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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

ताकि आपकी मुस्कान बनी रहे - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज एक लतीफ़े का मज़ा लीजिये ...
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पत्नी:खाने में क्या बनाऊँ?

 पति: कुछ भी बना लो क्या बनाओगी?

 पत्नी: जो आप कहो।

 पति: दाल चावल बना लो।

 पत्नी: सुबह ही तो खाए थे।

 पति: तो रोटी सब्जी बना लो।

 पत्नी: बच्चे नहीं खायेंगे।

 पति: तो छोले पूरी बना लो।

 पत्नी: मुझे तली हुई चीजों से परहेज़ है।

 पति: तो अंडा भुर्जी बना लो।

 पत्नी: आज बृहस्पतिवार है।

 पति: पराठे?

 पत्नी: रात को पराठे नहीं खाने चाहिए।

 पति: कढी-चावल?

 पत्नी: दही नहीं है।

 पति: इडली सांभर?

 पत्नी: समय लगेगा न, पहले बोलना था।

 पति: होटल से मंगवा लेते हैं।

 पत्नी: रोज़ रोज़ बाहर का खान ठीक नहीं है।

 पति: अच्छा मैग्गी बना लो।

 पत्नी: पेट नहीं भरेगा।

 पति: तो फिर क्या बनाओगी?

 पत्नी: जो आप कहो।
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सादर आपका 

शिवम मिश्रा
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चिंदी चिंदी सुख

चिंदी चिंदी सुख हैं थान बराबर दुःख हैं चलो टुकड़ों में फाड़ते है दुःख के इस थान को बीच बीच में सुख की चिंदिया लगा के पैबन्दो वाली चादर सिलें पत्थरों के बिस्तर की सलवटे मिटा मिटा के ये चादर ओढ़ के चलो लेट जाएँ हम दोनों ------ मै च्युंगम चबाऊं तुम सिगरेट सुलगा लेना इसके धुंये में उड़ा देना सारे गम गिले शिकवे लेकिन बस आज ही तुम्हे पता है न ---- मै हमेशा कहती हूँ सिगरेट पीना नहीं बस उँगलियों में फंसा के रखो जरा स्मार्ट लगते हो और मै अपनी सारी खीझ च्युंगम चबा के निकाल दूंगी ----- ----------दिव्या -----------

उजालों की तलाश में हूँ

Deepti Sharma at स्पर्श
ज़फर पथ पर चल रही बिरदैत होने की फ़िराक में हूँ अभी चल रही हूँ अँधेरों पर मैं उजालों की तलाश में हूँ । क़यास लगा रही जीवन का अभी जिन्दगी के इम्तिहान में हूँ ख्वाबों में सच्चाई तलाशती मैं उजालों की तलाश में हूँ । अल्फाज़ लिखती हूँ कलम से आप तक पहुँचाने के इंतज़ार में हूँ उलझनों को रोकती हुयी मैं उजालों की तलाश में हूँ । परछाइयों को सँभालते हुए गुज़रे वक़्त की निगाह में हूँ उनसे संभाल रही हूँ कदम मैं उजालों की तलाश में हूँ । - दीप्ति शर्मा

आकर्षण -- संजय भास्कर

संजय भास्‍कर अहर्निश at शब्दों की मुस्कुराहट
कॉलेज को छोड़े करीब सात साल बीत गये ! मगर आज उसे जब 7 साल बाद देखा तो देखता ही रह गया ! वो आकर्षण जिसे देख मैं हमेशा उसकी और खिचा चला जाता था ! आज वो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था ! की वो मुझे देखते ही पहचान लेगी ! पर आज कई सालो बाद उसे देखना बेहद आत्मीय और आकर्षण लगा मेरी आत्मा के सबसे करीब ..............!! चित्र - गूगल से साभार @ संजय भास्कर

गूगल भी फ़ेल हो गया

शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes
भाईसाब यू.पी. मे ऐसे ऐसे जिले बना दिये हैं माया और मुलायम ने कि गूगल भी नहीं बता पाता कि ये कहां है ....

