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सोमवार, 21 जनवरी 2013

रस बरसे (2)

ब्लॉग बुलेटिन की लोकप्रिय श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" के अंतर्गत हमारे पाठक यानि कि आप में से ही किसी एक को मौका दिया जाता रहा है बुलेटिन लगाने का ... तो अपनी अपनी तैयारी कर लीजिये ... हो सकता है ... अगला नंबर आपका ही हो !

 "मेहमान रिपोर्टर" के रूप में आज एक बार फिर बारी है सोनल रस्तोगी जी की...

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रस बरसे (2)

इतना लंबा सफ़र और पिछली कड़ी में थोड़े से लिंक्स दे पाई , तो अपनी आदत के विपरीत अपनी पसंद के कुछ और पन्ने लेकर जल्द हाज़िर हूँ ,सच में अपनी पसंद के ब्लोग्स की सैर ने मुझे फिर तरो-ताज़ा कर दिया 


एक सिपाही की रचनाओं में अगर आप बन्दूक और बारूद ढूंढ रहे है तो ठहरिये यहाँ प्रेम,विरह और श्रृंगार का मनमोहक मेल है, प्रियतमा के होने की कल्पना तो बहुत हुई अगर वो ना हो तब ,कुछ ऐसे ख़यालात सामने है

कि तुम जो नहीं होती, तो फिर ...?
भोर लजाती ऐसे ही क्या
थामे किरणों की घूँघट ?
तब भी उठती क्या ऐसे ही
साँझ ढ़ले की अकुलाहट
http://gautamrajrishi.blogspot.in/2012/06/blog-post.html

ग़ज़ल हो शेर हों ,नज्में हो तो एक महफ़िल मुकम्मल हो जाती है, फिर महबूब को समझाना के उसे इश्क है ये इतना आसान नहीं है

शेर में मेरे 'चाँद' लफ्ज़ से जलती थी बहुत...

शेर जो पढ़ती वो पूरा, तो इश्क़ हो जाता.
जो लोग गीता, क़ुरानो में जंग ढूँढते हैं...
कभी ग़ालिब को भी पढ़ते, तो इश्क़ हो जाता...


http://dilkikalam-dileep.blogspot.in/2012/08/blog-post_21.html

कितने रंग देखे होंगे आपने और रंगों के होने पर उनके प्रभावों पर कलम भी चलाई होगी, होली बसंत सावन सब मनाये होने पर कभी रंगों को क्या इस नज़रिए से देखा है ?

"मैरून उन मध्यम वर्गीय महिलाओ का रंग है ,जिनके पति की आमदनी उन्हें मन मारना सिखा देती है ,सबके संग चल जाएगा की फिलासोफी को लम्बे समय तक जिया है "
http://battkuchni.blogspot.in/2012/11/blog-post.html

कुछ डाकिये ऐसे है जिनके पहुंचाए ख़त बरबस आपको खींच ले जाते है और उन मजमूनो से गुज़रते हुए आप कहीं खो से जाते है, इन बैरंग लिफाफों के इंतज़ार में अक्सर दरवाजे तक दौड़ जाते है ... सुनो ख़त जल्दी लिखा करो

"डर जायेगी मेरी माँ..
मेरा पुत्र..मुझसे बड़ी उम्र का..?
किस साधू का श्राप लगा है इसे..?
किस जलन की मारी ने कर दिया जादू टोना..
डर जाएगी मेरी माँ.. अब घर को लौटना अच्छा नहीं...(सुरजीत पातर ) "

http://bairang.blogspot.in/2012/08/blog-post_13.html


 कुछ पल ऐसे घटते है जीवन में जो हमारे बचपन की कुंजी हमें वापस सौंप जाते है ,जिज्दगी की दौड़ भाग में इन लम्हों को हम नज़रंदाज़ कर निकल लेते है पर कुछ पारखी हमारे बीच ऐसे है जो चुनकर हमारे सामने लाते है और चेहरे पर मासूम सी हसी बरबस दौड़ जाती है

