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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

प्रतिभाओं की कमी नहीं (27)

ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -

अवलोकन २०१३ ...

कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का २७ वाँ भाग ...



समय कहता रहा,
हम सुनते रहे
कब शब्द उगे हमारे मन में
जाना नहीं
सुबह जब अपने नाम के पीछे
पड़े हुए निशानों को देखा
तो जाना-
एक पगडण्डी हमने भी बना ली !  ……… 

(मधुरेश)



जीवन का मदिरालय प्यारा,
भांति-भांति से भरता प्याला,
रंग हो चाहे जो हाले का,
नशा सभी ने जम के पाला। 

ज्यों ही एक नशे की सरिता
करे पार, हो जाए किनारा,
त्यों ही दूजी सरिता आकर
मिल जाए, बह जाए किनारा।

हर पग रुकता, थमता-झुकता,
फिर भी आगे बढ़ता रहता,
कौन नशा जीवन से बढ़कर-
डगमग में भी स्वयं संभलता!

हर निशा में एक मधु है,
हर तम लाती एक नशा है,
हो अधीर फिर भी है पीता,
भूले स्मृति-उसकी मंशा है।

लेकिन भूल कहाँ पाता है!
स्मृतियाँ फिर भी आती हैं। 
और नशे में नित-नित नव-नव
श्रृंखलाएं बनती जाती हैं।

मगर अंत में एक प्रकाश फिर 
अंतस उज्जवल कर जाता है,
बड़े जतन से जाते जाते
ही लाइफ का हैंग-ओवर जाता है!


(ktheLeo)

औरत और दरख्त में क्या फ़र्क है?
मुझे नज़र नहीं आता,
क्या मेरी बात पे 
आपको यकीं नहीं आता!
तो गौर फ़रमाएं,
मैं गर गलत हूँ!
तो ज़ुरूर बतायें
दोनों दिन में खाना बनाते हैं
एक ’क्लोरोफ़िल’ से,
और दूसरी
गर कुछ पकाने को न हो,
तो सिर्फ़ ’दिल’ से!
एक रात को CO2 से साँस बनाये है,
दूसरी हर साँस से आस लगाये है,
पेड की ही तरह ,
औरत मिल जायेगी,
हर जगह,
खेत में, खलिहान में,
घर में, दलान में,
बस्ती में,श्मशान में,
हाट में, दुकान में,
और तो और वहाँ भी,
जहाँ कॊई पेड नहीं होता,
’ज़िन्दा गोश्त’ की दुकान में!
अब क्या ज़ुरूरी नहीं दोनों को बचाना?