ब्लॉग पर पीडीएफ फाइल (PDF File) कैसे जोड़ें ?

noreply@blogger.com (Ratan singh shekhawat) at ज्ञान दर्पण
ब्लॉग या वर्डप्रेस वेब साईट पर पीडीएफ फाइल कैसे लगायें ? प्रश्न अक्सर ज्ञान दर्पण के पाठकों के द्वारा समय समय पर पुछा जाता है| वर्डप्रेस ब्लॉग या वेब साईट पर पीडीएफ फाइल लगाने के लिए कई प्लगइन उपलब्ध है पर ब्लॉगस्पॉट पर ब्लॉग का इस्तेमाल करने वालों के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं कि सीधे कोई पीडीएफ फाइल अपलोड कर ब्लॉग पोस्ट में लगायी जा सके | आईये आज चर्चा करते है ब्लॉग पर पीडीएफ फाइल कैसे लगायी जाय ? विषय पर.... १- सबसे पहले पीडीएफ फाइल को हमें इन्टरनेट पर मौजूद किसी सर्वर पर अपलोड करना पड़ेगा| पर जरुरी नहीं कि हर व्यक्ति के पास अपना होस्टेड सर्वर हो इसलिए हम अपनी फाइल अपलोड करने के लिए ... more »

दिल्ली गैंग रेप: ये सरकार नहीं राष्ट्रीय शर्म का एक और नाम है.

Samar at Mofussil Musings
*हांग कांग में लोकल दोस्त बहुत कम हैं*। लगभग नहीं। पर एक वाइन शॉप के मालिक से प्यारी सी दोस्ती हो गयी है। प्यारा इंसान है, हर शाम अपनी दुकान में दो तीन दोस्तों के साथ मिलता है, चल रही पार्टी के बीच। पर हमारे (मैं और बीजो, दोस्त ज्यादा बॉस कम) पँहुचने पर बहुत प्यार से मिलता है, हाल चाल पूँछता है। बहुत दिन बाद मिलने पर पूछता है कि कहीं दौरे पर था क्या, ह्यूमन राइट्स के बारे में बात करता है, समझने की कोशिश करता है। पिछली मुलाक़ात में उसने कुछ नहीं पूछा। *बस इतना कहा कि दिल्ली में गैंगरेप के बारे में पढ़ा। आपलोगों को देख के लगता नहीं कि आपका मुल्क ऐसा है।* पर यह कहते हुए भी उसके चेहरे प... more »

चलते चलते

न तू कह सके न मैं जो.. वो निगाहों से बयाँ है.. लब काँपते हैं दोनों.. बस लम्स दरमियाँ है.. यूँ ही रात हो गयी है.. एक शाम ढलते ढलते .. इस मंज़र-ए-मोहब्बत में पनपती आरज़ू ये.. बड़ी मुद्दतों से मुझको थी तुम्हारी जुस्तजू ये.. मिल ही गया है आखिर तेरा साथ मिलते मिलते.. शमे-अंजुमन तो रोशन है तुम्हारी रोशनी से.. कुछ इस तरह से तुमने लौ चुरायी चाँदनी से.. के पिघलके गिर रहा है माहताब जलते जलते.. यूँ ही कोई मिल गया है.. सर-ए-राह चलते चलते.. -- 1923 Hrs. 2nd December, 2012 Mumbai WebRep currentVote noRating noWeight

चीन की महान दीवार (The Great Wall of China)

