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शनिवार, 23 नवंबर 2013

प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (15)

ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -



अवलोकन २०१३ ...

कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !

तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का १५ वाँ भाग ...
सच्ची - प्रतिभाओं की रत्ती भर भी कमी नहीं - समंदर में जितनी बार गहरे जाएँगे, सीप में छुपे मोती पाएँगे  - 
कुछ धवल मोती मेरी तरफ से -

उठता हैं बवंडर शब्दों का
पर चुप हैं कलम
और खामोश है जुबान
सन्नाटा सा छाया हैं
जब सदियाँ हैं करने को ब्यान
ढूँढ रही हूँ, भटक रही हूँ
चलता हैं एक अंतर्द्वंद
कहने को, है इतना कुछ
पर छाई हैं, एक  गहरी धुंध
उतावले बैठे हैं इतने क्षण
कुछ शब्दों मैं गढ़ जाने को,
एक मूरत सी बनती हैं
कुछ पन्नों मैं छप जाने को
ऐसा नहीं की,
मन का कोष हैं खाली
हैं बहुत से सपने, ढेर सी हकीकत
इतनी खुशियाँ  जो मैंने पाली
अंतर्मन मैं, उठती हैं लहरें
बाँट सकूँ सब संग,
हर पल जो मैंने पाया
हर अश्रु जो पलकों पर आया
बनते बिगड़ते रिश्तों की
दिन रात  उलझते धागों की
मौन पलों और  कहते अधरों की
दास्ताँ हैं बयाँ करनी मुझे
मौसम के आते जाते  हर रंगों की
माना एक प्रश्नचिन्ह है मेरे आगे
पर क्या यह होता हैं सबके संग
क्या हैं कोई एक भी मेरे जैसा
जो चाह कर भी न बाँट सके
अपने अंदर का कोई रंग
आज  चुप हैं कलम
और खामोश है जुबान
सन्नाटा सा छाया हैं
जब सदियाँ हैं करने को ब्यान


"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
(निवेदिता श्रीवास्तव)

कुंती का नाम आते ही मुझे उसके जीवन का बस एक लम्हा याद आ जाता है जो अजीब सी वेदना भरी घुटन दे जाता है और उस लम्हे में कुंती एक आम सी स्त्री लगती है .....

कर्ण के जन्म के बाद ( यहाँ मैं चर्चा  बिलकुल  नहीं करूंगी कि किन परिस्थितियों में कर्ण का जन्म हुआ , उन घटनाओं की किसी भी  ऐतिहासिकता  अथवा  किवदंतियों  के विषय में बिलकुल भी नहीं ) , जब एक राजपुत्री की तथाकथित मर्यादा निबाहने के लिए , कुंती को कर्ण का परित्याग करना पड़ा ........ सिर्फ इस एक पल ने ही कुंती के  सम्पूर्ण जीवन को एक डगमगाती लहर बना दिया ...... मैं तो उस लम्हे के बारे में सोच कर भी संत्रस्त हो जाती हूँ कि कैसे  एक  माँ  ने अपने ही हाथों , अपनी आत्मा के , अपने शरीर के अंश को उन विक्षिप्त लहरों के हवाले किया होगा ....... कई पुस्तकों में पढ़ा  तो  मैंने  भी है कि उस   टोकरेनुमा नाव को बेहद  सुविधाजनक और सुरक्षित  बनाया  गया था साथ  ही उसमें इतनी प्रचुर मात्रा में धन भी रखा दिया गया था जिससे उस शिशु के पालन - पोषण में ,उसको पाने वाले को असुविधा न हो ...... परन्तु क्या कोई भी सुविधा इतनी सुविधाजनक हो सकती है जो माँ के अंचल की ऊष्मा दे सकती है ..... जिस  पल कुंती के स्पर्श की परिधि से वह नौका विलग हुई होगी ,कुंती ने अपने राजपुत्री होने का दंश अपने सम्पूर्ण अस्तित्व पर अनुभव किया होगा .....

