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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

अलविदा 2013 और ब्लॉग बुलेटिन

सभी चिट्ठाकार मित्रों को सादर नमस्ते।।

आज साल का आखिरी दिन है, इसी के साथ 2013 का ये खट्टा - मीठा साल भी बीत जाएगा। मैं उम्मीद करता हूँ कि यह साल आपके लिए काफी सुखमय रहा होगा और आने वाला नववर्ष 2014 आप सबके लिए हार्दिक मंगलमय हो। सादर।। 

अलविदा 2013 


 




अब चलते हैं साल 2013 कि आखिरी बुलेटिन की ओर  ……

 


हिंदी (तथा अन्य भारतीय भाषा) भाषियों को सेमसुंग का नववर्ष उपहार

सीख देती 2013 की तीन घटनाएं

कितनी बेबसी से जा रहा है बीस सौ तेहरा

'एक और साल' धकेला पीछे ......

तरह तरह के ईमानदार

ज़िन्दगी फूलों की नहीं

भ्रष्टाचार को बचा लो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 2013 की घुमक्कडी का लेखा-जोखा

 chandi devi , Haridwar , uttrakhand,चंडी देवी , हरिद्धार

कैलेंडर के बहाने इतिहास से साक्षात्कार...

फ़ुरसत में ... 115 एक अलग तस्वीर - 2014 में ...?

एक 'ऑलमोस्ट सक्सेसफुल' मां की डायरी

नया वर्ष !
  
आने वाले नव वर्ष में....

रिश्ते


अगले वर्ष फिर मिलेंगे।। 2014 आपके लिए मंगलमय हो।।

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

सफ़ेद भेड़ - काली भेड़ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक मासूम हिमालय की तराई में भेड़े चरा रहा था, तभी वहा से एक गुज़रते हुए पर्यटक ने लड़के से पूछा, "ये भेड़े कितना दूध देती है ?"

 लड़का: कौनसी, सफ़ेद वाली या काली वाली ?

 पर्यटक: सफ़ेद वाली।

 लड़का: 3 लीटर।

 पर्यटक: और काली वाली ?

 लड़का: ये भी 3 लीटर देती है।

 पर्यटक: ये ऊन कितनी देती है।

 लड़का: कौनसी सफ़ेद वाली या काली वाली ?

 पर्यटक: सफ़ेद वाली।

 लड़का: 5 किलो।

 पर्यटक: और काली वाली ?

 लड़का: वो भी 5 किलो।

 पर्यटक: अबे साले जब ये दूध बराबर देती है, ऊन बराबर देती है तो फिर ये काली भेड़ ,सफ़ेद भेड़ क्या लगा रखी है?

 लड़का: जी वो बात ये है की ये सफ़ेद भेड़ मेरे पिताजी की है।

 पर्यटक: और ये काली भेड़ ?

 लड़का: ये भी मेरे पिताजी की ही है।

सादर  आपका 
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"टोपी हिन्दुस्तान की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अभी इसके सर कभी उसके सर 

नांगलोई में काव्य गोष्ठी और एडवेंचर मेट्रो ट्रेल -- एक सफ़र की दास्ताँ !

सुनाइए 

विदेश का खोखला आकर्षण

अक्सर आकर्षित करता है 

.....और माँ माँ ही होती है -एक लघु कथा

सत्य वचन 

किताबों की दुनिया - 90

बड़ी अनोखी 

आग से रिश्ता ...

गर्मी भरा 

कितने ही रंग...!

मनभावन

पान की दुकान पर केजरीवाल का असर 

जोशी जी की खास रिपोर्ट 

मिशन मून

पूरा हो सून 

चाहिये था क्या हमें, ये सोचते ही रह गये

कल्पना के पृष्ठ शब्द खोजते ही रह गये

बस उनकी आँखें ही लॉगिन करती हैं

है अपने दिल का अकाउंट बहुत महफूज

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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

रविवार, 29 दिसंबर 2013

'निर्भया' को ब्लॉग बुलेटिन की मौन श्रद्धांजलि

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम |

आज 'निर्भया' की पुण्यतिथि है ... पिछले साल इसी दिन उस ने दम तोड़ा था ... ज़िन्दगी की जद्दोजहद चलती जा रही है तब से अब तक ... १६ दिसम्बर को लगभग सभी न्यूज़ चैनल पर निर्भया को याद किया गया ... और उस दिन को निर्भया की पुण्यतिथि भी बता दिया गया ... पर सच तो यह नहीं था ... २९ दिसम्बर तक वो लगातार लड़ती रही थी ... सिर्फ इस उम्मीद से कि उसे न्याय मिलेगा | 

पर क्या उसे न्याय मिला !!??

आज भी न जाने उस जैसी कितनी 'निर्भया' भटक रही है न्याय के लिए ... बातें तो बहुत हुई है इस मुद्दे पर संसद से ले कर सड़क तक पर अफसोस कि अब तक हमारा समाज जागा नहीं है ... आज भी गाहे बेगाहे ... ऊलजलूल बातें सुनने को मिल जाती है रेप जैसे संवेदनशील मुद्दे के बारे मे ... कोई न कोई "बुद्धिजीवी" अपने ज्ञान की उल्टी कर ही जाता है ... और खोल जाता है पोल इस समाज की कि देख लो न हम तब सुधरे थे न आज सुधरे है |
 
ज़रा सोचिएगा इस मसले पर ... 
 
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और आप सब की ओर से उस जाँबाज लड़की को मौन श्रद्धांजलि !!
 
सादर आपका 
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नक्श फ़रियादी है .....

