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शनिवार, 12 जनवरी 2013

बारह जनवरी और हम.... ब्लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को देव बाबा की तरफ़ से राम राम... आज बारह जनवरी है... बडा ही महत्त्वपूर्ण दिन है हमारे लिए। एक तरफ़ स्वामी विवेकानन्द जी का जन्मदिवस और राष्ट्रीय युवा दिवस और दूसरी तरफ़ मास्टर दा की पुण्यतिथि। आज के दिन इन्हे याद करना हमारा कर्तव्य भी है और हमारी ज़रूरत भी। क्षीण होती जा रही हमारी सभ्यता और संस्कॄति को पालनें और बढानें के लिए स्वामी जी के आदर्षों को समझना और उन्हे अपनानें में ही हमारा हित है। 

स्वामी जी कहते थे..  

बहुरूपों में खडे तुम्हारे आगे और कहां हैं ईश
व्यर्थ खोज यह, जीव प्रेम की ही सेवा पाते अवशीस

जी बिल्कुल सत्य, संसार का सबसे बडा आनन्द दरिद्र की सेवा करनें में ही तो है। सत्य सनातन है, अनन्त है, संसार में सत्य को माननें और उसका आचरण करनें की दीक्षा स्वामी जी दे गये... लेकिन हम आज की आपाधापी और पश्चिम सभ्यता में उनके आदर्षों को ही भूल गये। विश्व बंधुत्व और शत्रु को भी प्रेम में बांध लेनें की सकारात्मक शक्ति का संचार करनें वाले स्वामी जी के सद-वचन सदैव प्रासंगिक रहेंगे। 

शिकागो धर्म महासम्मेलन में स्वामी जी के वचन पढिए: 


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अमेरिकी बहनों और भाइयों,
आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सब से प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।
मैं इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान् जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं। भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

- ' जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।'
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं:

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।

- ' जो कोई मेरी ओर आता हैं - चाहे किसी प्रकार से हो - मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।'
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता । पर अब उनका समय आ गया हैं, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टाध्वनि हुई हैं, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का, तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।

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आईए स्वामीजी को नमन करते हुए हम बुलेटिन को आगे बढाते हैं और मास्टरदा की बात करते हैं... 


आज ही के दिन सन 1934 मे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी सूर्य सेन को चटगांव विद्रोह का नेतृत्व करने के कारण अंग्रेजों द्वारा मेदिनीपुर जेल में फांसी दे दी गई थी |


22 मार्च 1894 मे जन्मे सूर्य सेन ने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की थी और चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया। वे नेशनल हाईस्कूल में सीनियर ग्रेजुएट शिक्षक के रूप में कार्यरत थे और लोग प्यार से उन्हें "मास्टर दा" कहकर सम्बोधित करते थे। सूर्य सेन के पिता का नाम रमानिरंजन सेन था। चटगांव के नोआपारा इलाके के निवासी सूर्य सेन एक अध्यापक थे। १९१६ में उनके एक अध्यापक ने उनको क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित किया जब वह इंटरमीडियेट की पढ़ाई कर रहे थे और वह अनुशिलन समूह से जुड़ गये। बाद में वह बहरामपुर कालेज में बी ए की पढ़ाई करने गये और जुगन्तर से परिचित हुए और जुगन्तर के विचारों से काफी प्रभावित रहे।




 चटगांव विद्रोह

इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की चटगाँव शाखा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद मास्टर दा अर्थात सूर्यसेन ने काउंसिल की बैठक की जो कि लगभग पाँच घंटे तक चली तथा उसमे निम्नलिखित कार्यक्रम बना-

    अचानक शस्त्रागार पर अधिकार करना।
    हथियारों से लैस होना।
    रेल्वे की संपर्क व्यवस्था को नष्ट करना।
    अभ्यांतरित टेलीफोन बंद करना।
    टेलीग्राफ के तार काटना।
    बंदूकों की दूकान पर कब्जा।
    यूरोपियनों की सामूहिक हत्या करना।
    अस्थायी क्रांतिकारी सरकार की स्थापना करना।
    इसके बाद शहर पर कब्जा कर वहीं से लड़ाई के मोर्चे बनाना तथा मौत को गले लगाना।

