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गुरुवार, 22 नवंबर 2012

बैठ जाईए.. बैठ जाईए... ब्‍लॉग बुलेटिन


आज संसद शुरु हुई.. ११ बजे शुरु हुई... फ़िर उन्होनें ब्रेक के बाद ब्रेक लिए... बकर बकर और शोर में केवल एक ही आवाज सुनाई दी... बैठ जाईए.. बैठ जाईए.... हद है यार... इत्ते सारे सांसदों के चिल्लम चिल्ली में कौन सुनता है इनका.... और यह मैडम भी एकदम न्यूटल एक्सप्रेशन के साथ "बैठ जाईए बैठ जाईए" बोलते रहतीं हैं। 
चलिए कोई बात नहीं यह सब हमारे प्रतिनिधि हैं और सांसद हैं। उन्हे अधिकार है देश हित में यह शोर मचानें और संसद बन्द करानें का। लेफ़्ट राईट और सेंटर सब शोर मचानें के मामले में एक हैं। बोले तो जय हिन्दुस्तानी नेता.... 

हर मिनट संसद चलनें का खर्चा ढाई लाख रुपये का होता है और हमारे ज़िम्मेदार प्रतिनिधि कोई परवाह नहीं करते... एक्को बिल पास नहीं होता और सब काम अटका रहता है। न सार्थक पक्ष है और न सार्थक विपक्ष...  किसी को सरोकार और जनता से जुडे मुद्दों की परवाह नहीं है। 

चलिए इन नेताओं को इनके हाल पर छोड दें ...  और इन चुटकुले का आनन्द लीजिए

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टीचरः सूखे और बाढ़ में जमीन-आसमान का अंतर कैसे है?
छात्रः सूखे में नेताजी जीप से दौरा करते हैं, और बाढ़ में हेलिकॉप्टर से....
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नेता का बेटा: पापा मुझे भी राजनीति में उतरना है, कुछ टिप्स दीजिए। 
नेता: बेटा, राजनीति के तीन कठोर नियम होते हैं, चलो पहला नियम समझाता हूँ...
नेताजी ने बेटे को छत पर भेज दिया और ख़ुद नीचे आकर खड़े हो गए। 
नेताजी: छत से नीचे कूद जाओ,
बेटा: पापा, इतनी ऊंचाई से कुदूंगा तो हाथ-पैर टूट जायेंगे।
नेताजी: बेझिजक कूद जा, में हूँ न, पकड़ लूँगा।
लड़के ने हिम्मत की और कूद गया पर नेताजी नीचे से हट गए। बेटा धडाम से औंधे मुंह गिरा। 
बेटा: (कराहते हुए) आपने तो कहा था मुझे पकडेंगे फिर हट क्यों गए।
नेताजी: ये है पहला सबक- राजनीति में अपने पिता पर भी भरोसा मत करो...
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अब आपको लेकर चलते हैं आज के बुलेटिन की तरफ़.... 

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अम्बर तो श्वेताम्बर ही है

रंगों को नाज़ था अपने होने पर मगर पता ना था हर रंग तभी खिलता है जब महबूब की आँखों में मोहब्बत का दीया जलता है वरना तो हर रंग सिर्फ एक ही रंग में समाहित होता है शांति दूत बनकर ......... अम्बर तो श्वेताम्बर ही है बस महबूब के रंगों से ही इन्द्रधनुष खिलता है और आकाश नीलवर्ण दिखता है ...........मेरी मोहब्बत सा ...है ना !!

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"आनंद निकेतन" भोपाल में एक दिन..

वृजेश सिंह at बसंत के विखरे पत्ते 
आनंद निकेतन के संस्थापक प्रमोद मैथिल स्कूल में बच्चों साथआनंद निकेतन एक डेमोक्रटिक स्कूल है। जिसकी स्थापना प्रमोद मैथिल नें अपने सहयोगियों के साथ मिलकर की है। इसके पूर्व वे एकलव्य में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वहां के अपने अनुभवों को विस्तार देने के लिए उन्होनें यह स्कूल शुरू किया है। जहां उनकी टीम वर्तमान में शिक्षा में पूर्व में हो चुके प्रयोगों के निष्कर्षों को मूर्त रूप देने के साथ-साथ नवीन संभावनाओं को तलाशने की शोध यात्रा के दौर से गुजर रही है। यहां पढ़ने वाले बच्चे सहजता से अध्यापकों के साथ संवाद करते हैं। उनकी बातों का जवाब देते हैं। बेधड़के सवाल पूछते हैं। बेफिक्री से अपनी... more »
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टेलीफोन का नंबर