इक तसल्ली इक बहाना जो मिले ताखीर का हम न पूछेंगे खुदाया क्या सिला तदबीर का आँख पर बाँधे हुए कानून काली पट्टियाँ हौसला कैसे बढ़े ऐसे में दामनगीर का गुफ़्तगू अंदाज तेवर धार की पहचान हो शख्स़ ऐसा क्या करेगा फ़िर भला शमशीर का हम भी आखिर सीख लेंगे इस गज़लगोई का फ़न हमक़दम होने लगा है जब हुनर अकसीर का रेत के दाने मुसल्सल परबतों से तुल रहे खास है मौसम कि या फिर खेल राह्तगीर का रंज राहत धूप छाया इब्तिदा या इन्तिहा *नक्श फ़रियादी है किसकी शोखी ए तहरीर का* उलझनों से जूझ लेते हौसला तो था बहुत इक सही सा मिल न पाया लफ्ज़ बस तकबीर का **** तरही मिसरा जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहब की ग़ज़ल से 

नई तकनीकों से लैस होता कडकडडूमा कोर्ट

अजय कुमार झा at कोर्ट कचहरी
कडकडडूमा न्यायालय परिसर का प्रवेश द्वार दिल्ली की सभी पांच जिला अदालत परिसरों में से कडकडडूमा न्यायालय , जिसमें वर्तमान में दिल्ली के तीन जिलों , पूर्वी , उत्तरपूर्वी और शाहदरा जिला , की अधीनस्थ अदालतें काम कर रही हैं , का विकास शुरू से ही एक आदर्श कोर्ट परिसर की तरह किया गया है । बहुत से नए प्रयोगों व शुरूआत के लिए न्यायिक सुधारों के इतिहास में पहले से ही अपनी ख्याति का परचम लहरा रहे इस न्यायालय परिसर में , देश का पहला ई कोर्ट , देश का पहला संवेदनशील गवाह कक्ष एवं परिसर , हरित न्यायालय परिसर आदि के अलावा यहां सांध्यकालीन अदालतें , नियमित लोक अदालतें , मध्यस्थता केंद्र , विधिक ... more »

"आप" का समर्थन कर मुश्किल में कांग्रेस !

महेन्द्र श्रीवास्तव at आधा सच...
आज बिना लाग लपेट के एक सवाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना... more »
 

अमित श्रीवास्तव ...... "तुम पे, क्या लिखूं"

निवेदिता श्रीवास्तव at संकलन
सुना है, तुम लिखते भी हो, उसने पूछा था | हूँ ! मैंने कहा था | कुछ मेरे पे लिखो, प्यार भरी आँखों, से गुदगुदाया, तनिक मुझे, और उंगलियाँ, पकड़ ली थी मेरी | गोया, उनमें से हर्फ़ निकलेंगे अभी, और वो उन्हें, अपने इर्द गिर्द, समेट लेगी, और बना लेगी, लिबास, एक नज़्म का | मैंने कहा था, हाँ,पर उसके लिए, तुम्हे जानना होगा, मुझे | पर, मै जब भी, कोशिश करता हूँ, जानने की तुमको, तुम, मेरे ख्यालों की ही, हकीकत सी लगती हो | तुम पे कैसे लिखूं, तुम तो 'स्टेंसिल' हो, मेरी नज्मों की, मेरी ग़ज़लों की | समय तुमसे ही, छन कर, आता है, और, छपता सा जाता है, सफों पे, ज़िन्दगी के म... more » 

ये कोशिश है परों को चाँद के फिर से कुतरने की ...

सभी मित्रों को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ... सन २०१४ आपके जीवन में सुख, शान्ति और नित नई खुशियाँ ले के आए ... खबर है आसमां पे कुछ सितारों के उभरने की ये कोशिश है परों को चाँद के फिर से कुतरने की जहाँ से लौटना मुमकिन नहीं होता है जीवन में ज़रूरी तो नहीं उस राह पे तन्हा गुज़रने की किसी के दिल में क्या है ये किसी को क्या पता होगा चलो कोशिश करें इस बज़्म में सजने सँवरने की सफर तय करके अब तो आ गई कश्ती किनारे पर करें अब बात क्या सागर के सीने में उतरने की अगर मिलना वही है जो लिखा है इस मुकद्दर में ज़रूरत क्या है फिर जीने की खातिर काम करने की अकेले भी उतर सकते हो पर अच्छा यही होगा सहारा हो जो तिन... more » 

पिछ्ला साल गया थैला भर गया मुट्ठी भर यहाँ कह दिया

सुशील कुमार जोशी at उल्लूक टाईम्स
*पता नहीं कितना अपनापन है इस खाली जगह पर फिर भी जब तक महसूस नहीं होता परायापन तब तक ऐसा ही सही दफन करने से पहले एक नजर देख ही लिया जाये जाते हुऐ साल को यूँ ही कुछ इस तरह हिसाब की किताब ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पर ऊपर ही ऊपर से नजर डालते हुऐ वाकई हर नये साल के पूरा हो जाने का कुछ अलग अंदाज होता है इस साल भी हुआ पहली बार दिखे शतरंज के मोहरे सफेद और काले डाले हाथों में हाथ बिसात के बाहर देखते हुऐ ऐसे जैसे कह रहे हो'बेवकूफ उल्लूक' खुद खेल खुद चल ढाई या टेढ़ा अब यही सब होने वाला है आगे भी बस बोलते चल... more »

कितने दोहरे मापदंड !

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...
व्यक्ति व्यक्ति से बने समाज के कितने दोहरे मापदंड हैं ! पत्नी की मृत्यु होते उम्र से परे,बच्चों से परे पति के एकाकी जीवन की चिंता करता है खाना-बच्चे तो बहाना होते हैं .... पत्नी पर जब हाथ उठाता है पति तो समवेत स्वर में प्रायः सभी कहते हैं "ज़िद्दी औरत है …………" किसी अन्य स्त्री से जुड़ जाए पति तो पत्नी में खोट ! पत्नी को बच्चा न हो तो बाँझ' बनी वह तिरस्कृत बोल सुनती है दासी बनी दूसरी औरत को स्वीकार करती है वंश" के नाम पर ! वंश' भी पुत्र से !!! … निःसंदेह, पुरुष एक ताकत है शरीर से सक्षम पर स्त्री के मन की ताकत को अनदेखा कैसे कर सकते हैं ! या फिर कैसे उस अबला (!!!) के साथ न... more »