मास्टर दा ने संघर्ष के लिए १८ अप्रैल १९३० के दिन को निश्चित किया। आयरलैंड की आज़ादी की लड़ाई के इतिहास में ईस्टर विद्रोह का दिन भी था- १८ अप्रैल, शुक्रवार- गुडफ्राइडे। रात के आठ बजे। शुक्रवार। १८ अप्रैल १९३०। चटगाँव के सीने पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध सशस्त्र युवा-क्रांति की आग लहक उठी।
चटगाँव क्रांति में मास्टर दा का नेतृत्व अपरिहार्य था। मास्टर दा के क्रांतिकारी चरित्र वैशिष्ट्य के अनुसार उन्होंने जवान क्रांतिकारियों को प्रभावित करने के लिए झूठ का आश्रय न लेकर साफ़ तौर पर बताया था कि वे एक पिस्तौल भी उन्हें नहीं दे पाएँगे और उन्होंने एक भी स्वदेशी डकैती नहीं की थी। आडंबरहीन और निर्भीक नेतृत्व के प्रतीक थे मास्टर दा।


आजाद भारत के इतिहास में मास्टर दा हमेशा के लिए अमर रहेंगे। बस हमें अपनी विरासत को सम्भाल के रखते हुए अपनें स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद रखना होगा। अपनी आज़ादी की कद्र करते हुए एक अच्छे भारतीय होनें का परिचय देना होगा।

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चलिए अब आपको ब्लाग जगत की हलचलों से रूबरू कराया जाए....
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बंधुआ मजदूर नहीं है देश की सेना !

महेन्द्र श्रीवास्तव at आधा सच...
दिल्ली में देश की बेटी के साथ गैंगरेप की घटना ने लोगों को हिला कर रख दिया है। सच कहूं तो दिल्ली अभी भी इस घटना से उबर नहीं पाई है। भारी ठंड और 2 डिग्री के आसपास तापमान में भी पूरी दिल्ली कई दिनों तक सड़कों पर रही। सबकी एक ही मांग कि बलात्कारियों को फांसी दी जाए और रेप के मामले में तुरंत सख्त कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू हो। हालांकि मैं इस मसले को राजनीतिक नहीं बनाना चाहता, लेकिन एक बात जरूर कहूंगा कि बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने इस गंभीर मसले पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। मेरा अपना मानना है कि सरकार को इस मांग पर वाकई गंभीरता से विचार करना चाहिए था और संस... more »

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लड़ना जानती हैं बेटियाँ

रणधीर सिंह सुमन at लो क सं घ र्ष !
मंजू अरुण की एक कविता की पंक्तियाँ हैं- * ‘‘बेटियाँ यदि ताड़ की तरह बढ़ती हैं तो, छतनार की तरह फैलती भी हैं।’’* और सच आज वह फैल गयी हैं, चारों तरफ़, मुट्ठी भींचे सीना ताने। क्षोभ, क्रोध, आवेश और आहत भाव से कुछ पश्चाताप से भी कि वह बचा नहीं पायीं दरिन्दगों की दरिंदगी की निशाना बनी अपनी एक साथी को। फिर भी एक, थोड़ा झीना ही सही एक आश्वस्त भाव है उनके पास कि वह सत्ता के मद से डूबे लोकतांत्रिक तानाशाहों को कुछ तो झुका पायीं, जो कह रहे थे, सरकारें जनता के पास नहीं जाया करतीं, वह जनता की बेटी का शव लेने एयरपोर्ट तक पहुँच गये, शमशान घाट भी। अब वह जनता के पास जाने के अवसर की त... more »


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भ्रम टूटा है.....

