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रविवार, 4 नवंबर 2012

एटीएम बोला यू हिन्दी तो नो मनी - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज एक बड़ी अजीब बात हुई ... लीजिये आप भी देखिये ... कैसे मुझे ज़ोर का झटका ... ज़ोर से लगा ...

लो जी कर लो बात ... अब इंसान तो इंसान ... ससुरी मशीन भी अब हिन्दी को नीची निगाह से देखने लगे है ... आज मैनपुरी मे एक एटीएम मे गया तो वहाँ मशीन पर यह चिट लगी देख हैरत मे आ गया ... मैंने तुरंत अपने मोबाइल से इस का फोटो ले लिया ! 
सच कहूँ तो काफी हैरत हुई यह देख कर कि किस तरह बैंक वालों ने एटीएम पर केवल एक चिट लगा अपनी ज़िम्मेदारी की इति श्री कर ली ... मैनपुरी जैसे छोटे शहर मे जहां ज़्यादातर लोग हिन्दी मे ही सहज है और बैंक के मामलों मे इतने जानकार नहीं है वहाँ बैंक वालों की यह लापरवाही कितने लोगो के लिए दिक्कत का कारण बनी होगी उसका हम केवल अंदाज़ ही लगा सकते है खास कर तब जब दिवाली आने वाली हो !
मैंने अपने पत्रकार बंधुओ से संपर्क कर इस की सूचना दे दी ... अब देखते है कल क्या होता है ???
सादर आपका 
शिवम मिश्रा  
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श्रेयस के कार्टून

*श्रेयस नवरे की कार्टून प्रदर्शनी* हिन्दुस्तान टाइम्स (मुम्बई) के कार्टूनिस्ट श्रेयस नवरे के विगत ५ सालों में प्रकाशित कार्टून और कैरीकेचरों की प्रदर्शनी मुम्बई में आयोजित की जा रही है। २० से २६ नवम्बर २०१२ तक चलने वाली इस प्रदर्शनी की मेजबानी नेहरू सेंटर फॉर आर्ट गैलरी कर रही है। श्री और श्रीमती आर.के. लक्ष्मण ने मुख्य अतिथि के रूप में आने और प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए अपनी स्वीकृति दे दी है। आप सभी कार्टूनप्रेमी और कार्टूनिस्ट परिवार व मित्रों के साथ प्रात: ११.०० बजे, मंगलवार, २० नवम्बर, २०१२ को आमन्त्रित हैं। *• टी.सी. चन्दर*

ज़रा एक बार सोच कर देखिये

मैं जानती हूँ आज मैं जो कुछ भी लिख रही हूँ उससे बहुत से लोग असहमत होंगे खासकर वह लोग जो यह समझते है या मानते हैं की मैं अपनी पोस्ट में हमेशा पुरुषों का पक्ष लेती हूँ। जो कि सारा सर गलत बात है मैं किसी का पक्ष या विपक्ष सोचकर नहीं लिखती बस वही लिखती हूँ जो मुझे महसूस होता है मगर फिर भी कुछ लोग हैं, जिन्हें ऐसा लगता है कि मुझे लिखना ही नहीं आता। जी हाँ इस ब्लॉग जगत में लिखते मुझे दो साल हो गये यह मेरा पहला अनुभव है जहां मुझे अपने कुछ आलोचकों से यह जानने को मिला कि मुझे लिखना ही नहीं आता इस बात से एक बात और भी साबित होती है कि जिन लोगों को ऐसा लगता है वह लोग भी मेरी पोस्ट पढ़ते ज़रू... more » 

कार्टून :- प्‍लीज़, पुलि‍स की सहायता कर दीजि‍ए


थोड़ी बात करें ज़िन्दगी की!