यूँ लगे मुस्कराये जमाना हुआ

सरिता भाटिया at गुज़ारिश
जब से श्वासों का फिर से न आना हुआ ख़त्म जीवन का तब से तराना हुआ / इस कदर चाहता मेरा दिल है तुझे हार कर तेरा ही अब खजाना हुआ / भूल कर बेवफ़ा हो गया अजनबी जब से गैरों के घर आना जाना हुआ / जो किया सामना है दुखों का अभी यूँ लगे मुस्कराये जमाना हुआ / तोड़ना अब न विश्वास तुम फिर कभी दिल हमारा है सबका निशाना हुआ / बेटियाँ हो विदा मायके से गईं पति का घर भी न लेकिन ठिकाना हुआ / जोड़ता यूँ है किसके लिए आदमी खाली ही हाथ जग से रवाना हुआ / . ..............सरिता 

निर्भया की पुण्यतिथि पर विशेष

शिवम् मिश्रा at जागो सोने वालों...
"कल तक सबको 'उस' के दर्द का अहसास था ; आज सब को अपनी अपनी जीत का अभिमान है !! कल जहां रेप पीड़ितों की सूची थी ... उन्ही मेजों पर आज नए विधायकों की सूची तैयार है !! किसी चैनल , किसी सभा मे 'उसके' बारे मे कोई सवाल नहीं है ; बहुतों के तन पर नई नई खादी सजी है तभी तो सफदरजंग के आगे पटाखों की लड़ी जली है ... बेगैरत शोर को अब किसी का ख्याल नहीं है !! जो लोग रोज़ लोकतन्त्र को नंगा करते हो ... उनको एक महिला की इज्ज़त जाने का अब मलाल नहीं है ! 'तुम' जियो या मारो ... किस को फर्क पड़ता है ... आओ देख लो अब यहाँ कोई शर्मसार नहीं है !! दरअसल 'तुम्हारी' ही स्कर्ट ऊंची थी ... 'इस' मे 'इनका' कोई दोष नहीं ... more »

तुम रहोगे दिल में हमारे...

ऋता शेखर मधु at मधुर गुंजन
अलविदा २०१३ स्वागतम् २०१४ नींद भरी आँखें सहला रहा कोई टपकी है गालों पर इक बूँद नन्ही सी मैं जा रहा हूँ करोगे न याद मुझे साथ रहा है तीन सौ पैंसठ दिनों का मुझे याद रहेगी तुम्हारी छुअन पलट देते थे पन्ने हर पहली तारीख़ को देखते थे महीने की छुट्टियाँ सारे व्रत त्योहार और दूध का हिसाब लगाते थे निशान कब गैस बदली कब आएगी बेटी कब किसका है दिन खास कैसे भूलूँगा मैं जन्मदिन तुम्हारा वर्षगाँठ शादी की सी एल की तारीखें कैसे भूल पाऊँगा तुम्हारी आतुर आँखें सैलरी के लिए महीने का बदलना फिर से सहलाया कैलेंडर ने करोगे न याद मुझे माना कि दी हैं हमने कुछ कड़वाहटें भी पर दिया है साथ में पगडंडियाँ भी गुलम... more »

ऐसा वैसा

Rajeev Sharma at कलम कवि की
छुपाना पड़े जो चेहरा कुछ ना हो ऐसा वैसा दागी ना हो वस्त्र कभी जो लगे ऐसा वैसा मिलजुल सब लोग रहे लगे एक परिवार जैसा एक जगह सर्वधार्मिक काम लगे संसार जैसा पहनावा कुछ ऐसा हो बट ना सके जात जैसा खाना सबको मिले सदा मिले दाल भात ऐसा मस्तिषक में भर प्रभु सब के कुछ एक जैसा देख एक दूजे को ना आये विचार ऐसा वैसा
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

"तुम चले जाओगे तो सोचेंगे ... हम ने क्या खोया ... हम ने क्या पाया !!" - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज सुबह टीवी खोलते ही बुरी खबर मिली कि फ़ारुख शेख साहब नहीं रहे ... दिल बुझ सा गया ...
65 साल के सहज एवं विनम्र बॉलीवुड अभिनेता फारुख शेख का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अपनी बीवी और दो बेटियों के साथ वह दुबई छुट्टियां मनाने गए थे और यहीं उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा। फारुख शेख के निधन का समाचार सुनकर पूरा बॉलीवुड सदमे में हैं।
अभिनेता फारुख शेख 1970-80 के दशक की अपनी फिल्मों के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। अपने समय के चोटी के निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया है। गर्म हवा, शतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, चश्मे-बद्दूर, लोरी, बाजार, अब इंसाफ होगा उनकी अहम फिल्में हैं। इस साल उन्होंने ये जवानी है दीवानी और क्लब 60 फिल्मों में काम किया।
फारुख शेख ने कई टीवी सीरियल्स में भी काम किया है। वह थियेटर जगत में भी बड़ा नाम हैं। लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिक 'जीना इसी का नाम है' से इन्होंने ढेरों सुर्खियां बटोरी। 
फ़ारुख़ का जन्म मुम्बई के एक वकील मुस्तफ़ा शेख और फ़रिदा शेख के एक मुसलमान परिवार में जो बोडेली कस्बे के निकट नसवाडी ग्राम के निकट बड़ोदी गुजरात के अमरोली में हुआ। उनके परिवार वाले ज़मिंदार थे और उनका पालन पोषण शानदार परिवेश में हुआ। वो अपने घर के पाँच बच्चो में सबसे बड़े थे।
वो सेंट मैरी स्कूल, मुंबई में पढ़ने गये और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई गये। उन्होंने कानून की पढ़ाई सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ़ लॉ में पूर्ण की।
 फारुख शेख साहब को हम सब की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि |

सादर आपका 

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फुरसत में… 114 नालंदा के खंडहरों की सैर

मनोज कुमार at मनोज
*फुरसत में**… 114* *नालंदा के खंडहरों की सैर[image: 19102011(002)]* *मनोज कुमार* साल जाते-जाते बड़े भाई ने दो आदेश किया। एक कि इस ब्लॉग पर गतिविधि पुनः ज़ारी किया जाए। सो हाज़िर हूं … दूसरे .. मेरे लिए नालंदा की यात्रा वैसे तो हमेशा विशेष ही होती है, इस बार तो और भी खास हो गई, जब इस बाबत Facebook पर Status Update लगाया तो बड़े भाई (सलिल वर्मा) का आदेश हुआ, “*सलिल वर्मा* Please take a full snap of ruins of Nalanda University and send me as New Year Greetings!!” कई बार यात्रा कर चुके नालंदा को इस आदेश के तहत देखने की कोशिश, इस बार हमारी मजबूरी बन गई, नालंदा, जहां प्रसिद्ध चीन... more »

फारुख शेख नहीं रहे ...

