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सोमवार, 9 जुलाई 2012

कहानी सिक्कों की - ब्लॉग बुलेटिन


प्रिय ब्लॉगर मित्रो ,
प्रणाम !

भारत में सिक्के का जन्म ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी के दौरान हुआ। दरअसल, इससे पहले व्यापार के लिए कोई मुद्रा अस्तित्व में नहीं थी। लोग एक सामान के बदले दूसरा सामान खरीदते थे, जिसे बार्टर सिस्टम कहा जाता था।? ऐसे में व्यापार के लिए एक मुद्रा की जरूरत महसूस हुई, जिसके निर्धारित मूल्य पर कोई भी चीज खरीदी या बेची जा सके? इस तरह मुद्रा के रूप में सिक्का अस्तित्व में आ गया।
गुप्त साम्राज्य
320 से 550 ईस्वी के बीच गुप्त साम्राज्य में सोने के सिक्कों को काफी बढ़ावा मिला | सोने के इन सिक्कों पर एक तरफ वीणा बजाते सम्राट समुद्रगुप्त और दूसरी तरफ कलात्मकता, साम्राज्य की मजूबती और सांस्कृतिक प्रकृति को दर्शाता चित्र उकेरा गया होता था। एक तरफ चंद्रगुप्त प्रथम और दूसरी तरफ रानी कुमारदेवी की तस्वीर वाला उस समय का एक सोने का सिक्का काफी लोकप्रिय रह चुका है।
पंच चिथ्ति सिक्के
500 ईसा पूर्व सिक्कों को पंच चिथ्ति सिक्कों के नाम से जाना-पहचाना जाता था। ये सिक्के देखने में आकर्षक नहीं लगते थे। ये अधिकतर तांबे या चांदी पर किसी जानवर या पेड़-पौधो की तस्वीर चिथ्ति करके बनाए जाते थे। 323 ईसा पूर्व में सिंकदर की मृत्यु के बाद उत्तरी भारत पर शासन करने वाले ग्रीस के राजाओं ने हेलसिन्की कला प्रणाली को अपनाकर सिक्कों के रंग-रूप को निखारने की कोशिश की। इसी के बाद सिक्कों पर राजाओं की तस्वीरों को उतारने का चलन शुरू हुआ, जिसे कुषाण राजाओं ने और भी लोकप्रिय बनाया।
टका की शुरुआत
इसके बाद 700 सालों की राजनैतिक उथल-पुथल का असर सिक्कों पर भी पड़ा और इस दौरान इस दिशा में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। लेकिन 1200-1280 ईस्वी के बीच गुलाम वंश के शासन के दौरान सिक्कों को मानक रूप देने की कोशिश की गई। जहां अमीर वर्ग के लिए चांदी के सिक्के टंका तो निचले वर्ग में तांबे का सिक्का जीतल व्यापार के साधन थे।
व्यापार को मिला सोने का सिक्का
आठवीं ईस्वी में कुषाण राजाओं के काल में सिक्कों को एक नई पहचान मिली। वीम कदफाइसेस ने पहली बार सोने के सिक्के चलाए। दरअसल, प्रजा में अपनी पहचान और प्रचार-प्रसार के लिए कुषाण राजाओं ने मुद्रा यानी सिक्के का भरपूर इस्तेमाल किया।
सांकेतिक मुद्रा शुरू करने की नाकाम पहल
1329-30 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक ने सांकेतिक मुद्रा शुरू करने की कोशिश की। हालांकि राज्य प्रणाली की कमजोरी ने इसे सिर्फ एक पहल बनाकर रख दिया और व्यापार फिर से सोने और चांदी के सिक्कों में सिमटकर रह गया।
आधुनिक मुद्रा की शुरुआत
आधुनिक मुद्रा यानी रुपये को शुरू करने का श्रेय शेरशाह सूरी को जाता है। शेरशाह ने 11.4 ग्राम के चांदी के सिक्के की शुरुआत की, जिसे चांदी का रूपी भी कहा गया। दरअसल, चांदी के संस्कृत अर्थ रूप से रुपया शब्द सामने आया। मुगल साम्राज्य ने भी शेरशाह द्वारा शुरू तंत्र को ही आगे बढ़ाया। मुगल बादशाहों में जहांगीर को सिक्कों से कुछ खास लगाव था। बादशाह जहांगीर ने कुछ समय के लिए राशि चक्रीय सोने और चांदी के सिक्के चलाए। यही नहीं, 12 किलो का सोने का दुनिया का सबसे बड़ा सिक्का भी इसी दौरान बना।
सिक्का अधिनियम 1835
केंद्र में मुगल शासन के कमजोर होने के बाद अलग-अलग रियासतें अपने सिक्के जारी करती रहीं, जिनका मूल्य और प्रचलन राज्य की मजबूती पर निर्भर करता था। अंग्रेजी शासन की मजबूती के साथ आधुनिक सिक्के प्रचलन में आए। मद्रास, बांबे और बंगाल के साथ प्रिंसली स्टेट्स अपने सिक्के निकालते रहे। पूरे देश में अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के बाद अंग्रेजों ने 1835 में सिक्का अधिनियम बनाया। पूरे देश के लिए सिक्कों का एक मूल्य निर्धारित किया गया। सिक्कों में एक तरफ रानी विक्टोरिया की तस्वीर और दूसरी तरफ अंग्रेजी और उर्दू में इनका मूल्य था।
सिक्का अधिनियम 1906
इसके तहत सोने, चांदी और रुपये के मानक निर्धारित कर दिए गए। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध मे चांदी की कमी ने पेपर करेसी को प्रचलन में ला दिया। धीरे-धीरे सिक्कों पर भी विक्टोरिया की जगह अशोक स्तंभ ने ले ली।
स्वतंत्र भारत में सिक्कों को जारी करने का अधिकार आरबीआई के पास है। फिलहाल मुबंई, कोलकाता, हैदराबाद और नोएडा में इन्हे बनाया जाता है। इस तरह सिक्के किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती और उसकी सांस्कृतिक पहचान की सबसे बड़ी धरोहर हैं। सिक्कों की कहानी में एक अध्याय बंद भले हो सकता है, पर इनका सफर यूं ही बदस्तूर जारी रहेगा। इस आलेख को आप यहाँ भी पढ़ सकते है |

