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गुरुवार, 1 अगस्त 2013

सही मायने में 'लोकमान्य' थे बाल गंगाधर तिलक - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इसे लेकर रहेंगे' का नारा देकर देश में स्वराज की अलख जगाने वाले बाल गंगाधर तिलक उदारवादी हिन्दुत्व के पैरोकार होने के बावजूद कट्टरपंथी माने जाने वाले लोगों के भी आदर्श थे। धार्मिक परम्पराओं को एक स्थान विशेष से उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की अनोखी कोशिश करने वाले तिलक सही मायने में 'लोकमान्य' थे।

एक स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, शिक्षक और विचारक के रूप में देश को आजादी की दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले तिलक ने कांग्रेस को सभाओं और सम्मेलनों के कमरों से निकाल कर जनता तक पहुंचाया था।

तिलक का उदारवादी हिन्दुत्व दरअसल अध्यात्म पर आधारित था और यही उनकी विचारधारा की विशेषता थी। तिलक के हिन्दुत्व के मर्म को उनकी किताब 'गीता रहस्य' का अध्ययन करके समझा जा सकता है। उनके स्वराज के नारे और सभी को साथ लेकर चलने की इच्छा ने उन्हें उदारवादी और कट्टरपंथीकहे जाने वाले लोगों में समान रूप से लोकप्रिय बनाया।

महात्मा गांधी तिलक के विचारों से बेहद प्रभावित थे और गांधी के विचार तिलक की सोच का अगला चरण माने जाते हैं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को आकार दिया था। तिलक बातचीत और विचार-विमर्श को देश की राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने का सबसे अच्छा जरिया मानते थे।

वर्ष 1850 में गठित कांग्रेस की गतिविधियां शुरुआत में काफी वर्षों तक सिर्फ सभाओं और सम्मेलनों तक ही सीमित रही थीं लेकिन तिलक ने उसे जनता से जोड़ने की पहल की। जब वर्ष 1908 में तिलक को अपने अखबार 'केसरी' में क्रांतिकारियों के समर्थन में लिखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था तो मजदूरों ने जोरदार आंदोलन किया था जिसकी वजह से पूरा मुंबई कई दिन तक बंद रहा था।

लोकमान्य तिलक ने कांग्रेस को जन-जन तक पहुंचाया। उन्होंने उदारवादियों के साथ-साथ कट्टरपंथियों का भी समर्थन हासिल किया था। वह राजनीतिक स्तर पर उग्र जबकि सामाजिक सतह पर पुराने मूल्यों को प्रति संरक्षणवादी व्यक्ति थे यही वजह है कि उन्हें नरम और गरम दोनों ही तरह के व्यक्तित्व के लोगों ने अपनाया था।

तिलक द्वारा महाराष्ट्र में गणेश पूजा का चलन शुरू किए जाने पर तिलक का स्पष्ट मत था कि धार्मिक परम्पराओं को किसी स्थान विशेष तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना जाना चाहिए।

तिलक गणेश पूजा के जरिए हिन्दू चेतना का मूल्यांकन करना चाहते थे। वह न सिर्फ अगड़ी जाति बल्कि पिछड़े वर्ग के लोगों में भी धर्म के प्रति नई चेतना जगाने के इच्छुक थे। वर्ष 1890 में कांग्रेस में शामिल हुए तिलक ने पार्टी के खांटी उदारवादी रवैए का विरोध किया। वह गोपाल कृष्ण गोखले के नरम रुख और विचारों के विरोधी थे। वर्ष 1907 में कांग्रेस के सूरत सम्मेलन के दौरान पार्टी में गरम दल तथा नरम दल के रूप में दो गुट बने और तिलक गरम दल के नेता बन गए।

वर्ष 1908 में मिली छह साल की कैद की सजा काटने के बाद लौटे तिलक ने पार्टी के दोनों गुटों को एकजुट करने की कोशिश की। तिलक को महसूस हुआ कि दोनों धड़ों की कलह से कांग्रेस की विचारधारा कमजोर हो रही है लिहाजा उन्होंने अंग्रेजों को इसका फायदा नहीं लेने देने और विचारधारा को मजबूत करने के लिए दोनों गुटों को एकजुट करने की कोशिश की थी।

तेइस जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि में मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे बाल गंगाधर तिलक कॉलेज में शिक्षा हासिल करने वाले भारतीयों की पहली पीढ़ी के सदस्य थे। उन्होंने भारतीय शिक्षण प्रणाली में सुधार के लिए डेक्कन एजुकेशन सोसायटी का गठन किया था। तिलक ने नेशनल स्कूलिंग में भारतीयता का खास ख्याल रखा था। स्वतंत्र भारत में एक संघीय सरकार के गठन की हसरत लिए तिलक का एक अगस्त 1920 को निधन हो गया।
 
सादर आपका 
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"ब्लॉग - चिठ्ठा" का शुभारंभ

मैं नज़्म हो गया हूँ शायद !

सरदार पटेल की बिखरती भारतमाला

घर से बाहर एक घर

कभी देखा है बारिशों को ???

वैराग्य जगाता सच्चा प्रेम

कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े : क्या आप 'शर्मा जी' जैसा बनना नहीं चाहेंगे?

मधुर तेरी बंसी

पारस मणि के कवर पेज पर

बधशाला -12

विचार उमड़े घुमड़े जरूर पर बरसे नहीं

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

10 टिप्पणियाँ:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सुंदर आलेख और बढिया लिंक्स.

रामराम.

अनुपमा पाठक ने कहा…

नमन सच्चे सपूत को!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बढ़िया लिनक्स .... बाल गंगाधर तिलक को नमन

चैतन्य को शामिल करने का आभार

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

Bal gangadhar tilak ki gatha behtareen lagi...:)

ब्लॉग - चिट्ठा ने कहा…

आपके ब्लॉग को "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
"ब्लॉग - चिठ्ठा" को "ब्लॉग बुलेटिन" में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत अच्छे लिंक्स है और सार्थक बुलेटिन....

शुक्रिया शिवम्
सस्नेह
अनु

Anita ने कहा…

बाल गंगा धर तिलक की ९३वीं जयंती पर नमन ! आभार ब्लॉग बुलेटिन में मुझे शामिल करने के लिए..

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति में आज मेरे ब्लॉग की वर्षगांठ पर मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सुंदर आलेख।

बाल गंगाधर तिलक की गीता रहस्य अद्भुत है। इसकी खासियत यह भी कि पूरी पुस्तक उन्होने जेल में लिखी थी।

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