कर खुश हूँ क्योंकि इसमें लिखने वाले और इसके प्रकाशन से जुड़ी टीम बहुत स्पेशल है । इस लिंक पर http://www.jeevanmag.tk/ जीवन मैग के बारे में जाना जा सकता है ।  
 

तनोट

नीरज कुमार ‘जाट’ at मुसाफिर हूँ यारों
इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें। अक्टूबर 1965 में एक युद्ध हुआ था- भारत और पाकिस्तान के मध्य। यह युद्ध देश की पश्चिमी सीमाओं पर भी लडा गया था। राजस्थान में जैसलमेर से लगभग सौ किलोमीटर दूर पाकिस्तानी सेना भारतीय सीमा में घुसकर आक्रमण कर रही थी। उन्होंने सादेवाला और किशनगढ नामक सीमाक्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था और उनका अगला लक्ष्य तनोट नामक स्थान पर अधिकार करने का था। तनोट किशनगढ और सादेवाला के बीच में था जिसका अर्थ था कि इस स्थान पर दोनों तरफ से आक्रमण होगा। जबरदस्त आक्रमण हुआ। पाकिस्तान की तरफ से 3000 से भी ज्यादा गोले दागे गये। साधारण परिस्थियों में यह छ... more »

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

11 टिप्पणियाँ:

Anupama Tripathi ने कहा…

उत्कृष्ट लिंक चयन ....आभार शिवम मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान दिया !!

HARSHVARDHAN ने कहा…

ज्ञानवर्द्धक जानकारी और सुन्दर कड़ियों से सजी बुलेटिन !! आभार शिवम् भईया।।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर बुलेटिन !

गौतम राजऋषि ने कहा…

Why are you braking the good old tradition, shivam Bhai ? God n soldiers are there to be remembered only in the times of crisis...for rest of the time they r made to be abused sir !!!!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बढ़िया लिंक्स हैं ..... आभार चैतन्य को शामिल करने का ....

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत सुन्दर सूत्र संकलन .. आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए ..

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन भाई | जय हो

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार |

डॉ टी एस दराल ने कहा…

इस सुन्दर प्रयास के लिये आभार .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

देश के बहादुर सैनिकों को नमन, सुन्दर व पठनीय सूत्र, आभार।

Sp Sudhesh ने कहा…

बच्चन जी का ओजस्वी गीत बड़ा पसन्द आया । यह उन की किस पुस्तक से लिया है?

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