सादर आपका 


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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिंद !!

18 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

बेहतरीन जानकारी के साथ बढ़िया लिंक्स ..यही खासियत है इस बुलेटिन की.

केवल राम ने कहा…

बेहतरीन जानकारी ...हमारी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार ...!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया...
सौ टके की बात.......
बेहतरीन लिंक्स..........

अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन जानकारी के साथ सुंदर लिंक्स,,,

RECENT POST...: दोहे,,,,

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

aabhaari hoon shivam jee. badhiya links mile.

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी जानकारी

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

mishir ji sundar links ke sath sikko ki sundar jankari di aapne . ek sudhar chahunga BHARAT ME KUSHAN VANSH KA SHASAN 1 CENTURY A.D. ME HUA THA NA KI 8 CENTURY A.D. ME. PUNCH MARK COIN KE PAHLE BHI SHATMAN AUR NISHK MUDRA VINIMAY KE ROOP ME MILTE HAI. HALANKI VINIMAY TO INDUS VALLY CIVILIZATION SE HI SHURU HO GYA THA.
THANK YOU

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत आभार मुकेश जी ! यह आलेख जहां से लिया गया है उसका लिंक मैंने दिया हुआ है ... मुझे जो भी जानकारी मिली है उसी आलेख से मिली है मेरी आदत है कि मैं नेट पर इस तरह के आलेख पढ़ता हूँ और जो मुझे पसंद आता है आप सब के साथ शेअर करता हूँ !

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर प्रविष्टि. हमने भी कुषाण काल के बारे में आपका ध्यान आकर्षित करना चाहा था. संभवतः शतमान भी आहत मुद्रा ही थी.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर सूत्रों से सजा बुलेटिन..

Shah Nawaz ने कहा…

वाह.... बढ़िया जानकारी.... अच्छे लिंक्स... ज़बरदस्त सर जी!

कुमार राधारमण ने कहा…

एपिक ब्राउजर डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

deepakkibaten ने कहा…

Thanks a lot for including me in this post.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

@Kumar Radharaman

आप सीधे एपिक की वेब साइट पर जा कर कोशिश कीजिये!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

चुनी हुई ब्लॉग पोस्ट्स में मुझे शामिल कर आपने जो मेरी हौसला अफजाही की है उसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ...आपके माध्यम से मैंने और भी बहुत से बेहतरीन ब्लॉग तक पहुँचने में सफलता प्राप्त की है...आपके इस कार्य की जितनी प्रशंशा की जाय कम है..

नीरज

Anamikaghatak ने कहा…

jankari bhara post.....bahut bahut shukriya

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