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मंगलवार, 8 जनवरी 2013

कद्र करो तुम सेना की... ब्‍लॉग बुलेटिन

सैनिक.... आखिर एक सैनिक की क्या पहचान है। देश के लिए मर मिटनें का जज्बा लिए एक वीर सैनिक जब देश पर शहीद होनें निकल पडता है तो फ़िर उस समय न वह देश में फ़ैले भ्रष्टाचार के बारे में सोचता है और न ही किसी राजनीतिक नफ़े नुकसान का आंकलन ही करता है। अब साहब हैरानी तब हुई जब अपनें ब्लाग जगत के ही कुछ बुधियारो नें सेना पर ही व्यंग्य कस डाला। वह भी ऐसा जिसके बारे में सोच कर भी हैरानी हुई। अजी जनाब सेना क्या करती है जानना है तो फ़िर ज़रा समाचार पत्र पर नज़र डालिए... 

अगर प्रिंस खड्डे में गिरे तो निकालनें के लिए सेना, मुम्बई में बाढ आ जाए तो सेना, कोई भी आपदा आए तो सेना, अजी अगर नेताओं की सुरक्षा हो तो सेना, अगर कहीं जाना हो तो सेना, अगर आपकी तीर्थ यात्रा हो तो सेना, आपकी ट्रेन फ़ंसे तो सेना और आपके पुल टूटे तो सेना.. जब सरकारी ठेकेदार कामनवेल्थ का ब्रिज गिरा दे तब उसे चौबीस घंटे में खडा करे सेना.. अजी जनाब सेना से आप कुछ भी करा लीजिए आज तक सेना नें मना किया है? तो फ़िर ऐसे में नेताओं की तरह सेना पर बयान बाज़ी से बचिए... ज़िम्मेदारी का परिचय दीजिए और सेना की कद्र कीजिए। 

वैसे आज ही खबर आई की भारतीय जवान कश्मीर नियंत्रण रेखा की निगरानी में पाकिस्तानी गोलाबारी और घुसपैठ की वजह से शहीद हो गये.... हद तो तब हुई जब सरकारी दवाब में पहले इस खबर का खंडन किया गया और फ़िर बयान आया। भाई पाकिस्तान की ऐसी हिम्मत की वह हमारी तरफ़ देखे और गोलाबारी करे..... भाई वह ऐसी हरकत कर सकता है क्योंकी उसे पता है की हिन्दुस्तान में मौन सरकार है। भारत दवाब में कार्यवाही करता है, सेना को इस कमज़ोर सरकार की वजह से झुकना पडता है। कोई स्वतंत्र विचारधारा का नेतृत्व होता तो इस कार्यवाही का जवाब देता। लेकिन स्वतंत्र भारत की इस धर्मनिरपेक्ष सरकार को इसमें भी कोई राजनीतिक फ़ायदा दिख जाएगा। आईए सेना को नमन करें और जय जवान के नारे पर अपनी पूरी आस्था रखें। 

ब्‍लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की तरफ़ से हम उन जवानों की शहादत को नमन करते हैं, यह कुर्बानी व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। 

है शहीद तेरी शहादत पे हिन्दोस्तां को नाज़... जय जवान... 





मैं भारत माँ का प्रहरी हूँ , घायल हूँ पर तुम मत रोना,
साथी घर जाकर कहना , संकेतों में बतला देना, 
यदि हाल मेरे पिताजी पूछे तो, 
खाली पिंजरा दिखा देना, 
इतने पर भी वह न समझे तो 
... तो होनी का मर्म समझा देना
यदि हाल मेरी माताजी पूछे तो
मुर्झाया फूल दिखा देना
इतने पर भी वह न समझे तो
दो बूंद आंशु बहा देना
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो,
जलता दीप बुझा देना
इतने पर वह न समझे तो
मांग का सिंदूर मिटा देना
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो
माँ का प्यार जाता देना
इतने पर वह न समझे तो
सैनिक धर्म बतला देना ...


आईए आज के बुलेटिन की ओर चला जाए.... 

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दिल में बाकी पिछली सर्दियाँ रह जायेंगी.....