"बचपन में पढ़ाई के दौरान जब कभी किसी भी विषय की कॉपी भर जाती थी या भरने वाली होती थी तभी उसी क्षण मन में एक नई कॉपी मिलने का उत्साह और उमंग अंकुरित हो उठता था । नई  कॉपी की खुशबू ही अलग होती थी । उस पर लिखने का उत्साह इस कदर प्रबल होता था कि  उस पर लिखने की शुरुआत भी प्रायः नई  पेन्सिल से ही किया करता था ।"
http://amit-nivedit.blogspot.in/2013/01/blog-post.html
 

मुझे अक्सर देसीपन खींचता है ,आंचलिक भाषा में लिखा कोई गीत हो कविता का टुकड़ा या आपसी बातचीत का हिस्सा अचानक कान में पड़े तो ऐसा लगता है किसी ने मुह में गुड की डाली डाल दी हो, जो धीरे धीरे अपनी मिठास घोल रही है उसपर व्यंग का तडका हो तो क्या कहने
"हमारा ऑफिस अन्दर से बिलकुल उस थ्री स्टार होटल के जईसा लगता है  हमने गुडिया का रिसेप्शन करवाया था। हमाये पास अप"ना पर्सनल क्यूबिकल है, और अब तो गाड़ी भी है, ठीक वैसी जैसी नन्हे चाचा ने ज़िन्दगी भर काम कर के रिटायर्मेंट के पहले खरीदी थी। उनको उत्ता टाइम लगा, देखो हमें इत्ता टाइम लगा। हमाये पास अपना कंप्यूटर है।"
http://gaonconnection.blogspot.in/2013/01/blog-post_1246.html

एक तरफ वो लोग हैं जो दुनिया भर में फर्क पैदा करने में लगे है वहीँ हमारे बीच कुछ ऐसे ज़हीन है जो इनसे इतर एकता की बात कर रहे है ,क्या आप जानते हैं
"७८६ अंक को शुभ क्यूँ माना जाता है", अगर नहीं तो इस रोचक जानकारी को यहाँ देख सकते है 

"अगर पूरे वाक्य "बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम" के अंक(नंबर) अबजद से निकालें तो बनेगे 786 इसी लिए मुस्लिम्स में  इसको लकी माना जाता है बहुत से लोग इसको नहीं भी मानते. 
 इस में हिन्दू मुस्लिम्स एकता का भी एक मन्त्र छुपा है अगर हम इसी तरह से " हरे कृष्णा" के निकालें तो भी निकलेंगे 786 दोनों के बिलकुल एक समान. काश ये हमारे कुछ नेता गण समझ जाएँ  इश्वर एक है उसका सन्देश एक है मानवता सब से बड़ा धर्म है."
http://aadil-rasheed-hindi.blogspot.in/2011/10/786-786-786-786.html
अब  एक पुकार अपनी पुरानी सहेली को जो काफी अरसे से लापता है उससे ज्यादा उसकी मीठी गजलों और नज्मो को मिस करते है

गिना देता है ज़ालिम एक पल में ग़लतियाँ सारी

हमने घबरा के थाम ली सनम की उंगलियाँ सारी

वो दिसंबर की एक सुब’ह की दो चाय की यादें

एक मिट्टी के कुल्हड़ में कटी हैं सर्दियाँ सारी



http://insearchofsaanjh.blogspot.in/2011/03/blog-post_28.html

 

आखिर में एक शरारती लम्हा अपनी टोकरी से 

 

"ओह तो ये तुम हो,,,, उसने अपनी उनींदी आँखे खोलते हुए कहा ,
तो रात के ढाई बजे अपने बेडरूम में तुम किसे एक्स्पेक्ट कर रही थी उसकी  की आवाज़ में झुंझलाहट थी ,
 "सलमान खान को ... उसने  मुस्कुराते हुए जवाब दिया."

http://sonal-rastogi.blogspot.in/2012/05/blog-post_08.html 

अब फिर मिलेंगे :-)

6 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

बहुत बढ़िया लिंक्स .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े ही रोचक सूत्र...

HARSHVARDHAN ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन के लिए धन्यवाद।

mridula pradhan ने कहा…

manoranjak.....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सोनल जी मेरी राय मानिए आप भी बकायेदा चर्चा करना शुरू कर ही दीजिये ... :)

एक बार फिर इतनी उम्दा पोस्टों से रूबरू करवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

Saras ने कहा…

बढ़िया लिंक्स ...:)

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