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गुरुवार, 6 जून 2013

ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार

ब्लॉगर मित्रों सादर प्रणाम, 
आज की बुलेटिन एक इतिहास के एक बेहद दुखद अध्याय का बयां लेकर आई है | इस घटना में मानवता की हार ही नहीं हुई बल्कि मानवता शर्मसार भी हुई थी | जिसके परिणाम आज तक भारतीय जनता भुगत रही है | 

ऑपरेशन ब्लू स्टार ने देश और पंजाब को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया था | सवाल दोनों तरफ से थे और जवाबों की दरकार भी दोनों तरफ से | पर कई जवाब अभी भी मौन हैं | विडबना यह है कि देश ने इस बड़े सवाल को अभी तक न तो गंभीरता से देखा है और न ही इसका विश्लेषण करके कुछ सीखने की कोशिश की है | समाज ने कुछ सीखा है पर बहुत कुछ नहीं सीखा है | अनदेखा छोड़ दिया है | और कहानी सुलझने के बजाय कुछ उलझनों पर दस्तक देती नज़र आती है |


मेरा सिर्फ इतना मानना, कहना और आप सभी से पूछना है के क्या यह ज़रूरी था ? क्या कोई और रास्ता नहीं था ? क्या यह होना चाहियें था ? ऐसे फैसले के पीछे क्या वजह थी ? क्या मासूम लोगों, बच्चों, महिलाओं की जान की कोई कीमत नहीं थी ? आप सभी समझदार हैं | उम्मीद करता हूँ आप अपने जवाब अपने मत के रूप में टिपण्णी कर ज़रूर दर्ज कराएँगे | 


ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार ५ जून, १९८४ को भारतीय सेना के द्वारा चलाया गया था। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य आतंकवादियों की गतिविधियों को समाप्त करना था। पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सिर उठाने लगी थीं और उन ताकतों को पाकिस्तान से हवा मिल रही थी। पंजाब में भिंडरावाले का उदय इंदिरा गाँधी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के कारण हुआ था। अकालियों के विरुद्ध भिंडरावाले को स्वयं इंदिरा गाँधी ने ही खड़ा किया था। लेकिन भिंडरावाले की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं देश को तोड़ने की हद तक बढ़ गई थीं। जो भी लोग पंजाब में अलगाववादियों का विरोध करते थे, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था।

राजनैतिक विचार
भिंडरावाले को ऐसा लग रहा था कि, उनके नेतृत्व में पंजाब अपना एक अलग अस्तित्व बना लेगा। यह काम वह हथियारों के बल पर कर सकता है। यह इंदिरा गाँधी की ग़लती थी कि, १९८१ से लेकर १९८४ तक उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान के लिए कोई युक्तियुक्त कार्रवाई नहीं की। इस संबंध में कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि, इंदिरा गाँधी शक्ति के बल पर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती थीं। वह पंजाब के अलगाववादियों को वार्ता के माध्यम से समझाना चाहती थीं। लेकिन कुछ राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि, १९८५ में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गाँधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं, ताकि उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हो सके।

भारतीय सेना का अभियान
आज तकरीबन ३० साल पहले हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म अब भरने लगे हैं। पंजाब अपने इतिहास को पीछे छोड़ प्रगति की राह पर आगे निकल चुका है। लेकिन ५ जून १९८४ की उस रात की टीस अब भी महसूस की जा सकती है जब देश में पहली बार आस्था के सबसे बड़े मंदिर को आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए सेना हथियारबंद होकर पहुंची और इतिहास ने हमेशा हमेशा के लिए करवट बदल ली। मंदिर तो आतंकियों से आजाद हो गया लेकिन साथ ही गहरे जख्म भी दे गया।
३ जून, १९८४ को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर पर घेरा डालकर भिंडरावाले और उसके समर्थकों के विरुद्ध निर्णायक जंग लड़ने का निश्चय किया। उनके द्वारा आत्मसमर्पण न किए जाने पर ५ जून, १९८४ को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश कर लिया। तब भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने भारतीय सेना पर हमला किया। भारतीय सेना ने भी जवाब में कार्रवाई की और इस मुहिम को "ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार" का नाम दिया गया। यह ऑपरेशन क़ामयाब रहा। भिंडरावाले और उसके कट्टर समर्थकों की मौत हो गई। बाद में मालूम हुआ कि भिंडरावाले ने पवित्र स्वर्ण मंदिर को आतंक का गढ़ बना लिया था। वहाँ से आधुनिक हथियार प्राप्त हुए। फिर स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त करवा लिया गया।