सूनी, गुमसुम, खामोश बस्तियाँ रह जायेंगी खिज़ा आयी तो बस सूखी पत्तियाँ रह जायेंगी अबके हिज्र का दिसंबर शायद मैं भुला भी दूं पर दिल में बाकी पिछली सर्दियाँ रह जायेंगी मुझको मालूम है ये के, तुम न आओगे मगर याद करती तुमको मेरी हिचकियाँ रह जायेंगी पलट के जब कभी मैं माजी की तरफ देखूंगा आँखों में लहू, होठों पे सिसकियाँ रह जायेंगी है दुआ के खुदा तुमको सुकूँ की जिंदगी बख्शे हमारे हक में पुरानी सब चिट्ठियाँ रह जायेंगी

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माचिस

Vijay Kumar Shrotryia at My Poems - meri kavitayen...
हाथ में लेकर माचिस घूम रहे हैं व्यस्त है नुक्कड़ों पर चौराहों पर कैंटीन में सभा में हाथ में लेकर माचिस आजकल रोजाना की बरसात ने कर दिया है गीला इन माचिसों को जब कभी देखता हूँ लोगों को सेंकते धूप एक साथ समूह मे मुझे लगता है अब माचिस का गीलापन कम हो रहा है अपने प्राकृतिक रूप में आ रही है माचिस कौन नहीं जानता माचिस का काम होता है क्या

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प्रेम या भ्रम

मै मान भी लूँ कि तुम्हे प्यार नहीं मुझसे जो भी था, सब एक छलावा मात्र था पर इसमें मेरा तो कोई दोष नहीं मैंने तो तुम्हे ही चाहा था चुन लिया था तुम्ही को सदा के लिए फिर इस बार भी मै ही सजा क्यूँ भुगतूं हे प्रभु तुम बार-बार मुझे ही क्यूँ चुनते हों अपनी भृगु दृष्टि के लियें इसे तुम्हारा प्रेम समझूँ या तुम्हारा उपकार कैसे कैसे सपने बुने थे मैंने रेशमी धागों से तुमने कुछ न सोचा पल भर में तोड़ दियें सारें ख्वाब ये भी न ख्याल आया इन्ही रेशमी धागों से बुनी है मेरी साँसों की डोर तुम तो बस, तोड़ क... more »

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निजता में यह दखल ठीक नहीं

गुजरात दंगों के बाद दुनिया भर के अखबारों में छपा एक चित्र बहुत चर्चित हुआ था। इसमें एक दंगा पीडि़त को अपने दोनों हाथ जोड़कर रोते हुए अपने जीवन की भीख मांगते दिखाया गया था। बहुत मार्मिक दृश्य था वह! जब हिंसा पर उतारु भीड़ ने निहत्थों व निर्दोषी को घेर रखा हो तो उनके दिल पर जो गुजरती है, उन चेहरों का वह प्रतिनिधि चेहरा था। दंगों के एक साल बाद उस व्यक्ति के बारे में विस्तार से खबर छपी कि वह मजबूरन अपना शहर छोड़कर कलकत्ता में बसने के लिए चला गया। उसने बताया कि शहर व राज्य छोड़ने की वजह दंगे या नफरत नहीं थी, बल्कि फोटो छपने के बाद उसे मिलने वाला प्रचार था। उसने बताया कि वह इसके प्रकाशन के... more »

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शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 21

संगीता तोमर Sangeeta Tomar at सादर ब्लॉगस्ते! 
विषय: भ्रष्टाचार भारतीय राजनीति के पानी में मजे ले रही लोट लगा रही जुगाली कर रही भ्रष्टाचार की मरखनी, काली भैंस। चरवाहा खड़ा बाहर असहाय कर रहा विफल प्रयास उसे बाहर निकालने का। चर जाती यह नैतिकता, ईमानदारी की हरी घास चट कर जाती देश - प्रेम, निष्ठा का भूसा। हर ओर मुँह मारती सब कुछ को खाती मोटी होती जाती यह भ्रष्टाचार की मरखनी, काली भैंस। झूठ - फरेब के बड़े - बड़े सींग पटकनी देती अपने ही मालिक को कानून सी लंबी पूँछ मक्खियाँ उड़ाती। फर्जी खातों से थन कितना भी खींचो निकले न दुग्ध-कण फिर भी देश के हर कोने में छा रही फलती-फूलती जा रही यह भ्रष्टाचार की मरखनी, काली भैंस। रच... more »