रश्मि at रूप-अरूप 
कहीं कुछ भी नहीं बदला बस एक भ्रम टूटा है और आंखों का कोर तब से भीगा जा रहा है.... ये आंसू भी तुम्‍हारी तरह दगाबाज हैं बि‍न बुलाए आते हैं और न चाहने पर भी रि‍सते रहते हैं लुप्‍त नदी की तरह धरा और चट़टान का सीना चीरकर... कुछ दि‍न और बस कुछ दि‍न प्रेम न सही, भ्रम ही होता खाली मुट़ठि‍यों में अहसासों की छांव तो होती यादों में एक नाम तो होता..... छलि‍ए दो मुस्‍कान दि‍ए थे तुमने अब आंचल भर आंसू के फूल दि‍ए हैं भुला सकूं इतने हल्‍के नहीं उतरे थे तुम कहो तुम्‍हीं क्‍या करूं उन आवाजों का जो दि‍नरात गूंजते हैं कानों में छलि‍या तू...दगाबाज तू... और मेरा प्‍यार भी तो है तू.... more »

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मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई

मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई कीकर के बीज बो रहा है कोई ये तो वक्त की गर्दिशें हैं बाकी वरना सु्कूँ की नीद कब सो रहा है कोई आईनों को फ़ाँसी दे रहा है कोई सब्ज़बागों को रौशन कर रहा है कोई ये तो बेबुनियादी दौलतों की हैं कोशिशें वरना हकीकतों में कब लिबास बदल रहा है कोई नक्सलवाद की भेंट चढ रहा है कोई काट सिर दहशत बो रहा है कोई ये तो किराये के मकानों की हैं असलियतें वरना तस्वीर का रुख कब बदल रहा है कोई आशिकी की ज़मीन हो या भक्ति के पद यहाँ ना धर्म बदल रहा है कोई मीरा की जात हो या कबीर की वाणी सबमें ना उगता सूरज देख रहा है कोई ये तो बुवाई हो रही है गंडे ताबीज़ों की वरना फ़सल के तबाह होने से कब डर रहा... more »


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एक जश्न ऐसा भी ..

*आज मैंने देखा सड़क पर * *एक नन्हा सांवला बच्चा * *प्यारा सा,, खाने की थाली में कुछ ढूंढ़ता हुआ* *उस थाली में था भी तो ढ़ेर सारा पकवान .....* *वहीँ पास उसकी बहन थी* *जो एक सुन्दर से दिए के* *साथ खेल रही थी .....* *दिए की रोशनी से उसकी आँखे चमचमा रहीं थी* *वो छोटी सी झोपड़ी भी दिए के* *रोशनी से रोशन हो गयी थी...* *वरना दूर सड़क पर की स्ट्रीट लाइट * *का सहारा तो था ही...* *बगल में बैठी उसकी माँ * *अपने बच्चों की ख़ुशी से* *फूली नहीं समां रही थी...* *थोड़ी ही दूर अगले मोड़ पर एक दावत थी..* *सेठ जी के पोते का मुंडन था...* *शायद वहां के सेठ-या सेठानी * *इनपर मेहरबान हुए होंगे* *तभी तो आज यह... more »

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स्वामी विवेकानंद जी की १५० वीं जयंती

शिवम् मिश्रा at हर तस्वीर कुछ कहती है ... 
स्वामी विवेकानंद जी को उनकी १५० वीं जयंती पर शत शत नमन ।


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शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 22

संगीता तोमर Sangeeta Tomar at सादर ब्लॉगस्ते! 
*विषय: भ्रष्टाचार** * भ्रष्ट आचरण कर रहे, क्या नेता क्या दास लोकतन्त्र में अब करें, किस पर हम विश्वास जनता का धन लूटकर, जो-जो बने नवाब देना होगा एक दिन, उनको सभी हिसाब अफसर नेता मंतरी, बैठे खोल दुकान सब मिल-जुल कर खा रहे, मेरा देश महान दूजे का हक मारना, जब लगता अधिकार मन में आ जमता तभी, गुपचुप भ्रष्टाचार अधिकारी नेता जपें, घोटालों का मंत्र लोकतंत्र जैसे हुआ, अब घोटाला-तंत्र इच्छाएं बढ़ती रहीं, लालच बढ़ा अपार मिल-जुल कर सबने किया , जब-जब भ्रष्टाचार भ्रष्टाचारी हो गया, जब कुल शासनतंत्र जनता ने मजबूर हो, फूँका ‘अन्ना-मंत्र’ सौ दिन भ्रष्टाचार के, जनता का दिन एक होगा तेरा हश्र क्या, दे... more »