मनोज कुमार at विचार
*थोड़ी **बात करें* *ज़िन्दगी की!* *[image: IMG_1688]* *एक बार मैंने उन्हें कह दिया तुम मेरी ज़िन्दगी हो! बहुत ख़ुश हुईं!! खनकती आवाज़ में बोलीं, “शुक्रिया!”* खनक! सिक्कों की खनक तो सुनी ही होगी आपने। सिक्के, मूल्य वाले तो होते हैं एक, दो, पांच के, पर आवाज़ ज़्यादा निकालते हैं। वहीं दस, बीस, पचास, सौ, पांच सौ और हज़ार के नोट शांत होते हैं, ख़ामोश रहते हैं। क्यों? क्यूंकि उनका मूल्य अधिक होता है। इसी तरह ज़िन्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। यह स्थिति तो ज्ञान के संचय से ही आती है। इस अवस्था में ज़िन्दगी सुंदर होती है। सु... more »

स्पेलगुरू : हिंदी वर्तनी जाँच हेतु बेहतरीन सुविधाओं युक्त एक शानदार नया प्रोग्राम

अपनी हिंदी सुधारने के लिए अब आपके पास विकल्पों की कमी नहीं रही. हाल ही में भाषागिरी.कॉम ने हिंदी सुधारने - यानी हिंदी वर्तनी जाँच के लिए एक बेहतरीन प्रोग्राम जारी किया है - स्पेलगुरू. आरंभिक जांच पड़ताल में यह प्रोग्राम उम्दा लग रहा है. इसका शब्द-भंडार भी विशाल है. और, जो चीज इसे विशिष्ट बनाती है वह है इसका इंटेलिजेंट वर्तनी जांच सिस्टम जो आपके कर्सर पोजीशन और क्लिक के आधार पर आपको वर्तनी जांच की अलग अलग सुविधा प्रदान करता है. जैसे कि यदि आप गलत वर्तनी वाले शब्द के शुरू में बायां क्लिक करेंगे तो शुरुआती अक्षर को ध्यान में रखते हुए वैकल्पिक शब्द का सुझाव देगा, और यदि आप शब्द के आखि... more »

तूफ़ान, बर्फ और उत्सव

भारतीय पर्व पितृपक्ष की याद दिलाने वाला हैलोवीन पर्व गुज़ारे हुए कुछ समय हुआ लेकिन हाल में आये भयंकर तूफ़ान सैंडी के कारण अधिकाँश बस्तियों ने उत्सव का दिन टाल दिया था। हमारे यहाँ यह उत्सव आज मनाया गया। खूबसूरत परिधानों में सजे नन्हे-नन्हे बच्चे घर घर जाकर "ट्रिक और ट्रीट" कहते हुए कैंडी मांग रहे थे। विभिन्न स्कूलों व कार्यालयों में यह उत्सव कल या परसों बनाया गया था जब सभी बड़े और बच्चे तरह तरह के भेस बनाए हुए टॉफियों के लेनदेन में व्यस्त थे। आसपास से कुछ चित्रों के साथ आपको हैलोवीन की शुभकामनाएं! सैंडी तूफ़ान ने अमेरिका के न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी समेत कुछ क्षेत्रों में काफ़ी तबाही... more »

कशमकश

*ओह!! कितना मिस किया अपने ब्लॉग को , शायद ही कभी दो पोस्ट के बीच इतना लम्बा अंतराल आया हो . कई विषय मन में उमड़ते घुमड़ते रहे पर सख्ती से उन्हें रोक दिया, कुछ ज्यादा ही सख्ती करनी पड़ी क्यूंकि आदत जो पड़ गयी है, **जो मन में आया, ब्लॉग पर उंडेल ** देने की* *,loud thinking में जैसे बोल बोल कर के सोचते हैं,वैसे ही हम लिख लिख कर सोचते हैं :)* * * *पर कुछ ऐसे काम में व्यस्त थी ....**और इतने सारे डेड लाइंस थे .{अभी भी बाकी हैं :(}*...*कि ब्लॉग का ही समय चुराना पड़ा, सिर्फ अपने ब्लॉग का ही नहीं पूरे ब्लॉगजगत का। किसी की पोस्ट पढना मुमकिन नहीं हुआ। अभी भी बस कुछ समय का ब्रेक ही लिया है ... more »