चीन की महान दीवार दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक है। इस विशाल दीवार को यूनेस्को द्वारा वर्ष 1987 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था। इस दीवार का निर्माण चिन वंश ( 225 ईसा पूर्व - 202 ईसा पूर्व ) के प्रतापी और महान सम्राट शी हुआंग टी ( Shi Huang Ti ) ने करवाया था। गौरतलब है कि चिन वंश के नाम पर ही पूरे देश का नाम " चीन " पड़ा था। शी हुआंग टी ने ( 221 ईसा पूर्व से 210 ईसा पूर्व ) तक चीन पर शासन किया था। कुछ इतिहासकारों के मतानुसार वह एक लौह पुरुष और स्वभाव से कठोर व्यक्ति था। उसने चीन की उत्तर - पश्चिम सीमा पर हूणों के आक्रमण से देश की सुरक्षा के लिए एक विशाल दीवार का निर्... more »

thanku 'सरिता'..............

पिछले सात दिनों से जिन्दगी काफी अस्त-व्यस्त चल रही थी। न ठीक से morning walk ना ही exercise..... भागम-भाग लगी हुयी थी। सुबह काफी जल्दी उठने के बावजूद घर का काम निबटाकर college पहुँचने में रोज़ देर हो रही थी। बिना बात झल्लाती रहती थी। बच्चे और पति दोनों ही दुखी, थे मेरे व्यवहार से। शायद; मैं खुद भी। कारण ......'सरिता' ( मेरी कामवाली बहनजी) का छुट्टी ले लेना। दो दिन कहकर गयी थी और आज सात दिन हो गए थे। आज सुबह-सुबह जैसे ही घर की घंटी बजी, मेरा मन बल्लियों उछलने लगा। सरिता दरवाजे पर थी अपने बड़े-बड़े दाँतों को दिखाकर हँसती हुयी। तुरंत उसे चाय बनाकर दी। वो बताने लगी कि देर क्यूँ हो ... more »

समझ नहीँ आ रहा क्या र्शीषक दूँ इस घटना का

भावना पाण्डेय at भावना
कुछ दिन पहले की बात है।मैँ बाळकनी मेँ खड़ी बच्चोँ को खेलता देख रही थी।क्योँकी कई बार एक लड़का रुद्र को खेल मेँ बैट से पीठ , कमर पर मार देता और रुद्र रोता आता ।उस दिन भी खेल खेल मेँ मेरे बेटे ने किसी बात को करने से मना किया तो पड़ोस के उसी लड़के(9 वर्षीय) ने,जो कुछ देर पहले शामिल हुआ था, मेरे बेटे(5 वर्षीय) से कुछ छीनना चाहा मगर बेटे ने मना कर दिया तब उस लड़के ने धक्का मुक्की शुरु कर दी । मैने आवाज़

किशोर अपराधियों की बढती उपज !

रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
बचपन त्याग कर बच्चा जब किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखता है तो वह दौर उनकी जिन्दगी का सबसे नाजुक दौर होता है . मनोवैज्ञानिक तौर पर उनका मन विभिन्न जिज्ञासाओं और कौतुक से भरने लगता है . वे उन प्रश्नों के उत्तर अपने घर वालों से और मित्रों से बार बार प्राप्त करना चाहते हैं और अगर वे संतुष्ट हो सके तो वह बात उनके कोमल मन पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती है और अगर वे संतुष्ट न हो सके तो फिर वे खुद उसको खोजने के प्रयास में रहते हैं . जीवन के इस नाजुक दौर में वे अपने मष्तिष्क में उमड़ते हुए अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजने में रास्ते से ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

8 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

पठनीय लिंक्स मिले .आभार.

Jyoti khare ने कहा…

पठनीय संग्रह
बहुत बहुत बधाई

Ragini ने कहा…

बहुत ही बढ़िया लिंक्स....मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े ही पठनीय सूत्र..

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार !

vandana gupta ने कहा…

बढिया लिंक्स्।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

जो काम आप कर रहे हैं उसके लिए बहुत बहुत आभार क्योंकि बहुत अच्छे लिंक्स मिले, जिन्हें हम खोज नहीं पाते। . मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद .

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही बढ़िया लिंक्स....मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार...... !!!!

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