५ जून १९८४, समय शाम ७:०० बजे
ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हो चुका था। सेना का मिशन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाना था। मंदिर परिसर के बाहर दोनों ओर से रुक-रुक कर गोलियां चल रही थीं। सेना को जानकारी थी कि स्वर्ण मंदिर के पास की १७ बिल्डिंगों में आतंकवादियों का कब्जा है। इसलिए सबसे पहले सेना ने स्वर्ण मंदिर के पास होटल टैंपल व्यूह और ब्रह्म बूटा अखाड़ा में धावा बोला जहां छिपे आतंकवादियों ने बिना ज्यादा विरोध किए समर्पण कर दिया।

रात के १०:३० बजे
शुरुआती सफलता के बाद सेना ऑपरेशन ब्लू स्टार के अंतिम चरण के लिए तैयार थी। कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल के एस बरार ने अपने कमांडोज़ को उत्तरी दिशा से मंदिर के भीतर घुसने के आदेश दिए। लेकिन यहां जो कुछ हुआ उसका अंदाजा बरार को नहीं था। चारों तरफ से कमांडोज़ पर फायरिंग शुरू हो गई। मिनटों में २० से ज्यादा जवान शहीद हो गए। जवानों पर अत्याधुनिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से हमला किया जा रहा था। अब तक साफ हो चुका था कि बरार को मिली इंटेलिजेंस सूचना गलत थी।

सेना की मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं। हरमिंदर साहिब की दूसरी ओर से भी गोलियों की बारिश हो रही थी। लेकिन बरार को साफ निर्देश थे कि हरमिंदर साहिब की तरफ गोली नहीं चलानी है। नतीजा ये हुआ कि सेना की मंदिर के भीतर घुसने की तमाम कोशिशें बेकार गईं और कैज्युल्टी बढ़ने लगीं।

देर रात १२:३० बजे
आधी रात तक सेना मंदिर के अंदर ग्राउंड फ्लोर भी साफ नहीं कर पाई थी। बराड़ ने अपने दो कमांडिंग अफसरों को आदेश दिया कि वो किसी भी तरह पहली मंजिल पर पहुंचने की कोशिश करें। सेना की कोशिश थी किसी भी सूरत में अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की, जो हरमिंदर साहिब के ठीक सामने है। यही भिंडरावाले का ठिकाना था। लेकिन सेना की एक टुकड़ी को छोड़ कर कोई भी मंदिर के भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाया था। अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की कोशिश में सेना को एक बार फिर कई जवानों की जान से हाथ धोना पड़ा। सेना की स्ट्रैटजी बिखरने लगी थी।

रात २:०० बजे
तमाम कोशिशों के बाद अब साफ होने लगा था कि आतंकवादियों की तैयारी जबर्दस्त है और वो किसी भी हालत में आत्मसमर्पण नहीं करेंगे। सेना अपने कई जवान खो चुकी थी। इस बीच मेजर जनरल के एस बरार के एक कमांडिंग अफसर ने बरार से टैंक की मांग की। बरार ये समझ चुके थे कि इसके बिना कोई चारा भी नहीं है। सुबह होने से पहले ऑपरेशन खत्म करना था क्योंकि सुबह होने का मतलब था और जानें गंवाना।

सुबह के ५:१० बजे
बरार को सरकार से टैंक इस्तेमाल करने की इजाज़त मिली। लेकिन टैंक इस्तेमाल करने का मतलब था मंदिर की सीढ़ियां तोड़ना। सिखों के सबसे पवित्र मंदिर की कई इमारतों को नुकसान पहुंचाना। ५:२१ पर सेना ने टैंक से पहला वार किया। आतंकवादियों ने अंदर से एंटी टैंक मोर्टार दागे। अब सेना ने कवर फायरिंग के साथ टैंकों से हमला शुरू किया। चारों तरफ लाशें बिछ गईं।

सुबह के ७:३० बजे
सूरज की रोशनी ने उजाला फैला दिया था। अब तक अकाल तख्त सेना के कब्जे से दूर था और सेना को जानमाल का नुकसान बढ़ता जा रहा था। इसी बीच अकाल तख्त में जोरदार धमाका हुआ। सेना को लगा कि ये धमाका जानबूझकर किया गया है, ताकि धुएं में छिपकर भिंडरावाले और उसका मिलिट्री मास्टरमाइंड शाहबेग सिंह भाग सकें। सिखों की आस्था का केंद्र अकाल तख्त को जबर्दस्त नुकसान हुआ।