एक साधारण सी लड़की हर बड़े-छोटे शहर में कही भी कुछ हालत से कुछ खुद से उलझी। रंग गेहुआ सा। उम्र वहीं कोई बीस बाइस साल। यौवन पर चढ़ाव, मन कोमल सा। भोली-भाली सी सुरत, आंखें सुखे झील सा। दिखे जैसे वसंत में खिले सरसों सा। पर उसके अंदर ऐसा हुक था जो जान सका न कोई। कहीं खौफ था वजूद खोने का। मानो जैसे खो ही गया था उसका वजूद। कुछ साल पहले दोस्तों के जिदंगी को देख बचपन में लगी चोट आंखों में सिमट गया था, भूलकर भी कभी प्यार न करने को तय किया था। भागमभाग वाली शहर में न जाने
कहां से जिदंगी को सुकुन मिला। कई दफा तो ऐसा लगा मायावी दुनिया का माया तो नहीं। इनसानी जद्दोजहद के गहरे एहसास पिघलकर उसके सीने में उतरता। फिर भी उसकी तलाश खत्म नहीं होती है। उसके सीने में भटकाव का तपिश थी, जो छोटे शहर से खिंचते हुए वहां तक लाया था। उसको जाना है जिदंगी में बहुत दूर तक। अभी तक वह अकेली चली पर अब क्यों लगता है उसको दोस्त की जरूरत है जिसके लिए अचानक रास्ता बदल शहर आ गई थी। वह था साथ-साथ हमेशा उसकेलड़की को महसूस होता था, लेकिन वह चुप थी उसके इंतजार में। कुछ दिन उसकी इंतजार खत्म हुई। एक-दूसरे को प्यार करने लगे, दिन में साथ-साथ रहते पर बातें कम करने लगे, दूर जाते तब उनकी बातें व उनकी आंखों में दिखता अपनापन याद आने लगा। हंसी और पल भर का गुस्सा!! इस लफ्ज के मायने हैं उसके लिए। उसके हंसी चेहरे पर गम कभी दिखती नहीं, अपनों पर उसका गुस्सा पल भर का रहता बहुतों में वह अलग दिखती जिसकी विश्वास उसकी जिदंगी बन गई। वह हर पल उसका होता गया और खुशबू की बयां करने की तलब बढ़ती गई। उनके बीच खास लगाव थी
क्योंकि दोनों की प्यार दूर  होते हुए भी जज्बाती थी और साथ था रिश्तों का विश्वास। औरों से अलग-अलग दुनिया है उनके पास। फिर भी तरसते है मिलने को। न जाने कौन सा प्यार है जिसको खुदा मानते है क्योंकि खुदा भी दूर रहते हुए एक-दूसरे के पास है। शायद इसलिए। अल्फाजों में बयान नहीं की जा सकती उनकी कहानी को। फिर भी .....................
सानो को देख नीर कभी सोचा न था सानो सिर्फ नीर की होना चाहती है। सानो जो अलग थी। उसकी आंखों में वह कशिश थी जो पाने को जी चाहता था। सानो सपना देखा करती थी मंजिल की ऊचाईयों को छूने का। मंजिल की सीढ़ी मिली उसे जाना पड़ा कही दूर सपनों को पूरा करने के लिए। नीर था दूर फिर भी उसके पास था। हर दिन बातें होती। दोनों के पास एक धरोहर था वह था उनकी दूरी। नीर को नौकरी मिली वह भी अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करने लगा। मंजिल मिलता गया कारवां बनता गया न मिटा तो उसका अनुभव। उसकी जिदंगी की सबसे बड़ी खुशी थी कि उसको कोई चाहता है। नीर और सानो अनुभव करते है जीवन एक प्रतिध्वनि है। तुम जो करते हो तुम पर बरस जाता है जितना तुम्हारा प्रेम बढ़ता है उतना उन्हें साफ होने लगता है कि दूरी से कोई पराया नहीं होता, जिससे प्रेम हो जाता है उनसे परायापन मिट जाता है। सानो मानती है कि एक का दुख दूसरा अनुभव करता है। जो निर्मल होता है। सानो किसी ग्रुप में नौकरी करती थी, वहां का माहौल और लोगों से वाकिफ नहीं थी। नौकरी के दौरान लागों की स्टाइल, रहन-सहन और चाटुकरा देख सोचती काश मैं भी ........पर खामोश होकर सबकी हरकतें देखी और सोचती ऐसी ही दुनिया है जहां लोग अपने को लाइमलाइट करने के लिए दूसरों का सहारा लेते हैं। सानो के पास आत्मविश्वास और जोश की कमी नहीं, लेकिन वह इतनी भोली थी कोई भी अपना उल्लू सीधा कर लें। नीर हर उस माहौल से वाकिफ था जिसकी परछाई आइने में साफ झलकती है। वह कहता औरत/लड़की समाज की आइना है। हर माहौल को अच्छा खराब औरत बना सकती है। औरत यानि महिला देश की ऐसी ताकत हैं, जो पूरे दुनिया को इधर से उधर कर दे पर उसको किसी सहारे की नहीं सहानुभूति की जरूरत है। सानो ने भी एक सपना देखा कि समाज के परदे की पीछे की बदली तस्वीर को दिखाएंगी, लेकिन शायद उनकी जिदंगी में भी वहीं होने वाला है, जो औरों के साथ होता है !!!

(आशा सक्सेना)


सुना था झूठ  के पैर नहीं होते
आज नहीं को कल
मुखोटा उतर जाता है
वह छुप नहीं पाता |
पर अब देख भी लिया
भेट हुई एक ऐसे बन्दे से
थी जिसकी झूठ  से गहरी यारी
इसकी  ही बुनियाद पर उसने
शादी तक रचा डाली
पहले पत्नी दुखी हुई
फिर निभाती चली गयी |
प्रथम भेट में अपने को उसने
 इंजीनियर बता प्रभावित किया
अपने चेहरे मोहरे का
 पूरा पूरा लाभ उठाया |
जब भी मिला किसी से
 बड़े झूठ  के साथ मिला
घर पर तो मुझे वह
 खानसामा ही नजर आया |
पत्नी ने भी बात बनाई
खाना बनाना और खिलाना
इनको बहुत भाता है
तभी तो हैं अवकाश पर
आप लोग जो आए हैं |
एक दिन हम जा पहुंचे
उसके बताए ऑफिस में
बहुत खोजा फिर भी न मिला
तभी एक ने बतलाया
अरे आप किसे खोज रहे  
वह कोइ इंजीनियर न था
फर्जी अंक सूची लाया था
केवल बाबू लगा था |
जब पोल पकड़ी गयी
वह नौकरी भी उसकी गयी
अब है वह बेरोजगार
एक झूठ  हो तो गिनाए कोई
समूचा झूठ  में था  लिप्त
सच से परहेज किये था |
उसने कभी सच बोला ही नहीं
था झूठों का सरदार
केवल  झूठ  का भण्डार |

9 टिप्पणियाँ:

वसुन्धरा पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर लिंक्स !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह एक और सुंदर अंक !

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर पुनरावलोकन.

Asha Lata Saxena ने कहा…


आपने मेरी रचना को इस अंक में स्थान दिया इस हेतु बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी
लिंक्स बढ़िया है |कहानी पढ़ कर बहुत अच्छी लगी |
आशा i

शिवम् मिश्रा ने कहा…

अवलोकन २०१३ का अंतिम हफ्ता चल रहा है ... पर अब भी काफी नए लोग मिल रहे है पढ़ने को ... आपका आभार दीदी |

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यही गुणवत्ता बनी रहे।

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

मेरी रचना को यहाँ जगह मिली,आपका आभार।सब सुधी साहित्य प्रेमी जनो का अभिनन्दन!

Monika Shekhar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

वाह

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