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
*फ़ारुख़ शेख़* (२५ मार्च १९४८ - २८ दिसम्बर २०१३) 65 साल के सहज एवं विनम्र बॉलीवुड अभिनेता फारुख शेख का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। अपनी बीवी और दो बेटियों के साथ वह दुबई छुट्टियां मनाने गए थे और यहीं उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा। फारुख शेख के निधन का समाचार सुनकर पूरा बॉलीवुड सदमे में हैं। अभिनेता फारुख शेख 1970-80 के दशक की अपनी फिल्मों के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। अपने समय के चोटी के निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया है। गर्म हवा, शतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, चश्मे-बद्दूर, लोरी, बाजार, अब इंसाफ होगा उनकी अहम फिल्में हैं। इस साल उन्होंने ये जवानी है दीवानी और क्लब 60 फिल्मों ... more »

बधशाला -16

श्री कृष्ण का सर्व प्रथम , जब था पूजन होने वाला क्रोधित हो यह देख, गालियाँ लगा सुनाने मतवाला अरे बोल वह कब तक सुनता , सुनली उसकी सौ गाली वही राजसूय यज्ञ बना , शिशुपाल दुष्ट की बधशाला हाथ कफ़न से बाहर कर दो,ह्रदय नहीं मेरा काला देखे दुनिया ! खाली हाथो , जाता है जाने वाला कहा सिकंदर ने मरते दम , मेरे गम में मत रोना वे ही रोये जिनके घर में , नहीं खुली हो बधशाला गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला 

सोचते सोचते ये साल 2013 भी विदा होने को है

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ
पूरा साल कैसे बीत गया ....ये पता ही नहीं चला |सोचा था इस 2013 में बहुत कुछ लिखूँगी ...पर चाह कर भी कामयाब नहीं हुई |बहुत कुछ तो क्या....मैं अपने मन का लिख भी नहीं पाई | ब्लॉग को पढ़ना और ब्लॉग पर लिखना लगभग बंद है|जीवन की कुछ बंदिशे इतनी रही कि पढ़ने और लिखने का वक़्त ही नहीं मिला | इधर कुछ सालों का अनुभव है कि अपने लेखन में एक अजीब सा सुकून है |एक निष्ठा का आभास हुआ है इस साल जैसे-तैसे मैंने अपने संग्रहों पर काम किया है ....दूसरी ओर बहुत सी ज़िम्मेवारिओं ने ऐसा घेरा कि हम चाह कर भी अपने और इस ब्लॉग जगत को समय नहीं दे पाए | परिवार में कुछ घटनाएँ हमे हिला कर रख देती है ...ऐसा ही कुछ मेर... more »

जंगल की बेटी

lori ali at आवारगी
[image: [hyacinths4.jpg]] *हरसिंगार* *की* *महक* *के* *जैसी**, **हर* *दिल* *पर* *छा* *जायेगी* *रुत* *की* *एक* *सहेली* *है* *वह**, **रुत* *संग* *ही* *खो* *जायेगी* *​​**भौर* *किरन* *के* *साथ* *निकल* *कर* *बगिया**बगिया**घूमेगी* *शाम* *ढले* *सूरज* *के* *संग* *ही* *बादल* *में* *सो* *जायेगी* *लहरों* *लहरो* *टूट* *के* *साहिल* *के* *सीने* *पर* *बिखरेगी* *बादल* *बादल* *रक़्स* *करेगी**, **चिड़ियों* *के* *संग* *गायेगी* *अम्बर* *के* *कच्चे* *रंगों* *पर* *पंछी* *बन* *कर* *डोलेगी* *घास* *के* *ताज़ा* *फूलों* *में* *फिर* *चटखेगी* *मुस्कायेगी* *कोहरे* *के* *आँचल* *में* *लिपटे* *हलके* *गीले* *बाल* ... more »

बड़े बोल की पोल

रचना त्रिपाठी at टूटी-फूटी
देश में सियासत का जुनून सभी सियासी दलों में सिर चढ़ कर बोल रहा है। बिल्कुल वालीवुड की फिल्मों में उस नायक की तरह जो नायिका को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए, उसके सामने अपनी बहादूरी के कारनामें दिखाने के लिए भांति-भांति प्रकार के तरीकों का प्रदर्शन करता हैं। इन तरीकों में सबसे नायाब तरीका यह होता है कि *नायक नायिका के सामने पहले तो खुद गुंडे भेजता है और अपना प्रभाव जमाने के लिए अचानक सुपर मैन की तरह प्रकट होता है, फिर नायिका को उन गुंडों से बचाने का ढोंग करता है। नायिका उसे रक्षक मानकर अपना दिल दे बैठती है।* सियासी दलों के बीच भी वोट पाने के लिए कुछ इसी प्रकार का नाटकीय अभिनय चल रहा ह... more »

जीवन की चाह ......