सुबह के ११:०० बजे
अचानक बड़ी संख्या में आतंकवादी अकाल तख्त से बाहर निकले और गेट की तरफ भागने लगे लेकिन सेना ने उन्हें मार गिराया। उसी वक्त करीब २०० लोगों ने सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। लेकिन अब तक भिंडरावाले और उसके मुख्य सहयोगी शाहबेग सिंह के बारे में कुछ पता नहीं लग पा रहा था। भिंडरावाले के कुछ समर्थक सेना को अकाल तख्त के भीतर ले गए जहां ४० समर्थकों की लाश के बीच भिंडरावाले, उसके मुख्य सहयोगी मेजर जनरल शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह की लाश पड़ी थी। अमरीक भिंडरावाले का करीबी और उसके गुरु का बेटा था।

६ तारीख की शाम तक स्वर्ण मंदिर के भीतर छिपे आतंकवादियों को मार गिराया गया था लेकिन इसके लिए सेना को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। सिखों की आस्था का केन्द्र अकाल तख्त नेस्तनाबूद हो चुका था। इस वक्त तक किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ये घटना पंजाब के इतिहास को हमेशा के लिए बदलने वाली है।


स्वर्ण मंदिर के बाद मंदिर परिसर के बाहर की बिल्डिंगें खाली करवाने में सेना को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। सेना के मुताबिक मंदिर के बाहर के ऑपरेशन में अकाली नेता हरचंद सिंह लोंगोवाल और गुरचरण सिंह तोहड़ा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया।


हालांकि अकाली नेता सेना के इस बयान को झूठा करार देते हैं। इस ऑपरेशन में कई आम लोगों की भी जान गई। खुद सेना ने बाद में माना कि ३५ औरतें और ५ बच्चे इस ऑपरेशन में मारे गए। हालांकि गैर सरकारी आंकड़े इससे कहीं ज्यादा है।


ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुल ४९२ जानें गईं। इस ऑपरेशन में सेना के ४ अफसरों समेत ८३ जवान शहीद हुए। वहीं जवानों सहित ३३४ लोग गंभीर रूप से घायल हुए। पूर्व सेना अधिकारियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की जमकर आलोचना की। उनके मुताबिक ये ऑपरेशन गलत योजना का नमूना था।

क्या वाकई जरूरी था ऑपरेशन ब्लू स्टार ?
बंटवारे की आग ने पंजाब को तोड़ कर रख दिया। यही वो वक्त था जब पंजाब में कट्टरपंथी विचारधारा जन्म लेने लगी। सिखों के सबसे बड़े तीर्थ स्वर्ण मंदिर समेत सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के अधीन आ चुका था और एसजीपीसी की पॉलिटिकल विंग शिरोमणि अकाली दल सिख अस्मिता की राजनीति शुरू कर चुका था। आनंदपुर साहिब में अलग सिख राज्य समेत पंजाब के लिए कई मांगें रखी गईं जो अकाली राजनीति का आधार बन गईं।

इसी बीच अमृतसर से कुछ दूर चौक मेहता के दमदमी टकसाल में सात साल के एक लड़के ने सिख धर्म की पढ़ाई शुरू की। उसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले। कुछ ही सालों में भिंडरावाले की धर्म के प्रति कट्टर आस्था ने उसे टकसाल के गुरुओं का प्रिय बना दिया। जब टकसाल के गुरु की मौत हुई तो उन्होंने अपने बेटे की जगह भिंडरावाले को टकसाल का प्रमुख बना दिया। आज भी टकसाल में भिंडरावाले को शहीद का दर्जा दिया जाता है।


१९६६ में केन्द्र सरकार ने हिमाचल और हरियाणा को निकाल कर सिख बाहुल्य अलग पंजाब की मांग मान ली। लेकिन सिख राजनीति पर पकड़ बनाए रखने के लिए अकालियों ने चंडीगढ़ को पंजाब में मिलाने और पंजाब की नदियों पर हरियाणा और राजस्थान के अधिकार खत्म करने की मांग शुरू कर दी। कई जानकार मानते हैं कि ऐसे वक्त में इंदिरा गांधी को जरूरत थी ऐसे नेता की जो अकालियों की राजनीति खत्म कर सके। अब ये एक खुला सच है कि कांग्रेस ने इसी काम के लिए भिंडरावाले को प्रमोट किया। जानकार मानते हैं कि भिंडरावाले की अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी। भिंडरावाले ने निरंकारियों की खिलाफत के साथ कट्टरपंथी राजनीति की शुरुआत की।