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मेरी शिकायत दर्ज की जाए मी लॉर्ड : देवयानी भारद्वाज

रश्मि प्रभा... at वटवृक्ष 
मेरी शिकायत दर्ज की जाए मी लॉर्ड ............ बेहद सशक्त,अर्थपूर्ण आइना .... इस शिकायत ने मुझे विवश किया कि देव निर्मित इस भावनापूर्ण उद्यान में मैं अपनी आंतरिक सुप्त भावनाओं को जागृत कर, अपनी दृष्टि को सूर्य रथ बना लूँ . रथ पर मैं उन रचनाओं को लेकर आई हूँ - जो विशेष वाण हैं, ............... देर किस बात की,समक्ष है . ** * **रश्मि प्रभा* ================================================================= *मेरी शिकायत दर्ज की जाए मी लॉर्ड* कितने साल लगते हैं एक बलात्कार, एक हत्या, एक ज़ुर्म की सजा सुनाने में अदालत को कितने साल के बाद तक है इजाज़त कि एक पीड़ि‍त दर्ज़ कराने जाये उसके व... more »
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कल , आज और कल

पता नहीं क्यों आदत हो गयी है हमें इतिहास से फूल चुनने की और काँटों पर शयन करने की आखिर क्यों हम बार- बार पलट कर देखते हैं जबकि वक्त ना जाने कितनी करवटें बदल चुका है ना वैसा आलम रहा ना वैसा आचरण ना वैसे संस्कार तो फिर क्यों हम आज की तुलना बीते कल से करते हैं और खोजते हैं अपना बीता वक्त आज में जबकि जो बीत चुका वो वापस नहीं आता कालातीत हो चुका होता है जो क्यों उसे ज़िन्दा करने की उसे कुरेदने की कोशिश करते हैं फिर चाहे समाज की कुरीतियाँ हों या मन के दंश या घर की औरतें खींच लाते हैं उन्हें अतीत से वर्तमान में और थोपने लगते हैं कल के पलों पर आज के जंगल ढूँढने लगते हैं अमरबेलें जो कभी मु... more »

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आर पार की लड़ाई

रचना at नारी , NAARI - 
हर लड़ाई जब अपने पीक पर पहुचती हैं तो आमने सामने की लड़ाई होती हैं . यानी या तो आक्रमण करने वाला आप को मार देगा या आप आक्रमण करने वाले को मार देगे आक्रमण करने वाले को मारना " आत्मा रक्षा " माना जाता हैं और इस के लिये कानून कोई सजा नहीं देता हैं . इस देश मे आज उन महिला को कानून दोषी नहीं मान रहा हैं जिन्होने किसी बलात्कारी पुरुष को मारा हो . { जो इस बात को नहीं जानते हैं वो ज़रा अखबार ध्यान से पढ़े } आज देश में लड़कियों को बलात्कार करने के बाद मारने की शुरुवात हो चुकी हैं , दिल्ली रेप के बाद नॉएडा में इसी प्रकार की हुई हैं दिल्ली रेप बाद लड़कियों ने सेल्फ डिफेन्स के लिये पिस्टल के लाइसे... more »

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एक अमीर बलात्कारी --

ZEAL at ZEAL 
कसाब का कोई दोष नहीं था , गलती मरने वालों की थी, वे ताज होटल में क्यों गए , उन्हें अपने घर पर रहना चाहिए था तो बेचारा कसाब क्यों किसी को मारता देश-विदेश के 377 मूर्खों के कारण कसाब पर इतने इल्जाम लगे! --(सन्दर्भ नीचे है) दामिनी अपने बलात्कार की जिम्मेदार स्वयं है वो गिड़गिड़iयी क्यों नहीं ? --आसाराम बापू --------------------------------- इतना बड़ा मूर्ख पहले कभी नहीं देखा। इससे कोई पूछे दहेज़ के लिए मारी जाने वाली औरतों भी जिम्मेदार हैं अपनी मौत के लिए ! कन्या भ्रूण ह्त्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं , बल्कि भ्रूण ही जिम्मेदार है जो कोख में गिड़गिड़ाता नहीं की मुझे मत मारो। कल एक आश्रम म... more »
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मंटो की कहानी "खोल दो"