दर्शन कौर धनोय at मेरे अरमान.. मेरे सपने..
*जीवन की चाह * *जीवन* की इस रेल -पेल में ..इस भाग दौड़ में जिन्दगी जैसे ठहर -सी गई थी ... कोई पल आता तो कुछ क्षण हलचल होती .. फिर वही अँधेरी गुमनाम राहें ,तंग गलियां ... रगड़कर ..धसिटकर चलती जिन्दगी ... वैसे तो कभी भी मेरा जीवन सपाट नहीं रहा .. हमेशा कुछ अडचने सीना ठोंके खड़ी ही रही .. उन अडचनों को दूर करती एक सज़क पहरी की तरह मैं हमेशा धुप से धिरी जलती चट्टान पर अडिग , अपने पैरों के छालो की परवाह न करते हुए -- खुद ही मरहम लगाती रही .....? *निर्मल जल* की तरह तो मैं कभी भी नहीं बहि.. बहना नहीं चाहती थी ,यह बात नहीं हैं .. पर मेरा *ज्वालामुखी *फटने को तैयार ही नहीं था ? अपनी ज्व... more »

"विदा 2013" एक नज़्म.........

दिसम्बर के आते ही सुनाई देने लगती है नए साल की दस्तक जो तेज़ होती जाती है हर दिन मानों आगंतुक अधीर हो उठा हो ! मेरा मन भी अधीर हो उठता है जाते वर्ष की रूंधी आवाज़ और सीली पलकें देख.... बिसरा दिए जाने का दुःख खूब जानती हूँ मैं | तसल्ली दी मैंने बीते साल को कि वो रहेगा सदा मेरी स्मृतियों में ! सो जमा कर रही हूँ एक संदूक में बीते वर्ष की हर बात जिसने मुझे सहलाया/रुलाया/बहकाया/सिखाया... ... संदूक में सबसे नीचे रखीं मैंने अधूरे स्वप्नों की टीस,अनकही बातों की कसक और कहे - सुने कसैले शब्द ! भटकनों को दबा रही हूँ तली में, अखबार के नीचे...... फिर रखे खट्टे मीठे ,इमली के बूटों जैसे दिन..... कि ... more » 

कार्टून:- दि‍ल्ली सरकार में नया फ़ैशन

 

दूरदर्शन :मजबूरी का सौदा

Shalini Kaushik at ! कौशल !
[image: Doordarshan Logo]दूरदर्शन देश का ऐसा चैनल जिसकी पहुँच देश के कोने कोने तक है .जिसकी विश्वसनीयता इतनी है कि आज भी जिन चैनल को लोग पैसे देकर देखते हैं उनके मुकाबले पर भी मुफ्त में मिल रहे दूरदर्शन से प्राप्त समाचार को देखकर ही घटना के होने या न होने की पुष्टि करते हैं ,विश्वास करते हैं और ऐसा लगता है इसी विश्वास पर आज दूरदर्शन इतराने लगा है और अपनी इस उपलब्धि पर ऐसे अति आत्मविश्वास से भर गया है कि हम जो भी करेंगे वही सर्वश्रेष्ठ होगा और वही सराहा जायेगा . आज अन्य चैनल जहाँ अपनी रेटिंग बढ़ने के लिए ,अपनी गुणवत्ता सुधारने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं वहीँ दूरदर्शन को ऐसी कोई च... more » 

जीती न हारी, इस बार तो ठगी गई दिल्ली!

Krishna Baraskar at Swatantra Vichar
दिल्ली ने अभिमानी सत्ताधीशो के खिलाफ न जाने कितने ही आंदोलन देखे है। जाने कितने ही आंदोलनों को सत्ताधीशो के हाथों कुचलते देखा। उसने कई परिवर्तन देखे है अपने साहस और शौर्य से कई परिवर्तन किये है। देष का मुखिया होने के नाते दिल्ली ने अपना हर फर्ज निभाया। अपने इस सफर में दिल्ली न जाने कितनी ही बार हारी और कितनी ही बार जीती है। परन्तु इस बार दिल्ली जिस प्रकार इस षहर अपने अदम्य शाहस का परिचय दिया और एक बड़ा राजनैतिक परिवर्तन करके दिखा दिया। एक संदेश दिया कि अभिमानी सत्ताधीषों को वह कभी बरदास्त नहीं करेगी। इसके लिए दिल्ली के प्रत्येक नागरिक को श्रेय देना चाहिए उन्होने देष को एक ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!  

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन

सभी चिठ्ठाकार मित्रों को सादर नमस्कार।।

चित्र साभार : bhavtarangini.blogspot.com
1850 की दिल्ली में धूल और धुएं का गुब्बार नहीं था। यहां था तो बहादुरशाह जफ़र के रूप में मुगलिया सल्तनत का एक ऐसा वारिस, जिसकी नज़र में पस्तहाल मुगलिया सल्तनत को समझने की संवेदना और संस्कृति से जुड़ी रहने वाली दृष्टि थी। यूं तो हिन्दुस्तान की वास्तविक शासक ईस्ट इंडिया कंपनी थी, लेकिन कई बार इस शासन के लिए वह भी मुगलिया सल्तनत के नाम का सहारा लेती थी। बहरहाल यह अंतिम बादशाह लालकिले की चारदीवारी के भीतर अपने दरबार-ए-खास सजाता था। उसके दरबार में 'जौक' नामक मशहूर उर्दू मसनवीकार भी रहते थे। उनसे मिलने इसी वर्ष आगरे से एक व्यक्ति पहुंचा। लालकिले में पहुंचते ही उस व्यक्ति ने जो शेर पढ़ा, उसे सुनकर उस्ताद 'जौक' परेशान हो गये और बहादुरशाह जफ़र हैरान रह गए। वह शेर था -


'हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे, कहते हैं ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयां और।'


 आज मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर पूरा हिंदी ब्लॉगजगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती है। सादर।।


अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर ....















कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि।। 

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

अमर शहीद ऊधम सिंह ज़िंदाबाद - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम |

आज २६ दिसम्बर है ... आज अमर शहीद ऊधम सिंह जी की ११४ वीं जयंती है |


लोगों में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि माइकल ओडवायर को मारा था जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था।
ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। ऊधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे।
26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया।
इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है।
ऊधम सिंह अनाथ थे। सन 1901 में ऊधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।
ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले।
अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे।
माइकल ओडवायर

ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर
इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दे। इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए।
जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएं से ही मिले।
आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डाक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी। राजनीतिक कारणों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई।
इस घटना से वीर ऊधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओडवायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। ऊधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा उचित समय का इंतजार करने लगे।
गिरफ्तारी के तुरंत बाद का चित्र 
भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला, जब माइकल ओडवायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया।
ऊधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने ओडवायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं।
ओडवायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अदालत में ऊधम सिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियां बचीं थीं, तो उन्होंने उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। इस पर ऊधम सिंह ने जवाब दिया कि हां ऐसा कर मैं भाग सकता था, लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।
31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। ऊधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओडवायर को जहां ऊधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर बुरी मौत मारा गया।
 
सादर आपका 
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फूल सी मुनमुन जब ज्वालामुखी बन जाती है !

Dayanand Pandey at सरोकारनामा 

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

मैरी क्रिसमस एंड हैप्पी ब्लॉगिंग टू यू




दिल्ली में सर्दी और गर्मी दोनों ही अचानक बढ गई है । राजधानी है सो कभी अपराध से , कभी किसी फ़ैसले से , तो कभी किसी सियासी उठापटक से यूं ही तापमान बदलती रहती है । लेकिन इस बीच ये उहापोह वाली स्थिति कुछ ज्यादा ही लंबी हो उठी है । ऐसे में जबकि आज ईसाई धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार क्रिसमस साल को फ़ेयरवेल पार्टी देने पहुंचता है  व पश्चिमी जगत में कहा जाए तो वार्षिक छुट्टियों का आगाज़ होता है आज के दिन से , आज से ही इस साले के डूबने और नए साल के उगने की उलटी गिनती शुरू हो जाती है । वर्ष २०१३ भी अब बीतने के कगार पर है , और पिछले अन्य सभी सालों की तरह ही भारी उलट पुलट के साथ ही हम नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं । आप सबकि क्रिसमस की बधाइयां और शुभकामनाएं और नए वर्ष के लिए भी अग्रिम बधाई व शुभकामनाएं .......

आइए अब आपको कुछ चुनिंदा पोस्टों के लिंक यहां चुटीले सूत्रों के साथ दिखाते हैं , बांचिए एक एक पर पहुंच के



केजरीवाल एक बार 'OMG' जरूर देखें :
सरकार बनाने से पहले या बाद में :)


घर से माल कमाने निकले , रंग बदलते "गंदे लोग" :
गाते हुए कि अब करूंगा "गंदी बात , गंदी गंदी गंदी बात " :)


बिना दवाओं के भी कम कर सकते हैं उच्च रक्तचाप :
मन को हो न कोई क्लेश, न तन को ही होने पाए संताप

चलो अब ये सलीब भी उतार दें :
पहले किसी मसीह की गर्दन तो उधार लें

तुम न जाने किस जहां मे खो गए :
कभी हम तुम हुए कभी हम तुम ही हो गए

पगडंडी :
पर लिखी गई पोस्ट

जाने कैसा मेरा मुझसे लिज़लिज़ा नाता है :
हमें तो अंदाज़े बयां ये मन को खूब भाता है

हृदय का रिक्त है फ़िर एक कोना :
जैसे कि होकर भी नहीं है होना

अंतिम प्यार हूं :
स्पष्ट इकरार हूं

दर्द -हमदर्द :
सुर्ख और ज़र्द

तेरी राह में :
कोई स्पीडब्रेकर न आने पाए

वो सुबह  दीजीए :
फ़िर चाय पीजीए :)

वो खाली पन्ने :
फ़ौरन भर डालो :)

ड्रोन आएगा, डाक लाएगा :
पप्पू पेजर कहां जाएगा :)

कोई घर तोड रहा है तो कोई कर रहा है सरेआम अपमान :
हाय रे इंसान अब तक नादान

और अब काजल भाई का सन्नाट कार्टून ........


मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

मोहम्मद रफ़ी साहब और ब्लॉग बुलेटिन

सभी चिट्ठाकार मित्रों को सादर नमस्कार।।

आज महान गायक मोहम्मद रफ़ी साहब जी का जन्मदिवस है। अगर आज वो हमारे बीच होते तो 89 वर्ष के हो गए होते। रफ़ी साहब का जन्म 24 दिसम्बर, 1924 ई. को अमृतसर में हुआ था। इन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 25 हज़ार गीतों को अपनी सुरमयी आवाज़ दी थी। इन्हें अपने यादगार गानों के लिए ही "शहंशाह-ए-तरन्नुम" भी कहा जाता है। रफ़ी साहब ने अपनी गायकी से सात बार बेस्ट सिंगर का फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता था। रफ़ी साहब ने अपने समय के कई मशहूर अभिनेताओं जैसे देव आनंद, गुरु दत्त, दिलीप कुमार, भारत भूषण, राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर, जॉय मुखर्जी, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर के लिए कई यादगार नगमें गाए थे। 31 जुलाई, 1980 ई. को मुम्बई में ह्रदय गति रूक जाने से इस महान गायक का निधन हो गया था।


आज मोहम्मद रफ़ी साहब के जन्मदिवस पर पूरा हिंदी ब्लॉगजगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम रफ़ी साहब को श्रद्धापूर्वक नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती है। सादर।।



अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर  ………


















 कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि और हैप्पी मैरी क्रिसमस।।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

बदसूरत बच्चा और ब्लॉग बुलेटिन

सभी मित्रों को सादर नमन।।

आज आप सबके लिए पेश है एक मजेदार चुटकुला - बदसूरत बच्चा!