माधव( Madhav) at माधव 
माधव स्कुल से एक नया गेम सीख कर आये है . गेम की लाइन है : इन पिन सेफ्टी पिन खेलना है तो खेलो वर्ना ...गेट आउट टेलीफोन का नंबर 1,2,3 यू गेट फ्री "फ्री" जिस के पास खत्म होगा वही विनर माना जाएगा . घर मे हमेशा माधव ही जीतते है . सुबह जगने से लेकर रात को सोने तक "टेलीफोन का नंबर " घूमता रहता है .
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बाबा साहेब या बाला साहेब की स्‍मारक

बाला साहेब को अभी रुखस्‍त हुए कुछ दिन भी नहीं हुए कि उनकी स्‍मारक को लेकर विवाद शुरू हो गया। शिव सेना चाहती है कि बाला साहेब का स्‍मारक शिवाजी पार्क में बने, जबकि मनसे चाहती है कि शिवाजी पार्क को छोड़ कर बाला साहेब की स्‍मारक इंदू मिल की जगह पर बने। मगर दिलचस्‍प बात यह है कि मनसे ने जिस जगह बाला साहेब की स्‍मारक बनाने की बात कही है, उस जगह पर बाबा साहेब की स्‍मारक बनाने के लिए दलित संगठन संघर्ष कर रहे हैं। इतना ही नहीं, आरपीआई अध्यक्ष रामदास आठवले ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि यदि 5 दिसंबर तक इंदू मिल की 12.5 एकड़ जमीन बाबासाहब आंबेडकर के स्मारक के लिए उपलब्ध नहीं कराई गई तो पा... more »

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अतीत की यादों पर संवाद...

वृजेश सिंह at बसंत के विखरे पत्ते 
भोपाल के भारत भवन में खिले फूलों की तस्वीर हाल ही की भोपाल यात्रा के दौरान मुझे अपने पुराने मकान मालिक से मिलने का मौका मिला। उनसे संवाद करना और उनके जीवन के अनुभवों के बारे में सुनना वर्तमान समय, समाज व परिदृश्य को समसामयिक संदर्भ में समझने की सहूलियत हुई। जिसके कुछ विचार आपके साथ साझा कर रहा हूं। " बेहतर और सकारात्मक सोच के प्रसार के अभाव में सकारात्मकता का एक बड़ा बैकल्पिक बाजार बन गया है। जिसकी आपूर्ति सेल्फ हेल्प बुक और मोटिवेशन की तमाम किताबें, बेबसाइटें कुछ हद तक कर रही हैं। बाकी का बिजनेश बाबा जी लोग और तमाम आध्यात्मिक ज्ञान बांटने वाले चैनलों और बाबा जी लोगों के पास है। " ... more »


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हवाओं की अलगनी

रश्मि at रूप-अरूप 
देखो चांद के माथे जा चि‍पका है वो अनुत्‍तरित सवाल जो मुझसे पूछने को तुमने हवाओं की अलगनी में टांग रखा था.... क्‍या नहीं जानते तुम कुछ सवालों के जवाब नहीं होते और कई बार लोग गलि‍यों के फेरे भी डालते हैं बस...यूं ही..आदतन अब चांद भी हैरान है अपने माथे एक नया दाग देखकर सुनो कह दो उससे मेरे सवाल को ले परेशान न हो दागदार चांद भी सबको प्‍यारा है और बि‍ना जवाब दि‍ए भी कई बार सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं क्‍योंकि मन ही मन चुप्‍पी का राज जानते हैं.......
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भूली -बिसरी यादें

"मैं कोई किताब नहीं, जिसे जब चाहोगे, पढ़ लोगे तुम मैं कोई असरार नहीं, जिसे जब चाहोगे, समझ लोगे तुम , मैं हु, तुम्हारे दिल की धड़कन, जिसे सुनना भी चाहो, तो न सुन सकोगे तुम कितना ही शोर, हो, तुम्हारे चारो तरफ न सुन सकोगे तुम , कितनी ही उजास हो तुम्हारी रातें, न सो सकोगे तुम, पल भर में खीच लायेंगी, तुम्हे हमारी यादें, एक पल भी बगैर हमारे, न रह सकोगे तुम, मैं हूँ समेटे, अपने दिल में प्यार का दरिया, तुम्हारे लिए किसी रोज लौटा, तो बहने से, खुद को, न रोक सकोगे तुम" 