१९७८ में अमृतसर में निरंकारियों के सम्मेलन के दौरान भिंडरावाले समर्थकों और निरंकारियों के बीच जानलेवा झगड़ा हुआ जिसमें भिंडरावाले के १३ समर्थक मारे गए। इस एक घटना ने भिंडरावाले को हिंसा का लाइसेंस दे दिया। भिंडरावाले पर तीन हाई प्रोफाइल हत्याओं के आरोप लगे लेकिन कांग्रेस के राज में ये आरोप कभी साबित नहीं हो पाए।


पंजाब अब राजनीतिक हत्याओं का अखाड़ा बन चुका था। सरेआम लोगों को बस से निकाल कर कत्ल कर दिए जाने की खबरें आने लगीं। ग्रामीण सिख भिंडरावाले से जुड़ने लगे। भिंडरावाले को भी अहसास होने लगा कि वो सिख हितों का अकेला रखवाला बन चुका है। देश-विदेश में भिंडरावाले की लोकप्रियता आसमान छूने लगी।


इस वक्त तक भी केन्द्र की इंदिरा गांधी सरकार ने भिंडरावाले को रोकने की कोशिश नहीं की। ना ही पंजाब में शांति के लिए अकालियों से समझौता किया। जबकि एसजीपीसी अध्यक्ष तोहड़ा और अकाली नेता लोंगोवाल का अब भी प्रभाव था और वो समझौते के लिए बार-बार दिल्ली आने को राजी थे।


साल १९८२ में भिंडरावाले ने अचानक अपना हेडक्वार्टर स्वर्ण मंदिर के अंदर अकाल तख्त में बनाने की कवायद शुरू कर दी। उसे लगने लगा था कि अब सरकार उसपर एक्शन ले सकती है। लेकिन भिंडरावाले को भरोसा था कि सेना मंदिर के भीतर घुसने की हिम्मत नहीं करेगी। अकाल तख्त में अपना हेडक्वार्टर बनाने के लिए भिंडरावाले ने तोहड़ा को राजी कर लिया। मुख्यमंत्री बनने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाल रहे तोहड़ा को भी आखिर भिंडरावाले की जरूरत थी।


सरकार को ये खबर मिल चुकी थी कि भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को किले में तब्दील करना शुरू कर दिया है और मंदिर के अंदर हथियारों का बड़ा ज़खीरा आ चुका है। अब ये तय हो गया था कि सिखों के सबसे पवित्र तीर्थ पर आर्मी एक्शन होगा। लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा था कि ऑपरेशन ब्लू स्टार का स्वरूप इतना भयानक होगा। सेना के मुताबिक आखिरी वक्त तक भिंडरावाले को आत्मसमर्पण का मौका दिया गया लेकिन भिंडरावाले ने अपना रास्ता तय कर लिया था। वो अपने लोगों के बीच शहादत का दर्जा हासिल करना चाहता था।

देश ने चुकाई ऑपरेशन ब्लू स्टार की बहुत बड़ी कीमत
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३१ अक्टूबर १९८४ को अपने घर से निकल रहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर उनके दो सिख सुरक्षा गार्डों सतवंत और बेअंत सिंह ने गोलियों की बौछार कर दी। ऑपरेशन ब्लू स्टार से पैदा हुई सांप्रदायिकता और कट्टरपंथ ने प्रधानमंत्री की जान ले ली। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद शुरू हुए दंगों ने करीब तीन हजार लोगों की जान ले ली। इनमें से ज्यादातर सिख थे।

इसमें कोई शक नहीं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार ने सिखों को बुरी तरह आहत किया। लेकिन उससे भी ज्यादा नुकसान चारों तरफ जंगल की आग की तरह फैल रही अफवाहों से हुआ। यहां तक कि खुद फौज भी इससे अछूती नहीं रही। फौज में बड़ी तादाद में तैनात सिख जवानों ने विद्रोह कर दिया।