एक महिला बच्चे को गोद में लिए हुए बस में चढ़ी। ड्राइवर ने उसके बच्चे कि तरफ देखा और कहा, "मैंने ऐसा बदसूरत बच्चा आज तक नहीं देखा।" महिला ने टिकट लिया और पीछे बैठ गई। उसे ड्राइवर की बात का बुरा लगा था, इसलिए वह थोड़ी उदास सी थी। उसके पास बैठे आदमी ने पूछा, "बहन जी क्या बात है ? आप परेशान लग रही हैं।"
महिला बोली - "अभी-अभी ड्राइवर ने मेरी बेइज्जती की है।"
आदमी बोला - "क्यों ? वह तो जनता का नौकर है उसे यात्रियों की बेइज्जती नहीं करनी चाहिए।"
महिला बोली - "आप ठीक कहते हैं, मुझे उसकी बदतमीजी का जवाब देना चाहिए, ताकि मन को शांति मिले।"
आदमी बोला - "ये बहुत अच्छी बात कही आपने, आप जाइये और  ………… इस बन्दर को मुझे दे दीजिये !!"

 


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  ……














कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि।।

रविवार, 22 दिसंबर 2013

भारत का सबसे गरीब मुख्यमंत्री और ब्लॉग बुलेटिन

सभी चिट्ठाकार मित्रों को सादर नमस्कार।। 

सबसे पहले पिछले दो दिनों से बुलेटिन पेश ना होने के कारण आप सबसे माफ़ी चाहूँगा। दरअसल ब्लॉग बुलेटिन के कर्ता-धर्ता आदरणीय शिवम् मिश्रा जी के अस्वस्थ होने के कारण मन दुःखी था सोचा कि क्या ऐसे वक़्त में बुलेटिन पेश करना ठीक रहेगा या नहीं!! लेकिन जब शिवम् भईया से बात हुई तो उन्होंने हौसला बढ़ाया और कहा कि -"तुम अपना कार्य करते रहो और मैं भी जल्द ही स्वस्थ होकर वापस लौटता हूँ।" 
[IMG00647-20130304-1217.jpg]
इसलिए आज आप सबसे ये निवेदन है कि शिवम् भईया के जल्द से जल्द स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना करें।  सादर।।


 मानिक सरकार
मानिक सरकार को देश का सबसे गरीब मुख्यमंत्री कहलाने से कोई गुरेज नहीं है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के लिए यह कोई शर्म वाली बात नहीं है बल्कि वह इसे प्रशंसा की निगाह से देखते हैं। मानिक सरकार ने एक इंटव्यू में कहा कि उन्हें उन रिपोर्टों को पढ़ कर खुशी होती है, जिनमें उनकी माली हालत के बारे में बताया गया होता है। वह कहते हैं, जब लोग इस तरह की बातें करते हैं तो मुझे सचमुच अच्छा लगता है। मानिक सरकार की चल और अचल संपत्ति ढाई लाख रुपये से भी कम की है। ऐसे दौर में जब देश के किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के पास कई करोड़ रुपयों की दौलत हो उसमें मानिक सरकार की संपत्ति के बारे में सुन कर आश्चर्य ही होता है। लगातार चार बार मुख्यमंत्री रहते आए मानिक सरकार के शपथ पत्र के मुताबिक पिछली बार धानपुर से चुनाव लड़ते वक्त उनके पास कैश के तौर पर सिर्फ 1080 रुपये थे। बैंक बैलेंस मात्र 9720 रुपये का था। माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य मानिक सरकार से यह पूछा गया कि जब चारो ओर भ्रष्टाचार का दौर है तब भी वह इतना स्वच्छ और सादा जीवन कैसे जी रहे हैं। इस पर उन्होंने कहा कि, यह सब मेरी पार्टी की ही देन है।
  
साभार : अमर उजाला 


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर …… 




 कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि।।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

बलिदान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी चिट्ठाकार मित्रों को हार्दिक नमस्कार।।


आज भारत के तीन महान सपूतों का बलिदान दिवस है।  ये महान क्रांतिकारी शहीद हैं - राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ और ठाकुर रोशन सिंह। इन तीन महान क्रांतिकारियों को "काकोरी कांड" षड्यंत्र को रचने एवं उस कांड अंजाम देने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 19 दिसंबर, 1927 ई. को अलग - अलग जेलों में फाँसी के तख्ते पर चढ़ा दिया था। राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खाँ को फैज़ाबाद और ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद। इन महान क्रांतिकारियों के बलिदान को देश कभी भी नहीं भूलेगा।। सादर।। 

राम प्रसाद बिस्मिल
अशफाक उल्ला खाँ 
शहीद ठाकुर रोशन सिंह 
काकोरी कांड के स्मृति में जारी डाक - टिकट 

आज भारत माता के तीनों महान सपूतों को पूरा हिंदी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम शत शत नमन और श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करती है।  


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  ……














कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि।।

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

कैसे कैसे लोग ???

नमस्कार दोस्तों 

सबसे पहले आप सबसे माफ़ी चाहूँगा कि पिछले दो दिन १५ - १६ दिसम्बर को बुलेटिन आप तक नहीं पहुँच पाई | कुछ तकनीकी कारणों के चलते बुलेटिन लगा पाने में असमर्थ रहे | खैर चलिए आज बहुत समय बाद बुलेटिन लगाने का अवसर प्राप्त हुआ है | पिछले दिनों रश्मि दी ने जो अवलोकन कर पोस्ट लगाई वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहीं | उनके अवलोकन के कारण सभी को बहुत हौसला प्राप्त हुआ | अपनी-अपनी लेखनी में और ज्यादा परिपक्वता लाने और सुधार करने का भी मौका मिलेगा | आज आप सभी के साथ मैं अपना एक निजी अनुभव साँझा करना चाहता हूँ | उम्मीद करता हूँ आप सबके विचार और बहुमूल्य टिप्पणियां ज़रूर प्राप्त होंगी | 