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प्यार न भूले,,,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया at काव्यान्जलि ... 
*प्यार न भूलें,* हम भूलें तो नफरत को, मगर प्यार न भूलें, निरादर को भुला दें , मगर सत्कार न भूलें! ये जीवन की हकीकत है,कैसे इसको बचाएगें, जो बीजेगें वो काटेगें,जो हम देगें वही पायेगें! नेकियों को सम्हाले हम ,वदी की राह को छोड़ें, ये गुरबत नही सिखाती है,किसी का दिल तोडें! बातें गुरुजन जो सिखाएं,हम उसका सार न भूलें, भूले हर बात दुनिया की,आपस का प्यार न भूलें! ये इंसाफ है कुदरत का ,इसे सरकार न भूलें , *dheerendra bhadauriya*
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सुहरवर्दी सिलसिला-3

मनोज कुमार at विचार 
*सुहरवर्दी सिलसिला-3* *शेख़ हमीदुद्दीन नागौरी** *** *क़ाज़ी शेख़ हमीदुद्दीन सुहरवर्दी नागौरी र.अ. *(1192-1274) सुहरावर्दिया संप्रदाय के प्रसिद्ध सूफ़ी संत थे। उन्होंने नागौर में इस संप्रदाय की स्थापना की और । उनका मानना था कि इंसान को ईश्वर तक पहुंचने के लिए सांसारिक वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए। उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर की ओर ध्यान लगाना चाहिए। उनका मानना था कि स्वयं को पहचानने से सत्य का द्वार खुलने लगता है। उनका जन्म बुखारा में हुआ था। मुहम्मद ग़ोरी के साथ उनके पिता 1206 ई. में भारत आए। उनका नाम मोहम्मद था और पिता का नाम अताउल्लाह। इसी कारण से मोहम्मद अता के नाम से जाने जाने लगे... more »

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कहीं इतना निश्चिंत ना हो जाऊं

कुछ घटनाएं ऐसी घटती रहती बीती घटनाओं की दिलाती भूलना चाहूँ तो भी नियती भूलने नही देती बार बार याद करने को मजबूर करती चाहती उन्हें सहेज कर सीने से लगाए रखूँ मुझे सचेत रखती हैं कहीं इतना निश्चिंत ना हो जाऊं पहले से भी बड़ा धोखा ना खा जाऊं 


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अफ़ज़ाल अहमद सैयद : सफ़हा नंबर 163 पर एक तस्वीर

मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते 
*पाकिस्तानी कवि अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता... * * * *सफ़हा नंबर 163 पर एक तस्वीर : अफ़ज़ाल अहमद सैयद * (लिप्यंतरण : मनोज पटेल) * * उसे किसी अजनबी दरिया के किनारे बैठकर अपने शहर को याद करने की ज़रूरत नहीं है वह महाखाली सेटिलमेंट से खुश है जिसका तज़्किरा कोपेनहेगेन में दिए गए एक लेक्चर में आता है वह तैरकर भी उस गारमेंट फैक्ट्री तक जा सकती है जहां उसने मैट्रिक पास करने के बाद से काम करना शुरू किया है वह एक मुश्तरका वी सी आर पर हफ़्ते में तीन फ़िल्में एक साथ देखती है और हर पहली तारीख़ को पूरी एक किलो हिल्सा मछली खरीदकर घर में लाती है उसका बीमार बाप आवारा भाई या न... more »

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मित्रों आज का बुलेटिन यहीं तक... अभी के लिए तो बैठ जाईए और बुलेटिन का आनन्द लीजिए... 

जय हिन्द
देव

4 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया लिंक्स

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर सूत्र..

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जय हो महाराज ... मस्त बुलेटिन लगाए हो ... संसद के यह नज़ारे कल हमने भी देखे थे टीवी पर ... अब क्या कहें ... सब तो तुमने कह ही दिया है ... सच मे "न सार्थक पक्ष है और न सार्थक विपक्ष... किसी को सरोकार और जनता से जुडे मुद्दों की परवाह नहीं" ... इनको सिर्फ अपनी जेब भरनी है !

लतीफे सब के सब जानदार है ... मज़ा आ गया !

vandana gupta ने कहा…

बहुत खूबसूरत बुलेटिन

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