noreply@blogger.com (Smart Indian - स्मार्ट इंडियन) at रेडियो प्लेबैक इंडिया 
जहाँ तक मंटो को भारत और पाकिस्तान में मिलने वाले सम्मान का सवाल है तो पाकिस्तान का समाज तो ख़ैर एक बंद समाज था और वहाँ उनकी कहानियों पर प्रतिबंध लगा और उन पर मुक़दमे चले। लेकिन मैं समझता हूँ कि भारत में प्रेमचंद के बाद यदि किसी लेखक पर काम हुआ है तो वह मंटो है। हिंदी में भी, उर्दू में भी। ~ कमलेश्वर (प्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार) 'बोलती कहानियाँ'' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं

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सिरपुर : जैन विहार एवं बौद्ध स्तूप sirpur

ब्लॉ.ललित शर्मा at ललितडॉटकॉम 
बौद्ध स्तूप हमारा कार्यक्रम प्रात: 9 बजे तक सिरपुर से सिंघधुरवा के लिए निकल जाने का था। लेकिन सुबह की सैर में प्रभात सिंह के साथ वेदपाठ शाला एवं स्तूप देखने के लिए चल पड़े। सिरपुर से पूर्व दिशा में रायकेरा तालाब के किनारे से स्तूप के लिए रास्ता जाता है। स्तूप तक पहुंचने के लिए धान के खेतों को पार करना पड़ता है। खेतों की मेड़ से होकर हम स्तूप तक पहुंचे। स्तूप से लगी हुई वेद पाठशाला है। जहाँ विद्यार्थियों के आवास के साथ शिक्षा का भी प्रबंध था। यहाँ के भवन में दो अंतराल हैं, उसके बाद दो कमरे भी हैं जहाँ विद्यार्थियों के साथ आचार्यगण भी निवास करते रहे होगें। वेद पाठशाला से लगा हुए मंदिर... more »
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तो मित्रॊ आज का बुलेटिन यहीं तक.. मिलते हैं कल फ़िर एक नये अंदाज़ में और एक नये मुद्दे के साथ। तब तक के लिए देव बाबा को इज़ाजत दीजिए...


10 टिप्पणियाँ:

गौतम राजऋषि ने कहा…

बस निःशब्द हूँ !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

@गौतम भाई
निःशब्द हम सब है ... आप के और अपनी सेना के बलिदानों के आगे ...

जय हिन्द ... जय हिन्द की सेना !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

हम आज हिफाज़त से चैन की नींद सो रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि वे जाग रहे हैं शून्य डिग्री सेल्सियस के नीचे भी.. अगर वे सो गए तो अवैसी जैसे गुंडे शहरों में घुसकर सिर काट ले जायेंगे!!
नमन ऐ वीर तुमको!!

shikha varshney ने कहा…

क्या कहें ..

Atul Shrivastava ने कहा…

हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्‍तुतिकरण....
जय हिंद....

vijay kumar sappatti ने कहा…

एक चिट्ठी :

सुना है , कल सरहद पर चली थी गोली ,
कुछ शहीद अब भी हमें मौन से ताकते है ...
उनका कसूर क्या है दोस्त:
सियासत करने वाले कब मोल समझेंगे :
कल टीवी कह रहा था : हमारे नेता इस बात को कहेंगे
उस कहने सुनने में बरसो बीत गए ,
और हजारो शहीद हो गए .
मेरी श्रधांजलि , उन बन्दों को , जो मेरे न होते हुए भी मेरे ही है .
कल से आपकी बहुत याद आ रही है गौतम राजरिशी
अपना ख्याल रखना .

विजय

Udan Tashtari ने कहा…

Hmmm!!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बुधियारों के लिंक?

कविता रावत ने कहा…

जय हिन्द का घोष करती आत्म मंथन कराती बहुत बढ़िया प्रस्तुति हेतु आभार!
जय हिन्द ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच कहा आपने, सेना का मान न धरा तो अपना मान भी न बच पायेगा।

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