पाण्डु से विवाह के बाद भी , जब कुंती ने अपने अन्य पुत्रों को जन्म भी उसी तथाकथित दैवीय अनुकंपा द्वारा ही दिया होगा , तब भी कर्ण अस्पृश्य ही रहा ...... सम्भवत: इस बार कुंती ने एक राजवधु होने का धर्म निभाया होगा ...... 

कर्ण को उसकी अपनी पहचान मिलने का मूल कारण महाभारत का युद्ध ही था ...... बेशक इस युद्ध ने अनेकों वीर योद्धाओं का और कई राज - वंश , का समूल विनाश कर दिया , पर कर्ण को "एक दानवीर योद्धा कर्ण" के रूप में पहचान भी दे गया ....

अगर ये व्यथित करने वाला लम्हा ,  कुंती  के  जीवन   में  न  आया  होता तो   सम्भवत : वह विवाह  के बाद हस्तिनापुर की उलझी हुई परिस्थितियों को अपेक्षाकृत अधिक संतुलित कर सकती थी । कुंती   ने अपने जीवन की हर सांस एक अपराधबोध के साथ ली ... पहले तो कर्ण को अपनी पहचान न दे सकने की और बाद में शेष पाण्डवों के जीवन के अभय वरदान के फलस्वरूप कर्ण के जीवन के लिए अनेकानेक  प्रश्नचिन्ह बना देने के लिए ..... काश वो अनचाहा सा लम्हा  कुंती के  जीवन में न आता और अगर उस लम्हे को आना ही था तो द्रौपदी को एक राजकन्या एवं राजवधू नहीं होना था ......


स्वप्न स्वप्न स्वप्न, सपनो के बिना भी कोई जीवन है ....
बरसों मेरे स्वप्न डायरी में कैद रहे 
आज में उनको मुक्त करता हूँ ......... (दिगंबर नासवा)

जब तक तुम साथ थीं 
बच्चों का बाप होने के बावजूद 
बच्चा ही रहा 

तेरे जाने के साथ 
ये बचपना भी अनायास साथ छोड़ गया 
उम्र के पायदान 
अब साफ़ नज़र आते हैं 

कहते हैं एक न एक दिन 
जाना तो सभी ने है  
समय तो सभी का आता है 

पर फिर भी मुझे   
शिकायत है वक़्त से 
क्यों नहीं दी माँ के जाने की आहट 
एक इशारा, एक झलक 

क्यों नहीं रूबरू कराया उस लम्हे से 

हालांकि रोक तो मैं भी नहीं पाता उसे
पर फिर भी ... 

होनी से कोई नहीं टकराता, पर मन की बातें - मन को विवश करती हैं,कई उम्मीदें देती हैं :(

12 टिप्पणियाँ:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

सारे खूबसूरत फूल ईकेट्ठे हो ही जाएंगे, दीदी के गुलदस्ते मैं :) सुंदर प्रस्तुती :)

vandana gupta ने कहा…

्सभी रचनायें मन छूती

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

bahut sundar sankalan..............kunti ka dard bahut hi sahi laga.......

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

शुक्रिया दी ,इतनी अच्छी रचनाओं के संकलन में मेरी सोच को भी स्थान दिया ..... सादर !

सदा ने कहा…

सभी रचनायें एक से बढ़कर एक ....
सभी रचनाकारों को बधाई सहित शुभकामनाएं

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुतियाँ रश्मिप्रभा जी ! इतने नायाब मोती आप ब्लॉग सागर की गहराई से खोज लाती हैं कि पाठक विस्मित रह जाते हैं ! सच में बहुत-बहुत आभार आपका !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

वाह ... चलते चलते ... लगभग आधा सफर तो तय हो गया और कितनी ही अनछुई रचनायों से मिलना हुआ ... अभी आधा सफर बाकी है ... और कितनी ही सारी उम्मीदें भी |

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लम्हे को सजीव करती पोस्ट ... लम्हे ही तो जीवन हैं ...
आभार मेरी रचना भी शामिल की ...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

Bahut umda

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

Bahut umda

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहद सुन्दर दी बहुत खूब अवलोकन - जय हो मंगलमय हो |

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

सुन्दर लिनक्स

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