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जब कोई मेरा अपना व्यथित हो तो

मेरे मिलने वाले पूछते हैं आज कल आप व्यथित क्यों रहते हो सदा गंभीर चेहरा लिए दिखते हो जवाब में जब कहता हूँ जब कोई मेरा अपना व्यथित हो तो मैं कैसे खुश रह सकता हूँ सुनने को मिलता है आपके परिवार वाले तो सब खुश दिखते हैं फिर आप ऐसा क्यों कहते हैं कैसे बताऊँ अपने केवल परिवारवाले या रिश्तेदार नहीं होते जो भी प्रेम रखते हैं जिनसे भी मन मिलता है वो भी तो मेरे अपने ही हैं उनमें से एक भी अगर व्यथित है तो फिर मैं कैसे खुश रह सकता हूँ 892-11-03-12-2012 रिश्ता,अपनापन,व्यथित,व्यथा,अपने,पराये, खुशी Dr.Rajendra Tela"Nirantar"


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उठो; चलो भाई!

Gyandutt Pandey at मानसिक हलचल 
अनूप शुक्ला जब भी बतियाते हैं (आजकल कम ही बतियाते हैं, सुना है बड़े अफसर जो हो गये हैं) तो कहते हैं नरमदामाई के साइकल-वेगड़ बनना चाहते हैं। अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा की पैदल परिक्रमा कर तीन अनूठी पुस्तकें – सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे तीरे नर्मदा लिखी हैं। साइकल-वेगड़ जी [...]


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येहूदा हालेवी : शराब के बगैर प्याले

मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते 
*येहूदा हालेवी (1075 -- 1141) की एक कविता... * * ** * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *शराब के बगैर प्याले : येहूदा हालेवी * (अनुवाद : मनोज पटेल) मामूली चीज होते हैं शराब के बगैर प्याले जैसे जमीन पर फेंका हुआ कोई बर्तन, पर रस से छलछलाते, चमकते हैं वे जैसे शरीर और आत्मा. :: :: ::


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हैं प्राण जीवन सांस धड़कन आत्माएं बेटियां

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार at शस्वरं 
*World Daughter's Day* *12th January 2013* *आज का दिवस है बेटियों के नाम !* *प्रस्तुत है एक रचना बेटियों के लिए*** *शीतल हवाएं बेटियां*** *सावन घटाएं बेटियां*** *हंसती हुई फुलवारियां*** *कोमल लताएं बेटियां*** *हैं प्राण जीवन सांस धड़कन*** *आत्माएं बेटियां *** *परमात्मा की प्रार्थनाएं*** *अर्चनाएं बेटियां* *कविताएं सिरजनहार की *** *हैं गीतिकाएं बेटियां*** *जो धर्म-ग्रंथों में लिखी*** *पावन ॠचाएं बेटियां*** *मानव-हृदय में जो बसे*** *वे भावनाएं बेटियां*** *संवेदनाएं बेटियां *** *मन की दुआएं बेटियां *** *जग के लिए विधना की हैं*** *शुभकामनाएं बेटिया* *आंगन की तुलसी*** *देविय... more »

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आशा है आपको आज का बुलेटिन पसन्द आया होगा, तो आज के बुलेटिन का आनन्द लीजिए और देव बाबा को कल तक के लिए इज़ाजत दीजिए
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जय हिन्द
-देव



5 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया लिंक्स
अच्छा बुलेटिन

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत ही बढिया बुलेटिन बांचे हैं हो देव बाबा , सुंदर सार्थक पोस्टों का चयन । जाते हैं एक एक करके सबको पढने

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत प्रभावी और पठनीय सूत्र

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जय हो देव बाबू ... सार्थक बुलेटिन लगाए हो ... जय हो !

vandana gupta ने कहा…

अच्छे लिंक्स संजोये शानदार बुलेटिन

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