अभी हाल ही में एक बहुत ही गहन अनुभव हुआ | जीवन में हम सब को बहुत से उतार चढ़ाव और विषम परिस्थितियों से गुज़ारना पड़ता है | ऐसी परिस्थियों में हमें अपना संयम बनाये रखने की आवश्यकता होती है | अपनी बुद्धि, विवेक और चेतना के सहारे से ही ऐसे कठिन समय में  अपने निर्णय लेने होते हैं | ऐसे समय में हमारा सामना और संपर्क अनेक प्रकार के लोगों से भी होता है | उनमें से कुछ लोग हमारा मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं, कुछ हमें सांत्वना देते नज़र आते हैं, कुछ अपनी बातों से आपका अपमान भी करते हैं, कुछ अपने अनुभवों के आधार पर हमें नए रास्ते दिखने की कोशिश करते हैं, कुछ हमारे ऊपर दोषारोपण करते हैं, कुछ लोग हमें इस्तेमाल करना चाहते हैं, कुछ ना जानते हुए भी हमें परखने लगते हैं, कुछ सिर्फ अनुमान के बल पर अपना मत देने लग जाते हैं और कुछ दोस्ती का झूठा चोगा पहन कर आप से आपकी निजी ज़िन्दगी के बारे में सब कुछ जानने की कोशिश करते हैं और सब कुछ जान लेने पर वह आपका उपभोग करना चाहते हैं या अपनी कटीली विचारधारा से आपको चोट पहुंचाते हैं | आज ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में मैं आपके ख्याल जानने की इच्छा से यह लेख आप तक पहुंचा रहा हूँ | 

ऐसे लोग दरअसल दो मुंहे सांप की तरह होते हैं | जो आपकी तकलीफ़ में अपने आनंद को ढूंढते हैं और अपनी संकीर्ण मानसिकता के चलते या फिर अपने झूठे अहम के चलते आपकी हर बात को गलत ठहराने मैं लगे रहते हैं और आपको छोटा महसूस करा नीचा दिखने का प्रयास करते हैं | एक तरफ वो दोस्ती का दम भरते हैं और दूसरी ओर आपको ही चोट पहुँचाने की चेष्टा करते हैं | कुछ जान बूझ कर और कुछ अनजाने में भी ऐसा करते हैं | 

अभी हाल ही में मेरा भी एक ऐसे व्यक्ति से सामना हुआ | हालाँकि वह पुराने परिचित थे | परन्तु कई सालों बाद उनसे मुलाक़ात हुई | शुरू शुरू में वार्तालाप बहुत सुखद रहा | वक़्त गुज़रते बातों का सिलसिला बढ़ा और निजी ज़िन्दगी के अनुभवों का आदान प्रदान होना शुरू हुआ | मुझे उन्हें समझकर और उनकी मानसिकता को देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि उन्हें मेरे जीवन के बारे में जानने में ज्यादा दिलचस्पी थी बनिज्बत अपने बारे में बताने और बात करने के | बात बात पर दोस्ती का उलाहना दिया जाता और जताया जाता कि वह मेरे कितने घनिष्ट है | परन्तु जब भी उनसे उनके विषय में कोई सवाल किया जाता तो वह तुरंत बात को घुमा देते, या उस दौरान हो रही बातचीत से पलायन कर लेते या फिर सवाल के जवाब में एक और सवाल खड़ा कर देते | हमेशा खुश रहने वाले, ज़िंदादिल और जीवंत रहने का दिखावा करने वाला वह प्राणी मुझे मानसिक रूप से बहुत ही बीमार प्रतीत हुआ | धीरे धीरे उन्होंने अपने खयालातों को शब्दों को चाशनी में भिगो भिगो कर परोसना प्रस्तुत किया और यह दर्शाना प्रस्तुत किया कि वह कितने बड़े विद्वान् हैं | उन्हें मेरी हर बात काटने में बेहद ख़ुशी होने लगी | उनकी बातों से ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे वो मुझे अपने समक्ष कितना तुच्छ और अज्ञानी समझते हैं | किसी बात पर यदि उन्हें ज़िरह या चर्चा करने या उनके विचार जानने की इच्छा जताई तो तुरंत बात को वहीँ खत्म कर देने की कवायत शुरू हो गई | मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी किताबें पढने वाला व्यक्ति भला ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है | हर बात में अपनी बातों को सिद्ध करना, तर्क-वितर्क तो छोड़िये तुरंत कुतर्क पर उतर आना और बहस में पड़ जाना किसी समझदार और शिष्ट इंसान के व्यक्तित्त्व पर प्रश्न चिन्ह अंकित कर ही देता है | खैर नतीजा यह सामने आया के मैंने उनके समक्ष हाथ जोड़ दिए और उनसे अब किनारा कर लिया है | 

मेरा सवाल सभी से बस इतना है कि ऐसे लोग जो सोशल मीडिया साइट्स पर या निजी जीवन में आपसे जुड़ते हैं या आप उनकी पोस्ट्स पढ़कर उन्हें जोड़ते हैं या अपना दोस्त बनाते हैं, वह कहाँ तक सही होता हैं ? क्या ऐसे लोगों के साथ अपने निजी अनुभवों को बांटा जाना चाहियें ? क्या जो सामग्री वह पोस्ट करते हैं उनकी मानसिकता भी वैसी ही होती है ? क्या जो चेहरा वह लोगों को दिखाते हैं वह उनका असली चेहरा होता है ? क्या वह अपने को दूसरों से ऊपर समझते हैं और श्रेष्टता मनोग्रन्थि रुपी बीमारी उनसे चिपकी होती है ? क्या सोशल मीडिया के ज़रिये वह अपने मानसिक स्तर से विपरीत आचरण करते हैं ? क्या अपनी खीज, खिन्नता और अपने जीवन में मिले खालीपन को भरने की कोशिश करने के लिए वह यहाँ जुड़ते हैं और दूसरों से दोस्ती करते हैं ? क्या दूसरों की ज़िन्दगी में झाँकने, उन्हें अपमानित करने और दूसरों की परिस्थितियों का मज़ाक बनाना उनका शौक होता है ? ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना उचित होगा ? ऐसे लोगों की मानसिक संतुलन के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे ? ऐसे लोगों को मानवीयता की किस श्रेणी में रखा जाना चाहियें ? 

बस आज इस बात को लेकर मेरा चर्चा करने का मन है | मेरे सवालों के जवाब आपकी टिप्पणियों के रूप में मिलें तो बहुत अच्छा लगेगा |  

आज की कड़ियाँ 












अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

लेखागार