चाँद

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा
चाँद भी अक्सर यूँ ही बेवफा हो भी जाता है कस्मों को भूल रस्मों की याद दिला जाता है रस्मों को उलझाती हुई हर कशमकश में उमगती चांदनी पर अमावस की याद में धुंधलाती चादर का धूमिल शामियाना बन राहों में श्वांस - श्वांस किरच सा बिछ जाता अपनी ही नहीं बेगानी बेपानी आँखों में भी अविरल बरसती अश्रु धार सौगात दे जाता ये रेगिस्तानी ओस भी हमारे दरमियाँ पल नागफनी की चुभन सा डस दंश दे जाती है कसूरवार चाँद है या उस चंदा की ही चांदनी अनसुलझी पहेली सा चाँद ताकझाँक करता चमक - चमक कर ढूँढने निकला अपनी ही अलबेली लगती सी चांदनी को .............. -निवेदिता

जिन्दगी मिलेगी दोबारा..

संजय @ मो सम कौन ? at मो सम कौन कुटिल खल ...... ?
1. देर रात गये राजा को माँस खाने की इच्छा हुई, फ़ौरन ही आदेश पालन की तैयारी होने लगी। माँस उपलब्ध करवाने वाले ने सोचा कि बकरे के शरीर से बाहर लटकते अंडकोष को काटने मात्र से  ही अभी का काम चल जायेगा और यह सोचकर छुरी हाथ में लेकर आगे बढ़ा। बकरा हो हो करके हँसने लगा। चकित वधिक मुँह बाये उसकी ओर देखने लगा तो बकरे के मुँह से आवाज आई, "जाने कितने जन्मों से मैं तेरा  और तू मेरा गला काटते आये हैं,

मंज़िल तेरी उस पार है

Maheshwari kaneri at अभिव्यंजना
थकना नहीं ,ओ पंछी मेरे मंज़िल तेरी उस पार है पंख फैला ,उड़ता चल हर सांस में विश्वास भर उड़ते हुए आकाश पर कैसी थकन कैसी तपन भूल तन के पीर को श्रम से किस्मत बदल बाधाओं से डरना नहीं राह में रुकना नहीं चाहे घनेरी रात हो लक्ष पर रख कर नज़र तू चल अपनी डगर चिंता तज ,मत हो विकल क्यों बहाता नीर रे ? छल से बुना संसार है निकल इस जंजाल से चलना अभी दूर है थकना नहीं ओ पंछी मेरे मंज़िल तेरी उस पार है *************** महेश्वरी कनेरी

उसकी दूरी का ये अहसास खलता बहुत है

*उसकी दूरी का ये अहसास खलता बहुत है* *उससे मिलने की तमन्ना दिल करता बहुत है...* * * *तस्वीरों में देखती हूँ उसे इसके - उसके साथ* *अपनी तस्वीर में उसे सजाऊँ ऐसी हसरत भी बहुत है...* * * *दिवार - ए - जात हमारे मोहब्बत के दरमियाँ खड़ी है* *दरख्तों के साए में खुद को छुपाऊँ जी करता बहुत है...* * * *उसकी इबादत - ए- मोहब्बत इस कदर भा गयी है मुझे* *की उसको पाने की खातिर दील मचलता बहुत है...* * * *खोकर उसको जीना ये मुमकिन नहीं रीना* *उसको खोने के डर से ही ये दील सहमता बहुत है...* * * *उसकी दूरी का ये अहसास खलता बहुत है* *उससे मिलने की तमन्ना दिल करता बहुत है...*

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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!

4 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया लिंक्स

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर सूत्र हैं, हिन्दी क्षेत्रों में अंग्रेजी की दादागिरी..

vandana gupta ने कहा…

्सुन्दर बुलेटिन

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब अंग्रेजों को हुकूमत के लिए आने की ज़रूरत नहीं ... यहाँ अंग्रेजियत के बीज लहलहा उठे हैं . भाषा जानना और किसी भाषा को प्राथमिकता देना , दो अलग बातें हैं और यही दुखद है

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