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बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

दर्द का रिश्ता और ज्ञान स्रोत




दर्द का रिश्ता न हो तो ज्ञान के स्रोत मन को नहीं भिगोते  … समन्दर के किनारे नज़र नहीं आते,पर लहरों का आना-जाना सत्य की अनगिनत परिधियों की सूक्ष्मता से जुड़ा हमें छूता है,वेग की धुन में बहुत कुछ कहता है  . इसी वेग की एक धुन की परिक्रमा है सरस दरबारी की कलम से उनके पापा के विचारों को सुनना =




ये जो धूप मिली है उन्हें ज्ञान की - उसके आगे सरस जी   [410791_3218637703597_1196022002_3461044_805005520_o.jpg] का रोम रोम कहता है -




कुछ ही दिन हुए ….वह पल अब भी याद है
कोर थे भीगे हुए ......दिल से लगाया आपने
छाँव में आपकी ....कितने सुखद थे बीते क्षण
हाथ सरंक्षण भरा , था सर पे फेरा आपने .

फिर पहली बार ..जब मैंने थी स्कूल की सीढ़ी चढ़ी ...
निर्भीक और साहसी बनो ..यह ग़ुर सिखाया आपने
कल्पनाओं में भी गर,  था धर दबोचा डर ने जब
कितनी सहजता से उसे .....जड़ से उखाड़ा आपने

जीवन के दुर्गम ....मोड़ पर ...जब जब भी विपदा से घिरे
एक ढाल बनकर ही सदा …उससे बचाया आपने ..
एक मित्र की जब जब कमी… महसूस की मैंने कभी
एक दोस्त बनकर ही सदा ...कन्धा बढाया आपने !

फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..

ऊँगली पकड़कर हर कदम, चलना सिखाया था मुझे -
निर्भीकता साहस से लड़ना -यह बताया था मुझे -
फिर कौनसा डर...कौनसा भय ...है दबोचे मन को आज
की चाहकर भी , पास आ पाते नहीं, अपनों के आप.....

झूठे सहारे छोड़कर,  उस ओर  से आ जाइये ...
उस ओट में दुश्वारियां ..बीमारियाँ ही हैं खड़ी
उस ओट से आता धुआं ,है लील जाता हर ख़ुशी -
फिर क्यों उसे बैसाखियाँ बना बैठे हैं आप....

आ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
पैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
उस पार तो सिर्फ मौत है ...
मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .....!!!!!

9 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर :)

चलिये लिंक तो है एक है से क्या बहुत है !

Dr ajay yadav ने कहा…

waah

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर.....
सरस जी को पढना बड़ा सुखद अनुभव है....
आभार आपका दी
अनु

शिवम् मिश्रा ने कहा…

वाह बहुत खुद रश्मि दी ... बहुत दिनों बाद आप की तैयार की हुई एकल ब्लॉग चर्चा पढ़ने को मिली ... आभार !
सरस जी को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें ... लेखन का सफर यूं ही चलते रहे !

Unknown ने कहा…

खूबसूरत प्रस्तुति |

मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विस्तृत और गहन..

Saras ने कहा…

आपका आभार कैसे प्रकट करूँ....अश्रुपूर्ण आभार रश्मिजी

खोरेन्द्र ने कहा…


फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..maarmik .hriday sprshi ..

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बहुत सुन्दर विचार | जय हो

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