बिहार के रामगढ़ में सिख रेजिमेंट के जवानों ने पूरी छावनी पर कब्जा कर लिया और आर्मी की गाड़ियों पर सवार होकर अमृतसर की तरफ निकल पड़े। आजाद भारत में पहली बार सेना में इस तरह का विद्रोह हुआ था। सैन्य विद्रोह के अलावा ऑपरेशन ब्लू स्टार के तीन दिनों के भीतर ही पंजाब में ३० से ज्यादा लोगों की जान चली गई। बाहरी ताकतों ने इस माहौल का पूरा फायदा उठाया। पंजाब में अलगाववाद और आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच गया जिसने अगले चार सालों में कई बेगुनाहों की जान ली।


मैं सभी से सविनय गुज़ारिश करता हूँ कि इस "ऑपरेशन ब्लू स्टार" में शहीद हुए लोगों के लिए ३० सेकंड का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि प्रदान करें | भगवान् उन दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें | 






















































आज की कड़ियाँ 












अब चलता हूँ  | आज के लिए इतना ही कल फिर मुलाक़ात होगी  | आभार  |

जय हो मंगलमय हो  | जय श्री राम  | हर हर महादेव शंभू  | जय बजरंगबली महाराज 

12 टिप्पणियाँ:

अभिमन्‍यु भारद्वाज ने कहा…

अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया बुलेटिन
हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्‍त करने के लिये एक बार अवश्‍य पधारें
टिप्‍पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
MY BIG GUIDE
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अब 2D वीडियो को देखें 3D में

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

पर कई जवाब अभी भी मौन हैं |
शायद हमेशा रहे भी ....
संग्रहनीय पोस्ट काबिले तारीफ है
हार्दिक शुभकामनायें

अरुणा ने कहा…

ओपरेशन ब्लू स्टार उस समय टी वी पर नज़रें गाढ़ी थी
जो हुआ अच्छा नहीं हुआ लेकिन समय बड़ा बलवान है
कुछ घटनाएं गहरे ज़ख्म छोड़ जाती हैं ..........

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

शानदार,काबिले तारीफ़ उम्दा प्रस्तुति,,,बधाई तुसार जी ,,,

RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आज की पोस्ट वाकई संग्रहणीय है ! राजनितिक महत्वकांक्षाओं की कीमत किस तरह आम जनता को चुकानी पड़ती है वो आपरेशन ब्लू स्टार और १९८४ के सिख दंगो से जाना जा सकता है !!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

इस संग्रहणीय बुलेटिन मे मेरी पोस्ट को भी शामिल करने के आभार तुषार ... बेहद धारदार बुलेटिन है आज का और कहना होगा कि आज के दिन "नीले तारे" का काफी सटीक विश्लेषण किया है !

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया उम्दा बुलेटिन प्रस्तुति ...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अपने ही देश में अपनों के मध्य ही यह सब कुछ हुआ, इससे ज्यादा दुखद और क्या हो सकता है? लिंक्स बहुत बढिया मिले, आभार.

रामराम.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भारतीय इतिहास का दुखद अध्याय, किस पर दोष मढ़े हम, अपनों को न छोड़ा हमने।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

विविधता से परिपूर्ण एक समग्र दृष्टि देता संचयन .चित्रों ने जैसे सब साक्षात् सामने रख दिया .मन उद्विग्न हो कर रह जाता है . समाधान
कहाँ है ?

sukh sidhu ने कहा…

u all dnt knw about saint baba jernail singh ji bhindra wale......he was a saviour,,,,,,,unhone bahut hindu loho ko bachaya ,,,hindus ki familys ko bachaya,,,,,,agar sikh na hote or bhindrawake na hote to ajj sara hindustann mussalmann hota,,,,got it u all .,,,,

bhandrawale ji ki liye aisa fake likhna bandh karr da

ajj k date me ENGLAND me BHINDRAWALE JI ki yaad me nagar kirtan ( rally) nikkali jati hai,,,,wo bhi unhe england me SHAHID sabbit kiya hua hai

sharam ati hai hamme india me rehne me,,,,,,,ENGLAND ki gvrnmnt itna support krti hai or hamari india ki sarkar hamesha SIKH k khilaaf rahi hai,,,,,

real kings sikh hai,,,agar hamm na hote to hindu na hote,,,,simpleeee


hamm apne liye nai,,,,dusro k liye ladte hain

so ,,,abhi to samajh jao

sukh sidhu ने कहा…

abhi takk 29 years ho gaye,,,,,,kaha hai insaaf,,,,,,sharam ati hai indian kehte hue khud ko

I AM NOT A INDIAN

I AM A SIKH

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